भस्म और पिष्टी के चमत्कारिक औषधीय प्रयोग | Bhasma & pishti

Last Updated on July 24, 2019 by admin

परिचय :

भस्म और पिष्टी ( Bhasma & pishti )दोनों ही खनिजों, धातुओं या रत्नों के चूर्ण हैं। भस्म को निस्तापन द्वारा अर्थात आग में तपा कर बनाया जाता है, वहीं पिष्टी में अग्नि का प्रयोग नहीं होता है। इसीलिए भस्म की तुलना में पिष्टी का स्वभाव मृदु होता है।

जानिये रोग निवारण व बलवर्धन के लिये किस भस्म व पिष्टी का कैसे व किस मात्र में करे प्रयोग

अकीक भस्म : हृदय की निर्बलता, नेत्र विकार, रक्त पित्त, रक्त प्रदर आदि रोग दूर करती है। (नाक-मुंह से खून आना) मात्र 1 से 3 रत्ती।

अकीक पिष्टी : हृदय और मस्तिष्क को बल देने वाली तथा वात, पित्त नाशक, बल वर्धक
और सौम्य है।

अभ्रक भस्म (साधारण) : हृदय, फेफड़े, यकृत, स्नायु और मंदाग्नि से उत्पन्न रोगों की सुप्रसिद्ध दवा है। श्वास, खांसी, पुराना बुखार, क्षय, अम्लपित्त, संग्रहणी, पांडू, खून की कमी, धातु दौर्बल्य, कफ रोग, मानसिक दुर्बलता, कमजोरी आदि में लाभकारी है। मात्रा 3 से 6 रत्ती शहद, अदरक या दूध से।

अभ्रक भस्म (शतपुटी पुटी) (100 पुटी) : इसमें उपर्युक्त गुण विशेष मात्रा है। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

अभ्रक भस्म (सहस्त्र पुटी) (1000 पुटी) : इसमें साधारण भस्म की अपेक्षा अत्यधिक गुण मौजूद रहते हैं। मात्रा 1/4 से 1 रत्ती।

कपर्दक (कौड़ी, वराटिका, चराचर) भस्म : पेट का दर्द, शूूल रोग, परिणाम शूल अम्लपित्त, अग्निमांद्य व फेफड़ों के जख्मों में लाभकारी। मात्रा 2 रत्ती शहद अदरक के साथ सुबह व शाम को।

कसीस भस्म : रक्ताल्पता में अत्यधिक कमी, पांडू, तिल्ली, जिगर का बढ़ जाना, आम विकार, गुल्म आदि रोगों में भी लाभकारी। मात्रा 2 से 8 रत्ती।

कहरवा पिष्टी (तृणकांतमणि) : पित्त विकार, रक्त पित्त, सिर दर्द, हृदय रोग, मानसिक विकार, चक्कर आना व सब प्रकार के रक्त स्राव आदि में उपयोगी। मात्रा 2 रत्ती मक्खन के साथ।

कांतिसार (कांत लौह फौलाद भस्म) : खून को बढ़ाकर सभी धातुओं को बढ़ाना इसका मुख्य गुण है। खांसी, दमा, कामला, लीवर, प्लीहा, पांडू, उदर रोग, मंदाग्नि, धातुक्षय, चक्कर, कृमिरोग, शोथ रोगों में लाभकारी तथा शक्ति वर्द्धक। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती।

गोदन्ती हरताल (तालक) भस्म : ज्वर, सर्दी, खांसी, जुकाम, सिर दर्द, मलेरिया, बुखार आदि में विशेष लाभकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती सुबह व शाम को शहद व तुलसी के रस में।

जहर मोहरा खताई भस्म : शारीरिक एवं मानसिक बल को बढ़ाती है तथा विषनाशक है। अजीर्ण, कै, उल्टी, अतिसार, यकृत विकार, घबराहट, जीर्ण ज्वर, बालकों के हरे-पीले दस्त एवं सूखा रोग में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद में।

