Last Updated on March 3, 2020 by admin
स्वर्ण भस्म क्या है ? : Swarna Bhasma in Hindi
स्वर्ण भस्म स्वर्ण से बनाई जाने वाली आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण औषधि है | इसका उपयोग बांझपन, ऊतक बर्बाद, अस्थमा, विषाक्तता, त्वचा रोग, टीबी, एनीमिया आदि के आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है। स्वर्ण भस्म त्वचा के वर्ण को सुधारती है, रस रक्त आदि धातुओ को बल प्रदान करती है, मुख की कान्ति को बढ़ाती है
स्वर्ण भस्म शोधन विधि : Swarna Bhasma Shodhan Vidhi
सोने का कंटकवेधी पत्रा (आजकल मशीन द्वारा सोने का बहुत पतला पत्र बनवा लिया जाता है। इस को भस्म के लिये लेना चाहिए।) लेकर आग में तपा-तपा कर तैल, तक्र, गो-मूत्र, कांजी और कुल्थी के क्वाथ में ३-३ बार बुझाने से शुद्ध हो जाता है या वर्क अथवा कुन्दन बनवा लिया जाय। वर्क और कुन्दन बनाने के पहले ही स्वर्ण पत्रों को तैल-तक्र आदि में शुद्ध कर लेना चाहिए।
स्वर्ण भस्म बनाने की विधि : Swarna Bhasma Bnane ki Vidhi
शुद्ध कंटकवेधी स्वर्ण के शुद्ध पत्रों को कैंची से बहुत बारीक-बारीक कतर लें। इसमें दुगुना पारा मिलाकर दोनों को एकत्र घोंट पिट्टी बनावें। इस पिट्ठी को तुलसी-पत्र के रस में तीन दिन तक लगातार मर्दन कर टिकिया बना, धूप में सुखा, सराव-सम्पुट में बंद कर आधा सेर कण्डों की आँच में फेंक दें। इस तरह ५-७ पुट देने से ही भस्म हो जाती है। पर यह भस्म काली होगी। इसी काली भस्म को लेकर १-२ पुट खुला ही देने से सुख (लाल) रंग की हो जाती है।
नोट-घर पर किसी औषधि को बनाने की योग्यता, क्षमता, कुशलता और विधि-विधान की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को नहीं हो सकती, फिर भी कुछ पाठक घटक द्रव्य और निर्माण विधि को भी बताने का आग्रह करते हैं। उनके संतोष के लिए हम योग के घटक द्रव्य और उसकी निर्माण विधि का विवरण भी प्रस्तुत कर दिया करते हैं।
मात्रा और अनुपान : Swarna Bhasma Dosage & How to Take in Hindi
चौथाई से आधी रती तक मधु, मक्खन, मिश्री, मलाई, गिलोय, सत्व, च्यवनप्राशावलेह आदि के साथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ दें।
रोगानुसार अनुपान :
1-वातप्रकोप युक्त ज्वर में- स्वर्ण भस्म को रससिंदूर के साथ पीस कर बेल की छाल के स्वरस के साथ दें।
2-पित्तज्वर में स्वर्ण भस्म में –रससिन्दूर मिलाकर पित्तपापड़े के स्वरस के साथ दें।
3-ज्वर- इसी तरह ज्वरों को दूर करने के लिये स्वर्ण भस्म को रससिन्दूर के साथ मिलाकर तुलसी-पत्र स्वरस के अनुपान से दें।
4- जीर्णज्वर में –स्वर्ण भस्म और अभ्रक भस्म मिलाकर शहद के साथ दें।
5- पुरानी संग्रहणी में स्वर्ण भस्म को रसपर्पटी और शंख भस्म मिलाकर उचित अनुपान के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
