Last Updated on July 22, 2019 by admin
शंख प्रक्षालन क्रिया विधि : shankhaprakshalana in hindi
इस क्रिया का अभ्यास प्रात:काल ही किया जाता है। सुबह उठते ही दंतमंजन आदि से मुख-शुद्धि करके शौच जाने से पहले डेढ़ सेर पानी गर्म करके उतार लें, इसमें २ चम्मच पिसा नमक डाल कर दो नीबू काटकर निचोड़ दें और घोल लें। इसे जितना गर्म पी सकें उतना गर्म पूरा पानी पी जाएं। इसके तुरन्त बाद निम्नलिखित पांचआसनों को क्रमानुसार करें :
शंख प्रक्षालन आसन और विधि : shankhaprakshalana asanas
(१) सर्पासन
(२) द्विपाश्वसन
(३) पवन मुक्तासन
(४) विपरीतकरणी आसन
(५) हस्तपादासन
इन पांचों आसनों को संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है
(१) भुजंगासन की विधि :
✦भुजंगासन को करने के लिए पहले चटाई पर पेट के बल लेट जाएं और दोनों पैरों को एक-दूसरे से मिलाते हुए बिल्कुल सीधा रखें।
✦ पैरों के तलवें ऊपर की ओर तथा पैरों के अंगूठे आपस में मिलाकर रखें।
✦दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर दोनों हथेलियों को छाती के बगल में फर्श पर टिका कर रखें। ✦आसन की इस स्थिति में आने के बाद पहले गहरी सांस लेकर सिर को ऊपर उठाएं, फिर गर्दन को ऊपर उठाएं, फिर सीने को और (छाती) फिर पेट को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं। ध्यान रखें कि सिर से नाभि तक का शरीर ही ऊपर उठना चाहिए तथा नाभि के नीचे से पैरों की अंगुलियों तक का भाग जमीन से समान रूप से सटा रहना चाहिए।
✦गर्दन को तानते हुए सिर को धीरे-धीरे अधिक से अधिक पीछे की ओर उठाने की कोशिश करें। अपनी नज़र (दृष्टि) ऊपर की ओर रखें। यह आसन पूरा तब होगा जब आप के शरीर के कमर से ऊपर का भाग सिर, गर्दन और छाती सांप के फन के समान ऊंचा ऊठ जाएंगे और पीठ पर नीचे की ओर नितम्ब और कमर के जोड़ पर अधिक खिंचाव या जोर मालूम पड़ने लगेगा।
✦ऐसी अवस्था में आकाश की ओर देखते हुए 2-3 सैकेंड तक सांस रोकें। अगर आप सांस न रोक सकें तो सांस सामान्य रूप से लें।
✦ इसके बाद सांस छोड़ते हुए पहले नाभि के ऊपर का भाग, फिर छाती कों और फिर माथे को जमीन पर टिकाएं तथा बाएं गाल को जमीन पर लगाते हुए शरीर को ढीला छोड़ दें।
✦कुछ क्षण रुके और पुन: इस क्रिया को करें। इस प्रकार से भुजंगासन को पहले 3 बार करें और अभ्यास होने के बाद 5 बार करें।
इसे भुजंगासन भी कहते हैं। इस आसन के अभ्यास से पेट और आंतों पर दबाव पड़ता है जिससे मल का वेग उत्पन्न होता है।
सावधानियां :
•हार्निया के रोगी तथा गर्भवती स्त्रियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
•इसके अलावा पेट में घाव होने पर, अंडकोष वृ़द्धि में, मेरूदंड से पीड़ित होने पर अल्सर होने पर तथा कोलाइटिस वाले रोगियों को भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
(२) द्विपाश्वसन की विधि :
✦ पेट के बल लेट कर घुटनों से पैर मोड़ कर दोनों हाथों से एक-एक पैर पकड़ लें।
✦ सांस अन्दर खींच कर रोक लें और दायें बायें करवटें बदलें ।
✦ सांस रोके रख कर ५-७ बार करवटें लेकर धीरे-धीरे सांस छोड़ दें।
(३) पवन मुक्तासन की विधि :
✦ पवन मुक्तासन में सबसे पहले चटाई पर पीठ के बल लेट जाएं।
