Last Updated on July 23, 2019 by admin
12 ज्योतिर्लिंगों का महात्म : shiv ji ke 12 jyotirling
हिन्दू धर्म में आस्था रखनेवाले करोडों हिन्दू भी बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम् और द्वारकाजी, इन चार धाम की तीर्थयात्रा के बाद भगवान के द्वादश ज्योतिर्लिंग को ही महत्त्व देते हैं । स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों की चर्चा करते ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख भूतभावन भगवान महाकाल की नगरी उज्जयिनी सबसे पहले दृष्टि समक्ष आती है । भगवान महाकाल समग्र मानवलोक के अधिपति के रूप में महत्त्व तथा गौरव प्राप्त हुआ है ।
पुराणों में भी आया है कि :
आकाशे तारकं लिंग पाताले हाटकेश्वरम् ।
मृत्युलोके महाकालं लिगत्रयं नमोऽस्तुते ।।
स्कन्दपुराण में ‘कालचक्रप्रवर्तको महाकालः प्रतापनः कहकर कालगणना के प्रवर्तक के रूप में महाकाल का स्वीकार किया गया है । महाकाल को कालगणना के केन्द्रबिन्दु मानने के लिए अन्य भी अनेक कारण है । उज्जैन को भारत का मध्यस्थान (नाभि-क्षेत्र) माना गया है अतः महाकाल की स्थिति मणिपुर चक्र पर मानी गयी है ।
दूसरी बात, भूगोल की कर्क रेखा (कर्कवृत्त) और भू्रमध्य रेखा उज्जैन में ही एक दूसरे को मिलती है इससे कालगणना की सरलता रहती है । आज भी पंचांग-निर्माण में काल-गणना यहाँ की ही ली जाती है ।
१. भगवान महाकालेश्वर :Mahakaleshwar Jyotirling
भगवान महाकालेश्वर की पौराणिक कथा शिवपुराण में इस प्रकार है :
उज्जैन में वेदप्रिय नामका एक पवित्र धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था । वह योगसिद्ध था । उस समय रत्नमाला पर्वत पर रहनेवाला दूषण नामक एक राक्षस नगरजजनों को सताता था । अतः भयभीत नगर-जन उस धर्मात्मा ब्राह्मण की शरण में गये और सहाय करने के लिए प्रार्थना की ।
वेदप्रिय ने रुद्र की कठिन तपस्या की । उनके तप के प्रभाव से भगवान महाकाल पृथ्वी को चीरकर प्रकट हुये, दूषण राक्षस का संहार किया और भक्तों की प्रार्थना से सदा के लिए वहीं विराजमान हुये । आज भी हररोज प्रातःकाल में भगवान महाकाल के लिंग को ताजी चिता-भस्म का लेपन किया जाता है और प्रातः काल भस्म-आरती होती है ।
अग्निपुराण के मुताबिक यह सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है । इसके दर्शन से भक्त की मुक्ति शीघ्र ही होती है । उनके दर्शनार्थी की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है ।
इस ज्योतिर्लिंग का स्तुतिगान इस प्रकार है :
दूषणासुरनाशाय संभूतं रक्तलोचनम् ।
वेदविद्यावरोधस्य विनाशाय च तत्परम् ।
उज्जयिन्यांश्च महाकालरूपं रुद्रं पिनाकिनम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
‘उज्जयिनी में निवास करनेवाले, महाकाल रूप, पिनाक धनुष्य धारण करनेवाले, दूषणासुर का नाश करने के लिए उत्पन्न हुये, लाल लोचनवाले, वेदविद्या में आनेवाले अवरोधों का नाश करने में जो तत्पर हैं ऐसे, सर्व देहधारियों शरण्य, ललाट पर चन्द्र को धारण करनेवाले भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वंदन करता हूँ ।
२. श्री सोमनाथ महादेव:Somnath Jyotirling
★ सौराष्ट्र में वेरावळ (प्रभास पाटण) के पास इस ज्योतिर्लिंग का स्थान है । ऋग्वेद, स्कंदपुराण और महाभारत में इस स्थान का उल्लेख आता है ।
★ दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएँ थी । उनकी शादी चन्द्रमा के साथ की थी । उन कन्याओं में रोहिणी अधिक सुंदर होने के कारण चन्द्र को उसके प्रति ज्यादा आसक्ति थी । अतः दूसरी बहनों को ईर्ष्या हुई और उन्होंने पिता से शिकायत की । दक्ष प्रजापति ने सबके प्रति समान भाव से प्रेम रखने के लिए चन्द्र को समझाया लेकिन उसने कुछ नहीं सुना । अतः क्रोध में आकर दक्ष प्रजापति ने चन्द्र को ‘क्षय(क्षीण) होने का शाप दिया । परिणाम स्वरूप चन्द्र की शक्ति दिनोदिन क्षीण होती चली । वह घबराया और दक्ष प्रजापति के आगे गिडगिडाया ।
★ दक्ष से शाप वापस खींच लिया और सब पत्नियों के प्रति समान भाव से प्रेम रखने की शर्त रखी और पश्चिमी सागर तट पर सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटण में भगवान शंकर का तप करने के लिए कहा ।
★ चन्द्र की उग्र तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुये और चन्द्र को आधा मास क्षीण होने का तथा बाकी के आधे मास में पुनः शक्ति प्राप्त होने का वरदान दिया । चन्द्र की प्रार्थना से भगवान शंकर प्रभास पाटण में स्थिर हुये और सोमनाथ महादेव कहलाये । श्रावण मास की पूर्णिमा को तथा शिवरात्रि को यहाँ बडा मेला लगता है ।
इस ज्योतिर्लिंग की स्तुति इस प्रकार है :
रक्षकं रजनीशस्य दक्षशापनिवारणात् ।
क्षयकुष्ठादिरोगाणां भीषजं भवदारकम् ।
सोमनाथस्वरूपेण प्रभासे कृतसंस्थितम् ।
चन्द्रमोलीश्वरें वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।
★ ‘दक्ष के शाप का निवारण करके चन्द्र का रक्षण करनेवाले, क्षय, कुष्ठ आदि रोगों के औषधरूप, संसार रूपी सागर को निवृत्त करनेवाले, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमोलीश्वर को मैं वंदन करता हूँ ।
३. श्री मल्लिकार्जुन : Mallikarjun Jyoptirling
यह स्थान तमिलनाडु में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर आया हुआ है । महाभारत और शिवपुराण में इसका उल्लेख मिलता है ।
★ श्री गणेश और कार्तिकेय दोनों भगवान के पुत्र थे । उनकी शादी के लिए विवाद हुआ । दोनों भाई चाहते थे कि अपनी शादी प्रथम हो । तब भवानी-शंकर ने निर्णय दिया कि जो भाई पृथ्वी की परिक्रमा करके प्रथम आएगा उसकी शादी प्रथम होगी । यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर आरूढ होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले । गणेशजी तो बडी तोंदवाले देव ठहरे । खासा मोटा शरीर और उनका वाहन भी चूहा ।
★ शास्त्रों के ज्ञाता गणेशजी ने अपने माता-पिता शिव-पार्वती को पास-पास में एक ही आसन पर बैठाये और सात बार उनकी प्रदक्षिणा की । बस, इस प्रकार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने का अधिकार प्राप्त कर लिया । जब कार्तिक स्वामी पृथ्वी की प्रदक्षिणा पूरी करके आये तब तो गणेशजी विश्वरूप प्रजापति की रिद्धि और सिद्धि नाम की दो कन्याओं से शादी कर चुके थे ।
★ यह जानकर कार्तिक स्वामी रूठकर श्री शैल पर्वत पर चले गये । माता-पिता ने नारदजी को भेजकर उन्हें समझाने का प्रयास किया लेकिन वे माने नहीं । तब शिव-पार्वती स्वयं श्रीशैल पर्वत पर जाने के लिए रवाना हुये । यह जानकर कार्तिकजी वहाँ से भाग निकलने के लिए तैयार हुये । तब भगवान भोलेनाथ श्रीशैल पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के स्वरूप में प्रकट हुये और वह स्थान मल्लिाकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह स्थान शक्तिपीठ भी कहलाता है ।
★ मल्लिाकार्जुन का पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ करने का पुण्य मिलता है ।
इनकी स्तुति इस प्रकार है :
अनुनेतुं षडास्यं च श्रीशैलगतीमीश्वरम् ।
