भगवान बुद्ध उस समय मृत्युशय्या पर अंतिम सांसे गिन रहे थे कि किसी के रोने की आवाज उनके कानों में पड़ी। बुद्ध ने पास बैठे अपने शिष्य आनंद से पूछा, “आनंद कौन रो रहा है?”
भंते, भद्रक आपके अंतिमदर्शन के लिए आया है”, आनंद ने गुरुचरणों में प्रार्थना की।
” …तो उसे मेरे पास बुलाओ”, भगवान ने स्नेह से कहा।
आते ही भद्रक उनके चरणों में गिरकर, फूट-फूटकर रोने लगा। बुद्ध ने जब उससे कारण पूछा, तो वह भई हुई आवाज में बोला, “भंते जब आप हमारे बीच नहीं होंगे, तब हमें प्रकाश कौन दिखाएगा?” भद्रक ने रोने का कारण बता दिया।
बुद्ध भद्रक की यह बात सुनकर मुस्कुराये। उन्होंने स्नेह से भद्रक के मार्थं पर हाथ रखा और उसे समझाया, भद्रक प्रकाश तुम्हारे भीतर है, उसे बाहर ढूंढने की आवश्यकता नहीं। जो अज्ञानी इसे देवालयों, तीर्थों, कंदराओं या गुफाओं में भटककर खोजने का प्रयास करते हैं, वे अंत में निराश होते हैं। इसके विपरीत मन, वाणी और कर्म से एकनिष्ठ होकर जो साधना में निरंतर लगे रहते हैं उनका अंत:करण स्वयं दीप्त हो उठता है।
भद्रक, ‘अप्प दीपो भव’ आप दीपक बनो।”
और यही था बुद्ध का परम जीवनदर्शन भी, जिसका वे आजीवन प्रचार-प्रसार करते रहें।
( और पढ़े –महाकाल -प्रेरक कहानी )
Nice Thought