Last Updated on August 9, 2020 by admin
योगशास्त्र में सैकड़ों प्रकार की मुद्राओं का वर्णन मिलता है। यहाँ हम आसन तथा प्राणायाम के समय विशेष रूप से प्रयुक्त होने वाली अत्यंत उपयोगी 9 मुद्राओं की अभ्यास विधि और उनके लाभों का उल्लेख कर रहे हैं ।
(1) शाम्भवी मुद्रा – Shambhavi Mudra Steps and Benefits in Hindi
shambhavi mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने शाम्भवी मुद्रा कैसे करे (विधि) –
वज्रासन में बैठकर रीढ़ की हड्डी को एकदम सीधा रखें । सामने कोई बिन्दु निश्चित कर लें, तदुपरान्त मुँह को तनिक भी हिलाए-डुलाए बिना, ज्यों-का-त्यों सीधा रखते हुए, अपनी दृष्टि को यथासंभव ऊपर ले जाकर दोनों भौहों के मध्य भाग पर केन्द्रित कर दें। इसे ‘भ्रूमध्य-दृष्टि’ भी कहा जाता है । यही अभ्यास निरन्तर करना चाहिए।
शाम्भवी मुद्रा के लाभ –
- इससे दृष्टिशक्ति बढ़ती है।
- शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है।
- इस मुद्रा से कुण्डलिनी जागरण में भी सहायता मिलती है।
- शाम्भवी मुद्रा के अभ्यास से दिमाग व मन को शांति मिलती है।
- शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास ध्यान में स्थिरता प्रदान करता है।
- इसके अभ्यास से मस्तिष्क में न्यूरॉन बढ़ते हैं।
- शाम्भवी मुद्रा व्यक्ति की स्मारण शक्ति को बढ़ाती है।
- शाम्भवी मुद्रा के अभ्यास से अनिंद्र से छुटकारा मिलता है और साधक सुखपूर्वक नींद लेता है।
- यह मुद्रा तनाव दूर कर आत्मविश्वास बढ़ती है ।
- शाम्भवी मुद्रा के अभ्यास से सिरदर्द, मोटापा,मधुमेह, थाइरॉयड आदि रोगों में लाभ मिलता है।
(2) काली मुद्रा – Kali Mudra Steps and Benefits in Hindi
Kali mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने काली मुद्रा कैसे करे (विधि) –
पद्मासन, सिद्धासन अथवा वज्रासन में बैठकर अपने होठों को सीटी बजाने की स्थिति में कर लें। इस स्थिति में पहले मुँह से भरपूर गहरी श्वास लें, फिर उसे नाक से छोड़ें। ऐसा करते समय आपकी दृष्टि तथा ध्यान नासिका के अग्रभाग पर रहना चाहिए।
काली मुद्रा के लाभ –
- इससे शरीर की कुछ विशेष ग्रन्थियों से रस का स्राव होता है तथा जीर्णता एवं वृद्धत्व को दूर करने में सहायता मिलती है ।
- यह मुद्रा पाचनक्रिया को भी ठीक करती है।
- काली मुद्रा के अभ्यास से आंखों के नीचे बनी झुर्रियां मिटती है ।
- इसका नियमित अभ्यास पुराने रोग दूर करता है
- काली मुद्रा आत्म विश्वास को बढ़ा सकारात्मक भाव का विकास करती है ।
(3) महाबेधि मुद्रा – Mahabedhi mudra Steps and Benefits in Hindi
mahabedhi mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने महाबेधि मुद्रा कैसे करे (विधि) –
मुद्रा-पद्मासन, व्रजासन या पश्चिमोत्तासन की स्थिति में बैठकर, जिस नासाछिद्र से श्वास चल रही हो उससे अथवा बाँयें नासाछिद्र से श्वास लेकर मुँह से बाहर निकाल दें। फिर ‘बहिर्कुम्भक’ करके मूलबन्ध, उड्डियनबन्ध तथा जालन्धरबन्ध लगाएँ और मन को क्रमशः मूलाधार, मणिपुर तथा विशुद्ध चक्रों में एकाग्र करें । तत्पश्चात् श्वास लेते समय पहले मूलबन्ध, तदुपरान्त उड्डियनबन्ध और सबके अन्त में जालन्धरबन्ध खोलें। फिर नासा-छिद्रों से श्वास लें।
महाबेधि मुद्रा के लाभ –
इससे स्वयं का अन्तरात्मा से सम्बन्ध स्थापित होता है।
(4) ताड़न मुद्रा – Taran mudra Steps and Benefits in Hindi
taran mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने ताड़न मुद्रा कैसे करे (विधि) –
पद्मासन में बैठकर श्वास को भीतर खींचकर ‘अन्तःकुम्भक’ करें अर्थात् श्वास को भीतर ही रोकें रखें तथा ‘जालन्धरबन्ध’ लगाएँ । फिर दोनों हथेलियों को दोनों पाश्र्यों में पृथ्वी पर टिकाकर-हाथों के सहारे शरीर को ऊपर उठाते हुए नितम्बों को जमीन पर पटकें।
ताड़न मुद्रा के लाभ –
- इससे शरीर स्फूर्तिवान एवं शक्तिशाली होता है।
- रीढ़ के नीचे की सुप्त शक्ति जागती है और कुण्डलिनीशक्ति के जागरण में सहायता मिलती है।
(5) अश्विनी मुद्रा – Ashwani Mudra Steps and Benefits in Hindi
ashwani mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने अश्विनी मुद्रा कैसे करे (विधि) –
