Last Updated on July 22, 2019 by admin
श्री मोरारजी देसाई की अनुभूति के अंश :
सुप्रसिद्ध गांधीवादी नेता एवं भारतके पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमोरारजी देसाईने श्रीरामचरितमानस की बातों को अक्षर-अक्षर सत्य मानकर इसकी पुष्टि में अपनी स्वयं की आँखों-देखी सत्य घटनाओं का अपने एक लेखमें जो कुछ वर्णन किया है, उसे यहाँ पर ज्यों-का-त्यों पाठकों के सामने रखा जा रहा है। श्रीमोरार जी देसाई अंधविश्वासी नहीं थे। रामायण, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की बातों को उन्होंने सत्य माना है। भगवान् श्रीराम को उन्होंने साक्षात् परमात्मा का अवतार स्वीकार किया है।
श्रीरामचरितमानस सम्बन्धी एक लेख में उन्होंने लिखा है कि श्रीतुलसीदासजी ने उस समय के विज्ञान का जिस प्रकारका वर्णन किया है, उसे देखने से ऐसा लगता है कि उस समय जो विज्ञान था, वहाँ तक आज का विज्ञान नहीं पहुँच पाया है। आज के युग में आठों सिद्धियों की बातों को शायद आप नहीं मानें; पर मैंने अपनी आँखोंसे ऐसी घटनाएँ देखी हैं, जिनमें कुछ घटनाओंका वर्णन यहाँ दिया जा रहा है
सवालों के जवाब –
बम्बई में सन् १९५६ में एक कन्नड़ भाई मेरे पास आये तथा बोले कि आप तीन सवाल चाहे जिस भाषा में लिखिये, मैं बिना पढ़े उनके जवाब उसी भाषामें दूंगा। मैंने एक कागजप र गुजराती भाषा में तीन सवाल दूर बैठकर लिखे और कागज को उलटकर रख दिया। उन्होंने तीनों प्रश्नों के उत्तर एक कागज पर लिखकर मुझे दे दिये। मेरे सवाल गुजराती में थे; अतः उत्तर भी गुजराती में ही लिखे थे। सभी उत्तर सही थे।
मैंने पूछा- भाई, तुमने यह चमत्कारिक विद्या कहाँ से सीखी? उन्होंने बताया–परीक्षा में फेल होने पर कुएँ में गिरकर आत्महत्या करने गया था। वहाँपर एक साधुने मेरा हाथ पकड़कर मुझे बचा लिया और मुझे अपना शिष्य बना लिया। एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि चल, हिमालय चलते हैं। उन्होंने मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी और दो मिनट बाद पट्टी खोली तो मैं हिमलय पर था। वहाँ उन्होंने मुझे अनेक विद्याएँ सिखायीं। एक दिन मैंने उन साधु महाराज से कहा कि मुझे घर जाना है। साधु ने मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी और दो मिनट बाद मैं अपने घरपर पहुँच गया।
मनचाही सुगन्ध प्रकट कर दी –
महाराष्ट्र में बिहार के एक सेक्रेटरी थे। वे मेरे घनिष्ठ परिचित थे। वे एक ऐसे सिद्ध संतके शिष्य थे, जो पानी के ऊपर चल सकते थे। एक बार वे अपने लड़के को लेकर उन महात्मा के पास गये। लड़के ने उन साधुसे कहा-“मैंने सुना है कि आप अनेक प्रकार के पदार्थ और इत्र पैदा करते हैं।’ साधुने कहा- तुम्हें कौन-सा इत्र चाहिये। लड़के ने कहा कि गुलाब का इत्र। साधु ने कहा कि इस कमरे से दो मिनटके लिये बाहर जाओ। साधुने दरवाजा बंद कर लिया। दो मिनट बाद लड़का अंदर कमरे में आया तो वहाँ गुलाब के इत्रकी सुगन्ध चारों ओर फैली हुई थी। चार-पाँच मिनट तक उसके शरीरपर इत्र-ही-इत्र फैला दिखायी दिया।
इस चमत्कार को देखनेके बाद लड़के ने कहा कि अब आप पानी पर चलकर दिखाइये। क्या मनुष्य में इतनी शक्ति है कि वह अपने वजन को इतना हलका कर ले कि पानीपर चलने लगे।
साधु ने लड़के से कहा-जरा अपना हाथ सीधा करो। लड़के ने अपना हाथ सीधा किया, तब वे साधु उसपर चढ़ गये। उसे पता भी न चला, हाथपर वजन भी नहीं लगा। यह देखकर उन आई०सी०एस० भाई (सेक्रेटरी) ने उनसे कहा-जरा मेरे हाथपर भी चढ़िये न। साधु ने उनके हाथ पर भी यही प्रयोग किया। यदि इस शक्ति को हम प्राप्त कर सकें तो विज्ञान में क्या रखा है !
श्रीमोरारजी देसाई द्वारा देखी तथा लिखी गयी सिद्धिकी उपर्युक्त अनूठी घटनाओं को पढ़कर यही धारणा बनती है कि शास्त्रों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदिमें आयी चमत्कारिक घटनाएँ सर्वथा सत्य हैं।
( और पढ़े –1957 की एक सत्य घटना )