Last Updated on July 22, 2019 by admin
परिचय :
बंग दो प्रकार का होता है। एक हिरनखुरी (खुरक) और दूसरा मिश्रक। इनमें “हिरनखुरी” बंग भस्म के लिये ली जाती है। इसका विशिष्ट गुरुत्व ७.३ और द्रवणांक २३५° शतांश ताप है तथा २२७° शतांश ताप पर बाष्प बनकर उड़ने लगता है। पिनांग (चीन) का बंग श्रेष्ठ होता है।
हिरनखुरी बंग के लक्षण :
हिरनखुरी बंग रंग में सफेद, कोमल, स्निग्ध, जल्दी गल जानेवाला, भारी और शब्दरहित होता है। यही बंग भस्म के लिए उत्तम है।
बंग भस्म बनाने की विधि :
बंग को लोहे की कड़ाही में अग्नि पर गलाकर उसमें पलास (ढाकटेसू) के पुष्य मोती की सीप का चूर्ण थोड़ा-थोड़ा डालकर लोहे की कलछी से चलाता जाय। जब सम्पूर्ण बंग का चूर्ण हो जाय तब उसके ऊपर सकरा ढककर तब तक आँच दें जब तक बंग भस्म का वर्ण आग की तरह लाल न हो जाय। स्वांगशीतल होने पर सूप से फटककर पलास के फूलों की राख अलग करके बंग भस्म को कपड़े से छानकर ग्वारपाठे (घीकुमारी) के रस में मर्दन कर छोटी-छोटी टिकियां बनाकर, धूप में सूखाकर, सराब-सम्पुट में बन्द कर गजपुट में फेंक दें। इस तरह सात पुट देने से श्वेतवर्ण की भस्म मिलेगी।
– सि. यो. सं.
बंग भस्म के गुण / रोगों में लाभ : bang bhasma ke gun / labh
बंग भस्म प्रमेह, धातुक्षीणता बहुमूत्र, वीर्यस्त्राव, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, नपुंसकता, कास, श्वास, रक्त-पित्त, पाण्डु, कृमि, मन्दाग्नि, क्षय आदि रोगों को नष्ट करती है। यह उष्ण दीपक, पाचक, रूचिकर, बलवीर्य – वर्द्धक, वातघ्न और किंचित् पित्तकारक है। स्त्रियों के गर्भाशय के दोष,अत्यार्तव, कष्टार्तव तथा वन्ध्यत्व दूर करने में भी यह भस्म गुणकारी है, उपदंश और सूजाक से दूषित शूक्र को शुद्ध कर सन्तानोत्पादन के योग्य बनाती है। पुराने रक्त और त्वचा के दोष भी इसके सेवन से दूर हो जाते हैं। सब प्रकार के प्रमेह विशेषतः शुक्रमेह पर बंग भस्म का प्रयोग अत्यन्त लाभदायक है।
बंग भस्म सेवन की मात्रा और अनुपान :
१ से २ रत्ती मक्खन, मलाई, मिश्री, मधु या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ दें।
बंग भस्म से रोगों का उपचार : bang bhasma se rogon ka upcha
1- मुख की दुर्गन्धि में – बंग भस्म १ रत्ती, शुद्ध कपूर २ रत्ती, सेन्धा नमक २ रत्ती -इन्हें कडुवा तेल में मिलाकर मंजन करें।
2- शरीर-पुष्टि के लिए – जायफल का चूर्ण २ रत्ती, बंग भस्म १ रत्ती में मिलाकर मधु या गाय के दूध के साथ दें। ( और पढ़े – शरीर को फौलाद सा मजबूत बना देंगे यह नुस्खें)
3- प्रमेह में – बंग भस्म १ रत्ती, हल्दी चूर्ण ४ रत्ती, अभ्रक भस्म १ रत्ती में मिलाकर मधु से दें।
अथवा- बंग भस्म १ रत्ती, गोखरू चूर्ण १ माशा में मिलाकर गोदुग्ध (मिश्री मिलाकर ) के साथ देवें ।
