स्वर विज्ञान : कब करें कौन सा काम | Swar Vigyan se Labh

Last Updated on July 22, 2019 by admin

स्वर विज्ञान क्या है ? | Swar Vigyan in Hindi

जिस तरह वायु का बाहरी उपयोग है वैसे ही उसका आंतरिक और सूक्ष्म उपयोग भी है। जिसके विषय में जानकर कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति आध्यात्मिक तथा सांसारिक सुख और आनंद प्राप्त कर सकता है। प्राणायाम की ही तरह स्वर विज्ञान भी वायुतत्व के सूक्ष्म उपयोग का विज्ञान है जिसके द्वारा हम बहुत से रोगों से अपने आप को बचाकर रख सकते हैं। स्वर साधना या स्वरोदय विज्ञान को योग का ही एक अंग मानना चाहिए। यह मनुष्य को हर समय अच्छा फल देने वाला होता है, लेकिन यह स्वर शास्त्र जितना मुश्किल है, उतना ही कठिन है इसको सिखाने वाला गुरू मिलना। स्वर साधना का आधार श्वास लेने और श्वास छोड़ने की गति- स्वरोदय विज्ञान है। हमारी सारी चेष्टाएं तथा तप्तजन्य फायदा-नुकसान, सुख-दुख आदि सारे शारीरिक और मानसिक सुख तथा मुश्किलें आश्चर्यमयी श्वास लेने और श्वास छोड़ने की गति से ही प्रभावित हैं। जिसकी मदद से दुखों को दूर किया जा सकता है और मनोवांछित सुख की प्राप्ति हो सकती है।
प्रकृति का यह नियम है कि हमारे शरीर में दिन-रात तेज गति से श्वास लेना और श्वास छोड़ना एक ही समय में नासिका के दोनों छिद्रों से साधारणतः नहीं चलता। बल्कि वह बारी-बारी से एक निश्चित समय तक अलग-अलग नासिका के छिद्रों से चलता है। एक
नासिक के छिद्र का निश्चित समय पूरा हो जाने पर उससे श्वास लेना और श्वास छोड़ना बंद हो जाता है और नासिका के दूसरे छिद्र से चलना शुरू हो जाता है। श्वास का आना जाना जब एक नासिका के छिद्र से बंद होता है और दूसरे से शुरू होता है तो उसको ‘स्वरोदय’ कहा जाता है। हर नासाछिद्र में स्वरोदय होने के बाद वह साधारणतया 1 घंटे तक मौजूद रहता है। इसके बाद दूसरे नासिका के छिद्र से श्वास चलना शुरू होता है और वह भी 1 घंटे तक रहता है। यह क्रम रात और दिन चलता रहता है।

स्वरयोग :

योग के मुताबिक श्वास को ही स्वर कहा गया है। स्वर मुख्यतः 3 प्रकार का होता है- जब नासिका की बाएं छिद्र से श्वास चलती है तब उसे ईडा’ में चलना अथवा ‘चंद्रस्वर’ का चलना कहा जाता है और दाहिने नासिका से श्वास चलती है तो उसे ‘पिंगला’ में चलना अथवा ‘सूर्य स्वर’ का चलना कहते हैं और नासिका केदोनों छिद्रों से जब एक ही समय में बराबर श्वास चलती है तब उसको ‘सुषुम्ना में चलना में कहा जाता है।

चंद्रस्वर : chandra swar in hindi

जब नासिका के बाईं तरफ के छिद्र से श्वास चल रही हो तो उसको चंद्रस्वर कहा जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुँचाता है। इस स्वर में तरल पदार्थ पीने चाहिए और मेहनत का काम नहीं करना चाहिए।

सूर्यस्वर : surya swar in hindi

जब नासिका के दाईं तरफ के छिद्र से श्वास चल रही हो तो उसे सूर्य स्वर कहा जाता है। यह स्वर शरीर को गर्मी देता है। इस स्वर में भोजन और ज्यादा मेहनत वाले काम करने चाहिए।

दाहिने स्वर भोजन करै,वायें पीवे नीर।
ऐसा संयम जब करें, सुखी रहे शरीर ।।

स्वर बदलने की विधि :

नासिका के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चल रहा हो तो उसे दबाकर बंद करने से दूसरा स्वर चलने लगता है। जिस तरफ के नासिका के छिद्र से स्वर चल रहा हो उसी तरफ करवट लेकर लेटने से दूसरा स्वर चलने लगता है। नासिका के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चलाना हो उससे दूसरी तरफ के छिद्र को रुई से बंद कर देना चाहिए। ज्यादा मेहनत करने से, दौड़ने से और प्राणायाम आदि करने से स्वर बदल जाता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से स्वर पर काबू हो जाता है। इससे सर्दियों में सर्दी कम लगती है और गर्मियों में गर्मी भी कम लगती है।

स्वरयोग से लाभ : swara yoga benefits

Swar Vigyan se Labh
1-जो व्यक्ति स्वर को बार-बार बदलना पूरी तरह से सीख जाता है उसे जल्दी बुढ़ापा नहीं आता और वह लंबी उम्र भी जीता है।
2-जिसका दिन में चन्द्र स्वर तथा रात्रि में सोते समय सूर्य स्वर चलता है उससे मृत्यु बहुत दूर रहती है। दिन को तो चंदा चले, चले रात में सूर। यह निश्चय कर जानिये, प्रान गमन बहु दूर।
3- कोई भी रोग होने पर जो स्वर चलता हो उसे बदलने से जल्दी लाभ होता है।
4- शरीर में थकान होने पर चंद्रस्वर में (दाईं करवट) लेटने से थकान दूर हो जाती है।
5-स्नायु रोग के कारण अगर शरीर में किसी भी तरह का दर्द हो तो स्वर को बदलने से दर्द दूर हो जाता है।
6-दमे का दौरा पड़ने पर स्वर बदलने से दमे का दौरा कम हो जाता है।
7-जिस व्यक्ति का दिन में बायां और रात में दायां स्वर चलता है वह हमेशा स्वस्थ रहता है।
8- गर्भधारण के समय अगर पुरुष का दायां स्वर और स्त्री का बायां स्वर चले तो पुत्र एवं पुरुष का बायां स्वर और स्त्री का दायां स्वर चले तो पुत्री का जन्म होता है।

विशेष :-यदि आप मुफ्त में स्वस्थ और चुस्त बने रहना चाहते हैं।तो आपको तीन काम करने चाहिए। पहला तो प्रातः जल्दी उठकर वायु सेवन के लिए लम्बी सैर के लिए जाना और दूसरा ठीक वक्त पर खूब अच्छी तरह चबा चबाकर खाना तथा तीसरा दोनों वक्त शौच जाना।

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