6-पुराने पाण्डु रोग में – गुर्च सत्व, स्वर्ण भस्म और लौह भस्म को एकत्र मिलाकर शहद के साथ सेवन करें।
7-राजयक्ष्मा में – स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, रससिन्दूर और मुक्तापिष्टी एकत्र मिला कर शहद के साथ दें।
8-गर्भाशय-शुद्धि के लिये स्वर्ण-भस्म को क्षीरकाकोली और चोपचीनी चूर्ण में मिला कर सेवन करें।
9- पुराने फिरंग (उपदंश) को नष्ट करने के लिए स्वर्ण भस्म में रसपुष्प मिलाकर इसको रक्तशोधक गुर्च, केसर, अनन्तमूल आदि वनौषधियों के क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिये।
10- श्वास रोग-चरकोक्त श्वासहर शुंठी चूर्ण आदि द्रव्यों के साथ सेवन करने से भयंकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है। न
11-नवीन या पुराने अम्लपित्त में –स्वर्ण भस्म आँवले के चूर्ण में मिलाकर सेवन करें।
12-अपस्मार तथा योषापस्मार में -स्वर्ण भस्म को रससिंन्दूर, अभ्रक भस्म तथा शंखपुष्पी चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।
13-शिर:कम्प रोग में –स्वर्ण भस्म को बला (खरेंटी) क्वाथ के साथ सेवन करें।
14-अण्डकोष की सूजन –स्वर्ण भस्म में समभाग बनी पारद-गंधक की कज्जली और पुनर्नवा चूर्ण मिलाकर गो-मूत्र के अनुपान से सेवन-करने से अण्डकोष में होनेवाली सूजन मिट जाती है।
15-कण्ठ- स्वर्ण भस्म को मुनक्का, पिप्पली चूर्ण, कायफल तथा मुलेठी चूर्ण में मिला कर कुछ दिनों तक सेवन करने से कण्ठ -स्वर कोमल और सुरीला बन जाता है।
16-सुंदरता – लाल चंदन, नागकेशर अथवा कमलकेशर, नीलोफर, मुलेठी, खाँड, मजीठ, केशर आदि रक्तशोधक तथा रक्त वर्द्धक द्रव्यों के साथ स्वर्ण-भस्म सेवन करने से स्त्रियों में सुंदरता की वृद्धि होती है।
17-त्रिदोषजन्य उन्माद रोग में –स्वर्ण भस्म को सोंठ, लौंग और काली मिर्च के चूर्ण में मिला कर शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
18-मेधा- स्वर्ण भस्म को बच, गिलोय, सोंठ तथा शतावर चूर्ण के साथ ६ मास लगातार सेवन करने से मेधा (धारणा) शक्ति की वृद्धि होती है।
19-बलवर्धक – स्वर्ण भस्म को शालपर्णी, विदारीकन्द, असगन्ध और काँच के बीज के चूर्ण के साथ तीन मास तक निरंन्तर सेवन करने से कृश शरीर वाले मनुष्य हृष्ट-पुष्ट हो जाते हैं।
20-गर्भाशय- नागकेशर चूर्ण में स्वर्ण भस्म मिलाकर ऋतकाल में स्त्री को सेवन कराने से उसके गर्भाशय में गर्भधारण की शक्ति उत्पन्न होती है, गर्भाशय में अनेक उपद्रवयुक्त शोथ को दूर करने के लिये स्वर्ण भस्म को शिलाजीत, लौह भस्म और चाँदी की भस्म में मिलाकर दशमूल कषाय के पान से सेवन करें।
21-शरीर में अकाल में उत्पन्न जरा-प्रभाव को दूर करने के लिए स्वर्ण भस्म को च्यवनप्राश तथा मकरध्वज और अभ्रक भस्म के साथ सेवन करना चाहिए।
