Last Updated on April 12, 2020 by admin
चाकसू (चिरोंटा) क्या है ? : What is Chaksu (cassia absus) in Hindi
प्राचीन काल से आयुर्वेद वाङ्गमय में अनेक द्रव्यों की ग्राम्य (Cultivated) और वन्य अरण्य (Wild) भेदों का उल्लेख प्राप्त होता है। जैसे हरिद्रा एवं वन्य हरिद्रा, यवानी एवं वन्य यवानी, मेथिका एवं वन्य मेथिका, जीरक एवं अरण्य जीरक इत्यादि।
इसी तरह चाकसू (चिरोंटा) के भी दो भेद व्यवहत होते हैं (1) ग्राम्य और (2) वन्य चाकसू (या अरण्य चाकसू )।
ग्राम चाकसू का ही समाज में कुल्यीदाल के रूप में कृषि (Cultivation) होता है। जिसका दाल के रूप में कुछ प्रदेशों में (राजस्थान, गुजरात आदि) प्रयोग होता है। अरण्य चाकसू वन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से स्वयंजात होती है। इसलिए इसे वन्य चाकसू या अरण्य कुलत्थिका कहते हैं। जिसके बीजों का प्रयोग विशेषत: औषध रूप में होता है। द्रव्यों के इन ग्राम्य भेदों का जहां मानव अपने आहार के रूप में प्रयोग करता है। वही इनके वन्य भेद का औषध के रूप में व्याधि निवारणार्थ व्यवहार करता है। जबकि पशु-पक्षी, कोल भील एवं वनवासी इन्हीं वन्य भेदों का आहार द्रव्य के रूप में नित्योपयोग करता है। जो उनको पोषण प्रदान करने के साथ ही अनेक रोगों से उनकी प्रतिरक्षा (Prevention) करता है। इसी लिए पशु पक्षी एवं वनवासीजन आज के सामाजिक रूप से विकसित मानव की अपेक्षा स्वस्थ एवं व्याधिरहित जीवन यापन वनों में करते हैं। अत: आज के शहरी समाज के लोगों को भी इनसे शिक्षा लेकर द्रव्यों के विभिन्न वन्य भेदों , को भी व्याधि-प्रतिषेधार्थ अपने आहार का अंग बनाना चाहिए। विश्व के अनेक वन क्षेत्रों के लोग वर्तमान में इन वन्य भेदों का प्रयोग कर सापेक्ष रूप से स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन यापन कर रहे हैं।
पर्याय :
चक्षुष्या – नेत्रों के लिए हितकारी
चिपिटा – इसके बीज चपटे होने के कारण
कुलाली – कुम्भ-अर्थात शूर्पवत होने से
कुलमाशा – उष्णोदक सिक्तं अर्द्धस्विन्न रूप में प्रयोग होने से
कुम्भपर्णी – शूर्पवत (मुद्गपर्णी) पत्र होने से
वन्यकुलीथिका – वन में होने वाली कुलथी के समान
चाकसू (चिरोंटा) का पौधा कैसा होता है ? :
इसका चिपचिपा रोमश क्षुप एक वर्षायु 1-2 फुट ऊँचा होता हे।
- चाकसू के पत्ते (पत्र) – संयुक्त, पत्रकचार ½ से 3/4 इंच लम्बे, लट्वाकार प्राय: कुण्ठिताग्र होते हैं। पत्रकद्वय के बीच में एक ग्रन्थि होती है। पत्तियां तिक्त कषाय होती हैं।
- चाकसू के पुष्प – 1 से 2 इंच लम्बी शाखाग्रीव मंजरियों में, छोटे-रक्त या पीत होते हैं। पुंकेशर चार होते हैं।
- चाकसू के फल – 1 से 1/2 इंच लम्बा, चपटा और रोमश होता हैं।
- चाकसू के बीज – संख्या में पांच, चिपटे,आयताकार, चमकीले काले होते हैं।
- बीजमज्जा – पाण्डुवर्ण होती है।
चाकसू (चिरोंटा) कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Chaksu (cassia absus) Found or Grown?
यह पश्चिमी हिमालय प्रदेश से लेकर लंका तक सर्वत्र होता है।
चाकसू (चिरोंटा) का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Chaksu (cassia absus) in Different Languages
Chaksu (cassia absus) in–
- संस्कृत (Sanskrit) – अरण्य कुलत्थिका
- हिन्दी (Hindi) – चाकसू, चाकूत, वानर
- मराठी (Marathi) – चिनोल
- गुजराती (Gujarati) – चिमेड़, चमेड़
- कन्नड़ (Kannada) – कीड, निन्द्रताछ
- तामिल (Tamil) – चनुपलविट्टुलु
- फ़ारसी (Farsi) – चश्मीजज
- लैटिन (Latin) – Cassia absus
चाकसू (चिरोंटा) का रासायनिक विश्लेषण : Chaksu (cassia absus) Chemical Constituents
- बीजमज्जा में Chaksine तथा Isochaksine नामक दो जलविलेय सक्रियद्रव्य पाये जाते हैं।
- Chaksine the alkaloid from seeds, in small doses depresses medullary centres, in larger doses depress other rigions of brain, has depresant action on entestinal and other involuntary muscle. No effect on striped muscle.
