Last Updated on November 7, 2021 by admin
आँतों में कृमि (कीड़े या केंचुए) हो जाना कृमि रोग कहलाता है । यह रोग स्त्री-पुरुष, बालकों, वृद्धों, सभी को हो सकता है किन्तु यह रोग बच्चों को अधिक हुआ करता है।
पेट में कीड़े होने के कारण : pet me kide hone ka karan
पेट में कीड़े भोजन की अनियमितता तथा खान-पान में गड़बड़ी एवं आँतों की भली प्रकार सफाई न होने के कारण पेट में अकसर कीड़े हो जाते हैं।
पेट में कीड़े होने के लक्षण : pet me kide hone ke kya lakshan
- पेट में कीड़े होने से मलद्वार तथा नाक में खुजली हुआ करती है।
- जी मिचलाता है तथा पेट में धीमाधीमा दर्द होता है।
- या तो बहुत ज्यादा भूख लगती है या फिर भूख बहुत कम लगती है।
- खून की कमी तथा कमजोरी हो जाती है, कब्ज रहती है या पतले दस्त आने लगते हैं, खड़िया की तरह सफ़ेद पेशाब हो सकता है, पेट बड़ा तथा कठोर हो जाता है|
- नींद में गड़बड़ी तथा बिस्तर पर पेशाब कर देना |
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो जाना आदि लक्षण हो जाते हैं।
- इस रोग के अधिक बढ़ जाने से किसी विशेष अंग का काँपना और मिर्गी आदि विकार हो जाया करते है।
पेट के कीड़ों के प्रकार : pet ke kide ke prakar
चुनूने (Thread Worms):
यह कीड़े पतले धागे की भाँति सफेद रंग के होते हैं जो मल के साथ निकलते रहते हैं। पेट में यह कीड़ा होने पर रात्रि में सोते समय गुदा में खुजली होती है, रोगी बालक नाक कुरेदता रहता है। मुँह से पानी बहना, दाँत किटकिटाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। ‘ |
टेप वर्ल्स (Tape Worms) :
यह कीड़े फीते की भाँति चौड़े होते हैं। पूरा कीड़ा 4 से 6 से मीटर तक लम्बा होता है। यह कीड़े वयस्कों को अधिक होते हैं। चुनूने (कृमि) बच्चों को अधिक होते हैं। मल में इस कीड़े के छोटे-छोटे कद्दूदानों की भाँति टुकड़े निकलते रहते हैं। इसी कारण इसे कद्दूदाना कृमि भी कहा जाता है। इस कीड़े के रोगी के सिर के ऊपरी भाग में दर्द रहना, भूख अधिक लगना, मुँह से बदबू आना आदि लक्षण प्रकट होते है।
गोल कीड़े (Round Worms) :
यह केचुएँ की भाँति 12 से 40 सेन्टीमीटर तक लम्बाई का होता है तथा छोटी अन्तडी में रहता है। इसका लार्वा वहाँ से रक्त द्वारा जिगर, फेफड़ों में पहुँच जाता है जिसके फलस्वरूप एक विशेष प्रकार का न्यूमोनिया हो जाता है। आसाम,त्रिचिनापल्ली वयस्कों को अधिक होता है। पेट में यह कीड़े होने पर पेट फूलना आमाशय के ऊपर दर्द तथा चुभन, पित्ती उछलना, चर्म पर ददौड़े निकल आना, दाँत पीसना, बिस्तर पर मूत्र का निकल जाना, आक्षेप (झटके), सांस कठिनाई से आना, पेट दर्द, दस्त, खून मिले दस्त आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इन कीड़ों के प्रभाव से पीलिया, जिगर का फोड़ा तथा पित्ताशय-शोथ जैसे रोग भी हो जाते हैं।
अंकुश कीड़े (Hook Worm) :
यह कीड़े 1.25 सेमी. लम्बी प्याली की भाँति गोल होते है। इनके मुख हुक की भाँति टेढ़े होते है। जिससे ये अन्तड़ियों को पकड़ लेते हैं। यह कीड़ा प्रतिदिन 5-6 बूंद रक्त चूस लेता है|इसी कारण इस कीड़े के रोगी को खून की अत्यधिक कमी हो जाती है। फलस्वरूप रोगी बहुत कमजोर हो जाता है।
पेट में कीड़े होने पर क्या नही खाएं :
- खीरा ककड़ी, कच्चे फल, आलू, मांस, चीनी, मिठाई, खटाई आदि न दें।
पेट में कीड़े होने पर क्या खाएं :