22-दाह में –स्वर्ण भस्म चौथाई रत्ती, मोती पिष्टी आधी रत्ती में मिला, आँवले के मुरब्बा के साथ देना श्रेष्ठ है।
23- पित्त रोग और पित्तप्रधान उन्माद रोग में –स्वर्ण भस्म चौथाई रत्ती, अभ्रक भस्म १ रत्ती, ब्राह्मी और बच के चूर्ण २-२ रत्ती, मधु के साथ दें और भोजनोत्तर सारस्वतारिष्ट १ तोला बराबर जल मिलाकर सेवन करावें। सिर में हिमकल्याण तेल की मालिश करावें। इस रोग में स्वर्ण मिश्रित दवाईयाँ बहुत फायदा करती है।
24-ग्रहणी में –स्वर्ण पर्पटी से मृतप्राय रोगी अच्छे होते हैं। ग्रहणी में स्वर्ण भस्म चौथाई रत्ती सोंठ और भुने हुए जीरे का चूर्ण २-२ रत्ती मिलाकर मधु के साथ देने से अपूर्व लाभ होता है।
25-पैत्तिक प्रमेह में- स्वर्ण भस्म चौथाई रत्ती, वंग भस्म १ रत्ती, अभ्रक भस्म आधी रत्ती, ताजे आँवले या गिलोय (गुर्च) के स्वरस के साथ देने से शीघ्र ही लाभ करती है। अथवा स्वर्णघटित औषधियाँ देने से भी काफी लाभ होता है।
26-नेत्रों की दृष्टि में –विकार उत्पन्न होने पर स्वर्ण भस्म अष्टमांश रत्ती, कांस्य भस्म १ रत्ती में मिला, त्रिफलादि घृत के साथ दें।
27-कब्जियत –यदि दस्त में कब्जियत भी रहती हो, तो रात को सोते समय त्रिफला चूर्ण या और कोई हल्का विरेचन ले लेने से कब्जियत दूर हो जाती है।
28-भयंकर प्रदर (श्वेत रक्त दोनों) में -स्वर्ण भस्म चौथाई रची,श्वेतांजन १ रत्ती, मुक्ताशुक्ति पिष्टी १ रत्ती में मिलाकर चौलाई की जड़ का चूर्ण १ माशा अथवा इसके क्वाथ के साथ देने से बहुत शीघ्र फायदा होता है।
29-नपुंसकता में –स्वर्णघटित मकरध्वज आधी रत्ती, मुक्तापिष्टी १ रत्ती और स्वर्ण भस्म चौथाई रत्ती की मात्रा में मलाई के साथ देने से बहुत फायदा होता है।
आइये जाने Swarna Bhasma ke fayde के बारे में
स्वर्ण भस्म के फायदे ,गुण और उपयोग : Swarna Bhasma Benefits & Uses in Hindi
1- इसकी भस्म स्निग्ध, मधुर, किंचित् तिक्त, शीतवीर्य ओर रसायन गुणवाली है। पाककाल में मधुर, बृंहण, हृद्य और स्वर-शुद्धिकारक है। सुवर्ण भस्म प्रज्ञा,वीर्य, स्मृति, कांति और ओज को बढ़ाने वाली है।
2- यह क्षय (राजयक्ष्मा), धातुक्षीणता, जीर्ण ज्वर, मन्द ज्वर, बराबर आनेवाला ज्वर, त्रिदोष, मस्तिष्क की दुर्बलता, पुराना श्वास, कास, दाह, पित्त रोग, पित्तज उन्माद, विषविकार, पित्तप्रधान प्रमेह, दृष्टि क्षीणता, प्रदर, नपुंसकता आदि रोगों में इसका प्रयोग करना श्रेष्ठ है।
3- पुनांनी मतानुसार स्वर्ण अनुष्णाशीत (मातदिल), बल्य, मन प्रसन्न करनेवाला, वाजीकर, शामक, हृदय और मस्तिष्क तथा यकृत् को बल देनेवाला है। मद, उन्माद, शुक्रप्रमेह, नपुंसकता, स्नायुदौर्बल्य, उर:क्षत, राजयक्ष्मा, जीर्ण विकारों में विशेष लाभकारी है।
