कुष्ठ रोग (कोढ़) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी : सत्य एवं भ्रांति

Last Updated on June 15, 2021 by admin

कुष्ठ रोग सदा से ही डर, अज्ञान और अंधविश्वास के चक्रव्यूह में घिरा रहा है। यह रोग सूक्ष्मजीव बैक्टीरिया से होनेवाला संक्रामक रोग है, जिसे समय से दवा शरू कर जीता जा सकता है।

1). कुष्ठ रोग कैसे होता है ?

कुष्ठ रोग “माइकोबैक्टीरिअम लेपरे” नामक बैक्टीरिया के शरीर में स्थापित हो जाने से उपजता है। इस बैक्टीरिया की खोज 1873 में नार्वेजिआई वैज्ञानिक डॉ. हेंसन ने की थी और इसीलिए इस रोग को हेंसन्स डिजीज भी कहते हैं।

2). क्या कुष्ठ रोग छुतहा बीमारी है ?

हाँ, लेकिन यह छूत एक-दो बार के संपर्क से नहीं लगती। यों भी कुष्ठ का हर रोगी छुतहा नहीं होता।
छूत की संभावना उन रोगियों से होती है जिनके शरीर में त्वचा और नासिका के भीतर-बड़ी तादाद में माइकोबैक्टीरिअम लेपरे जीवित होते हैं। ऐसे किसी रोगी के साथ लंबे समय तक सीधे संपर्क में रहने से ही बैक्टीरिया दूसरे के शरीर में पहुँच पाता है। त्वचा पर पड़ी खरोंच या घाव ही संभवतया बैक्टीरिया की पैठ का द्वार बनता है।

कुष्ठ के बैक्टीरिया यों शायद हवा में भी होते हैं। मरीज के खाँसने, छींकने और बोलने पर उनका नाक से उड़कर हवा में पहुँचना स्वाभाविक हैं।
पर बैक्टीरिया का घुसना कहीं से भी हो, रोग तभी होता है जब शरीर कमजोर हो। फिर भी छूत लगने से रोग होने के बीच दो से पाँच । साल लग जाते हैं।

3). क्या कुष्ठ रोग आनुवंशिक होता है ?

नहीं, परिवार में पति-पत्नी और उनके बच्चों में कुष्ठ का होना सिर्फ रोग की संक्रामकता प्रकट करता है। पति-पत्नी के जींस एक से नहीं होते कि रोग के आनुवंशिक होने की बाबत सोचा जाए।

4). कुष्ठ रोग के लक्षण क्या हैं ?

कुष्ठ रोग के लक्षण मरीज की रोग से लड़ने की ताकत के हिसाब से । अलग-अलग गहनता के होते हैं।

  • कम गंभीर मामलों में शुरू में त्वचा पर एक या अधिक ऐसा क्षेत्र दिखाई देता है, जिसका रंग सामान्य त्वचा से कम गहरा होता है,
  • सतह शुष्क और प्रायः छिलकेदार होती है,
  • यह क्षेत्र या तो दागदार होता है या उठा हुआ या उस पर गोल घेरे खिंचे होते हैं, जैसे कि दाद के चकत्ते, और खास बात यह कि यह हिस्सा संवेदनाशून्य होता है। उसे कोई छुए तो पता नहीं चलता, न ही ठंडे-गर्म या दाब का पता चलता है।
  • यह अलग से नजर में आनेवाला दोष शरीर के किसी भी भाग में प्रकट हो सकता है, पर यह बाँहों, टाँगों या नितंबों के बाहरी तरफ अधिक होता है।
  • इसके साथ उस क्षेत्र की कोई एक तंत्रिका भी सूज जाती है और उसे त्वचा के नीचे किसी-न-किसी स्थान पर महसूस किया जा सकता है। यह स्थिति बनी रहे, तो तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है और मांसपेशियों के ताकत खोने से बीमार अंग विकृत हो जाता है।
  • संवेदना न रहने से जलने, चोट लगने, घाव बनने, कट जाने का डर बना रहता है।
  • हड्डी में विनाशकारी बैक्टीरिया पहुँचने से हड्डी में घाव हो जाता है, जिससे तरह-तरह की कुरूपता पैदा हो जाती है।
  • मस्तिष्क के निचले भाग से आईं पाँचवीं और सातवीं क्रेनिअल नर्व के क्षतिग्रस्त होने पर आँख पर भी बुरा असर आ सकता है।

