Last Updated on July 1, 2021 by admin
जुलाई से नवंबर के बीच देश का बहुत बड़ा क्षेत्र मलेरिया से प्रताड़ित रहता है। तापमान की अनुकूलता और हवा की नमी ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर देती हैं कि वह परजीवी भी जिंदा रहता है जिससे मलेरिया होता है और उसे फैलानेवाले मादा एनोफिलिस मच्छर की उम्र भी बढ़ जाती है। भुगतना पड़ता है बेचारे आदमी को जो उमस-भरे मौसम में भी दाँत किटकिटाने के लिए मजबूर हो जाता है। जाड़ा लगकर बुखार चढ़ना मलेरिया का चिर-परिचित लक्षण है, लेकिन हर किसी को कँपकँपी हो, यह जरूरी नहीं। बिना टूटे लगातार रहनेवाला बुखार भी कभी-कभी मलेरिया हो सकता है।
आदमी को मलेरिया कब और कैसे होता है ? (Malaria in Hindi)
मलेरिया प्लाज्मोडियम नामक परजीवी से होनेवाला बुखार है। इस परजीवी की 125 से अधिक जातियाँ पहचान में आ चुकी हैं। इनमें से अधिकांश चिड़ियों को संक्रमित करती हैं। अन्य जातियाँ बंदर, साँप, छिपकली और कछुओं में पाई जाती हैं। यह परजीवी घोड़ों, हाथियों और मांसाहारी पशुओं में भी पाया जाता है। मनुष्य में इसकी चार जातियाँ ही ज्वरकारी हैं – प्लाज्मोडियम वायवैक्स, प्लाज्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लाज्मोडियम मलेरी और प्लाज्मोडियम ओवेल।
यह परजीवी एनोफिलिस वंश के मच्छरों की मादाओं द्वारा फैलाया जाता है। मादा मच्छर जब मनुष्य को काटती है तब उसकी लारग्रंथि से मलेरिया परजीवी के बीजाणु (स्पोरोजाइट) मानव शरीर में पहुँच जाते हैं और रक्त में प्रवाह करते हुए मनुष्य के जिगर में पहुँच जाते हैं। यहाँ पर ये जिगर की कोशिकाओं में पलते-बढ़ते हैं और विभाजन क्रिया से गुजर कर खंडजाणु (मीरोजॉइट) बनाते हैं। फिर ये खंडजाणु रक्त परिसंचरण में आकर लाल रक्त कणिकाओं में घुस जाते हैं। उनके बढ़ने से लाल रक्त कणिकाएँ टूटती हैं और ज्वर पैदा हो जाता है।
यह एक तरह का चक्र है। परजीवी को पाल रहा मच्छर आदमी को रोग देता है और आदमी के मलेरिया-पीड़ित होने पर उसका खून चूसते समय खुद परजीवी को अपने भीतर चूस लेता है। परजीवी अपने जीवन-चक्र का एक हिस्सा आदमी में पूरा करता है, दूसरा मादा मच्छर के पेट में। मच्छर से आदमी, आदमी से मच्छर और मच्छर से आदमी का यह चक्र सृष्टि का एक खेल है जिसे आदमी जीतने की कोशिश में लगा है।
मलेरिया बुखार जुलाई से नवंबर के महीनों में ही क्यों अधिक होता है ?
मलेरिया परजीवी को जिंदा रहने के लिए एक खास तापमान की जरूरत होती है। इसी तरह मादा एनोफिलिस को भी पलने-बढ़ने के लिए खास परिस्थितियाँ चाहिए होती हैं। 20° से 30° सेल्सियस का तापमान और इन महीनों में वायुमंडल की उच्च आर्द्रता (नमी) दोनों को खुब रुचती है। ये परिस्थितियाँ मादा मच्छर की उम्र बढ़ा देती हैं। इससे परजीवी आसानी से मादा मच्छर में अपना जीवन-चक्र पूरा कर लेता है और मनुष्य में पहुँच ज्वर पैदा कर देता है।
मलेरिया बुखार के लक्षण (Symptoms of Malaria in Hindi)
मलेरिया ज्वर के विशेष लक्षण क्या हैं ?
मलेरिया का बुखार टूट-टूटकर आता है। इसके तीन चरण होते हैं। पहले-पहल सिर में दर्द होता है, जी मिचलाता है और कमजोरी मालूम होती है। इसके एक घंटे के भीतर कँपकँपी देकर तेज बुखार चढ़ जाता है। यह प्रथम चरण पंद्रह मिनट से एक घंटे का होता है। फिर गर्मी लगने लगती है। सिर का दर्द बना रहता है पर मितली की अनुभूति कम होती जाती है। यह दूसरा चरण दो से छह घंटे का होता है। तीसरे चरण में रोगी को जोरों का पसीना आता है और उसका बुखार उतर जाता है। इससे मरीज राहत महसूस करता है और उसे नींद आ जाती है। यह चरण दो से चार घंटे का होता है।
परजीवी किस जाति का है और रोगी के शरीर में उसकी कौन-कौन सी पीढ़ियाँ विकास के किस दौर में हैं, इसके मुताबिक ये तीनों चरण बार-बार दोहराए जाते हैं। कई बार ये आपस में इतने घुल-मिल जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कब पहला चरण पूरा हुआ और कब दूसरा शुरू। ऐसे में बुखार लगातार बना रह सकता है, बीच-बीच में टूटता नहीं।
ज्वर प्लाज़्मोडियम फैल्सीपैरम परजीवी से हुआ हो, तब भी मलेरिया के चिर-परिचित लक्षण नजर नहीं आते। इसमें सिर में तेज दर्द होता है, मितली और कै होती है और कई बार तरह-तरह की प्राणलेवा पेचीदगियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
परजीवी के झुंड मस्तिष्क, गुर्दो, आँत और जिगर पर तेज धावा बोल देते हैं जिससे रोगी की हालत तेजी से बिगड़ती जाती है। पूरी डॉक्टरी कोशिशें नाकामयाब हो जाती हैं और कई रोगी दुनिया से कूच कर जाते हैं।
यह कैसे पता चलता है कि अमुक मामला मलेरिया का है ?