4- जिस प्रकार स्वर्ण को सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक व्याधि दूर करने में भी वह बहुत महत्व रखता है। अत्यन्त क्षीणावस्था को प्राप्त मृतप्राय रोगी को भी जीवन शक्ति प्रदान करने की अद्भुत शक्ति स्वर्ण भस्म में पायी जाती है।
5- वैसे तो सभी रोगों में स्वर्णघटित औषधों से चमत्कारिक लाभ होता है, किंतु राजयक्ष्मा, संग्रहणी, जीर्णज्वर, स्नायुदौर्बल्य, नपुंसकता आदि व्याधियों में तो स्वर्ण भस्म के बिना रोग आराम होना ही कठिन है। दिल को ताकत पहुँचानेवाली औषधियों में स्वर्ण भस्म का सर्वप्रथम स्थान है।
6- स्वर्ण भस्म का कार्य रक्त को निर्दोष बनाकर हृदय को पुष्ट तथा रक्तवाहिनियों और वातवाहिनियों को सबल करना है। अर्जुन कपूर, कुचला, डिजिटेलिस पत्र आदि में जो हृदय पुष्ट करने के गुण हैं, उनसे बिलकुल भिन्न गुण स्वर्ण भस्म में है। यह स्मरण रखना चाहिये कि स्वर्ण भस्म बहुत कम मात्रा में देने से उत्तम लाभ करती है।
7- अनुलोमन क्षय में स्वर्ण भस्म विशेष लाभदायक है। इसी तरह कण्ठमाला में भी स्वर्ण भस्म से उत्तम लाभ होता है। दोनों प्रकार की धातुक्षीणता अर्थात् रस-रक्तादि धातुओं की क्षीणता में तथा केवल शुक्र धातु की क्षीणता मैं स्वर्ण वसन्त मालती, वसन्त कुसुमाकर और स्वर्णघटित औषधों से विशेष लाभ होता है।
8-स्वर्णघटित बृहद् विषम ज्वर-हर लौह और पुटपक्व विषम ज्वरान्तक लौह आदि औषधियों से कालाज्वर या किसी तरह न आराम होनेवाला मलेरिया ज्वर जड़ से नष्ट हो जाता है।
9-सैंकड़ों इंजेक्शन और वर्षों डॉक्टरी चिकित्सा करने पर भी जो रोगी अच्छे न हुए वे स्वर्णघटित औषधों से अच्छे होते देखे गये हैं। त्रिदोष (सन्निपात) में बृ. कस्तूरी भैरव, सुवर्ण समीरपन्नग रस आदि स्वर्णघटित दवाओं से रोगी की प्राण -रक्षा होती है। मस्तिष्क की निर्बलता में स्वर्ण भस्म सर्वोत्तम साबित हुई है। स्वर्ण मिश्रित मकरध्वज गुटिका, बृहत् वातचिन्तामणि आदि महौषधियाँ अत्यंत कष्टदायक दिमाग की कमजोरी दूर करने के लिये सुप्रसिद्ध औषध है।
10-पुराना कास-श्वास किसी भी तरह आराम न होता हो तो बृहत् श्वास चिन्तामणि, महालक्ष्मी विलास रस आदि स्वर्णघटित देवाओं की प्रयोग करना चाहिए। इन दवाओं से निश्चित रूप से लाभ होता है।
11-तीव्र विष-विकार के शमन होने पर भी शरीर में कुछ अंश विष का रह जाता है। उस विष-विकार को दूर करने के लिये स्वर्ण भस्म का प्रयोग थोड़ी मात्रा में करते रहना लाभप्रद है। स्वर्णभस्म सेवन करने वालों पर विष का प्रभाव प्रायः बहुत कम होता है।
12-क्षय रोग के समान भयंकर और दुर्जय रोग में स्वर्ण भस्म, का उपयोग बहुत लाभदायक है। जिस प्रकार आयुर्वेद के आचार्यों ने क्षय रोग में सुवर्ण की उपयोगिता की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है, उसी प्रकार आधुनिक पाश्चात्य चिकित्सकों ने भी इस भयंकर व्याधि में स्वर्ण भस्म की उपयोगिता को दिल खोलकर स्वीकार किया है। जैसे वैद्यगण स्वर्ण भस्म अथवा उससे बनी औषधे क्षय रोगियों को देते हैं, वैसे पाश्चात्य चिकित्सकों ने सुवर्ण के इंजेक्शन तथा दूसरी बनावटें क्षय रोगियों के लिये तैयार की है और उनका प्रचुर मात्रा में वे लोग अयोग भी करते हैं।