जहर खताई पिष्टी : गुण, जहर मोहरा खताई भस्म के समान, किंतु अधिक शीतल, घबराहट व जी मिचलाने में विशेष उपयोगी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शर्बत अनार से।

टंकण (सुहागा) भस्म : सर्दी, खांसी में कफ को बाहर लाती है। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।

ताम्र (तांबा) भस्म : पांडू रोग, यकृत, उदर रोग, शूल रोग, मंदाग्नि, शोथ कुष्ट, रक्त विकार, गुर्दे के रोगों को नष्ट करती है तथा त्रिदोष नाशक है। मात्रा 1/2 रत्ती शहद व पीपल के साथ।

नाग (सीसा) भस्म : वात, कफनाशक, सब प्रकार के प्रमेह, श्वास, खांसी, मधुमेह धातुक्षय, मेद बढ़ना, कमजोरी आदि में लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती शहद से।

प्रवाल (मूंगा) भस्म : पित्त की अधिकता (गर्मी) से होने वाले रोग, पुराना बुखार, क्षय, रक्तपित्त, कास, श्वास, प्रमेह, हृदय की कमजोरी आदि रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा शर्बत अनार के साथ।

प्रवाल पिष्टी : भस्म की अपेक्षा सौम्य होने के कारण यह अधिक पित्त शामक है। पित्तयुक्त, कास, रक्त, रक्त स्राव, दाह, रक्त प्रदर, मूत्र विकार, अम्लपित्त, आंखों की जलन, मनोविकार और वमन आदि में विशेष लाभकारी है। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा शर्बत अनार से।

पन्ना पिष्टी : रक्त संचार की गति को सीमित करके विषदोष को नष्ट करने में उपयोगी है। ओज वर्द्धक है तथा अग्निप्रदीप्त कर भूख बढ़ाती है। शारीरिक क्षीणता, पुराना बुखार, खांसी, श्वास और दिमागी कमजोरी में गुणकारी है। मात्रा 1/2 रत्ती शहद से।

वंग भस्म : धातु विकार, प्रमेह, स्वप्न दोष, कास, श्वास, क्षय, अग्निमांद्य आदि पर बल वीर्य बढ़ाती है। अग्निप्रदीप्त कर भूख बढ़ाती है तथा मूत्राशय की दुर्बलता को नष्ट करती है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह व शाम शहद या मक्खन से।

मण्डूर भस्म : जिगर, तिल्ली, शोथ, पीलिया, मंदाग्नि व रक्ताल्पता की उत्तम औषधि। मात्रा 2 रत्ती शहद से।

मयूर चन्द्रिका भस्म : हिचकी और श्वास (दमा) में अत्यंत गुणकारी है। वमन (उल्टी) व चक्कर आदि में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।

माणिक्य पिष्टी : समस्त शारीरिक और मानसिक विकारों को नष्ट कर शरीर की सब धातुओं को पुष्ट करती है और बुद्धि को बढ़ाती है। मात्रा 1/2 रत्ती से 2 रत्ती तक।

मुक्ता (मोती) भस्म : शारीरिक और मानसिक पुष्टि प्रदान करने वाली प्रसिद्ध दवा है। चित्त भ्रम, घबराहट, धड़कन, स्मृति भंग, अनिद्रा, दिल-दिमाग में कमजोरी, रक्त पित्त, अम्ल पित्त, राजयक्षमा, जीर्ण ज्वर, उरुःक्षत, हिचकी आदि की श्रेष्ठ औषधि। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती तक।

इसे भी पढ़े :  गोदंती भस्म हड्डियों को बनाये मजबूत व शक्तिशाली |

मुक्ता शुक्ति भस्म : रक्त पित्त, जीर्ण ज्वर, दाह, धातुक्षय, तपेदिक, मृगी, खांसी, यकृत, प्लीहा व गुल्म नाशक। मात्रा 2 रत्ती शहद से प्रातः व सायं।

मुक्ता (मोती) पिष्टी : मुक्ता भस्म के समान गुण वाली तथा शीतल मात्रा। 1/2 से 1 रत्ती शहद या अनार के साथ।