ज्वर शास्त्रीय रूप में प्रगट हो तो कोई भी आसानी से पहचान सकता है। लेकिन ज्वर होते हुए यदि खून की जाँच करा ली जाए तो डॉक्टर परजीवी की जाति भी जान सकते हैं।
क्या खून की जाँच पर परजीवी के न दिखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मलेरिया नहीं है ?
नहीं, कुछ मामलों में परजीवी इतनी संख्या में नहीं होते कि दिखाई दें। ऐसे में क्लीनिकल परीक्षण के आधार पर ही दवा दी जाती है।
मलेरिया की दवा (Malaria Medications)
मलेरिया के इलाज में कौन-कौन सी दवाएँ प्रभावकारी हैं ?
कुनैन मलेरिया की सबसे पुरानी दवा है। जरूरत पड़ने पर यह आज भी दी जाती है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी सीमा इसके पार्श्व प्रभाव (साइड-इफैक्ट) हैं। इस कारण इसका प्रयोग सिर्फ तभी किया जाता है जब अन्य मलेरियारोधक दवाएँ असरदायक साबित नहीं होतीं।
सामान्यतया क्लोरोक्वीन ही काम में लाई जाती है। इसकी खुराक अलग-अलग उम्र पर अलग-अलग होती है। डॉक्टर जैसे इसे लेने की सलाह दे, इसे ठीक उसी तरह से लेना चाहिए। यह दवा पेट में तीव्र शोथ, मितली और कै पैदा कर सकती है। पर इसे कुछ खाकर लिया जाए तो परेशानी कम होती है।
दवा लेने से पहले ठंडा दूध लेना अच्छा रहता है। यह दवा अगले दो दिन भी लेनी होती है ताकि भीतर छिपे परजीवी पूरी तरह मर सकें। पर कुछ क्षेत्रों में मलेरिया परजीवी की संरचना इतनी बदल गई है कि क्लोरोक्वीन उस पर असर नहीं करती। वहाँ अन्य मलेरियारोधक दवाएँ जैसे सल्फाडॉक्सिन-पायरामेथामिन (फेसीडार), सल्फालेन-पायरामेथामिन (मेटाकेलफिन), मेफलोक्वीन, आर्टिस्यूनिट, आर्टिमिथर काम में लाई जाती हैं।
ठीक दवा मिल जाए तो ज्वर शीघ्र नियंत्रण में आ जाता है। लेकिन रोगी को पूरे आराम, शांत वातावरण और पूरी देखभाल की जरूरत होती है।
कई बार यह ज्वर कुछ ही दिनों बाद फिर से हो जाता है, ऐसा क्यों होता है ?
मलेरिया परजीवी अगर जिगर में दुबके रह जाएँ तो ये थोड़े ही समय में विभाजन-क्रिया द्वारा फिर से बढ़ जाते हैं और रक्त परिसंचरण में पहुँच कर ज्वर पैदा कर देते हैं। ज्वर की इस पुनरावृत्ति से बचने के दो उपाय हैं। पहला यह कि कुछ महीनों के लिए हर हफ्ते नियम से मलेरियारोधक गोलियाँ ली जाएँ। दूसरा यह कि परजीवी को जड़ से नष्ट करने के लिए डॉक्टरी सलाह से प्राइमाक्वीन की गोलियाँ ली जाएँ।
( और पढ़े – मलेरिया के अचूक आयुर्वेदिक इलाज )
मलेरिया बुखार से बचाव (Prevention and Control of Malaria Fever in Hindi)
मलेरिया से बचाव के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
- आसपास साफ-सफाई रखें ताकि मच्छर कम-से-कम हों।
- मच्छरों से बचने के लिए या तो मच्छरदानी में सोएँ या सोने से पहले बदन पर नीम का तेल या ओडोमॉस जैसी मच्छर दूर भगानेवाली क्रीम लगाएँ या नीम की टिकिया जलाकर रखें ताकि मच्छर पास नहीं फटकें।
- रोग की रोकथाम के लिए मलेरिया का शुबहा होने पर उसका तत्काल उपचार कराएँ। इससे परजीवी का चक्र टूटता है।
क्या मलेरिया से बचाव करने के लिए कोई टीका नहीं है ?
इस ओर लगातार कोशिशें जारी हैं। प्रायोगिक स्तर पर कुछ कामयाबी भी मिली है, लेकिन ऐसा कोई टीका नहीं बना जो इतना विश्वसनीय हो कि उसे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जा सके।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)