- खूब पके नारियल का दूध थोड़ा-थोड़ा दें।
- तीते, कषैले और कड़वे पदार्थ दें।
- आटे में नमक और सोडा मिलाकर रोटी पकाकर खिलायें।
- पोदीना या अदरक की चटनी जीरा मिलाकर दें।
- आडू अखरोट, और मीठे बादाम दे सकते हैं।
- सैंधा नमक के साथ 10-12 कागजी नीबू का रस देना उपयोगी है।
- लहसुन के क्वाथ का एनीमा देने से या 10 से 15 ग्रेन फिटकरी को 1 औंस जल में मिलाकर पिचकारी देने से भी कृमियाँ मर जाते है।
पेट में कीड़े का घरेलू इलाज (pet me kide ka gharelu upchar in hindi)
1. आम की गुठली – कच्चे आम की गुठली का चूर्ण 2-4 रत्ती तक दही या जल के साथ प्रातः सायं सेवन करने से सूत जैसे कृमि नष्ट हो जाते हैं। (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
2. चम्पा – चम्पा के फूलों का स्वरस शहद में मिलाकर दिन में दो बार देने से उदरकृमि निकल जाते हैं तथा उनकी भावी उत्पत्ति रुक जाती है। अथवा चम्पा के ताजा पत्तों के रस 20 ग्राम में थोड़ा शहद मिलाकर पिलाने से उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं। ( और पढ़ें – पेट के कीड़े दूर करने के 55 घरेलु उपचार )
3. पलाश – पलाश के बीज तथा बायबिंडग का समभाग चूर्ण 3 ग्राम में नीबू रस 3 ग्राम मिलाकर शहद के साथ देने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।
4. कबीला – कबीला कृमि नाशक उत्तम औषधि है। विशेषता जब गोल एवं सूत जैसे कृमि हों तो इसके नाशार्थ 3 से 6 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ खिलाने से कृमि विरेचन के साथ निकल जाते हैं। बच्चों को 1 से 4 रत्ती की मात्रा में माता के दूध के साथ सेवन कराने से कृमि नष्ट हो जाते हैं। ( और पढ़ें – बच्चों के पेट के कीड़े मारने के घरेलू उपाय )
5. पान – बालकों के उदर में गोल कृमि होने पर पान का रस शक्कर मिलाकर देने से गोल कृमि मर जाते हैं।
6. प्याज – प्याज का रस बच्चों को पिलाने से उनके कृमि नष्ट हो जाते हैं। ( और पढ़ें – प्याज खाने के 141 फायदे )
7. लहसुन – लहसुन तथा गुड़ को सम मात्रा में मिलाकर गोली बना लें। बच्चों को 3 ग्राम तथा बड़ों को दस ग्राम की गोली सुबह खाली पेट खिला दें। यह प्रयोग तीन दिन तक करें।
8. नारंगी – नारंगी के सूखे छिलके और बायबिडंग दोनों को समान मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनालें । यह 3 ग्राम चूर्ण फाँक कर ऊपर से गर्म पानी पी लें। पेट के कीड़े मर जायेंगे।
9. कैस्टर ऑयल – पहले दो-तीन दिन यह दवा खिलायें तत्पश्चात ‘कैस्टर ऑयल’ पिला देने से मरे हुए कीड़े दस्त द्वारा सरलता से बाहर निकल जाते हैं। ( और पढ़ें – अरण्डी तेल के 84 लाजवाब फायदे )
10. लहसुन – लहसुन की कच्ची कलियों का 20-30 बूंद रस एक गिलास दूध में मिलाकर देने से कीड़े मरकर शौच के साथ बाहर निकल आते हैं।
11. बेल – बेल के पके फलों के गूदे का रस या जूस तैयार करके पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। ( और पढ़ें – बेल फल के चौका देने वाले 88 फायदे )
12. पपीता – कच्चे पपीते के दूध को बच्चों को देने से पेट के कीड़े मर जाते हैं और बाहर निकल आते हैं। प्रतिदिन रात को आधा चम्मच रस का सेवन तीन दिनों तक कराया जाए तो पेट के कीड़े मर जाते हैं।
13. हल्दी – पेट में कीड़े होने पर 1 चम्मच हल्दी चूर्ण रोज सुबह खाली पेट एक सप्ताह तक ताजे पानी के साथ लेने से कीड़े खत्म हो जाते हैं।