इसका कारण यह है कि स्वर्ण तेजस्वी होते हुए भी यह एक सौम्य पदार्थ है।
13-यह हृदय, मस्तिष्क स्नायुजाल, मूत्रपिण्ड और शरीर के प्रत्येक अंग पर एक प्रकार का स्फूर्तिदायक प्रभाव डालता है, जिससे शरीर का ओज और कांति बढ़ती है, शरीर में स्फुर्ती और मन में उमंग पैदा होती है और रक्त संचालन की क्रिया में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है, जिससे रोग के कीटाणु रक्त में नहीं बढ़ सकते।
14-सुवर्ण भस्म हृदय को शक्ति प्रदान कर पुष्ट बनाती है। यह दूषित रक्त को शुद्ध कर हृदय को पुष्ट करते हुए वातवाहिनी और रक्तवाहिनी सिराओं में शक्ति प्रदान करती है सुवर्ण भस्म में यह गुण अन्य भस्मों से कहीं ज्यादा है।
15-विष-विकार-स्थावर या जंगम विष का जो शरीर पर बुरा असर पड़ता है अर्थात् अशुद्ध संखिया, सींगिया (मीठा तेलिया) आदि स्थावर विष के खाने से और सांप, पागल कुता, बिल्ली आदि जंगम प्राणियों के काट खाने से जो विष शरीर में व्याप्त होकर अपना असर प्रकट करता है, इस तरह के विष-विकार को दूर करने के लिये स्वर्ण भस्म का प्रयोग करना चाहिये। ऐसी अवस्था में विष का वेग अन्य उपचारों द्वारा बन्द कर देने के बाद भी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में स्वर्ण भस्म का बारबार प्रयोग करना चाहिये, क्योंकि स्वर्ण विषघ्न है। अतएव, विष-विकार को दूर करने के लिये इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिये।
16-सुवर्ण कीटाणु नाशक है। अतएव, क्षयरोग में सुवर्ण का उपयोग अनेक तरह से किया गया है। कहीं स्वतन्त्र रूप से और कहीं यौगिक रूप से इसका प्रयोग करने का आयुर्वेद में वर्णन है। क्षय कि किसी भी अवस्था में स्वर्ण भस्म का प्रयोग कर सकते है।
17-आयुर्वेद के आचार्यों ने देश, काल, बल आदि का सूक्ष्म-से -सूक्ष्म विचार करके ही अनेक तरह से स्वर्ण का प्रयोग क्षयरोग में किया है। ।
किन्तु क्षयरोग में जब ज्वर का वेग बहुत ज्यादा हो, पित्त के मारे मन व्याकुल हो, प्यास की भी विशेषता हो, ऐसी अवस्था में स्वर्ण भस्म नहीं दें, क्योंकि कभी-कभी देखा गया है कि ऐसी अवस्था में स्वर्ण भस्म देने से ज्वर का टेम्प्रेचर (गर्मी) और भी बढ़ जाता है। इसका कारण यह है कि स्वर्ण देने से क्षय के कीटाणु मरने लग जाते हैं। वे जैसे जैसे मरते जाएँ, वैसे-वैसे शरीर के बाहर निकलते जाएँ, तो ज्वर आगे न बढ़ कर कम होने लगता है, और रोगी भी अच्छा हो जाता है, किन्तु यदि वे मरे हुए कीटाणु बाहर नहीं निकल पाएँ, तो उनका विष सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होकर ज्वर को और भी बढ़ा देता है। अत: रोगी की अवस्था, प्रकृति और बल देख कर स्वर्ण भस्म का प्रयोग करना चाहिए।