अथवा – बंग भस्म १ रत्ती, नाग भस्म १ रत्ती, गिलोयसत्व ४ रत्ती एकत्र मिलाकर मलाई के साथ देवें।
4-पाण्डु में – बंग भस्म १ रत्ती, लौह या मण्डूर भस्म २ रत्ती त्रिफला चूर्ण के साथ मधु में मिलाकर देवें। ( और पढ़े – पीलिया के 16 रामबाण घरेलू उपचार )
5-गुल्म में – बंग भस्म २ रत्ती, सुहागे की खील ४ रत्ती शंख भस्म २ रत्ती में मधु या गोमूत्र के साथ देवें।
6-रक्तपित्त में – बंग भस्म १ रत्ती, प्रवाल पिष्टी २ रत्ती, सितोपलादि चूर्ण २ माशे को दूर्वा रस और मधु के साथ दें तथा अर से उशीरासव पिलावें।
7-बलवृद्धि के लिये – बंग भस्म २ रत्ती, लौह भस्म १ रत्ती, प्रवालभस्म २ रत्ती, मक्खन मिश्री के साथ दें।
8-अग्निमांद्य के लिये – बंग भस्म १ रत्ती, पीपल चूर्ण २ रत्ती में मिलाकर नीम्बू या अदरख रस में दें। ( और पढ़े – भूख बढ़ाने के 55 घरेलू नुस्खे )
9-ऊर्ध्वश्वास के लिये – बंग भस्म १ रत्ती, हल्दी चूर्ण २ रत्ती में मिलाकर घृत और मिश्री के साथ दें।
10-दाह शमन के लिये – बंग भस्म १ रत्ती, नीम की पत्ती का रस १ तोला, मिश्री २ माशा मिलाकर दें।
11- वीर्यस्तम्भन के लिये – बंग भस्म २ रत्ती, नाग भस्म १ रत्ती, वंशलोचन चूर्ण ४ रत्ती में मिलाकर अथवा कस्तूरी आधी रत्ती, भांग ४ रत्ती में मिलाकर मक्खन -मिश्री अथवा पान के रस या मधु में मिलाकर दें, पश्चात् औंटाया हुआ दुध पिलावें।
12-चर्मविकार में- बंग भस्म १ रत्ती तबकिया हरताल भस्म आधी रत्ती में मिलाकर त्रिफला चूर्ण १ माशा के साथ दें। ऊपर से खदिरारिष्ट या सारिवाद्यासव पिलायें।
13-सोमरोग में- बंग भस्म १ रत्ती को ताम्र भस्म आधी रत्ती के साथ मधु में मिलाकर दें।
14-धातुक्षीणताजन्य क्षय रोग में – बंग भस्म १ रत्ती, प्रवालभस्म २ रत्ती, स्वर्णवसन्तमालती १ रत्ती, ताप्पादि तौह २ रत्ती, मधु में मिलाकर दें। ( और पढ़े –वीर्य वर्धक चमत्कारी 18 उपाय शरीर को बनाये तेजस्वी और बलवान )
15- अजीर्ण में-बंग भस्म १ रत्ती, लवणभास्कर चूर्ण देड माशा में मिलाकर, गर्म जल से दें।
16-वात-पीड़ा (दर्द) में- बंग भस्म २ रत्ती, लहसुन कल्क में मिलाकर खाने से वातविकारों में फायदा होता है। ( और पढ़े –वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
17-कुष्ठ में – बंग भस्म १ रत्ती, बाकुची का चूर्ण २ माशा, सम्भालू के पत्तों का रस १ तोला मधु में मिलाकर सेवन करें।
18-वातव्याधि में – बंग भस्म २ रत्ती, असगन्ध चूर्ण १माशा, अजवायन चूर्ण १ माशा में मिलाकर मधु के साथ दें।
19-जलोदर में – बंग भस्म २ रती, फिटकरी भस्म ४ रत्ती में मिलाकर बकरी के दूध के साथ दें।
20-कटिशूल में – बंग भस्म १ रत्ती, जायफल चूर्ण ४ रत्ती, असगंध का चूर्ण ४ रत्ती में मिलाकर शहद के साथ दें। ( और पढ़े –कमर में दर्द के 13 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक उपाय )