Antibacterial properties of the alkaloid. - B – Sitosterol identified in chaksu oil.
चाकसू (चिरोंटा) के औषधीय गुण : Chaksu (cassia absus) ke Gun in Hindi
गुण – रूक्ष,
रस – तिक्त, कषाय
विपाक – कटु,
वीर्य – शीत
प्रभाव – चक्षुष्य
दोषकर्म – यह कषायतिक्त होने के कारण विशेषतः कफपित्तशामक है।
वाह्य – इसका वाह्य प्रयोग लेखन-शोथविलयन और चक्षुष्य है।
आभ्यान्तर – कषाय होने के कारण यह ग्राही है। कषाय रस के कारण यह रक्तस्तम्भन है। शीत होने से यह मूत्रल है। यह विषघ्न और लेखन होने से मेदोनाशक है।
कुल (Faimily) – Leguminosae Paypillionaaceae
चाकसू (चिरोंटा) के उपयोगी भाग : Beneficial Part of Chaksu (cassia absus) in Hindi
बीज, पत्र
सेवन की मात्रा :
चूर्ण – 1 से 3 ग्राम
आयुर्वेदिक मतनुसान चाकसू (चिरोंटा) के लाभ : Chaksu ke Labh in Hindi
- आयुर्वेदिक मत से चाकसू (चिरोंटा) के पत्ते, उष्ण, तिक्त, आंत्रों के लिए संकोचक, वातकफ को दूर करने वाले और अर्बुद, कास, नाक के रोग, कुक्कुरकास (Wohooping Cough) और श्वास को दूर करने वाले होते हैं।
- चाकसू पित्त निस्सारक और रक्त को बढ़ाने वाले है।
- chaksu seeds benefits in hindi – इसके बीज शीतल, तिक्त,स्वरनाशक और आंखों को सिकोड़ने वाले होते हैं। ये व्रण को भरते हैं। और श्वसनीशोथ (Bronchitis), बवासीर (Piles), कूकर खांसी या काली खांसी (wooping cough) तथा नेत्र रोगों में बहुत लाभदायक है।
- नेत्र रोगों के लिए इस औषधि की बहुत तारीफ है। इसके पीसे हुए बीजों का आधी रत्ती चूर्ण आंखों में लगाने से नेत्र रोगों में बहुत लाभ होता है। कच्छ के अन्दर यह नेत्र रोगों के लिए एक घरेलू औषधि है।
यूनानी मतनुसान चाकसू (चिरोंटा) के लाभ : Chaksu ke Fayde in Hindi
- यूनानी मत से चाकसू दूसरे दर्जे में गरम और खुश्क है। सूजन को विखेरता है। नेत्र रोगों के लिए यह एक बहुत प्रभावशाली औषधि है। इसको मांजने से आंखों की ज्योति बहुत बढ़ती है। आंख का दुखना, आंख से पानी का गिरना, आंख का जाला इत्यादि रोगों में यह बहुत लाभदायक है।
- चाकसू को साफ करके केशर, ममीरा और मिश्री के साथ पीसकर आंख में लगाने से आंखें बहुत साफ हो जाती हैं।
- मूत्रेन्द्रिय के घाव तथा शरीर के दूसरे जख्मों पर चाकसू के लेप से बहुत लाभ होता है।
- पेशाब और मासिक धर्म को यह साफ करता है।
- दमे के रोग में भी यह बहुत लाभदायक है।
- चाकसू (चिरोंटा) और रसौत (यह दारुहल्दी का जड़ और लकड़ी को पानी में औटाक और उसमें से निकले हुए रस की गाढ़ा करके तैयार की जाती है) को समभाग लेकर गुलदाउदी के शीत निर्यास में पीसकर मटर के समान गोलियां बना लेनी चाहिए। इन गोलियों में से एक एक गोली सबेरे शाम ‘खाने से नेत्र रोगों में बहुत लाभ होता है।
- इसके बीजों का चूर्ण उत्तेजक और कब्जियत (constipation) को दूर करने वाला होता है। इसके लेप से दाद में और गर्मी के घावों में भी लाभ होता है।
चाकसू (चिरोंटा) के फायदे और उपयोग : Uses and Benefits of Chaksu (cassia absus) in Hindi
आँखों की सूजन दूर करे चाकसू (चिरोंटा) का प्रयोग
नेत्रशोथ (आँखों की सूजन) में पलकों पर लेप करते हैं तथा दृष्टिमांद्य, नेत्राभिष्यन्द, पोथकी, नेत्रस्राव आदि नेत्ररोगों में सुरमा के रूप में चाकसू का प्रयोग करते हैं। पूययुक्त नेत्राभिप्यन्द में चाकसू का अवचूर्णन नेत्र में करते हैं।
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घाव ठीक करने में चाकसू (Chaksu) के इस्तेमाल से लाभ
चाकसू का प्लास्टर बनाकर क्षतों (घाव) में तथा व्रणों में विशेषत: जननेन्द्रिय के व्रणों में लगाते हैं।
दस्त के उपचार में चाकसू का उपयोग
चाकसू ग्राही होने से ग्रहणी, प्रवाहिका और रक्तातिसार में प्रयोग होता है।
खून का बहना रोकने में फायदेमंद चाकसू का औषधीय गुण
रक्तस्राव रोकने के लिए विशेषतः अधोग रक्तस्राव में चाकसू का प्रयोग करते हैं।
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पथरी में लाभकारी है चाकसू (Chaksu) का प्रयोग
छिलके सहित चाकसू बीजों का चूर्ण मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी (पथरी) आदि में देते हैं।
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मोटापा दूर करने में चाकसू फायदेमंद
स्थावर जंगम विषों में तथा मेदोरोग (मोटापा) में चाकसू का प्रयोग होता है।
नेत्र रोग मिटाए चाकसू का उपयोग
चाकसू (चिरोंटा) का उपयोग आचार्य वाग्भट ने नेत्ररोग पर किया है। गुजरात, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र में नेत्रपाक के लिए यह निर्भय और उत्तम घरेलू औषध मानी गयी है।
आँखों का लाल होना ठीक करे चाकसू का प्रयोग
पूतियुक्त नेत्राभिष्यन्द में (इस रोगों में आँखें अतिलाल रहती है) रोगी प्रकाश में देख नहीं सकता, पूय (मवाद) कोने में भरा रहता है। भीतर वेदना होती है। कभी-कभी इस वेदना के हेतु से निद्रा भी नहीं आता : इस रोग पर यह सर्वोत्तम औषधि है।
चाकसू के बीजों को छाछ में उबालकर, नरमकर लेते हैं। फिर दांतों से ऊपर के काले छिलके निकाल देते हैं। भीतर की पाली गिरी लेते हैं। इस गिरी के साथ किंचित सेंधानमक और मट्ठा मिलाकर कल्क बना लेते हैं। इसमें से आधा-आधा रत्ती रात्रि को पलक के नीचे भरकर पट्टी बांध देते हैं।
कल्क डालने पर 10-15 मिनट तक आंखों में गड़ता रहता है। किन्तु दूसरे दिन लाली हट जाती है और आँख स्वच्छ हो जाती है। कभी – कभी 3 से 4 रात्रि को कल्क डालना पड़ता है। यदि द्वितीय पटल (Iris) पर शोथ (सूजन) आया हो और उसके दृष्टिमणि के साथ चिपक जाने का भय रहता है। ऐसी स्थिति में भी इसका प्रयोग हो सकता है। इससे तारामण्डल का प्रदाह शमन होकर लाली दूर हो जाती है। यह बालक, वृद्ध, युवा सबके लिए निर्भय औषधि है किसी को भी हानि नहीं पहुँचाती। नेत्र ज्योति मंद हो गयी हो, वह भी सुधर जाती है।
योनिक्षत (योनि में घाव या छिलन) में लाभकारी चाकसू (Chaksu)
बीजों की गिरी को मट्ठे में पीसकर लेप करते रहने से घाव भर जाता है।
चाकसू (चिरोंटा) के दुष्प्रभाव : Chaksu (cassia absus) ke Nuksan in Hindi
- यह गरम प्रकृति वालों के लिए हानिकारक है।
- इसका दर्पनाशक पदार्थ हरा धनियां है।
निष्कर्ष :
उपरोक्त आयुर्वेद बाङ्गमय में सन्दर्भो को देखने से चाकसू (चिरोंटा) चक्षु (नेत्र रोगों) पर कार्यकारी एक प्रमुख द्रव्य सिद्ध होता है। इसीलिए इसका नाम चक्षुष्या (चाकसू) रखा गया है। प्राकृतिक रूप से वन्य रूप में उपलब्ध होने से तथा कुलत्थवत आकृति होने से इसे वन्य कुलस्थिका भी कहा गया है।
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)