Last Updated on July 22, 2019 by admin
शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग
श्रीरणवीरजी प्रसिद्ध उर्दू दैनिक ‘मिलाप’ के स्वामी तथा सम्पादक थे। अंग्रेजी शासनमें उनको क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेनेके आरोपमें फाँसी की सजा हुई थी, वे जेलमें रहे थे और फिर निर्दोष छूट गये थे। उन्हींके जेल-जीवन से सम्बन्धित दो घटनाएँ उन्हींकी जबानी यहाँ दी जा रही हैं, जिनसे यह ज्ञात होता है कि स्थान तथा भोजन बनानेवाले का भी भोजन करनेवाले पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
स्थान का प्रभाव
पहले दिन मैं लाहौर के बोटैल जेलमें पहुँचा तो रातको मैंने बहुत भयानक सपना देखा। एक कच्चा-सा देहाती मकान। उसके छोटे-से द्वारसे मैं भीतर घुसा। खुले आँगनमें पहुँचा। आँगनसे एक कोठरीमें। वहाँ मेरी माताजी अपने बालों में कंघी कर रही थीं। मैंने उन्हें बालों से पकड़ा। वे चिल्लायीं तो उन्हें घसीटता हुआ मैं बाहर आँगनमें ले आया और पता नहीं, कहाँसे एक छूरा लेकर बार-बार उनकी छातीमें घोंपने लगा। मेरे सामने वे तड़पीं। मेरे सामने उनका खून बहा। फिर भी मैं रुका नहीं। छूके बाद छूरा मारता चला गया।
और इसी घबराहट में जागकर देखा-अँधेरी कोठरी है। जेल है। कहीं कुछ नहीं। अपने माता-पितासे मैं प्यार करता हूँ।
अपनी पूज्या माँ के लिये ऐसी बात मैंने कभी सोची ही नहीं। दुःख हुआ कि ऐसा सपना आया क्यों? रातभर सो नहीं पाया। सुबह होते ही मैंने जेलवालों से कहा-‘मेरे घरसे मेरी माताजी का हाल पूछ दीजिये। शायद उनकी तबीयत अच्छी नहीं।’ उन्होंने पूछकर बताया कि वे बिलकुल ठीक हैं। लेकिन दूसरी रात फिर वही सपना। फिर मैं सो नहीं पाया। सलाखोंवाले द्वार के पास आकर खड़ा हो गया। तभी गश्त करते हुए एक जेल अफसर उधरसे गुजरे। मुझे देखकर बोले-‘तुम सोये नहीं?’ मैंने उन्हें स्वप्न की बात कही तो वे आश्चर्य से बोले-‘यह कैसे हो सकता है? तुम कल यहाँ इस कोठरी में आये हो, परसों तक यहाँ एक और आदमी था, एक देहाती। उसने ठीक ऐसे ही अपनी माँ की हत्या की थी। ठीक ऐसा ही वह मकान था जैसा तुमने सपने में देखा। ठीक ऐसे ही वह बदनसीब माँ तड़पी और चिल्लायी थी। ठीक ऐसे ही वह शैतान उसे छूरेके बाद छूरा मारता गया था। मैंने गवाहों के बयान सुने हैं। परसों ही उस देहाती को फाँसीकी आज्ञा हुई। उसे सेण्ट्रल जेल में भेज दिया गया, लेकिन तुमको यह सपना आया कैसे?’
तब मैंने समझा कि हमारे शास्त्र जिसको स्थानका प्रभाव कहते हैं, वह क्या है। वह अभागा आदमी मुझसे पहले कई मास इस कोठरी में रहा। हर समय वह अपने कुकृत्य की बात सोचता था और उसके विचार, उसकी भावनाएँ, उसकी पापमयी अनुभूति इस कोठरी के कण-कणमें धंसती जाती थी। वह चला गया, लेकिन उसकी दूषित, पापपूर्ण भावना अब भी इस कोठरी में है, उसीके कारण मैं यह सपना देखता हूँ।
मैने जेलके अधिकारीसे कहा-‘आप कृपा करके मेरी कोठरी बदल दीजिये। मैं यहाँ रहूँगा नहीं। ऐसा न हुआ तो मैं अनशन कर दूंगा।’
लेकिन अनशन की नौबत नहीं आयी। दूसरे दिन मेरी कोठरी बदल दी गयी। फिर वह सपना कभी नहीं आया।
भोजन बनानेवाले का भोजन करनेवाले पर प्रभाव
यह घटना लाहौर के सेण्ट्रल जेलमें हुई। मैं तब फाँसीकी कोठरी में था। फाँसीका हुक्म हो चुका था। यहीं मैंने पहली बार भगवान की उपलब्धि की। पहली बार सच्चे रूपमें मैं आस्तिक बना। यहीं मैंने पूज्य पिताजीसे उपनिषद् पढ़ना शुरू किया। गायत्री और मृत्युञ्जय मन्त्रका जप भी शुरू किया। मन स्वच्छ था, निर्मल और शान्त कि तभी एक रात गन्दे-गन्दे सपने आने लगे। हर बार मैं घबराकर उठता। थोड़ा-सा जप करके सो जाता। फिर वही स्वप्न। वही रोती-चिल्लाती हुई युवती। वही कुकर्म । तंग आकर रातके दो बजे मैंने हाथ-मुँह धोये। जप के लिये बैठ गया, लेकिन पहलेकी तरह जपमें भी जी नहीं लगा। दूसरे दिन पिताजी आये तो उनसे सारी बात कही। उन्होंने पूछा-
‘कोई बुरी किताब तो नहीं पढ़ी?’
मैंने कहा- मेरे पास उपनिषदोंके सिवा कोई किताब है। ही नहीं।’
वे बोले-‘किसी बुरे आदमीकी बातें तो नहीं सुनीं?’
मैंने कहा-‘यह फाँसीकी कोठरी है। यहाँ आयेगा कौन?’
वे बोले-‘कोई बुरा खाना तो नहीं खाया?’
मैंने कहा-‘खाना तो बहुत स्वादु था। एक नया कैदी आया है। उसने बनाया था।’
पिताजीने जेलवालोंसे पूछा तो पता लगा कि यह नया कैदी एक युवती से बलात्कार करने के अपराध में कैद हुआ है। उसकी सारी कहानी सुनी तो वह ठीक वही थी, जो मैंने सपनेमें देखी थी।
प्रकट है कि उसके हाथका बना भोजन करने से ही मुझे ऐसा सपना आया, बाद में मैंने उसका बनाया हुआ भोजन नहीं किया, फिर वह सपना भी नहीं आया। तब मैं समझा कि हमारे शास्त्र भोजन बनानेवाले की शुद्धता पर जो इतना जोर देते हैं, सो क्यों देते हैं।