पद्मासन में बैठकर गुदा की माँसपेशियों को संकुचित तथा शिथिल करते हुए मूलाधार चक्र में ध्यान को केन्द्रित करें।
अश्विनी मुद्रा के लाभ –
- इससे प्राणशक्ति ऊर्ध्वगामी होती है।
- अश्विनी मुद्रा बवासीर व गुदा से संबंधित रोगों में लाभप्रद है ।
- इस मुद्रा के अभ्यास से स्वप्नदोष ,धातु का गिरना ,शीघ्रपतन ,पेशाब में जलन व बार-बार पेशाब आना जैसे मूत्र संस्थान से संबंधित रोगों मे लाभ मिलता है ।
- यह मुद्रा साधक की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है ।
- इसके नियमित अभ्यास से नपुंसकता की समस्या दूर होती हैं ।
- यह मुद्रा स्मरण शक्ति के विकास मे सहायक है ।
- अश्विनी मुद्रा पाचन संस्थान की समस्याओं को दूर कर कब्ज को नष्ट करती है।
(6) अगोचरी मुद्रा – Agochari Mudra Steps and Benefits in Hindi
agochari mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने अगोचरी मुद्रा कैसे करे (विधि) –
ध्यान के किसी भी आसन में बैठकर, गहरी श्वास भरकर अन्तःकुम्भक करें तथा नासिकाग्र पर दृष्टि केन्द्रित कर दिव्य-गन्ध का अनुभव करें।
अगोचरी मुद्रा के लाभ –
- इससे एकाग्रता बढ़ती है ।
- आज्ञा चक्र के सक्रिय हो जाने पर दिव्यदृष्टि प्राप्त होती है।
(7) माण्डुकी मुद्रा – Manduki Mudra Steps and Benefits in Hindi
manduki mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने माण्डुकी मुद्रा कैसे करे (विधि) –
वज्रासन में बैठकर दोनों घुटनों को यथा संभव फैला दें, तदुपरान्त ‘अगोचरी मुद्रा ‘ की भाँति क्रिया करें।
माण्डुकी मुद्रा के लाभ –
- माण्डुकी मुद्रा का अभ्यास नित्य करने से शरीर पर कभी झुर्रियां नहीं पड़ती है।
- माण्डुकी मुद्रा के साधक का यौवन चिरकाल तक विद्यमान रहता है।
- अन्य लाभ अगोचरी मुद्रा की ही भाँति प्राप्त होते हैं।
(8) आकाशी मुद्रा – Akashi Mudra Steps and Benefits in Hindi
akashi mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने आकाशी मुद्रा कैसे करे (विधि) –
किसी भी सुखमय आसन में बैठकर, जीभ को तालु से लगाकर उज्जायी प्राणायाम करते हुए पूर्वोक्त ‘शाम्भवीमुद्रा’ की भाँति अभ्यास करें।
आकाशी मुद्रा के लाभ –
- आकाशी मुद्रा विचारों को शान्त और उन्नत करती है।
- आकाशी मुद्रा का अभ्यास ग्रीवा ग्रन्थि को सक्रिय करता है।
- इसका अभ्यास विशुद्धि चक्र को आंदोलित करता है ।
- यदि मन भटकता हो तो उस स्थिति में इसे कदापि नहीं करना चाहिए।
(9) खेचरी मुद्रा – khechari mudra Steps and Benefits in Hindi
khechari mudra ki vidhi aur labh
आइये जाने खेचरी मुद्रा कैसे करे (विधि) –
यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्रा है इसका अभ्यास गुरु-निर्देशन के अन्तर्गत ही करना चाहिए, अन्यथा सफलता मिलना असंभव होगा और हानि होने की संभावना भी हो सकती है। इसमें जीभ को उलटकर तालु तक अथवा जहाँ तक संभव हो, बढ़कर भीतर की ओर ले जाते हैं और दाँतों को परस्पर सटाये रखा जाता है। इस अभ्यास की पूर्णता की स्थिति में जीभ कान के छिद्र तक पहुंच जाती है।
टिप्पणी-आरम्भ में इस अभ्यास को नित्य 20 बार और 2 महीने के बाद नित्य 8 अथवा 5 बार करना ही पर्याप्त रहता है। किसी शारीरिक श्रम के बाद यह अभ्यास नहीं करना चाहिए। यदि नाक के ऊपरी भाग से कड़वा रस निकलने लगे तो यह अभ्यास बन्द कर देना चाहिए।
खेचरी मुद्रा के लाभ –
- इस मुद्रा के अभ्यास से बवासीर (पाइल्स) रोग में लाभ होता है ।
- कुण्डलिनीशक्ति जाग्रत होती है।
- शरीर में शक्ति का संचय होता है तथा निराहार और बिना श्वास लिए जीवित रहने की शक्ति भी प्राप्त होती है।
- इसमें अन्तश्चेतना स्थूल शरीर से निकलकर सूक्ष्म शरीर ग्रहण करती है।
सावधानियाँ :
सभी बन्ध और मुद्राएँ-हृदय, फेफड़ों और अनैच्छिक अवयवों को नियन्त्रित करने में बहुत सहायक होते हैं । कुण्डलिनीशक्ति के जागरण हेतु इनका अभ्यास अत्यन्त सहायक है, किन्तु ये क्रियाएँ कठिन हैं। अतः इनका समुचित अभ्यास करने के लिए किसी सुयोग्य प्रशिक्षक का क्रियात्मक निर्देशन प्राप्त करना आवश्यक है।
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