पुत्रस्नेहातिरेकस्य दृष्टान्तं परमद्भुतम् ।
मल्लिकार्जुनरूपेण श्री शैलद्रिनिवासिनम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
‘पुत्रस्नेहातिरेक के परम अद्भुत दृष्टान्त स्वरूप, कार्तिकदेवजी को वापस लाने के लिए श्रीशैल पर्वत पर गये हुये और वहाँ मल्लिकार्जुन रूप से निवास करनेवाले, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वंदन करता हूँ ।
४. ओंकारेश्वर : Omkareshwar Jyotirling
मध्य प्रदेश में मांधाता पर्वत पर नर्मदा-कावेरी के संगम स्थान पर यह मंदिर स्थित है ।
★ सुप्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा मांधाता ने इस स्थान में घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किये थे । ओंकारेश्वर के साथ अमलेश्वर का मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर है । ऐसा माना जाता है कि एक लिंग में से दो भाग होकर भगवान दो स्थान में अलग अलग स्वरूप में विराजमान हुये ।
★ उनमें प्रणव के रूप में ओंकारेश्वर और पार्थिव रूप में अमलेश्वर के नाम जाने जाते हैं । इस स्थान में कुबेर ने सौ वर्ष तक तप किया था । किरातार्जुन तथा परशुराम का युद्ध यहीं हुआ था । पास में ही मंडलेश्वर तीर्थ है । वहाँ शंकराचार्य और मंडनमिश्र का शास्त्रार्थ हुआ था ।
इस तीर्थ की स्तुति इस प्रकार है :
कामनापूर्णकर्तारं व्निध्याचलकृपाकरम् ।
कावेरीरेवयोः पुण्ये नित्यवासिनम् ।
ओंकारेश्वरमीशानं मांधातृपुरवासिनम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘कामनाएँ पूर्ण करनेवाले, व्निध्याचल पर कृपा करनेवाले, कावेरी और नर्मदा के पुण्य संगम में नित्य निवास करनेवाले, भगवान ओंकारेश्वर के रूप में मांधातापुर में निवास करनेवाले, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वंदन करता हूँ ।
५. श्री वैद्यनाथ : Vaidyanath Jyotirling
★ हावडा-पटना रेलवे लाइन पर जसीडीह स्टेशन से २ कि. मी. दूर महादेव का मंदिर है रावण ने भगवान शंकर को प्रसन्न करके उनसे प्राप्त किया हुआ वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग यहाँ स्थित है ।
★ रावण वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग महादेव को आकाश मार्ग से लंका में ले जा रहा था । देवों को यह अच्छा नहीं लगा । अतः वरुणदेव रावण के पेट में प्रविष्ट हो गयेऔर रावण को लघुशंका करने की तीव्र इच्छा हुई । वह पृथ्वी पर उतर आया । वहाँ वृद्ध ब्राह्मण के रूप में भगवान विष्णु हाजिर थे । रावण ने कुछ देर के लिए शिवलिंग ब्राह्मण को पकडने के लिए दिया ।
★ रावण लघुशंका करने बैठा लेकिन उसके पेट में वरुणदेव थे इसलिए समय अधिक लगा । वृद्ध ब्राह्मण ने थककर शिवलिंग जमीन पर रख दिया । बस, शिवलिंग जमीन में गहरा, पाताल तक पहुँच गया । महादेवजी ने रावण को यह ज्योतिर्लिंग देते हुये कहा था : ‘इस लिंग को लंका के सिवाय और कहीं रखना नहीं । अगर कहीं भी जमीन पर रखेगा तो वहीं से पुनः उठाना असंभव हो जायेगा ।
★ …और ऐसा ही हुआ । वह शिवलिंग भूमि में पाताल तक उतर चुका था । केवल आठ उंगल बाहर रहा । रावण निराश हो गया । उसने चन्द्रकूप बनाया । उसमें सब तीर्थों का जल इकट्ठा किया और उस सर्वतीर्थजल से भगवान शिव का अभिषेक किया । तदनन्तर आकाशवाणी के द्वारा आश्वासन पाकर वह लंका चला गया ।
★ दूर दूर से जल लाकर यहाँ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करने का बडा माहात्म्य है । कहा जाता है कि भगवान वैद्यनाथ की भक्ति से कुष्ठ रोग मिट जाता है । अतः कई रोगी दर्शनार्थ यहाँ आते हैं ।
