ग्लूकोमा (काला मोतिया) – दृष्टिहीन बनाने वाला खतरनाक रोग

Last Updated on January 15, 2022 by admin

ग्लूकोमा अथवा काला मोतिया एक खतरनाक रोग है जिसके कारण देश में प्रति वर्ष लाखों व्यक्ति आँखों की रोशनी खो देते हैं। ग्लूकोमा या काला मोतिया को समझने के लिए हमें आँख के अन्दर के दबाव (Intraocular Pressure) को समझना होगा।

अन्त:नेत्र दबाव (Intraocular Pressure) –

यह वायुमंडल के दबाव से अधिक होता है तथा यह दबाव आँखों के अन्दर उपस्थित ठोस एवं द्रव पदार्थों एवं आँख की दीवारों द्वारा उत्पन्न किया जाता है। सामान्यत: यह 16 से 23 m.m. Hg होता है। यह दबाव प्रकाश किरणों के आवागमन में जरूरी होता है। अन्यथा व्यक्ति को धुंधला दिखता है।

ग्लूकोमा क्या है ? (What is Glaucoma in Hindi) :

यह वह स्थिति है जब आँख के अन्दर का दबाव बढ़ता चला जाता है तो इससे आँख को रक्त पहुँचाने वाली वाहिनियों एवं तंत्रिकाओं पर दबाव पड़ने से वे स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसके दुष्परिणाम स्वरूप रोगी अंधत्व का शिकार हो जाता है। यह रोशनी छीनने वाली भयानक बीमारी है। इसके रोगियों की संख्या काफी अधिक है। लगभग सौ पर एक व्यक्ति इस रोग से पीड़ित है। इस तरह ग्लूकोमा ऐसी खतरनाक बीमारियों में शामिल है, जो रोगियों को उचित इलाज न होने पर अंधा बनाती है।

ग्लूकोमा के प्रकार (Types of Glaucoma in Hindi) :

1). जन्मजात (Congenital) : यदि जन्मजात कारणों से आँख के द्रव्य की मात्रा तथा उसकी उत्पत्ति तथा निकास में असन्तुलन हो तो बच्चों में काला मोतिया हो जाता है। यद्यपि ऐसे बच्चों की आँखें बड़ी और सुन्दर दिखती हैं, पर बच्चा रोशनी में जाने से झिझकता है। और आँखों से पानी बहता है तथा दृष्टि भी कमजोर होने लगती है।

2). वंशानुगत : यह दो प्रकार का होता है –

(a) प्राइमरी वाइड एंगल (Primary Wide Angle) : इसे क्रोनिक सिम्पल ग्लूकोमा भी कहते हैं। इसमें इक्यूअस ह्यूमर का दबाव धीरे-धीरे नेत्र गोलक पर बढ़ता है, तथा आप्टिक नर्व के खराब हो जाने पर ही इसका पता चल पाता है। यह अधिक उम्र (लगभग 40 वर्ष से ऊपर या आसपास) के व्यक्तियों में अधिक होता है। शुरू में इसके विशेष लक्षण नहीं मिलते। थोड़ा सिर दर्द और आँखों में दर्द हो सकता है। इसमें ऑपरेशन द्वारा ड्रेनेज चैनल बना दिया जाता है। और आँख खराब होने से बच जाती हैं।

(ब) प्राइमरी क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा : इसमें आँखों के भीतर के द्रव (Aqueous humour) के बहाव में अग्र कक्ष (Anterior Chamber) के कोषों के सँकरेपन के कारण बाधा आती है। तब इस प्रकार का ग्लूकोमा होता है। यह 45-50 वर्ष की उम्र में होता है। इससे महिलाएँ अधिक प्रभावित होती हैं।

3). द्वितीयक या सेकेंडरी ग्लूकोमा : यह किसी अन्य नेत्र रोग के कारण नेत्र गोलक (Eyeball) पर दबाव बढ़ने से होता है और किसी एक आँख में होता है तथा इसके निम्न कारण हो सकते हैं –

(अ) आइराइडोसाइक्लाइटिस नामक बीमारी अथवा कॉर्नियल अल्सर इत्यादि में अथवा लेंस की गड़बड़ियों के कारण।
(ब) नेत्र गोलक के भीतर रक्तस्राव होने से या अंदर गठान (Tumor) के कारण भी काला मोतिया होता है।

ग्लूकोमा की दो दशाएँ भी होती हैं –

  1. उग्र काला मोतिया, 2. जीर्ण काला मोतिया।
    उग्र काले मोतिया में लक्षण शीघ्रता से मिलते हैं जबकि जीर्ण प्रकार में क्रमश: या धीरे-धीरे मिलते हैं।

ग्लूकोमा के कारण (Glaucoma Causes in Hindi) :

