Last Updated on April 22, 2023 by admin
कंद-सब्जियों में श्रेष्ठ : सूरन (जिमीकंद)
सूरन (suran) जमीन में होने वाली कन्द है, इसलिए इसे `जमीकन्द´ कहते है। सूरन के पौधे बिना तने के बड़े-बडे पत्तों वाले होते हैं। इसके कन्द में पन्खुडियां बाहर निकलती है और ऊपर जाते-जाते इसके पत्ते छाते की तरह विशाल रूप धारण कर लेती है। सूरन दो तरह की होती है। पहली खुजली वाली और दूसरी मीठी वाली। खुजली वाली सूरन का सेवन करने से मुंह में चरपराहट होती है और मुंह सूज जाता है। इस तरह का सूरन का कन्द चिकना होता है और उसका सन्वर्धन कद के छोटे-छोटे टुकड़े करके होते है।
यह मुंह और गले में चराचराहट करती है। इसकी पैदावर अधिक होती है। इसको उबालने से उसकी चराचराहट कम होती है। मीठी किस्म का सूरन का संवर्धन उपकन्दों से होता है। मीठी किस्म का गुण ज्यादा अच्छा होता है। इससे चराचराहट नही होती है। इसके गर्भ का रंग फीका गुलाबी अथवा सफेद होता है। मीठी तरह का सूरन साग के लिए और चराचराहट वाली सूरन का औषधि के रूप में उपयोग होता है।
मस्से यानि बवासीर के रोग में यह बहुत ही गुणकारी है। इसीलिए संस्कृत भाषा में इसे अर्शहन का नाम दिया गया है। सूरन(suran) का साग बवासीर के रोगियों के लिए लाभकारी होता है।
वैज्ञानिक के अनुसार : सूरन में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह, प्रोटीन एवं अधिक मात्रा में विटामिन `ए´ है।
सूरन (जिमीकंद) के फायदे और उपयोग (suran ke fayde in hindi)
1. बवासीर में रामबाण :
- सूरन (suran)के टुकड़ों को पहले उबाल लें और फिर सुखाकर उनका चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 320 ग्राम, चित्रक 160 ग्राम, सौंठ 40 ग्राम, काली मिर्च 20 ग्राम एवं गुड 1 किला – इन सबको मिलाकर देशी बेर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बना लें | इसे ‘सूरन वटक’ कहते हैं | प्रतिदिन सुबह-शाम 3-3 गोलियाँ खाने से बवासीर में खूब लाभ होता हैं |
- सूरन (jimikand)के टुकड़ों को भाप में पका लें और टिल के तेल में सब्जी बनाकर खायें एवं ऊपर से छाछ पियें | इससे सभीप्रकार की बवासीर में लाभ होता हैं | यह प्रयोग 30 दिन तक करें। खूनी बवासीर में सूरन की सब्जी के साथ इमली की पत्तियाँ एवं चावल खाने से लाभ होता हैं ।
2. पेट के कीड़ों के लिए : सूरन का प्रयोग करने से पेट के कीड़े और बवासीर की शिकायत मिट जाती है।
सावधनियाँ / कब प्रयोग न करें (suran ke nuksan)
- यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
- अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
- आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
- इसे दाद, कोढ़, रक्त पित्त में नहीं खाना चाहिए।