★ इस ज्योतिर्लिंग का स्तुतिगान इस प्रकार है :
अर्पिते दशमे मौलो पौलस्त्याय वरप्रदम् ।
स्मशाने प्रकटीभूतं भूतिभूषं भुजंगिनम् ।
वैद्यनाथं महादेवं वामदेवं विपद्धरम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘रावण ने जब अपना दसवाँ मस्तक धर दिया तब उसको वरदान देनेवाले, स्मशान में प्रकट होनेवाले, भस्म से सुशोभित, नागो को धारण करनेवाले, वामदेव के रूप में भगवान वैद्यनाथ को, विपत्तियों को हरनेवाले, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वंदन करता हूँ ।
६. श्री भीमशंकर : Bhimashankar Jyotirling
★ महाराष्ट्र में बम्बई से २०० मील दूर दक्षिण-पूर्व में सह्याद्रि पर्वत में भीमा नदी के तट पर यह स्थान आया हुआ है । वहाँ जाने के लिए केवल शिवरात्रि के समय पूना से भीमशंकर तक बस जाती है ।
★ भगवान शंकर ने भीमासुर का वध करके इस स्थान में आराम किया । उस समय अवध का राजा भीमक वहाँ तप करता था । शिवजी ने प्रसन्न होकर उसको दर्शन दिये और वहाँ स्थायी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुये ।
★ इसकी स्तुति इस प्रकार है :
भीमासुरस्य हन्तारं कुंभकर्णसुतस्य च ।
अद्भुतासुरहन्तारं पिशिताशनपूजितम् ।
भीमशंकरमद्रीशतनयाय प्रियमश्वरम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘भीमासुर का, कुंभकर्ण के पुत्र का तथा अद्भुतासुर का संहार करनेवाले, मांसाहारियों के द्वारा पूजे जानेवाले, माँ पार्वती के प्रिय भगवान भीमशंकर को, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वंदन करता हूँ ।
७.रामेश्वरम : Rameshwar Jyotirling
★ तामिलनाडु के रामानन्द जिले में जहाँ बंगाल का उपसागर और हिन्दी महासागर मिलते हैं वहाँ पुराण-प्रसिद्ध गन्धमादन पर्वत पर रामेश्वर भगवान का मंदिर आया हुआ है ।
★ भगवान श्रीराम ने लंका-विजय पर जाते समय अपने हाथों से इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी इससे उसका नाम रामेश्वरम् पडा । लंका-विजय के बाद राम को ब्रह्महत्या का दोष लगा था क्योंकि रावण पुलस्त्यकुल का ब्राह्मण था । इस दोष को निवारण करने के लिए शिवपूजा करनी थी । तब हनुमानजी ने सीताजी के हाथ से समुद्र की रेत में से बनाये हुये शिवलिंग की स्थापना की ।
★ श्रीराम ने लंका-विजय के बाद रामेश्वर की पूजा करने से पहले हनुमानजी ने स्थापित किये हुये शिवqलग की पूजा की थी । हनुमानजी द्वारा स्थापित शिवलिंग काशी-विश्वनाथ के नाम से प्रख्यात है ।
★ इस ज्योतिर्लिंग का स्तोत्र इस प्रकार है :
दशाननविनाशाय जानकीमोचनाय च ।
लंकागमनकार्याय सेतुबन्धुं च सागरे ।
पूजितं रामचन्द्रेण रामेश्वरमुमापतिम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘लंकेश रावण का विनाश करने के लिये, सीताजी को मुक्त करने के लिये, लंका जाने के लिए सागर पर सेतू बाँधने के लिए, श्रीराम के द्वारा पूजित उमापति भगवान रामेश्वर को, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वन्दन करता हूँ ।
८. श्री नागेश्वरम् : Nageswar Jyotirling
★ सौराष्ट्र में द्वारिका के पास नागेश्वर महादेव का मंदिर है । द्वारिका से बस द्वारा वहाँ जा सकते हैं ।
दारुक राक्षस ने शिवभक्त सुप्रिय वैश्य को कैद किया और उसका वध करने को उद्यत हुआ । सुप्रिय की प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर स्वयं वहाँ प्रकट हुये और दारुक का संहार किया । फिर भगवान वहीं पर ज्योर्लिंग के स्वरूप में स्थिर हुये ।