21-स्वप्नदोष के लिए- बंग भस्म १ रत्ती, प्रवाल पिष्टी १ रत्ती, कबाब चीनी चूर्ण ४ रत्ती में मिलाकर शहद के साथ लें। अथवा बंग भस्म १ रत्ती, शिलाजीत ४ रत्ती में मिलाकर गोदुग्ध के साथ सेवन करें।
– ‘भा, भै. र. से किंचित् परिवर्तित
22-शरीर की दुर्गन्धि के लिये – बंग भस्म १ रत्ती, चम्पा के फूल का चूर्ण १ माशा में मधु के साथ दें।
बंग भस्म के उपयोग और फायदे : bang bhasma ke fayde / benefits
1-बंग भस्म का प्रभाव शुक्र – स्थान पर विशेष रूप से होता है। अतः यह शुक्र की कमजोरी को दूर कर शक्ति प्रदान करती है। कमजोरी किन्हीं भी कारणों से क्यों न हो, सभी में वातवाहिनी सिरा तथा मांसपेशियाँ शिथिल हो ही जाती हैं। इनमें शिथिलता आने का प्रधान कारण अधिक शुक्र का क्षरण होना है। जब मनुष्य प्राकृतिक (स्त्री – सेवन से या अप्राकृतिक ढंग से हस्तमैथुनादि) द्वारा शुक्र का अधिक दुरूपयोग करता है, तब वातवाहिनी सिरा और मांसपेशियाँ कमजोर होकर शुक्र-धारण करने में असमर्थ हो जाती है जिसका फल यह होता है कि स्त्री-प्रसंग आदि विषयक विचार मन में उठते ही या किसी नवयुवती अथवा अश्लील तस्वीर आदि देखने मात्र से शुक्रस्त्राव होने लगता है। ऐसी दशा में बंग भस्म का सेवन करना अच्छा है, क्योंकि यह वातवाहिनी तथा मांसपेशी की कमजोरी दूर कर कर्मेन्द्रिय में सख्ती पैदा करती और शुक्र को भी गाढा कर देती है, जिससे उपरोक्त दोष अपने आप दूर हो जाते हैं।
2-स्वप्नदोष या पेशाब के साथ शुक जाना – यह बीमारी प्रायः पित्त प्रकृतिवालों को विशेष होती है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकृतिवालों को जो खटाई, मिठाई , कटु आदि गर्म पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं, उन्हें भी यह बीमारी हो जाती है। इन पदार्थों के सेवन करने से पित्त कुपित हो रक्तवाहिनी सिरा में हलचल पैदा कर देता है, जिससे मन चंचल हो जाता है। और उसके विचार में भी अनेक दुर्भावनायें पैदा होने लगती हैं और यही विचार (भावना) स्वप्नावस्था में भी बने रहने के कारण क्षणिक उत्तेजना होकर शुक्र स्त्राव (स्वप्नदोष) हो जाता है, ऐसी हालत में बंग भस्म से बढ़कर और कोई दवा नहीं है, क्योकि शास्त्र में भी लिखा है कि जो वीर्य – रोगी बंग भस्म का सेवन करता है, उसे स्वप्न में भी शुक्र-स्त्राव नहीं होता है।
3- वैसे तो सब प्रकार के प्रमेह पर बंग भस्म का उपयोग करने के लिये शास्त्रकारों ने लिखा है, किन्तु अनुभव से यह बात जानी गई है कि बंग भस्म जैसा कफ-प्रमेह पर अच्छा और शीघ्र काम करती है वैसा व्याधियों में नहीं, विशेषतया, शुक्रपात या शुक्रक्षय पर बहुत जल्दी असर दिखाती है।
