Last Updated on January 31, 2024 by admin
कटहल क्या है ? : Jackfruit in Hindi
विश्व में उत्पन्न होने वाले बड़े-से-बड़े फलों में कटहल एक है। इसके फल कुम्हड़े से भी बड़े होते हैं। भारतवर्ष और दक्षिण एशिया कटहल के उत्पत्ति स्थान माने जाते हैं । कटहल भारत में विशेषकर दक्षिण भारत में काफी तादाद में पैदा होते हैं । दक्षिण भारत में बैंगलौर, गोवा और कोंकण प्रदेश में और सूरत जिले में इसकी पैदावार बहुतायत से होती है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ प्रान्तों में भी कटहल अच्छी मात्रा में पैदा होता है । कटहल के वृक्ष सर्वत्र होते हैं, किन्तु पहाड़ी क्षेत्रों में इसके वृक्ष विशेष रूप से पाए जाते हैं।
कटहल दूध वाला फल है । कटहल के पेड़ बहुत बड़े होते हैं । इसके वृक्ष से लगभग 500-600 फल उपलब्ध होते हैं। कटहल पर मोटे काँटे होते हैं । ऊपर की काँटों वाली मोटी छाल निकाल लेने पर अन्दर से कटहल की पेशियाँ निकलती हैं। इन पेशियों में काले अथवा लालिमा लिए हुए बीज होते हैं। ये बीज सेंक कर भी खाए जाते हैं। बीजों को सेंककर खाने से आम की गुठली से भी अधिक स्वाद आता है। बीजों का साग भी बनाया जाता है और इन्हें दाल में भी डाला जाता है।
कटहल की किस्में :
कटहल में रसाल और कटाव नामक 2 किस्में होती हैं। रसाल कटहल सफेद रंग के होते हैं और कटाव कटहल का रंग कुछ पीलापन लिए होता है ।
कटहल के फायदे : Kathal ke Fayde
1. मुह का फटना – कटहल के अंकुर घिसकर चुपड़ने से यदि मुँह फट गया हो तो लाभ होता है।
2. वायुदोष नाशक – कटहल ताकत और तन्दुरुस्ती प्रदान करने वाला, जठराग्नि को तेज करने वाला और वायुदोष को शान्त करने वाला अत्यन्त ही गुणकारी फल है।
3. साग – तरोताजा कटहल का साग बनता है। पके कटहल का भी साग बनता है।
4. कटहल पकने पर उसका भीतरी भाग खाया जाता है। कोंकण के निवासी लोग कटहल के गर्भ को सुखाकर उसे कूट-पीसकर उसकी पतली रोटी या पूड़ियाँ बनाकर भी खाते हैं। उसे ‘पनस-पोली’ कहते हैं।
5. कटहल के गर्भ की खीर और कढ़ी भी बनती है तथा इसके बीज भी खाने के काम आते हैं।
6. कटहल के बीज को सेंकने से पहले उसमें थोड़ा-सा छेद करना पड़ता है, अन्यथा यह भारी आवाज के साथ फटता है।
7. इन बीजों को कूटने या पीसने पर जो आटा बनता है, वह सिंघाड़े के आटे के समान होता है।
8. पका कटहल-शीतल, स्निग्ध, पित्त और वायुनाशक, तृप्दिायक, पौष्टिक, मधुर, माँसवर्धक, कफवर्धक, बलवर्धक और वीर्यवर्धक है । यह रक्तपित्त, क्षत और व्रणनाशक भी है।
9. कच्चा कटहल-मलरोधक, वायुकारक, कसैला, भारी, दाहकारक, बलप्रदायक एवं कफ और मेद बढ़ाने वाला है। वात, पित्त और कफ को मिटाता है।
10. कटहल के बीज वीर्यवर्धक, मलरोधक, भारी और मूत्रल हैं । कटहल के बीज की गुठली, मधुर, तृष्य, जड़ और विष्टंभक है।
11. कटहल की प्रत्येक शाखा के अन्तिम भाग में नोंकदार कलियाँ रहती हैं। इन्हें कूटकर इनकी गोलियाँ बनाकर मुख में रखने से अथवा कलियों को पीसकर उनका रस निकालकर थोड़ा-थोड़ा रस गले में उतारने से कण्ठ के रोग दूर होता है।
12. कच्चे कटहल और आम के वृक्ष की छाल सममात्रा में लेकर पानी मिलाकर कूटकर रस निकालें । इस रस में चूने का निथार वाला पानी मिला लें । यह पेय बच्चों की शक्ति के अनुसार 10 से 30 ग्राम तक पिलाने से आम (संग्रहणी) रोग मिटता है।
13. कटहल व आम्रवृक्ष की छाल का रस निकालकर उसमें चूने का निथार वाला पानी मिलाकर पीने से रक्तातिसार एवं विषूचिका (हैजा) रोग में लाभ होता है।
14. पके कटहल के अंकुर और खर्खनी की छाल को पानी के साथ पीसकर 100 ग्राम रस निकालकर सेवन करने से और पथ्य-पालन करने से शोफोदर नामक उदररोग मिटता है।
कटहल के नुकसान : Kathal ke Nuksan
- गुल्म के रोगियों तथा मन्दाग्नि वालों को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह पचने में भारी होता है ।
- कटहल का गर्भ खाने के बाद नागरबेल का पान खाने से अफरा चढ़ता है और पीड़ा होती है। कभी-कभी पेट के फूल जाने से व्यक्ति मर भी जाता है। यदि कटहल पर पान खाने से पेट फूल गया हो तो खट्टे बेर खाने से अथवा अन्य किस्म की खटाई लेने से लाभ मिलता है।
- यदि कटहल अधिक मात्रा में खा लेने के कारण अजीर्ण हो तो उस पर नारियल खाना चाहिए।