14. जीरा – जीरे की करीब 3 ग्राम की मात्रा दिन में 5 से 6 बार चबाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
15. नारियल – कच्चे नारियल को चबाते रहने से भी पेट के कीड़े मर जाते हैं। ( और पढ़ें – नारियल पानी पीने के 15 जबरदस्त फायदे )
16. परवल – परवल और हरे धनिया की पत्तियों की समान मात्रा (20 ग्राम प्रत्येक) लेकर कुचलकर और चौथाई लीटर पानी में रात भर के लिए भिगोकर रख दें। सुबह इसे छानकर तीन हिस्सेकर थोड़ा सा शहद डालकर दिन में तीन बार पीने से पेट के कीड़े मर जाएंगे।
17. गोरखमुंडी – गोरखमुंडी के बीजों (सूखे फूल) को पीसकर चूर्ण तैयारकर सेवनकराने से आंतों के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
18. काला नमक – आधा ग्राम अजवायन के चूर्ण में हल्का-सा काला नमक मिलाकर रात्रि में सोते समय गर्म जल से पिला दें । बड़ों को (अजवायन चूर्ण दो ग्राम तथा काला नमक आधा ग्राम) की मात्रा में गर्म पानी से दें ।
19. अजवायन – अजवायन का चूर्ण आधा ग्राम (बच्चों को) तथा दो ग्राम बड़ों को) की मात्रा में, क्रमशः 50 ग्राम एवं 125 ग्राम । (एक कप) छाछ के साथ देने से पेट के कीड़े नष्ट होकर मल के साथ निकल जाते हैं।
20. अरंड के पत्ते – बच्चों के चुन्ने होने पर अरंड के पत्तों का रस तीन-चार दिन बच्चों की गुदा में लगाने से चुन्ने (सफेद छोटे कीड़े) मर जाते है।
21. प्याज का रस – प्याज का रस पिलाने से बच्चों के पेट के कीड़े तथा बदहजमी दूर होती है ।
22. सेंधा नमक – दो टमाटर, काली मिर्च एवं सेंधा नमक बुरककर निहार मुंह खाने से पेट के कीड़ेनष्ट होते हैं। दो घंटे तक बच्चे को कुछ खाने को न दें । (तीन साल से कम उम्र के बच्चे को न दें ।)
23. पपीते के बीज – पपीते के बीज का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार लेने से कृमि नष्ट हो | जाते हैं।
24. अजवाइन पानी – सबेरे खाली पेट थोड़ा सा गुड़ खाएँ। लगभग 15 मिनट बाद चम्मच भर पिसी अजवाइन पानी के साथ निगल लें। इस तरह पहले तो गुड़ की मिठास से पेट के कीड़े एक जगह एकत्र होंगे, ऊपर से अजवाइन खा लेने से ये कीड़े मरकर शौच के साथ बाहर आ जाएँगे। जब तक कीड़े पूरी तरह समाप्त न हो जाएँ, तब तक यह प्रयोग करना चाहिए।
25. छाछ – आधा चम्मच अजवायन का चूर्ण 1 कप छाछ के साथ दिन में दो बार कुछ दिनों | तक सेवन करने से पेट के सभी प्रकार के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
26. कद्दू के बीज – दो औंस कद्दू के बीज पीसकर शहद में मिलाकर खा लें, फिर 24 घंटे तक कुछ न खाएँ। इसके बाद 2 औंस या 4 बड़े चम्मच कैस्टर ऑयल पी लें। 3-4 घंटे बाद एनीमा लें । टेप वर्म होगा तो निकल जाएगा।
27. काली मिर्च – सुबह-सुबह खाली पेट पिसी हुई काली मिर्च टमाटर में लगाकर खाएँ।
28. अजवाइन चूर्ण – 1/2 ग्राम अजवाइन के चूर्ण में चुटकी भर काला नमक मिलाकर रात को गरम पानी के साथ पिलाने से बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते हैं।
29. टमाटर का रस – प्रात:काल बिना कुछ खाए टमाटर का रस एक कप की मात्रा में सेंधा नमक डालकर पिलाएँ।
30. निबौली – छोटे बच्चों और शिशुओं को नीम की निबौली की मींग माँ के दूध में घिसकर या पीसकर एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार पिलाएँ, सब कीड़े मल के साथ बाहर आ जाएँगे।