4-मूत्रपिंड, मूत्राशय या मूत्रवह -स्त्रोतों पर भी इसका असर बहुत होता है। शरीर में जब रस-रक्तादि धातुओं का बनना कम हो जाता है, जिससे शरीर के सब अवयव कमजोर होने लगते हैं और शरीर में जलीय भाग की वृद्धि होने लगती है,तब पेशाब करने के लिये बार-बार जाना पड़ता है। इसकी मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि दिन-रात में २०-२५ बार पेशाब होने लगती है। ऐसी हालत में बंग भस्म का प्रयोग अमृत के समान गुण करता है, क्योंकि यह मूत्राशय तथा मूत्रवहा नाड़ी आदि को शक्ति प्रदान कर मूत्राशय में धारण शक्ति उत्पन्न कर देता है। जिससे पेशाब की मात्रा कम हो जाती और रस-रक्तादि धातु भी पुष्ट हो जाती हैं।
5-यदि विशेष शुक्रपात के कारण शरीर कमजोर हो गया हो, तो बंग भस्म का उपयोग बहुत लाभकर होता है, क्योंकि शुक्रदोष के कारण जो रोग होते हैं, उनमें वंग भस्म का प्रयोग करने से वह सर्वप्रथम शुक्र-विकार को दूर कर फिर अन्य कार्य करता है। अतः इस रोग में वंग भस्म का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
6-मन्दाग्नि और कोष्ठबद्धता (कब्जियत) हो जाने के कारण प्रायः पेट में छोटे-छोटे कीड़े (चुन्ने) हो जाते हैं। इससे ज्वर भी हो जाता है और ज्वर कभी-कभी अधिक दिनों तक रह जाता हे, जिससे रोगी को विषम ज्वर (मलेरिया) का संशय होने लगता है, परन्तु इसमें प्रधानतया निम्नलिखित लक्षण होते हैं, जैसे पेट में पीड़ा होना, मुँह में पानी भर आना, जी मिचलना आदि। इन लक्षणों से कृमि का ज्ञान होता है। इसमें वंग भस्म अकेले या किसी मिश्रण के साथ देने से लाभ होता हैं, क्योंकि वंग भस्म कृमिघ्न होने के कारण कृमियों को नष्ट कर देती या जिन कारणों से ये कीड़े पेट के अन्दर जीवित बने रहते हैं, उन कारणों को दूर कर देती है।
7-विशेष शुक्रपात होने की वजह से जो मन्दाग्नि हो जाती है, उसमें भी वंग भसम बहुत लाभ करती है। इसमें एकाएक अन्न पर अरूचि और भूख बिल्कुल मन्द हो जाती है तथा मुँह का जायका (स्वाद) भी तीता हो जाता है इत्यादि। इन लक्षणों के उत्पन्न होने पर वंग भस्म के सेवन से बहुत फायदा होता है, क्योंकि वंग भस्म दीपन-पाचन और अग्नि दीपक भी है। अन्य अग्निदीपक पदार्थ (शंख -कौड़ी-भस्म, चित्रक, हींग आदि) की तरह पाचक पित्त को बढ़ाकर अग्नि दीप्त नहीं करता, किन्तु इसका कार्य प्रथम शुक्र स्थान पर होता है। अंतशुक्रदोषों को दूरकर उसे पुष्ट बनाकर शरीर के अवयवों को बलवान बनाता है और जठराग्नि को भी प्रदीप्त करता है।
8-नपुंसकता – अधिक स्वप्नदोष यो हस्तमैथुन आदि के कारण वातवाहिनी और मांसपेशियाँ कमजोर हो जाने की वजह से शरीर में शुक्र नहीं रह पाता, जिससे मनुष्य कामवासना से वंचित ही रह जाता है। ऐसी हालत में बंग भस्म का प्रयोग अति लाभदायक है।