★ इस तीर्थ की स्तुति इस प्रकार है :
दुष्टदुर्मतिहंतारं पापघ्नं विघ्ननाशकम् ।
विदारकं त्रिशूलेन मांधातृहैहयस्य च ।
नागेश्वरं नागहारं नागेन्द्रकृतिवाससम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘दुष्टों का दुर्मति को नष्ट करनेवाले, पाप और विघ्नों का नाश करनेवाले, मांधाता और हैहय को त्रिशूल से विदीर्ण करनेवाले, नागों का हार धारण करनेवाले, हाथी के चर्म का वस्त्र धारण करनेवाले भगवान नागेश्वर को, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वन्दन करता हूँ ।
९. श्री विश्वनाथ : Visweswar Jyotirling
★ काशी-वाराणसी में स्थित यह मंदिर हिन्दूओं का परम पवित्र यात्राधाम है । कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा से तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किये थे । तदनन्तर भगवान विष्णु ने शयन किया और उनकी नाभि में से कमल उत्पन्न हुआ । कमल में से ब्रह्माजी प्रकट हुये जिन्होंने समग्र सृष्टि की रचना की । ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल में भगवान शंकर इस नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण करते हैं इससे इस नगरी का लोप नहीं होता । सृष्टि-स्थान भी काशी को माना जाता है ।
★ इस ज्योतिर्लिंग की स्तुति इस प्रकार है :
सर्वेषामघहन्तारं ध्यानगम्यं जटाधरम् ।
वाराणसीपुरीमध्ये वसन्तं मोक्षदायिनम् ।
विश्वनाथं च वागीशं वेदवेदान्तपारगम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘सर्व लोगों के पाप को हरनेवाले, ध्यान के द्वारा प्राप्त किये जा सकें ऐसे, जटाधारी, वाराणसी नगरी में निवास करनेवाले, मोक्षदायी, वेद-वेदान्त के मर्मज्ञ, वाणी के ईश्वर, विश्व के नाथ, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वन्दन करता हूँ ।
१०. श्री त्र्यम्बकेश्वर : Tryambakeswar Jyotirling
★ महाराष्ट्र में नासिक पंचवटी से ३० कि. मी. दूर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक स्वरूप छोटे-छोटे तीन लिंगोवाला ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर का मंदिर आया हुआ है । सिंह राशि में गुरु आता है तब यहाँ बडा कुंभमेला लगता है । गौतम ऋषि की तपस्या से गोदावरी माता नदी के स्वरूप में प्रकट हुई और भगवान शंकर ने इस स्थान में स्थायी निवास किया ।
★ इसका स्तुतिगान इस प्रकार है :
स्त्रीहत्यापवादेन व्यथितं गौतमं सुनिम् ।
घोषयितुं च निष्पापं प्रकटीभूतमीश्वरम् ।
त्र्यंबकेश्वरमादीशं त्रयीशं त्रिपुरान्तकम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘स्त्रीहत्या के झूठे आरोप से व्यथित बने हुये गौतम मुनि को निष्पाप घोषित करने के लिए प्रकट हुये प्राणिमात्र के ईश्वर को, त्रिपुर नामक राक्षस का नाश करनेवाले, तीनों लोकों के आदि ईश्वर भगवान त्र्यम्बकेश्वर को, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वन्दन करता हूँ ।
११. श्री केदारनाथ : Kedareswar Jyotirling
★ हिमालय में बद्रीनाथ और केदारनाथ के दो मुख्य तीर्थ हैं । पहले केदारनाथ के दर्शन करने के बाद बद्रीनाथ की यात्रा का फल मिलता है ।
केदारनाथ का लिंग नर-नारायण सम्मिलित है हिमालय के केदार पर्वत पर विष्णुजी के अवतार नर-नारायण ने शिवजी की तपस्या की । उन पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर यहाँ ज्योतिर्लिंग के स्वरूप में स्थायी बने ।
★ केदारनाथ का शिवलिंग बर्फ का बना हुआ है । उस पर यात्री लोग घी का लेपन करते हैं । पहाडों के बीच आये हुये केदारनाथ की यात्रा कठिन चढाईवाली है ।
