Last Updated on July 22, 2019 by admin
श्रेष्ठ कपर्दक भस्म के लिये कौडी का चयन :
कौडी तीन प्रकारकी मिलती है. सुफेद, पीली और शोणा ( बड़ी कौडी ) भस्म तैयार करने के लिये या दूसरे नुश्खे में डालने के लिये पीली कौडी लेनी चाहिये. पीली कौडी मे भी वजन से भारी, मध्यम और हलकी कौड़ी होती है. डेढ तोला वजनकी कौडी श्रेष्ठ, एक तोला वजनकी कौडी मध्यम और पौना तोला वजनकी कौडी कनिष्ट मानी जाती हैं.
कपर्दक भस्म की शुद्धि : Kapardak Bhasma ki suddhi
( १ ) कौडी, छांछ, आंबीलोनाका रस या नींबू का रस इनमें आठ दिन तक भिगोना चाहिये, फिर वे सफेद होने तक उनको अम्ल पदार्थों की भावना देनी चाहिये. इसके बाद धोने से वे शुद्ध हो जाती है.
(२) कांजी में एक प्रहरपर्यंत पकाने से कौडी शुद्ध होती है.
कपर्दक भस्म बनाने की विधि : Kapardak Bhasma bnane ki vidhi
( १ ) शुद्ध कौडी को गजपुट देने से वह और भी सफेद होती है. फिर इसका चूर्ण करते हैं. यह कपर्दक भस्म है जिसे कपर्दिका भस्म, वराटिका भस्म ,कोरी भस्म, और कौड़ी भस्म के नाम से भी जाना जाती है.
(२) शुद्ध कौडी को गजपुट देने के वाद, इसका चूरा करना चाहिये. फिर इस चूर्ण को घीगुवार के रस से और नींबू के रससे सात भावना देनी चाहिये. हर एक भावना के बाद गजपुट देना चाहिये. इससे भी अच्छी कपर्दक भस्म तैयार होती हैं.
कपर्दक भस्म तैयार होने के बाद उसका रंग बिलकुल सफेद ( बगलेके पर के माफिक ) होता है.
कपर्दिका भस्म के गुण धर्म : Kapardak Bhasma ke gundharm
1- पित्तशामक, विशेषतः पित्तकी अम्लता अधिक हो तो कम करना, कोष्ठस्थ वातनाशक, शलग्न और पाचक.
2- कपर्दक भस्म यह एक चुने का सेन्द्रिय कल्प है. यह सेन्द्रिय होने के कारण निरिन्द्रिय द्रव्यों से जल्द और आसानी से शरीर में फैलता है.
3- कौडी यह एक प्राणी का घर है. और यह घर, वह, शरीर कीडे के शरीर मे से एक रस निकलता है. उससे बना हुआ है. इस लिये कौडी मे सेन्द्रियत्व हैं.
4- कौडी, शंख और शुक्ति (सीप) ये सब एक ही वर्ग के है. इनके भस्म पेटमें स्वादुता पैदा करते हैं. इनमे सेभी यह गुण कपर्दक भस्म में अधिक है.
कपर्दिका भस्म का कार्य : Kapardak Bhasma ke kary
• यकृत, प्लीहा, आमाशय और ग्रहणी इन अवयवोपर होता है.
कपर्दिका भस्म के सेवन की मात्रा और अनुपान :
१ से २ रत्ती.
कपर्दिका भस्म के उपयोग और फायदे : Kapardak Bhasma ke fayde /benefits
1- कोष्ठगत वातके वृद्धी से पेट का फूलना, पेट दर्द और शल, खाना खायें तो वह जैसे एकही जगहूपर अटका हुवासा मालुम होना, डकारे अाना, वे कभी कभी सूखी तो कभी कभी खट्टी अाती है , जी मचलाता है, कभी वातकारक, भारी या तले हुवे पदार्थ खाएं तो लक्षण बढ़ जाते हैं और अजीर्ण होता है. इस हालत में कपाकि, भस्म देनी चाहिये
•इसी रोग मे के ( उलटी ) ज्यादा हो और हर एक उलटी के साथ पेट अधिक फूलता हो और उसके साथ पेटका शुल भी अधिक हो तो कपर्दक भस्म के साथ दाडिमावलेह ( अनारक पाक ) देना चाहिये.
2- रसाजीर्ण की अादत में भी कपर्दक भस्म एक अच्छा इलाज है.
3- वात, पित्त या वात पित्त के विकार से पैदा हुवा परिणामशूल कपर्दिकाभस्म से हट जाता है.