  1. आँखों में जो एक्वस ह्यूमर नामक तरल पदार्थ होता है, जब उसमें असंतुलन हो जाता है तो ग्लूकोमा या काला मोतिया की स्थिति बन जाती है। इस कारण यदि एक्वस ह्यूमर अधिक मात्रा में बनने लगता है और उसका आँख से बाहर निकलना कम हो जाता है तो आँखों का तनाव बढ़ जाता है। तब नेत्र गोलक के भीतर का दबाव अधिक होने से आप्टिक नर्व एवं रक्त वाहिनियों पर भी दबाव बढ़ जाता है।
  2. आँख के अन्दर रक्तस्राव के कारण भी ग्लूकोमा की स्थिति बनती है।
  3. आप्टिक नर्व दृश्यपटल की सारी सूचनाएँ मस्तिष्क तक पहुँचती हैं अर्थात् यह विद्युत तारों का काम करती हैं। लेकिन जब इस नेत्र गोलक में तनाव बढ़ने से दबाव पड़ता है तो आप्टिक नर्व के तन्तु क्षतिग्रस्त होने लगते हैं और यह दोबारा ठीक नहीं होते तथा रोगी की नेत्र ज्योति घटते-घटते वह अंधा हो जाता है।
  4. इसका दूसरा कारण आँखों की शिराओं में रक्त की मात्रा बढ़ने से या खून वापस ले जाने वाली शिराओं का कार्य ठीक न होने से भी दबाव बढ़ता है। जो ग्लूकोमा की स्थिति पैदा करता है।
  5. इसका तीसरा कारण आँख पर बाहरी दबाव या चोट लगने से भी ग्लूकोमा की स्थिति बन सकती है। बाह्य कारण से होनेवाले मोतियाबिंद को द्वितीयक ग्लूकोमा कहते हैं।
  6. लम्बे समय तक स्टेरॉयड दवाएं खाने से भी ग्लूकोमा हो जाता है।
  7. एपिडेमिक ड्रॉप्सी में भी ग्लूकोमा हो जाता है।

ग्लूकोमा के लक्षण एवं चिह्न (Glaucoma Symptoms & Sign) :

सामान्यत: दोनों नेत्र इस बीमारी से प्रभावित होते हैं। लेकिन यदि एक आँख में ग्लूकोमा है तो दूसरी आँख भी बाद में इस रोग से प्रभावित हो जाती है। इस बीमारी में निम्नलिखित लक्षण मिल सकते हैं –

  1. आँखें छूने से असहनीय दर्द होता है।
  2. आँखों के दर्द के साथ-साथ आधे सिर में भी दर्द होता है।
  3. नेत्र गोलक (Eyeball) बाहर निकलने जैसा महसूस होता है।
  4. दृष्टि मन्द होना या धुंधला दिखना तथा रोशनी की ओर देखने पर इन्द्रधनुष के समान रंग
    दिखलाई देते हैं।
  5. कार्निया पर धुंधलापन आ जाता है तथा आँख की पुतली फैल जाती है एवं उस पर प्रकाश की
    कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। .कभी-कभी यह अनियमित या अंडाकार हो जाती है। आँखें लाल दिखाई देती हैं। चश्मे का नम्बर जल्दी-जल्दी बदलता है। कुछ मामलों में एक वस्तु के दो प्रतिबिम्ब बनते दिखाई देते हैं। काला मोतिया में बाद की अवस्था में रात में दिखलाई नहीं देता है।

ग्लूकोमा रोगी की पहचान (Glaucoma Diagnosis) :

  • 40 की उम्र के आसपास के व्यक्ति जिन्हें अचानक कम दिखाई देने लगे एवं आँख का दबाव बढ़ा हुआ हो उन्हें यह रोग हो सकता है।
  • टोनोमीटर नामक उपकरण से नेत्र गोलक पर पड़नेवाले दबाव को मापा जा सकता है। साथ ही आप्थेलमोस्कोप द्वारा आँखों की आप्टिक नर्व की क्षति का पता लगाया जा सकता है।
  • आजकल पेरीमेट्री द्वारा आँख की अंदरूनी स्थिति का सही पता चल जाता है और इससे मोतियाबिंद के प्रकार का भी पता चल जाता है। मोतियाबिंद का शीघ्र पता कर इलाज न करने पर रोगी अन्धा भी हो सकता है। अत: मोतियाबिंद ग्लूकोमा में बदले इसके पूर्व उसकी शल्य चिकित्सा हो जानी चाहिए।

ग्लूकोमा की चिकित्सा (Glaucoma Treatment) :

रोग का इलाज शल्य चिकित्सा है। इसे “Iridectomy” कहते हैं। इसमें “Iris” को काटकर तराशा जाता है। जब दवाइयों द्वारा 24 घंटे तक कोई फायदा नहीं होता तो ऑपरेशन कर रोगी को राहत पहुँचाई जाती है।

दवाओं द्वारा ग्लूकोमा का इलाज :

  1. आँख के अन्दर का दबाव कम रखने के लिए ऐसिटिन सल्फेट (1 प्रतिशत) को 15-15 मिनट के
    अंतर से एक घंटे तक फिर 4 घंटे के अंतर से डालते हैं। इसके अलावा दबाव कम करने के लिए डायमॉक्स गोली दिन में तीन बार खिलाते हैं।
  2. दर्द के लिए पेथीडीन या अन्य दर्द निवारक दवा देते हैं।
  3. आँख की ललामी (congestion) को कम करने के लिए हाइड्रोकार्टिको-सोन ड्राप्स भी डालने
    की सलाह भी दी जाती है।

ग्लूकोमा रोग से बचाव कैसे करें ? :

  1. रोग से बचाव के लिए मोतियाबिंद (Cataract) होने पर तुरंत चिकित्सक की सलाह से ऑपरेशन करवाएँ क्योंकि भारत में 62 प्रतिशत अन्धत्व का कारण मोतियाबिन्द है।
  2. आँख से दिखना कम होने या धुंधला दिखने अथवा एक की जगह दो वस्तुएँ दिखने पर तुरन्त नेत्र रोग विशेषज्ञ से जांच करवाकर इलाज लें।

याद रखें : ग्लूकोमा का समय रहते इलाज सम्भव है लेकिन यदि नेत्र ज्योति चली गई तो उसका पुन: ला पाना प्रायः सम्भव नहीं है। अत: इस मामले में सावधानी बरतें।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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