Last Updated on January 9, 2017 by admin
बंगाल के फरीदपुर जिले के बाजितपुर गाँव में विनोद नाम का एक पवित्रबुद्धि बालक रहता था। हर कार्य में उसकी दृष्टि हमेशा सत्यान्वेषी होती थी। वह देखता कि माँ रोज तुलसी के पौधे को प्रणाम करती है, जल चढ़ाकर दीप जलाती है, फिर परिक्रमा लगाती है। एक दिन वह सोचने लगा, आखिर तुलसी का यह पौधा इतना पवित्र क्यों ?
उसने इसकी परीक्षा करनी चाही। मन ही मन दृढ़ संकल्प करके वह दोहराता गया कि तुम अगर पवित्र हो तो मुझे प्रमाण दो वरना मैं तुम्हें पवित्र नहीं मान सकता।
एक दिन उसने देखा कि तुलसी के पौधे से एक दिव्य पुरुष निकले और बोलेः “मैं हूँ नारायण, तुलसी के पौधे में मेरा निवास है।”
इस घटना के बाद विनोद तुलसी के पौधे का बहुत सम्मान-पूजन करने लगा। तुलसी माता का कोई अपमान करे, यह उससे सहन नहीं होता था। आगे चलकर इसी बालक ने योगिराज गम्भीरनाथजी से गुरुमंत्र की दीक्षा ली और स्वामी प्रणवानंद जी के नाम से विख्यात हुए।
संकल्प की दृढ़ता व हृदय की पवित्रा नहीं हो तो हर किसी को भगवत्प्रभाव का प्रमाण नहीं मिलता। विनोद सरल हृदय बालक था। आप भी विनोद के अनुभव से लाभ उठाकर तुलसी माता का सम्मान पूजन किया करें। तुलसी को प्रतिदिन जल देकर नौ परिक्रमा करें। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि इससे आभा बढ़ती है। तुलसी की जड़ की मिट्टी का तिलक करें।
तुलसी की जड़ की मिट्टी का तिलक करने से आपका शिवनेत्र विकसित होगा। विज्ञानी शिवनेत्र को पीनियल ग्रंथि बोलते हैं, यहाँ बहुत सामर्थ्य छुपा है। यह जितना संवेदनशील होगा, आदमी उतना प्रभावशाली होगा, सूझबूझ का धनी होगा।
- Sant Shri Asaram ji Ashram ( Tulsi Rahasya Book)