मुक्ता शुक्ति पिष्टी : मुक्ता शुक्ति भस्म के समान गुणकारी तथा प्रदर पर लाभकारी।

मृगश्चृ (बारहसिंगा) भस्म : निमोनिया, पार्श्वशूल, हृदय रोग, दमा, खांसी में विशेष लाभदायक, बालकों की हड्डी बनाने में सहायक है। वात, कफ, प्रधान ज्वर, (इन्फ्लूएंजा) में गुणकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।

यशद भस्म : कफ पित्तनाशक है। पांडू, श्वास, खांसी, जीर्णज्वर, नेत्ररोग, अतिसार, संग्रहणी आदि रोगों में लाभदायक। मात्रा 1 रत्ती शहद से।

रजत (रौप्य, चांदी) भस्म : शारीरिक व मानसिक दुर्बलता में लाभदायक है। वात, पित्तनाशक, नसों की कमजोरी, नपुंसकता, प्रमेह, धारुत दौर्बल्य, क्षय आदि नाशक तथा बल और आयु को बढ़ाने वाली है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद या मक्खन से।

लौह भस्म : खून को बढ़ाती है। पीलिया, मंदाग्नि, प्रदर, पित्तविकार, प्रमेह, उदर रोग, लीवर, प्लीहा, कृमि रोग आदि नाशक है। व शक्ति वर्द्धक है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद और मक्खन के साथ।

लौह भस्म (शतपुटी) : यह साधारण भस्म से अधिक गुणकारी है।

शंख (कंबू) भस्म : कोष्ठ शूल, संग्रहणी, उदर विकार, पेट दर्द आदि रोगों में विशेष उपयोगी है। मात्रा 1 से 2 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।

स्वर्ण माक्षिक भस्म : पित्त, कफ नाशक, नेत्रविकार, प्रदर, पांडू, मानसिक व दिमागी कमजोरी, सिर दर्द, नींद न आना, मूत्रविकार तथा खून की कमी में लाभदायक। मात्रा 1 से 2 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।

स्वर्ण भस्म : इसके सेवन से रोगनाशक शक्ति का शरीर में संचार होता है। यह शारीरिक और मानसिक ताकत को बढ़ाकर पुराने से पुराने रोगों को नष्ट करता है। जीर्णज्वर, राजयक्षमा, कास, श्वास, मनोविकार, भ्रम, अनिद्रा, संग्रहणी व त्रिदोष नाशक है तथा वाजीकर व ओजवर्द्धक है। इसके सेवन से बूढ़ापा दूर होता है और शक्ति एवं स्फूर्ति बनी रहती है। मात्रा 1/8 से 1/2 रत्ती तक।

संगेयशव पिष्टी : दिल व मेदे को ताकत देती है। पागलपन नष्ट करती है तथा अंदरूनी जख्मों को भरती है। मात्रा 2 से 8 रत्ती शर्बत अनार के साथ।

हजरूल यहूद भस्म : पथरी रोग की प्रारंभिक अवस्था में देने से पथरी को गलाकर बहा देती है। पेशाब साफ लाती है और मूत्र कृच्छ, पेशाब की जलन आदि को दूर करती है। मात्रा 1 से 4 रत्ती दूध की लस्सी अथवा शहद से।

हजरूल यहूद पिष्टी : अश्मीर (पथरी) में लाभकारी तथा मूत्रल।

हाथीदांत (हस्तिदंतमसी) भस्म : बालों का झड़ना रोकती है तथा नए बाल पैदा करती है। प्रयोग विधि : खोपरे के तेल के साथ मिलाकर लगाना चाहिए।