31. सरसों का तेल – गुदा मार्ग से सरसों का तेल अंदर करने तथा गुदा में लगाने से बड़ी राहत महसू होती है।
32. नीम की पत्ती – नीम या बकायन की पत्तियों का रस काली मिर्च पाउडर डालकर आधाकप की मात्रा में प्रात:तीन दिन सेवन करें, इससे पेट के कीड़े मर जाएँगे।
पेट में कीड़े का आयुर्वेदिक उपचार और दवा (pet me kide ki ayurvedic upchar aur dawa )
कृमि की जाति का निर्णय करें। प्रत्येक कृमि की चिकित्सा भी अलग-अलग होती है।
रस :
- कृमि मुद्गर रस, कीटमर्द रस, कीटारि रस, कृमि कालानल रस 250 मि.ग्रा. दिन में 2 बार भद्र मुस्तादि क्वाथ से या इसमें शहद मिलाकर सेवन कराये। श्रेष्ठ आन्त्र कृमि नाशक है। ‘कृमि मुद्गर रस’ कफज कृमियों को नष्ट करने में अद्वितीय है ।
- कृमि कुठार रस, सर्वतोभद्ररस, अश्व कंचुकी रस, 125 से 250 मि.ग्रा. आखुषर्णी क्वाथ या बिड़ग क्वाथ से दिन में 2 बार दें।
लौह एवं मान्डूर :
- बिडङ्ग लौह-500 मि.ग्रा. दिन में 2 बार इन्द्रायण क्वाथ से श्रेष्ठ कृमि नाशक है।
- नवायस लौह 250 से 500 मि.ग्रा. दिन में 2 बार हिंगु पत्री, त्रिफलाधृत से, वाष्यादि लौह उपयुर्त मात्रा में गौमूत्र से
- पुनर्नवादि मान्डूर 250 से 500 मि.ग्रा. सुरसादिगण क्वाथ से दें।
भस्म :
- मान्डूर भस्म 250 मि.ग्रा. दिन में 2-3 बार बिडंग+त्रिफला क्वाथ से कदूष्ण, कृमिवात नाशक है |
- कांस्य भस्म 125 मि.ग्रा. दिन में 2 बार बिडंगन+ पंचकोल क्वाथ से, पत्तिल भस्म 30 से 60 मि.ग्रा. पंच कोल क्वाथ से |
- तुत्थ भस्म उपयुक्त की भांति तथा लौह भस्म एवं बंगभस्म 250 मि.ग्रा. दिन में 2 बार त्रिफलाक्वाथ या उष्ण जल या मधु से दें।
चूर्ण :
- पलाश बीजादि चूर्ण 1 ग्राम दिन में 2 बार, जन्तुहन्तु चूर्ण, 1-2 ग्राम दिन में 2 बार, शिवाक्षर पाचन चूर्ण 2 ग्राम दिन में 2 बार पंचसकार चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार पंचसकार चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार उष्ण जल से दें। श्रेष्ठ कृमिहर तथा कृमि निस्सारक चूर्ण है।
क्वाथ :
- भद्र मुस्तादिक्वाथ 10-12 ग्राम का क्वाथ दिन में 2 बार त्रिफलादि क्वाथ उपरोक्त मात्रा में पिप्पली+बिडंग प्रक्षेप कर (अनुपान से) खिलायें । कृमि हर तथा शोधक क्वाथ हैं।
वटी :
- कृमिघातिनी वटी 1 गोली दिन में 2 बार |आखपर्णी क्वाथ सिता जल से, रसोनादि वटी 2 गोली दिन में 2 बार दें।
गुग्गुल :
- सप्तविंशति गुग्गुल 1-2 गोली दिन में 2 बार पिप्पली+यवानी कुटकी क्वाथ से दें। कृमि हर तथा शोधक है।
आसव एवं अरिष्ट :
- बिडंगारिष्ट, कुमार्यासव, लौहासव, 15 से 25 मि. ली. समान मात्रा में जल मिलाकर तथा महाशंख द्रावक 1 बिन्दु ताम्बूल में रखकर भोजनोत्तर प्रयोग करायें । कृमि हर तथा शोधक हैं।
अवलेह एवं खन्ड :
- परिमद्रावलेह 5 से 10 ग्राम दिन में 1-2 बार हरिदास खन्ड, आर्द्रक खन्ड उपयुक्त मात्रा में उष्णोदक अनुपान से दें। तथा रसोन खन्ड बिंडग क्वाथ से दें। कृमि हर तथा शोधक है।
घृत :
- त्रिफलादि घृत, पंचतिक्त घृत, बिंडग घृत, नाराच घृत 5 से 10 ग्राम 1-2 बार उष्णजल से ।
- बिंडग घृत शर्करा+जल से कृमिहर तथा शोधक है।
तेल :
- भल्लातक तैल, विडंग चूर्ण के साथ, बिंडग तेल तथा एरन्ड तेल 5 से 10 ग्राम 1-2 बार दुग्ध के साथ दें। कृमि हर तथा शोधक है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)