4- उंदुक और पित्तवरा कला इन दोनो अवयवों में विकृति होने से परिणाभिशूल का विकार होता है. कपर्दक भस्म (कपर्दिका भस्म) से पित्त विकृति कम होती हैं और उंदुक में (Duodenum) जो छाले पड़ जाते हैं वे, पुराने और बढ़ गये न हो तो, कम हो जाते हैं. यहाँ कपर्दिकाभस्म का व्रणरोपक कार्य होता है.
5- अन्नद्रवाख्यशूल में भी कपर्दक भस्म से फायदा होता है. इस शूल में वात प्रकोप से अनाह ( पेट का फूलना और दर्द ) हो तो कपर्दिकाभस्म और शंखभस्म मिलाकर देना चाहिये.
6- अम्लपित्तकी प्रथम अवस्थामें खट्टी और फेनयुक्त कै ( वमन ) होती है. इस अवस्थामें कपर्दक भस्म देना चाहिये. कपर्दक भस्म के साथ सुवर्णमाक्षिकभस्म दे तो और फायदा होगा.
7- ग्रहणी रोगके शरूमें या आमातिसार में आम का पचन करने लिये कपर्दक भस्म (कपार्दिकाभस्म ) देना अच्छा है, प्रथम एक दो दिन लंधन देने बाद आमपाचनं करना चाहिये. कपर्दक भस्म अकेली दे सकते हैं नहीं तो जिनमें कपर्दक भस्म मिलाई है ऐसे नुश्खे भी दे सकते हैं जैसे-जातीफलादि गुटिका, प्रमदानंद रस इत्यादि.
• नोट-जातफलादि गुटिका में अफीम और जायफल इन दोनो औषधियोंका तीव्र स्तंभक कार्य है , इसलिये जातफलादि गुटिकाका इलाज सोच-समझ के करना चाहिये |
8- आमातिसार और ग्रहणी, इनमें शूल अधिक हो, और वह आमजन हो तो कपर्दिकाभस्म से आराम होगा. ग्रहगीरोग पुराना होगा तो कपदिका भस्म ले उसमें कुछ फायदा नहीं होता.
विशेषतः आम और रक्त के साथ मल (शौच) आता हो तो कपर्दीकाभस्म न देना अच्छा है |
9- ग्रहणी की प्रथम अवस्था मे भी आम और रक्त हो तो कपर्दिकाभस्म न देनी चाहिये. अगर देखें तो दूसरे स्तंभक और रक्तप्रसादक द्रव्यों के साथ देवे.
10- रसक्षय की प्रथम अवस्था में कपर्दिकाभस्म देते हैं. विशेषतः बिलकुल कम खाने सेभी अन्नका पचन न होना, मीठी मीठी डिकारें आना, उसमें बदबू होती है और कब्जियत भी होती है. इन लक्षण में कपर्दिकाभस्म से फायदा होता है |
11- रक्तपित्त और क्षतक्षय के विकार में कपर्दक भस्म , प्रवाल भस्म और सुवर्णगैरिक (सुवर्णगेरू) का मिश्रणा देते हैं. इसमें जो चुनेका अंश रहता है उससे और माधुर्यउत्पादक गुणों से और रक्तवाहिनिओं का स्तंभन होता है और खून गिरना बंद होता है.
12- पुराने अग्निमांद्यमे (बदहजमी) कपर्दिकाभस्म घी के साथ या दूसरे पाचक द्रव्यों के साथ दी जाती है.
13- जीर्ण ज्वर और प्लीहा, वृद्धि में भी अग्निमांद्य हो, तो कपर्दिकाभस्म से फायदा होगा.
14- कर्णस्राव ( कान मे से पानी निकलना ) मे जब वह स्राव गाढा तीक्ष्ण और फुन्सिया उठानेवाला होता है तब कपर्दिकाभस्म देनी चाहिये. प्रथम कान मे कपर्दिकाभस्म थोडीसी डाल दे और इसके उपर सिद्ध तेल या मीठा तेल छोडे. कपर्दिकाभस्म दूधके साथ पेट में भी लेते हैं.
15- चमडी के जलनपर भी कपर्दिकाभस्म का जल्द असर होता है. कपर्दिकाभस्म, मुरदाडसिंग, सुवर्णगेरू, गिलोयका सत्व, चंदन और बंसलोचन समभाग और इसमें अंडी का तेल डालके अच्छी तरह खरल करो. यह मरहम मुलायम ब्रशसे या रुई से जली हुवी चमडीपर लगाना चाहिये. यहां तक के चमडके उपर एक गाढा लेप हो. जैसा जैसा यह लेप लगाया जाता हैं वैसेही आराम पड़ जाता है. जलन बंद होती है और बाद फोडे भी नहीं ऊठते है. चमड़ी बिलकुल पहलेके माफिक हो जाती है.यह लेप अहमदनगर में आयुर्वेद महाविद्यालयके चिकित्सा मंदिरमे कई रोगियों पर अजमाया गया है.
(वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें )