Last Updated on November 15, 2019 by admin
आपके घरों या जान-पहचान वालो में कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो प्याज या लहसुन(Garlic)नहीं खाते होंगे लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि ऐसा क्यों हैं आपने अपने घर में दादी-नानी या किसी अन्य बुज़ुर्ग से जो इन्हें ना खाते हों कभी जानने का प्रयास किया है-
लहसुन को सेवन-योग्य क्यों नहीं मानते हैं
यदि आप उनसे इस बारे में पूछेंगे तो अधिकतर लोगों का शायद यहीं जवाब होगा कि अब हमसे यह मत पूछो कि क्यों नहीं खाते है बस जैसा हमारे बड़ो-बुजुर्गों ने हमें बता दिया वो हम कर रहे हैं क्युकि वो लहसुन(Garlic)प्याज(Onion)नहीं खाते थे इसलिए हम भी नहीं खाते है जी हाँ-ये सच है कि बहुत से धर्मों को मानने वाले लोग प्याज और लहसुन खाना पसंद नहीं करते है लेकिन लहसुन और प्याज नहीं खाने के पीछे असल वजह क्या है यह आपको शायद कम ही लोग बता पाएंगे-
लहसुन न खाने का धार्मिक कारण-
प्याज व लहसुन जैसी सब्ज़िया जिनमें काफी रोग प्रतिरोधक गुण होते हैं लेकिन लोगो द्वारा लहसुन खाने योग्य नहीं माने जाने के पीछे जो कारण निकल कर आए है वो धार्मिक भी हैं और पौराणिक भी और वैज्ञानिक भी हैं-सिर्फ वैष्णव धर्म में ही नहीं बल्कि और भी कई धर्मों में लहसुन(Garlic)प्याज(Onion) को शैतानी गुणों वाली, शैतानी दुर्गंध वाली, गंदी और प्रदूषित सब्ज़िया माना जाता है-
प्राचीन मिस्त्र के पुरोहित प्याज और लहसुन को नहीं खाते थे चीन में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी भी इन सब्ज़ियों को खाना पसंद नहीं करते हैं और हमारे वेदों में भी बताया गया है कि प्याज और लहसुन जैसी सब्ज़ियां प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देकर किसी व्यक्ति द्वारा भगवद् या लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती हैं तथा ये व्यक्ति की चेतना को भी प्रभावित करती हैं इसलिए इन्हें नहीं खाना चाहिेए-
भगवान कृष्ण के उपासक भी लहसुन(Garlic)प्याज(Onion) नहीं खाते हैं क्योंकि यह लोग वहीं सब्ज़िया खाते हैं जो कृष्ण को अर्पित की जा सकती हैं और चूंकि प्याज और लहसुन कभी भी कृष्ण को अर्पण नहीं किए जाते हैं इसलिए कृष्ण भक्त इन्हें बिलकुल भी नहीं खाते हैं-
प्याज और लहसुन ना खाए जाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा यह है कि समुद्रमंथन से निकले अमृत को, मोहिनी रूप धरे विष्णु भगवान जब देवताओं में बांट रहे थे तभी दो राक्षस राहू और केतू भी वहीं आकर बैठ गए थे भगवान ने उन्हें भी देवता समझकर अमृत की बूंदे दे दीं लेकिन तभी उन्हें सूर्य व चंद्रमा ने बताया कि यह दोनों राक्षस हैं तब भगवान विष्णु ने तुरंत उन दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए और इस समय तक अमृत उनके गले से नीचे नहीं उतर पाया था और चूंकि उनके शरीरों में अमृत नहीं पहुंचा था वो उसी समय ज़मीन पर गिरकर नष्ट हो गए-लेकिन राहू और केतु के मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए दोनों राक्षसो के मुख अमर हो गए(यहीं कारण है कि आज भी राहू और केतू के सिर्फ सिरों को ज़िन्दा माना जाता है)पर भगवान विष्णु द्वारा राहू और केतू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे ऐसा माना जाता है-
चूंकि लहसुन(Garlic)प्याज(Onion)अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं पर क्योंकि यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज़ गंध है और ये अपवित्र हैं जिन्हें कभी भी भगवान के भोग में इस्तमाल नहीं किया जाता है और कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार भी राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं-
