भगवान का दर्शन कैसे हो | Bhagwan ka Darshan Kaise ho

Last Updated on July 22, 2019 by admin

स्वामी शरनानन्द जी से आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी

प्रश्न-महाराज जी ! शिक्षक का क्या कर्तव्य है?
उत्तर–शिक्षक का काम है, अपनी योग्यता का सदुपयोग एवं | शिक्षार्थी का चरित्र-निर्माण।

प्रश्न-स्वामी जी ! भगवान् हमारी चाह पूरी क्यों नहीं करते?
उत्तर-चाह तो उन्होंने अपने बाप दशरथ की भी पूरी नहीं की। फिर तुम्हारी कैसे कर दें? जो सीता ने चाहा, नहीं हुआ। जो कौशल्याने चाहा, नहीं हुआ । फिर तुम्हारे चाहने से क्या होगा?

प्रश्न-स्वामी जी ! आपके कथन के अनुसार जब दुःख मानव को कुछ सिखाने के लिए आता है, तो फिर बच्चों के जीवन में दुःख क्यों आता है?
उत्तर–बच्चे प्राणी हैं। प्राणी के जीवन में तो सुख-दुःख का भोग ही होता है। जब वे मानव बनेंगे, तभी न दुःख उन्हें कुछ सिखाएगा?

प्रश्न-स्वामी जी ! समाज का दुःख कैसे दूर हो सकता है?
उत्तर–आप अपना दुःख दूर कर सकते हैं। समाज चाहेगा, तो उसका दु:ख दूर होगा। कोई बाप अपने बेटे का, कोई पति अपनी पत्नी का दुःख दूर नहीं कर सकता, तो समाज का कैसे कर लेगा? हाँ, इतना आप कर सकते हैं कि अपना दुःख-रहित जीवन समाज के सामने रख सकते हैं, जिसको देखकर समाज के मन में दुःख दूर करने की रुचि पैदा हो सकती है।

प्रश्न-महाराज जी ! सृष्टि की सेवा करने वाला प्रभु को कैसे प्यारा लगता है?
उत्तर—जैसे तुम्हारे लड़के की सेवा करने वाला तुम्हें प्यारा लगता है।

प्रश्न-स्वामी जी ! भगवान् का दर्शन कैसे हो सकता है?
उत्तर–भगवत्-प्रेम का महत्त्व है, भगवत्-दर्शन का कोई महत्त्व नहीं । भगवान् रोज दिखें और प्यारे न लगें, तो तुम्हारा विकास नहीं होगा। भगवत्-विश्वास, भगवत्-सम्बन्ध और भगवत्-प्रेम का महत्त्व है।

प्रश्न-स्वाधीनता का स्वरूप क्या है?
उत्तर–स्वाधीनता का अर्थ है, अपने में सन्तुष्ट होना, न कि किसी वस्तु या परिस्थिति में आबद्ध होना।

प्रश्न-महाराज जी ! ईसाई लोग ईसा की बात क्यों नहीं मानते हैं?
उत्तर–नकली ईसाई ईसा की चर्चा करेगा और सही ईसाई ईसा की बात मानेगा। यह बात न सिर्फ ईसाईयों के लिए सत्य है बल्कि हिन्दू, मुसलमान, पारसी, सिक्ख, जैन और बौद्ध आदि सभी के लिए सत्य है।

प्रश्न-महाराज जी ! भौतिक उन्नति का साधन क्या है?
उत्तर-योग्यता, परिश्रम, ईमानदारी और उदारता ।

प्रश्न-महाराज जी ! जीवनमुक्त कौन है?
उत्तर-जो ईमानदार है, और ईमानदार वही है जो संसार की किसी भी चीज को अपनी नहीं मानता ।

प्रश्न-जीवनमुक्ति का स्वरूप क्या है?
उत्तर-इच्छाएँ रहते हुए प्राण चले जाएँ तो मृत्यु हो गई। फिर जन्म लेना पड़ेगा और प्राण रहते इच्छाएँ समाप्त हो जाएँ, तो मुक्ति हो गई। जैसे बाजार गए, पर पैसे समाप्त हो गए और जरूरत बनी रही, तो फिर बाजार जाना पड़ेगा। और यदि पैसे रहते जरूरत समाप्त हो जाए, तो बाजार काहे को जाना पड़ेगा?

प्रश्न-पढ़ाई-लिखाई बढ़ रही है, फिर भी दोष कम क्यों नहीं हो रहे?
उत्तर–कोई दोष तब करता है, जब अपनी ही बात नहीं मानता। पढ़ाई-लिखाई तो एक प्रकार की योग्यता है। योग्यता जब निज विवेक के अधीन नहीं रहती है, तो बड़े-बड़े अनर्थ कर डालती है।

प्रश्न–महाराज जी ! क्या भगवत्-प्रेम भी कामी और कामिनी वाले प्रेम की तरह होता है?
उत्तर–कामी कामिनी को प्रेम नहीं करता। वे एक-दूसरे को नष्ट करते हैं, खा जाते हैं। भगवत्-प्रेम तो प्रेमी और प्रेमास्पद दोनों को आह्लादित करता है।

प्रश्न-दुःख का आना मानव के पतित अथवा पापी होने का परिचय है क्या?
उत्तर-दु:ख का आना पतित होने का फल नहीं है। दुःख तो सुख-भोग की आसक्ति को मिटाने के लिए आता है।

प्रश्न-महाराज जी ! धर्मात्मा कौन होता है?
उत्तर—जिसकी समाज को आवश्यकता हो जाए।

प्रश्न-व्यर्थ-चिन्तन से कैसे बचा जाए?
उत्तर–व्यर्थ-चिन्तन भुक्त-अभुक्त का प्रभाव है। आप उससे असहयोग करें। न उसे दबाएं, न उससे सुख लें, न भयभीत हों और न तादात्म्य रखें। तो व्यर्थ-चिन्तन प्रकट होकर नाश हो जाएगा।

प्रश्न-स्वामी जी ! हम क्या करें ?
उत्तर–सेवा, त्याग और आस्था । सेवा का अर्थ है उदारता, सुखियों को देखकर प्रसन्न होना और दुखियों को देखकर करुणित होना । त्याग का अर्थ है कि मिला हुआ अपना नहीं है। जिससे जातीय तथा स्वरूप की एकता नहीं है, उसकी कामना का त्याग । प्राप्त में ममता नहीं और अप्राप्त की कामना नहीं । प्रभु में आस्था और विश्वास करो।

Leave a Comment

error: Alert: Content selection is disabled!!
Share to...