9-कोई-कोई घाव ऐसे होते हैं, जिनमें से मवाद बारबार निकलता ही रहता है। कभी-कभी उसमें कीड़े भी पड़ जाते हैं। घाव को प्रातः नीम के पत्तों को डालकर गर्म किए हुए पानी से खूब साफ कर धोवें। हो सके तो पानी में थोडासा ‘बोरिक एसिड या कार्बोलिक एसिड ३ बूंद डाल दें तो और अच्छा।
घाव पर उदुम्बर के दूध की पट्टी बाँधे और प्रात:-सायं १-१ रत्ती बंग भस्म मधु से सेवन करते रहने से घाव में से निकलनेवाला मवाद बन्द हो जाता और कृमि नष्ट होकर व्रण भर जाता है।
10-प्रदर विशेष मात्रा में बढ़ गया हो अथवा स्त्रियों के डिम्बकोष कमजोर हो जाने से बीजधारण शक्ति का हास हो गया हो, बीज धारक शक्ति की कमजोरी के कारण स्त्रियों में गर्भोत्पन्न करनेवाला बीज (आर्तव) की उत्पत्ति ही न होती हो या उपरोक्त कारणों की वजह से शरीर ज्यादा कमजोर हो गया हो, तो ऐसी स्थिति में वंग भस्म अच्छा काम करती है, क्योंकि बंग भस्म का असर गर्भाशय और रजो-विकार पर होता है, जिससे उपरोक्त दोष नष्ट होकर शरीर बलवान हो जाता, मन में प्रसन्नता उत्पन्न होती और बन्ध्यापन भी दूर हो जाता है।
11-स्त्रियों के कटिशूल में- किसी-किसी को रजोदर्शन काल में कमर तथा बस्तिप्रदेश (नाभि से नीचे के भाग) में दर्द होने लगता है। यह दर्द अन्य दर्दो के समान नहीं होता। फिर भी नसों में दर्द होने की वजह से पीड़ा का बहुत अनुभव होता है। इस दर्द के कारण मासिक धर्म खुलकर न होकर रज:स्राव थोड़ा-थोड़ा और रुक-रुक कर होने तथा मासिक धर्म के संचित होने पर भी वंग भस्म बहुत फायदा करती है।
– औ.गु.ध.शा. |
12-अभ्रक भस्म और शिलाजीत, गिलोय (गुर्च) सत्व और मधु के साथ साधारणतया वंग भस्म का प्रयोग किया जाता है। स्त्रियों के श्वेत प्रदर में बंग भस्म २ रत्ती, मृगश्रृंग भस्म १ रत्ती में मिलाकर शर्बत अनार के साथ या मिश्री की चासनी से दें, ऊपर से पत्रांगासव पीने को दें। इससे प्रदर रोग नष्ट होकर स्त्रीबीज (डिब) भी सबल होकर वन्ध्यत्व दोष नष्ट हो जाता है।
13-शुक्र पतला होकर निकल जाने से मनुष्य शक्तिहीन हो जाता है। इसका असर दिमाग पर भी पड़ता है, जिसकी वजह से मन में अनेक दुर्भावनाएँ पैदा होती हैं और इसी कारण स्वप्नदोषादि विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग में बंग भस्म २ रत्ती, गिलोय का सत्व ४ रत्ती, शिलाजीत २ रत्ती में मिला मक्खन-मिश्री के साथ देने से रोग नष्ट हो जाता है। इससे शुक्र और शुक्रस्थान दोनों पुष्ट हो जाते है और इनके पुष्ट होने से रसरक्तादि धातु पुष्ट होकर बलवान हो जाता है।