एक और मत के अनुसार-
इन दोनों सब्जि़यों को मांस के समान माना जाता है इसके पीछे भी एक और कथा प्रचलित है-प्राचीन समय में ऋषि मुनि पूरे ब्रह्मांड के हित के लिए अश्वमेध और गोमेध यज्ञ करते थे जिनमें घोड़े अथवा गायों को टुकड़ों में काट कर यज्ञ में उनकी आहूति दी जाती थी-
यज्ञ पूर्ण होने के बाद यह पशु हष्ट पुष्ट शरीर के साथ फिर से जीवित हो जाते थे-एक बार जब ऐसे ही यज्ञ की तैयारी हो रही थी तो एक ऋषि पत्नी जो की गर्भवती थी उनको मांस खाने की तीव्र इच्छा हुई और कुछ और उपलब्ध ना होने की स्थिति में ऋषिपत्नी ने यज्ञाहूति के लिए रखे गए गाय के टुकड़ो में से एक टुकड़ा बाद में खाने के लिए कुटिया में छिपा लिया-जब ऋषि ने गाय के टुकड़ो की आहूति देकर यज्ञ पूर्ण कर लिया तो अग्नि में से पुनः गाय प्रकट हो गई-पर ऋषि ने देखा की गाय के शरीर के बाएं भाग से एक छोटा सा हिस्सा गायब था-
ऋषि ने तुरंत अपनी दिव्य -शक्ति से जान लिया कि उनकी पत्नी ने वह हिस्सा लिया है अब तक उनकी पत्नी भी सब जान चुकी थी इसलिए ऋषि के क्रोध से बचने के लिए उनकी पत्नी ने वह मांस का हिस्सा उठा कर फेंक दिया-लेकिन यज्ञ और मंत्रो के प्रभाव के कारण टुकड़े में जान आ चुकी थी-इसी मांस के टुकड़े की हड्डियों से लहसुन उपजा और मांस से प्याज की उपज हुई है इसलिए वैष्णव अनुयायी प्याज और लहसुन को सामिष भोजन मानते हैं और ग्रहण नहीं करते हैं-
जैन धर्म के मतानुसार-
जैन धर्म को मानने वाले लोग भी प्याज और लहसुन नहीं खाते लेकिन इसके पीछे वजह यह है कि यह दोनों जड़ें हैं और जैन धर्म में माना जाता है कि अगर आप किसी पौधे के फल, फूल, पत्ती या अन्य भाग को खाओ तो उससे पौधा मरता नहीं है लेकिन चूंकि प्याज और लहसुन जड़े हैं इसलिए इन्हें खाने से पौधे की मृत्यू हो जाती है-
अन्य धर्म के मतानुसार-
तुर्की में भी इन सब्जियों को प्रयोग ना करने के पीछे एक दंतकथा प्रचलित है और कहा जाता है कि जब भगवान ने शैतान को स्वर्ग से बाहर फेंका तो जहां उसका बांया पैर पड़ा वहां से लहसुन और जहां दायां पैर पड़ा वहां से प्याज उगा था-
इसके उत्तेजना और जुनून बढ़ाने वाले गुणों के कारण चीन और जापान में रहने वाले बौद्ध धर्म के लोगों ने कभी इसे अपने धार्मिक रिवाज़ो का हिस्सा नहीं बनाया है जापान के प्राचीन खाने में कभी भी लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता था-
आयुर्वेद में प्याज-लहसुन-
भारत के प्राचीन औषधि विज्ञान आर्युवेद में भोज्य पदार्थो को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है-सात्विक, राजसिक और तामसिक-अच्छाई और सादगी को बढ़ावा देने वाले भोज्य पदार्थ सात्विक और जुनून और उत्तेजना बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ राजसिक और तामसिक यानि अज्ञानता या दुर्गुण बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ होते है-
प्याज और लहसुन राजसिक भोजन के भाग हैं जो लक्ष्य सिद्धि, साधना और भगवद् भक्ति में बाधा डालते हैं इसलिए लोग इन्हें खाना पसंद नहीं करते हैं-
ये भी सच है कि वनस्पति विज्ञान के अनुसार एलियम कुल की ये सब्ज़ियां रोग प्रतिरोधक क्षमता भी देती हैं प्याज जहां गर्मी के लिए अच्छा होता है वहीं लहसुन में अत्यधिक एंटीबायोटिक गुण होते हैं
बहुत ही ज्ञानवर्धक post है ये।
धन्यवाद
बापूजी की जय।