Last Updated on October 2, 2020 by admin
रोग परिचय : prostate granthi ka badhna / sujan
वृद्ध पुरुषों की प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण मूत्र आना रुक जाता है । मूत्राशय मूत्र से भर जाता है जिसके फलस्वरूप मूत्र वेग के समय अत्यधिक दर्द होता है । रोगी व्याकुल होकर तिलमिला उठता है।
प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन के कारण :
यह रोग सुजाक के आक्रमण से हो जाता है। कभी-कभी पथरी की रगड़ और खराश एवं गुदा के रोगों के कारण भी हो जाता है। इस रोग का कारण ‘‘स्ट्रेप्टो कोक्कस’ नामक कीटाणु हैं। टान्सिल, मसूढ़ों या शरीर के किसी गह्वर (Cavity) के इन्फेक्शन व सड़ांध रक्त में मिल जाने पर भी यह रोग हो जाया करता है।
प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन के लक्षण :
- तीव्र (Acute) रोग में रोगी को ज्वर भी हो जाया करता है।
- गुदा और इन्द्रिय के मध्य की सींवन में भारीपन, बार-बार मूत्र आना।
- आरम्भ में मूत्र का रुकना तथा मूत्र शुरू हो जाने पर खुलकर आना। (सूजाक होने पर मूत्र बड़ी कठिनाई से आया करता है) ।
- गुदा में ऊगली डालकर परीक्षण करने से पौरुष ग्रन्थि बढ़ी हुई और पिलपिली सी प्रतीत होती है, जिसमें दर्द भी होता है,
- मूत्र करते समय अत्यधिक दर्द एवं जलन,
- रोगी का भय के मारे पाखाना न कर सकना आदि लक्षण हुआ करते हैं।
- मूत्र में इस ग्रन्थि का तरल भी आने लगता है।
- समय पर चिकित्सा न करने से सूजी हुई ग्रन्थि में पूय उत्पन्न होकर फोड़ा बन जाता है।
- प्रोस्टेट ग्रन्थि बड़ी हो चुकी है तो वह समतल और लचीली प्रतीत होगी, परन्तु कैंसर हो जाने पर यह ग्रन्थि कठोर होगी और उसमें लचक नहीं होगी।
- इसमें फोड़ा बन जाने पर हर समय ज्वर रहेगा तथा मूत्र-त्याग करते समय जिस रोगी को दर्द, मूत्र मार्ग में टीस प्रतीत हो, उसके मूत्राशय में पथरी का सन्देह हो सकता है।
- यदि मूत्र में पीप आने लग जाये तो प्रोस्टेट ग्लैन्ड में फोड़ा (ProstaticAbscess) का प्रमाण है।
- रोग पुराना हो जाने पर मूत्र में सूत के रेशों (तन्तुओं) के सदृश पदार्थ आने लगता है और बाकी लक्षण भी पाये जाते हैं।
प्रोस्टेट में परहेज :
केक, पेस्ट्री, पनीर, पुलाव, पराठे, टमाटर, सिरका, नीबू, चाय और तमाम गर्म, तेज, उत्तेजक, कब्ज करने वाले, गरम मसाले युक्त भोजन रोगी को बिल्कुल न दें । तीव्र रोग में रोगी को केवल जौ का पानी (बार्ले-वाटर) माल्टा या मौसमी और सन्तरे का रस ही पिलायें। शराब बिल्कुल न पिलायें तथा मैथुन से परहेज करें ।
पौरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) का बढ जाना, सुजन का इलाज : prostate granthi ki sujan ka ilaj in hindi
1. रोगी को चलने-फिरने से रोक दें। बिस्तर पर लिटाये रखें। थोड़े गर्म पानी को टब में डालकर रोगी को इस प्रकार बिठायें कि उसकी गुदा, इन्द्रिय और कुल्हे गर्म पानी में रहें, बाकी सारी शरीर पानी से बाहर रहे। ऐसा करना दर्द व सूजन में लाभकारी है।
2. गर्म पानी में पोस्ट के डोडा डालें और उबालकर गुदा, सवन और इन्द्रिय के ऊपरी भाग की गर्म-गर्म टकोर और सिंकाई करें। अलसी की गर्म-गर्म पुल्टिस की गुदा र्सीवन पर टकोर करना और बाँधना भी लाभकारी है।
4. गुदा और अन्डकोषों के बीच की सीवन पर 5-6 जोंके लगाकर रक्त निकलना लाभकारी है।
5. पीली कौड़ी या (मुक्ता-शुक्ति) जलाकर 1-2 ग्राम जल के साथ खिलायें। पेट में वायु अधिक पैदा होने पर लवण भास्कर या हिंग्वाष्टक चूर्ण 2-3 ग्राम खिलायें ।
6. पुरस्थ वृद्धि हर वटी, शोभांजन की जड़ की छाल, शोभान्जन की गोंद, नीम पत्र, सिन्दुआर पत्र, श्वेत पुनर्नवा मूल, प्रत्येक 100 ग्राम तथा श्वेत फिटकरी भस्म 25 ग्राम एवं कन्टकारी भस्म 10 ग्राम लें । सभी को कूट पीस व कपड़छन कर त्रिफला के काढ़े से संयुक्त करके 250 मि.ग्रा. की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रखलें । यह 1-2 गोली दिन में 3 बार त्रिफला के काढ़ा से सेवन करें।
7. सहजन की जड़ की ताजी अन्तर छाल, श्वेत पनर्नवा मल, नीम की अन्तर छाल और रोहितक छाल–प्रत्येक समभाग लेकर त्रिफला क्वाथ के साथ सूक्ष्म पीसकर लेप बनालें । इस लेप को शिश्नमूल और समस्त शिश्न पर मोटा लेप दिन में 2-3 बार लगाया करें । लेप काफी देर तक लगाये रखें
8. श्वेत पुनर्नवा सर्वांग तथा नीम के ताजे पत्ते (बिना कीड़े खाये) समभाग लेकर एक बड़ी कड़ाही में डालकर उसमें इतना पानी डाल लें कि पुनर्नवा, नीम आदि डूब जाए। फिर खूब उबलने पर इसकी भाप से शिश्न पुरस्थ प्रदेश को दिन में 3-4 बार 2-3 दिन तक सेकें । अति लाभप्रद योग है।
प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन की दवा : prostate granthi ki sujan ki ayurvedic dawa
पुनर्नवा अर्क निर्मित प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ जाने व सुजन में शीघ्र राहत देने वाली लाभदायक आयुर्वेदिक औषधी |
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(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)