Last Updated on August 3, 2019 by admin
घटना सन् १९४७ की है। भारत माता का अङ्ग भङ्ग होकर पाकिस्तान बनने की घोषणा होते ही समस्त पंजाब, सिन्ध और बंगाल में मुसलिम ने हिंदुओंको मारना-काटना तथा ग्रामों को आग की लपटों में भस्मी भूत करना प्रारम्भ कर दिया था। हिंदुओंको या तो तलवार के बलपर हिंदू-धर्म छोड़कर मुसलमान बनने को बाध्य किया जा रहा था, अन्यथा उन्हें मार-काटकर भगाया जा रहा था।
पंजाबके ग्राम टहलराम में भी मुसलमानों ने हिंदुओंको आतङ्कित करना प्रारम्भ कर दिया। गुंडों की एक सशस्त्र भीड़ ने हिंदुओंके घरों को घेर लिया तथा उनके सम्मुख प्रस्ताव रखा कि-‘या तो सामूहिक रूपसे कलमा पढ़कर मुसलमान हो जाओ, अन्यथा सभी को मौत के घाट उतार दिया जायगा।’ बेचारे बेबस हिंदुओंने सोचा कि जबतक मिलिट्री न आये, उतने समयतक कलमा पढ़ने का बहाना करके जान बचायी जाय। उन्होंने मुसलमानों के कहने से कलमा पढ़ लिया, किंतु मनमें ‘राम-राम ‘का जप करते रहे।
‘ये काफ़िर हमें धोखा दे रहे हैं। हिंदू सेना आते ही जान बचाकर भाग जायँगे। इन्हें गोमांस खिलाकर इनका धर्म भ्रष्ट किया जाय और जो गोमांस न खाय, उसे मौतके घाट उतार दिया जाय।’-एक शरारती मुसलमान ने उन्मादी मुसलमानों की भीड़को सम्बोधित करते हुए कहा।ठीक है, इन्हें गोमांस खिलाकर इनकी परीक्षा की जाय।’ मुसलमानोंकी भीड़ने समर्थन किया।
मुसलमानों ने गाँव टहलराम के प्रतिष्ठित व्यक्ति तथा हिंदुओंके नेता पं० बिहारीलालजीसे कहा-‘आप सभी लोग गोमांस खाकर यह सिद्ध करें कि आप हृदय से हिंदू-धर्म छोड़कर मुसलमान हो गये हैं। जो गोमांस नहीं खायेगा, उसे हम काफ़िर समझकर मौत के घाट उतार डालेंगे।’
पं० बिहारीलालजी ने मुसलिम गुंडों के मुख से गोमांस खाने की बात सुनी तो उनका हृदय हाहाकार कर उठा ! उन्होंने मन में विचार किया कि धर्मकी रक्षाके लिये प्राणोत्सर्ग करने, सर्वस्व समर्पित करने का समय आ गया है। उनकी आँखों के सम्मुख धर्मवीर हकीकतराय तथा गुरु गोविन्दसिंहके पुत्रोंद्वारा धर्म की रक्षा के लिये प्राणोत्सर्ग करनेकी झाँकी उपस्थित हो गयी। वीर बंदा वैरागीद्वारा धर्मकी रक्षाके लिये अपने शरीर का मांस गरमगरम चिमटोंसे नुचवाये जानेका दृश्य सामने आ गया।
पं० बिहारीलालजीने विचार किया कि इन गो-हत्यारे, धर्महत्यारे म्लेच्छों के अपवित्र हाथों से मरने की अपेक्षा स्वयं प्राण देना अधिक अच्छा है। हमारे प्राण रहते ये म्लेच्छ हमारी बहिन-बेटियों को उड़ाकर न ले जायँ और उनके पवित्र शरीर को इन पापात्माओं का स्पर्श भी न हो सके, ऐसी युक्ति निकालनी चाहिये।
पं० बिहारीलालजी ने मुसलमानों से कहा कि ‘हमें चार घंटेका समय दो, जिससे सभी को समझाकर तैयार किया जा सके। मुसलमान तैयार हो गये।
पं० बिहारीलालजी ने घर जाकर अपने समस्त परिवारवालों को एकत्रित किया। घरके एक कमरे में पत्नी, बहिन, बेटियाँ,बालक, बूढे-सभी को एकत्रित करके बताया कि मुसलमान नराधम गोमांस खिलाकर हमारा प्राणप्रिय धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं। अब एक ओर गोमांस खाकर धर्म भ्रष्ट करना है, दूसरी ओर धर्मकी रक्षा के लिये प्राणोत्सर्ग करना है। सभी मिलकर निश्चय करो कि दोनों में से कौन-सा मार्ग अपनाना है।’