18-क्षय रोग की पूर्वरूपावस्था में स्वर्ण भस्म देने से अच्छा लाभ होता है, क्योंकि उस समय में क्षय रोग उत्पन्न करने वाले दूषित दोष अथवा कीटाणु स्वर्ण भस्म के प्रयोग से आगे नहीं बद पाते हैं। कारण इस भस्म का प्रधान कार्य रक्त-प्रसादन अर्थात् रक्त के विकार को दूर कर स्वच्छ बनाकर रोगोत्पन्न करने वाले कीटाणुओं का नाश करना है । अतः क्षय रोग होने से पूर्व ही यदि स्वर्ण भस्म का सेवन कराया जाय, तो इस रोग के उत्पन्न होने की आशंका नहीं रहती है।
19-उर:क्षत रोग में – जब मुँह से ज्यादा रक्त निकलने लगे, तो चिकित्सा रक्त-पित्त की ही तरह करें किंतु उन औषधियों के साथ या स्वतंत्र रूप से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सुवर्ण भस्म का भी प्रयोग करते हैं, क्योंकि इस रोग में कमजोरी बहुत शीघ्र आ जाती है, जिससे हृदय कमजोर होकर हार्ट फेल होने की सम्भावना बनी रहती है। अतः हृदय में ताकत पहुँचाने के लिये स्वर्ण भस्म देना अच्छा है। इससे रक्त-प्रसादन होकर हृदय भी पुष्ट हो जाता है।
20-पितज और कफज जमाद – होने पर सुवर्ण भस्म धमासे के क्वाथ के साथ देना हितकर है, क्योंकि इसकी भस्म विकृत कफ और पित्त से उत्पन्न विकार को दूर कर हृदय को शुद्ध रक्त द्वारा पुष्ट करते हुए मानसिक विचार जिससे मन विकृत रहता है, उसे दूर करके मन में सान्त्वना पैदा करती है।
21- खाँसी-श्वास, जिसमें पित्त अथवा वात की प्रबलता हो, उसमें सुवर्ण भस्म देने से बहुत फायदा होता है।
22-राजयक्ष्मा का विष जब आंतड़ियों या ग्रहणी में पहुँच जाता है, तब अंतडियाँ और ग्रहणी दोनों दूषित हो जाते हैं, जिससे बार-बार पतले दस्त आने लगते हैं, ये दस्त जैसे- जैसे बढ़ते जाते हैं, वैसे – वैसे शरीर भी कमजोर होता जाता है। कभी-कभी आंतों में क्षत (खराश) हो जाने से भी रक्त गिरने लगता है। ऐसी अवस्था में स्वर्ण भस्म देना अच्छा है, कारण, इस भस्म के प्रभाव से यक्ष्मा बढ़ानेवाले दूषित विष नष्ट होकर आंतों में भी सुधार हो जाता, जिससे पतला दस्त होना रूक जाता है। साथ ही अन्य विकार भी शान्त हो जाते हैं।
23-कुष्ठ रोग में भी सुवर्ण भस्म का उपयोग अच्छा होता है, क्योंकि इससे रक्त का प्रसादन हो त्वचा कोमल हो जाती है और त्वचागत विकृत पित्त भी शान्त हो जाता है, जिससे शरीर की कान्ति अच्छी हो जाती तथा क्षुद्र कुष्ठ अथवा त्वचा के रोग नष्ट हो जाते हैं। महाकुष्ठ उत्पन्न करने वाले कीटाणु भी इस भस्म के सेवन से नष्ट हो जाते हैं। निर्गुण्डी मूल चूर्ण १ माशा में १/८ रत्ती स्वर्ण भस्म मिलाकर जल के साथ देने से कुछ ही समय में कुष्ठ रोग नष्ट हो जाता है।