✦ दोनों पैरों को सीधे सामने की और फैलाकर रखें। अब अपने दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर सिर की ओर लाएं और अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर उसके बीच में घुटनों को रखें।
✦अब धीरे-धीरे घुटनों को जितना सम्भव हो मुंह की ओर लाएं और अपने सिर को फर्श से ऊपर उठाकर घुटने से नाक छूने की कोशिश करें।
✦इस स्थिति में 2 मिनट तक रहें। आखिर में सांस अंदर खींचकर सिर व पैरों को सामान्य स्थिति में लाकर सांस को बाहर निकाल दें। यह प्रक्रिया बाएं पैर से भी करें।
✦दोनों पैरों से यह क्रिया 10-10 बार करें।
(४) विपरीतकरणी आसन की विधि :
✦ सबसे पहले जमीन पर कोई कम्बल या दरी बिछाकर एकदम सीधे बिल्कुल `शवासन´ की मुद्रा में लेट जाएं।
✦इसके बाद `सर्वांगसन´ की ही तरह धड़ को पैरों के साथ ऊपर उठाते हुए जमीन से समकोण बना लें। अब कोहनियों को जमीन पर लगाकर नितंबों को हथेलियों के सहारे से लगा लें।
✦ इसके बाद दुबारा पीठ और पैरों को बिल्कुल सीधे रखते हुए शरीर का 45 डिग्री का कोण बना लें।
✦इस आसन को शुरुआत में 30 सेकंड से करके धीरे-धीरे बढाया जा सकता है |
सावधानीयां :
• इस मुद्रा को करने के दौरान अगर गले से कड़वा सा रस निकलने लगे तो इसका अभ्यास तुरंत ही बंद कर देना चाहिए।
• 14 साल की उम्र से कम वालों को यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए।
• चुल्लिका ग्रंथि के बढ़ जाने पर इस मुद्रा को नहीं करना चाहिए।
• जिन लोगों को दिल के रोग, हाई ब्लडप्रेशर या कमर दर्द की परेशानी हो उन्हें इस मुद्रा को नहीं करना चाहिए।
(५) हस्तपादासन की विधि :
✦ जमीन पर लेट कर सांस खींच कर रोक लें।
✦दोनों पैर मिला कर ऊपर उठाएं और दोनों हाथों को सिर व सीने सहित उठा कर, पैरों के अंगुठों को पकड़ लें। ज़मीन पर सिर्फ नितम्ब रहें। यथा सम्भव सांस रोक कर इस स्थिति में रहें फिर सांस छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएं।
इन पांचों आसनों को एक के बाद एक तब तक करते रहें जब तक मल का वेग पैदा न हो।शौच से निवृत्त होने के बाद यदि पेट हलका न लगे तो फिर लगभग ३ गिलास गर्म पानी में सिर्फ नमक डाल लें और पीकर पांचों आसन को लगाने लगे। इससे फिर मलवेग होगा और इस बार शौच में बाक़ी मल भी निकल जाएगा। इसके बाद गर्म पानी में नमक डाल दें और इतना पिएं कि गले तक आ जाए फिर उलटी (कुंजर क्रिया) करके पेट का पानी बाहर निकाल दें।
शंख प्रक्षालन क्रिया के फायदे और लाभ : shankhaprakshalan ke labh in hindi
✷जो लोग सख्त क़ब्ज़ के रोगी हैं वे बिना दवा जुलाब लिये सिर्फ इस ‘शंख प्रक्षालन क्रिया’ का प्रयोग कर क़ब्ज़ से छुटकारा पा सकते हैं।
✷यदि १५ दिन या एक माह में एक बार भी यह क्रिया की जाए तो भी आंतों की शुद्धि होती रहती है और क़ब्ज़ की स्थिति बन नहीं पाती। स्वाभाविक ढंग से क़ब्ज़ से बचाव करने के लिए शंख प्रक्षालन का अभ्यास करना उत्तम उपाय है।
✷पाचन तंत्र के जहरीले तत्व शंख प्रक्षालन क्रिया से शरीर से बाहर निकलते है । पाचन तंत्र शुद्धिकरण में यह क्रिया अत्यधिक प्रभावी है।
शंख प्रक्षालन में सावधानियां :
• शंख प्रक्षालन क्रिया किसी योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में करनाचाहिए।
• शंख प्रक्षालन क्रिया को हृदय रोग,उच्च रक्तचाप, हर्निया, मिर्गी, तथा बवासीर के रोगियों नहीं करना चाहिए