त्रिवंग भस्म : प्रमेह, प्रदर व धातु विकारों पर। गदला गंदे द्रव्ययुक्त और अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब होने पर इसका उपयोग विशेष लाभदायक है। धातुवर्द्धक तथा पौष्टिक है। मात्रा 1 से 3 रत्ती।
नोट :-किसी भी भस्म व पिष्टी के प्रयोग में लाने से पहले किसी विशेषज्ञ की राय जरूर लें।स्वयं से औषधि लेना अच्छा नहीं है और यह खतरनाक साबित हो सकता है।

keywords – भस्म और पिष्टी, bhasma and pishti, भस्मो की सूची
अकीक भस्म ,अभ्रक भस्म ,कसीस गोदंती भस्म ,कसीस भस्म , कांत लौह भस्म , कांस्य भस्म ,कुक्कुटाण्ड त्वक भस्म,गोदंती भस्म ,गोमेदमणि भस्म ,जहरमोहरा भस्म , ताम्र भस्म , त्रिवंग भस्म , नाग भस्म , नीलमणि भस्म , पारद भस्म , पीतल भस्म , पुखराज भस्म , प्रवाल भस्म , बंग भस्म , मंडूर भस्म , मल भस्म , माणिक्य भस्म , मुक्ता भस्म , मुक्ताशुक्ति भस्म , यशद भस्म – जसद भस्म , राजवर्त भस्म , रौप्य भस्म – रजत भस्म , लौह भस्म , वैक्रान्त भस्म , शंख भस्म , शुभ्रा भस्म , श्रृंग भस्म , संजयसब भस्म ,स्वर्ण भस्म , स्वर्णमाक्षिक भस्म , हजरुल यहूद भस्म (संगेयहूद भस्म ) , हरताल भस्म, हरिताल गोदंती भस्म ,हीरा भस्म – वज्र भस्म ,Abhrak bhasma , Akik bhasma ,Aviltoladi Bhasma Ganji , Godanti bhasma ,Gomed Mani (Stone) Bhasma & Pishti , Hajrul Yahood Bhasma (Sange yahood Bhasma) , Heerak Bhasma – Heera or Vajra Bhasma , Kansya Bhasma (Kansa Bhasma or Bell Metal Bhasma) ,Kanta loha bhasma ,Kasis Bhasma ,Kasis Godanti Bhasma ,Kukkutanda twak bhasma (Processed Eggshell Calcium) ,Loha Bhasma , Mandur Bhasma , Mukta Bhasma , Muktasukti Bhasma & Mukta Shukti Pishti ,Panaviraladi Bhasma ,Roupya (Rajat) Bhasma (Silver Ash), Shankh Bhasma (Shankha Bhasm) ,Shringa Bhasma (Shrung Bhasma) ,Swarna Bhasma ,Tamra Bhasma ,Yashad bhasma or Jasad Bhasma ,Jahar mohra Bhasma ,Trivanga (tribang) Bhasma, Naga Bhasma , Neel mani (neelam) Bhasma ,Neelanjana Bhasma ,Parwal Bhasma ,Parad Bhasma ,Piroja Bhasma , Peetal Bhasma , Pukhraj Bhasma ,Madhu mandur Bhasma , Mandoor Mashik Bhasma , Mala Bhasma , Manikya Bhasma ,Rajavart Bhasma , Bang (Vanga) Bhasma , Vart Loha Bhasma , Varatika Bhasma , Vaikranta Bhasma , Vaidoor Bhasma , Shambuk Bhasma , Shubhra Bhasma ,Sangeyasab Bhasma ,Swarna Makshik Bhasma ,Swastik Mani Bhasma , Hartal Bhasma , Harital Godanti Bhasma

2 thoughts on “भस्म और पिष्टी के चमत्कारिक औषधीय प्रयोग | Bhasma & pishti”

  1. नमस्कार निसार जी ,

    आपका http://www.MyBapuji.com पर आने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद

    किसी भी भस्म की उपलब्धता व सेवन की जानकारी के लिये आपको अपने निकटवर्ती संत श्री आशारामजी आश्रम के आयुर्वेदिक चिकित्सालय से संपर्क स्थापित करना होगा |

    -धन्यवाद

    हरिॐ

    MyBapuji Team

  2. मुझको पारा अाैर सलफर से मिलकर बनी भसम चाहिएे mo. 995090876

Leave a Comment

Share to...