24-आन्त्रिक ज्वर आदि पुराने बुखारों में स्वर्ण-भस्म के प्रयोग से दो काम होते हैं। पहला तो यह कि शरीर में फैले हुए विष द्वारा दूषित रक्त का विष दूर कर शुद्ध रक्त का शरीर में संचालन करना और दूसरा कार्य पूरानी बीमारी की वजह से हृदय कमजोर हो जाता है, जिससे हृदय की गति बढ़ जाती है, रक्त की कमी के कारण नाड़ी की गति भी क्षीण हो जाती है। इस विकार को दूर करना अर्थात् रक्त-प्रसादन कर हृदय की कमजोरी दूर होकर हृदय पुष्ट हो जाता है तथा रक्त की पूर्ति होकर नाड़ी की गति में भी सुधार हो जाता है। – औ. गु. ध. शा. तथा अनुभव के आधार पर हृदय को पुष्ट और बलवान बनाने के लिये स्वर्ण भस्म चौथाई रत्ती, अकीक भस्म १ रत्ती में मिलाकर, शहद या अदरख रस के साथ दें।
25-क्षय (राजयक्ष्मा) की प्रथम और द्वितीयावस्था में स्वर्ण भस्म आधी रत्ती, प्रवाल पिष्टी १ रत्ती, श्रृंग भस्म आधी रत्ती, गिलोय सत्व २ रत्ती में मिला मधु के साथ देने से बहुत शीघ्र फायदा होता है। 26-पित्तप्रधान या वात प्रधान श्वास-कास में द्राक्षासव के साथ स्वर्ण भस्म का सेवन करना परम हितकर है।
आइये जाने Swarna Bhasma Side Effects in Hindi के बारे में
स्वर्ण भस्म के नुकसान : swarna bhasma ke nuksan
1-स्वर्ण भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-सही प्रकार से बनी भस्म का ही सेवन करे।
4-डॉक्टर की सलाह के स्वर्ण भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।
स्वर्ण भस्म से निर्मित आयुर्वेदिक योग (दवा) : swarna bhasma ki ayurvedic dawa
1) सुवर्ण वसंत मालती( swarna vasant malti) यह एक उत्तम रसायन है, बल बढ़ाने वाला और पुरानी बीमारियों को दूर करने में बेहद असरदार है|
इसके इस्तेमाल से शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, धात गिरना इत्यादी हर तरह के पुरुष यौन रोग, पुरानी बुखार, खांसी, अस्थमा, मूत्र विकार, पाचन शक्ति की प्रॉब्लम, शारीरिक मानसिक कमज़ोरी, नींद न आना, स्किन प्रॉब्लम, गठिया-Arthritis, अनेमिया, मिर्गी, टीबी, महिलाओं के सारे रोग Periods की प्रॉब्लम, लिकोरिया इत्यादि हर तरह के महिला-पुरुष रोग दूर होते हैं
2) सुवर्णप्राश टेबलेट ( Suvarna Prash Tablet) : सुवर्ण भस्म से बनाई यह पुण्यदायी गोली आयु,शक्ति,मेधा,बुद्धि,कांति व जठराग्निवर्धक तथा ग्रहबाधा निवारक, उत्तम गर्भपोषक है ।गर्भवती स्त्री इसका सेवन करके निरोगी,तेजस्वी ,मेधावी संतती को जन्म दे सकती है ।
स्वर्ण भस्म का मूल्य : Swarna Bhasma Price
- DABUR Swarna Bhasma (500 mg) – Rs 2744
- Baidyanath Swarna Bhasma, 125 Mg – Rs 990
- Dhootapapeshwar Suvarna(Swarna) Bhasma 500 Mg With Goodman’s Shilajeet 10 Gm – Rs 2170
- Dhanvantari Swarna Bhasma (100 mg) – Rs 549
कहां से खरीदें :
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