इसकी स्तुति इस प्रकार है :
केदारालंकृतं शर्वं नरनारायणस्तुतम् ।
तपस्वीनां प्रियं कर्तुं वसन्तं तत्र सर्वदम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ ‘केदार पर्वत को सुशोभित करनेवाले, नर-नारायण के द्वारा स्तुति किये जानेवाले शिव को, तपस्वियों का कल्याण करने के लिए वहाँ सदैव निवास करनेवाले, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वन्दन करता हूँ ।
१२. श्री घुश्मेश्वर : Ghrishneswar Jyotirling
★ महाराष्ट्र में मनमाड से ६६ कि. मी. दूर, दौलताबाद से १२ कि.मी. के अन्तर पर यह तीर्थधाम आया हुआ है ।
देवगिरि पर्वत की तलहटी में सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था । उसको सुदेहा नाम की व्नध्या पत्नी थी । सुदेहा के आग्रह से सुदेहा की बहन घुश्मा के साथ सुधर्मा ने दूसरी शादी की । घुश्मा को एक पुत्र हुआ ।
★ घुश्मा शिवभक्त थी । वह हररोज १०१ शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा किया करती थी । पुत्र बडा हुआ अब उसकी शादी करवाई । सुदेहा को ईर्ष्या हुआ और एक रात्रि में उसने पुत्र की हत्या करके उसका शव उस तालाब में डाल दिया जिसमें घुश्मा हररोज शिवलिंगो का विसर्जन करती थी ।
★ प्रातःकाल में जब घुश्मा शिवपूजन कर रही थी तब पुत्रवधू ने उसे अपने पति के मृत्यु के समाचार दिये । घुश्मा चुप रही । जब वह शिवलिंगो का विसर्जन करने तालाब पर गयी तब भोलेनाथ की कृपा से उसका पुत्र जीवित होकर बाहर निकला । वहाँ भगवान शंकर प्रकट हुये और सुदेहा को मारने के लिए त्रिशूल उठाया । तब घुश्मा ने क्षमायाचना की और भगवान शिव शान्त हुये । उन्होंने घुश्मा की प्रार्थना से वहाँ स्थायी निवास किया घुमेश्वर के नाम से प्रख्यात हैं ।
★ इस ज्योतिर्लिंग का स्तुतिगान इस प्रकार है :
घुश्मापुत्रस्य दैत्यस्य मृत्युपाशविमोचकम् ।
अद्रिकंदरगं शंभुं मिलापुरनिवासिनम् ।
चन्द्रमौलीश्वरं वन्दे शरण्यं सर्वदेहीनाम् ।।
★ घुश्मा के पुत्र को मृत्यु के पाश से मुक्त करनेवाले एलोरा की गुफा में तथा मिलापुर में निवास करनेवाले शंभु को, सबको इच्छित वरदान देनेवाले, विश्व के तीनों तापों को हरनेवाले, सर्व देहधारियों के शरण्य भगवान चन्द्रमौलीश्वर को मैं वन्दन करता हूँ ।
★ इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध है । उनके पावन दर्शन, पूजन, अर्चन से मनुष्य को शीघ्र मोक्षप्राप्ति होती है ।
।। द्वादश ज्योतिर्लिंगानि ।।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम् ।।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावे ।।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ।।
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ।।
सौराष्ट्र में भगवान सोमनाथ, श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में भगवान महाकाल, ओंकारेश्वर तथा अमलेश्वर, परली में भगवान वैद्यनाथ, डाकिनी में भगवान भीमशंकर, सेतुबन्ध पर भगवान रामेश्वर, दारुकवन में भगवान नागेश्वर, वाराणसी में भगवान विश्वनाथ, गौतमी के तट पर भगवान त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय में भगवान केदारनाथ और महाराष्ट्र में भगवान घुश्मेश्वर… इन ज्योतिर्लिंगोंका जो पुरुष सायं प्रातः स्मरण-पठन करता है उसके सात जन्मों में किये हुये पाप इस स्मरण से नष्ट हो जाते हैं ।
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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