14-वृद्धावस्था, शुक्र प्रमेह तथा बहुमूत्र रोग में बंग भस्म २ रत्ती, नाग भस्म १ रत्ती, अभ्रक भस्म १ रत्ती, मिलाकर मधु के साथ दें। स्वप्नदोष में ईसबगोल की भूसी के साथ बंग भस्म २ रत्ती मिलाकर देने से बहुत लाभ करती है। यदि विशेष शुक्रपात के कारण नपुंसकता आ गई हो, तो बंग भस्म २ रत्ती, मुक्तापिष्टी १ रत्ती, असगन्ध चूर्ण १ माशे में मिलाकर गोदुग्ध से दें। अति मैथुन या अति शुक्रपात के कारण कास-श्वास एवं क्षय रोग की उत्पत्ति हो जाती है, इसके साथ-साथ धातुक्षीणता के भी लक्षण विद्यमान रहते हैं। इस रोग में बंग भस्म २ रत्ती, च्यवनप्राश १ तोला, सितोपलादि चूर्ण २ माशे में मिलाकर और ऊपर से द्राक्षासव पिलावें। रक्तपित्त में प्रवालपिष्टी २ रत्ती, बंग भस्म १ रत्ती, सितोपलादि चूर्ण २ माशे वासावलेह के साथ दें और ऊपर से उशीरासव पिलावें। अप्राकृतिक मैथुन (हस्तमैथुन) आदि की आदत पड़ने के कारण पाण्डुरोग के समान चेहरा पीला पड़ जाता है। शरीर निस्तेज, कृश तथा शुष्क हो जाता है। पाचनशक्ति मन्द हो जाती है। इस अवस्था में बंग भस्म १ रत्ती, प्रवालपिष्टी १ रत्ती, लौह भस्म आधी रत्ती पान के साथ देने से विशेष लाभ होता है। मानसिक दुर्बलता में बंग भस्म और अभ्रक भस्म का मिश्रण ब्राह्मी चूर्ण के साथ देना बहुत हितकर है।
15-पेट के कृमि या अन्य कृमिजन्य विकार में बंग भस्म १ रत्ती, सनाय की पत्ती का महीन चूर्ण ३ माशा, मिश्री एक माशा में मिलाकर अमलतास के पथ के साथ देना हितकर है। इससे कृमि नष्ट होकर दस्त की राह से निकल जाते है। आ. सा. स. ९.
16-शुक्र की कमजोरी के कारण अग्निमांद्य में बंग भस्म १ रत्ती, पीपल चूर्ण ४ रत्ती में मिला मधु के साथ देना चाहिए।
17-नेत्ररोग में बंग भस्म १ रत्ती, मुलेठी चूर्ण ४ रत्ती ताजे मक्खन और मिश्री के साथ देने से लाभ होता है।
18-सूजाक में बग भस्म १ रत्ती, मुक्तापिष्टी आधी रत्ती, चाँदी का वर्क चौथाई रत्ती, इलायची तथा वंशलोचन का चूर्ण ४-४ में मिलाकर मधु के साथ देने से बहुत गुण करता है।
19-उदर में कर्कटवण होने से वमन होती हो, तो बंग भस्म से अच्छा लाभ होता है। आयुर्वेद में दो औषधियाँ इस विकार पर लाभ करती हैं, एक तो बंग भस्म, दूसरी ताम्र भस्म उग्र और तीक्ष्ण होने से कफ प्रधान या कफ-वात- प्रधान विकारों में लाभकारी है। अन्य विकारों में बंग भस्म उपयोगी है। बंग भस्म सेवन से कर्कटवण को रक्तवाहिनियों की विकृति नष्ट होकर लाभ होता है।
बंग भस्म के नुकसान : bang bhasma ke nuksan (side effects)
1-बंग भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-डॉक्टर की सलाह के अनुसार बंग भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।
(वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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वैद्यकीय परामर्श से सोरायसिस रोग होने पर रोगी गंधक रसायन के साथ बंग भस्म मिलाकर सेवन कर सकता है।
क्या सोरायसिस रोग में गंधक रसायन के साथ बंग भस्म मिला कर सेवन करना चाहिए यदि हां तो किस अनुपात और अनुपान से 🙏🙏
Beautiful best