पर इस प्रकार के रोगी दूसरों पर प्रायः रोग की विपदा नहीं डालते। उनका रोग कम तीव्रता का होता है और उपचार से पूरी तरह ठीक हो जाता है। इसे ट्यूबरक्यूलॉएड लेप्रसी कहा जाता है।

लेप्रोमेटस लेप्रसी कुष्ठ रोग का उग्रतम रूप है। इसमें –

  • चेहरे की त्वचा मोटी गिल्टीदार, कान की लहरी मोटी, छोटी और चौरस, और भौंहें गायब हो जाती हैं।
  • रोग से नासिका की हड्डी नष्ट हो जाने से ‘नाक अंदर धंस जाती है। पर रोग इतने पर ही नहीं रुकता।
  • तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त होने से हाथ-पैर और फिर धड़ और चेहरा संवेदनाशून्य हो जाते हैं।
  • नाक, मुँह और साँस-नली में जख्म बन जाते हैं और आँख पर भी बीमारी का असर पड़ सकता है।
  • पुरुष में अंडग्रंथि नष्ट हो सकती है, जिससे हॉर्मोनल असंतुलन हो जाता है और छातियाँ फूल जाती हैं।

इसके विपरीत उपर्युक्त दोनों गहनता के बीच की बार्डरलाइन लेप्रसी में आँखें और नाक रोग से बचे रहते हैं, लेकिन तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त होने की तीव्रता ट्यूबरक्यूलॉएड लेप्रसी से अधिक होती है।

5). कुष्ठ रोग का निदान कैसे किया जाता है ?

अधिकतर मामलों में चर्मरोग-विशेषज्ञ लक्षणों और शारीरिक जाँच के आधार पर ही यह बता सकता है कि कौन-सा रोग है। लेकिन विश्वसनीयता के लिए कुछेक मामलों में रुग्ण भाग से त्वचा का छोटा सा टुकड़ा लेकर ऊतकीय जाँच कराने की जरूरत भी आ सकती है।

6). क्या कुष्ठ रोग का इलाज हो सकता है ?

हाँ, क्यों नहीं ! दवाओं से माइकोबैक्टीरिअम लेपरे को नष्ट कर रोग से छुटकारा पाया जा सकता है, लेकिन दवा कई साल लेनी होती है।

डैप्सोन, रीफेम्पीसीन और क्लोफाजीमीन कुष्ठ रोग की तीन प्रमुख दवाएँ हैं, जिन्हें डॉक्टरी सलाह से सही मात्रा में ही लिया जाना चाहिए। दवा से कोई परेशानी हो, तो डॉक्टर से मिलकर उसे सुलझा लेना चाहिए।

( और पढ़े – कुष्ठ रोग का आयुर्वेदिक उपचार )

7). क्या इलाज घर रहते किया जा सकता है ?

हाँ। अधिकतर मामलों में यों भी दवा शुरू होने के कुछ दिन बाद से रोगी दूसरों के लिए संक्रामक नहीं रहता कि रोग उससे औरों को हो सके। लेकिन उस समय तक बच्चों को उससे अलग रखा जा सके तो अच्छा है।

8). लेकिन रोगी के इलाज शुरू करने से पहले भी तो रोग घर के अन्य सदस्यों को लग सकता है ?

हाँ, ऐसा हो सकता है। इसीलिए घर-परिवार के सभी सदस्यों को चाहिए कि दो वर्ष तक छह-छह महीने पर अपनी डॉक्टरी परीक्षा कराते रहें।

9). क्या कुष्ठ रोग की शारीरिक विकृतियों से छुटकारा पाया जा सकता है ?

हाँ। पर पहले तो इससे बचने की ही कोशिश होनी चाहिए। इसके लिए शुरू से ही सावधान होना पड़ता है। मांसपेशियों की ताकत नष्ट हो जाए, तो उन्हें उस हाल में छोड़ने की बजाय फिजियोथैरेपी से काफी सुधारा जा सकता है। इसी प्रकार संवेदनारहित अंग में दस्ताने-मोजे, गद्देदार जूते या दूसरी कोई बचाव करनेवाली चीज पहनी जा सकती है ताकि अंग जख्मी होने से बचा रहे। फिर भी कहीं जख्म हो जाए, तो उसका समय से इलाज होना बहुत जरूरी होता है। पर किसी में विकृतियाँ हो चुकी हों, तो भी उचित ऑपरेशन से उन्हें दूर करने की कोशिश हो सकती है।

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