सभी स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्धों ने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया‘गोमांस खाकर, धर्मभ्रष्ट होकर परलोक बिगाड़ने की अपेक्षा धर्मकी बलिवेदीपर प्राण देना अच्छा है। हम सभी मृत्यु का आलिङ्गन करनेके लिये तैयार हैं।’
पं० बिहारीलालजी ने महिलाओंको आदेश दिया–‘तुरंत नाना प्रकार के सुस्वादु भोजन बनाओ और भगवान को भोग लगाकर खूब छककर खाओ, अन्तिम बार खाओ और फिर वस्त्राभूषण पहनकर धर्मकी रक्षाके लिये मृत्यु से खेलने के लिये मैदानमें डट जाओ।’
तुरंत तरह-तरहके सुस्वादु भोजन बनाये जाने लगे। भोजन बनने पर ठाकुरजी का भोग लगाकर सबने डटकर भोजन किया तथा अच्छे से वस्त्र पहिने। सजकर एवं वस्त्राभूषण धारण करके सभी एक लाइन में बराबर-बराबर खड़े हो गये। सभी में अपूर्व उत्साह व्याप्त था। पं० बिहारीलालजी का समस्त परिवार गो-रक्षार्थ, धर्मरक्षार्थ प्राणों पर खेलकर सीधे गोलोक धाम जाने के लिये शीघ्रातिशीघ्र मृत्युका आलिङ्गन करने के लिये व्याकुल हो रहा था।
सभी को एक लाइन में खड़ा करके पं० बिहारीलालजी ने कहा–’आज हमें हिंदू से मुसलमान बनाने और अपनी पूज्या गोमाताका मांस खाने को बाध्य किया जा रहा है। हमें धमकी दी गयी है कि यदि हम गोमांस खाकर मुसलमान न बनेंगे तो सभी को मौतके घाट उतार दिया जायगा। हम सभी अपने प्राणप्रिय सनातन-धर्मकी रक्षाके लिये-गोमाता की रक्षा के लिये हँसते-हँसते बलिदान होना चाहते हैं।’
सबने श्रीभगवत्स्मरण किया और पं० बिहारीलालजीने अपनी बंदूक उठाकर धायँ ! धायँ !! करके अपनी धर्मपत्नी, पुत्रियों, बन्धुबान्धवों तथा अन्य सभीको गोलीसे उड़ा दिया। किसीके मुखसे उफ्तक न निकली-हँसते हुए, मुस्कराते हुए गो-रक्षार्थ, धर्मरक्षार्थ सबने प्राणोत्सर्ग कर दिया। घर लाशोंके ढेरसे भर गया।
अब पं० बिहारीलाल एवं उनके भाई दो व्यक्ति ही जीवित थे। दोनों में आपसमें संघर्ष हुआ कि ‘पहले आप मुझे गोली मारें; दूसरेने कहा नहीं’, ‘पहले आप मुझे गोलीका निशाना बनायें।’ अन्तमें दोनोंने अपने-अपने हाथों में बंदूक थामकर आमने-सामने खड़े होकर एक-दूसरेपर गोली दाग दी। पूरा परिवार ही धर्मकी रक्षाके लिये प्राणोत्सर्ग कर अमर हो गया !
ग्राम के अन्य हिन्दुओंने जब पं० बिहारीलालजी के परिवारके इस महान् बलिदानको देखा तो उनका भी खून खौल उठा। वे भी धर्मपर प्राण देनेको मचल उठे। मुसलमान शरारतियों के आनेसे पूर्व ही हिन्दुओंने जलकर, कुओंमें कूदकर एवं मकानकी छतसे छलाँग लगाकर प्राण दे दिये, किंतु गोमांसका स्पर्शतक नहीं किया।
मुसलमानों की भीड़ने जब कुछ समय पश्चात् पुनः ग्राम टहलराममें प्रवेश किया, तब उन्होंने ग्रामकी गली-गली में हिंदू वीरों की लाशें पड़ी देखीं। पं० बिहारीलालके मकान में घुसनेपर लाशोंका ढेर देखकर तो गुंडे दाँतोंतले अँगुली दबा उठे।
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