Last Updated on November 15, 2019 by admin
अमृतादि क्वाथ क्या है ? : Amritadi kwath in Hindi
आयुर्वेद में किसी योग (नुस्खे) का नामकरण करने की पद्धति यह है कि उस नुस्खे के किसी मुख्य द्रव्य के साथ ‘आदि’ शब्द जोड़ दिया, बस हो गया नामकरण संस्कार जैसे यह अमृतादि क्वाथ। अमृता कहते हैं गिलोय को और गिलोय इस काढ़े (क्वाथ याने काढ़ा) का मुख्य द्रव्य है अतः इस अमृता में आदि की सन्धि करके अमृतादि नाम रख दिया गया। इसे क्वाथ विधि से सेवन किया जाता है अतः इसे अमृतादि क्वाथ कहा जाता है ।
यह योग आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘भैषज्य रत्नावली’ का है । इस ग्रन्थ में यह योग अलग-अलग प्रकार से चार विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुत किया गया है। इन चारों में विसर्प चिकित्सा प्रकरण’ में प्रस्तुत किया गया निम्नलिखित योग हमारे अनुभव में बहुत गुणकारी सिद्ध हुआ है जिसे हम अनेकों बार प्रयोग करा चुके हैं, इसीलिए इन चारों योगों में से केवल इसे ही यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
भैषज्य रत्नावली के ‘विसर्प चिकित्सा प्रकरण‘ नामक ५७ वें अध्याय का श्लोक क्र. १८ . प्रस्तुत है
अमृत वृष पटोलं मुस्तकं सप्तपर्ण, खदिरमसित वेत्रं निम्बपत्रं हरिद्रे ।
विविध विष विसर्पान् कुष्ठ विस्फोट कण्डूरपनयति मसूरीं शीतपित्तं ज्वरञ्च ।।
अमृतादि क्वाथ के घटक द्रव्य : Amritadi kwath Ingredients in Hindi
✦ गिलोय
✦ अडूसा
✦ पटोलपत्र
✦ नागरमोथा
✦ सप्तपर्ण की छाल
✦ खैर की छाल
✦ कृष्णवेत्र
✦ नीम की पत्ती
✦ हरिद्रा
✦ दारु हरिद्रा
अमृतादि क्वाथ बनाने की विधि :
अमृतादि क्वाथ में कुल दस द्रव्य हैं। इनमें कृष्णवेत्र प्रायः उपलब्ध नहीं होता तो शेष ९ द्रव्य ही प्रयोग किये जाते हैं इन सब को थोड़ा कूट लें, बारीक करने की आवश्यकता नहीं। सभी द्रव्य समान मात्रा में लेकर मिला लें।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
अमृतादि क्वाथ की सेवन विधि :
२० ग्राम वज़न में इस मिश्रण को ४ कप पानी में डालकर उबालें। जब पानी उबल कर १ कप रह जाय तब उतार कर छान लें और कुनकुना गर्म रहे तब पी लें। इसे सुबह उठकर नित्यकर्म करके और दांत मुंह साफ़ करके चाय आदि से पहले पीना चाहिए। एक कप ज्यादा लगे तो २ कप पानी लें और आधा कप काढ़ा तैयार करें। इससे नुस्खे के गुण प्रभाव में फर्क नहीं पड़ेगा।
आवश्यकता के अनुसार इसका एक या दो सप्ताह सेवन अवश्य करना चाहिए। एक बात कहना जरूरी है कि इसका स्वाद कड़वा होता है क्योंकि गिलोय और नीम महा कड़वे द्रव्य हैं लेकिन किसी कवि ने कहा है- कड़वी भैषज के बिना मिटे न तन की ताप। इसका स्वाद ज़रूर कड़वा है पर गुण और लाभ बहुत मीठे हैं।
अमृतादि क्वाथ के फायदे : Amritadi kwath Benefits in Hindi
☛ इसके सेवन से समस्त उदर विकार दूर होते है।
☛ अमृतादि क्वाथ अपच और रक्त विकार में फायदेमंद है ।
☛ विष दोष, विसर्प, कुष्ट, विस्फोट, कण्डू और मसूरिका में अमृतादि क्वाथ का इस्तेमाल फायदेमंद होता है ।
☛ यह शीत-पित्ती, मुंह के छाले, ज्वर और पेट की गर्मी की उत्तम औषधि है ।
☛ अमृतादि क्वाथ त्वचा रोग, त्रिदोष के विकार और जलन को दूर करता है ।
☛ इसके सेवन से श्वास कष्ट, कफ रोग, पित्त प्रकोप, कृमि आदि की व्याधियां नष्ट होती हैं।
यह अमृत के समान गुणकारी और अव्यर्थ नुस्खा है इसीलिए इसे प्रत्येक घर में रखा जाना चाहिए। दो सप्ताह प्रयोग करने पर आप स्वयं ही इसके लाभ गुण के प्रशंसक हो जाएंगे।
इसमें वर्णित सभी द्रव्य जड़ी बूटी बेचने वाली दूकान पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। आपकी जानकारी के लिए इन औषधियों का संक्षिप्त परिचय यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
अमृता के औषधीय गुण –
चरपरी, कड़वी, पाक में स्वादिष्ट, रसायन, ग्राही, कसैली, गर्म, हलकी, बलदायक, जठराग्नि वर्द्धक, त्रिदोषशामक तथा आम, प्यास, जलन, प्रमेह, पीलिया, खांसी, कुष्ठ, ज्वर, कृमि, वमम, श्वास, बवासीर, हृदय रोग एवं वात विकार नाशक है।
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अडूसा के औषधीय गुण –
वातकारक, स्वर के लिए उत्तम, कड़वा, कसैला, हृदय के लिए हितकर, हलका, शीतल और कफ, पित्त, प्यास, रक्तविकार, श्वास, खांसी, ज्वर, वमन, प्रमेह, कोढ़ और क्षय नाशक है।
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पटोलपत्र (पत्ते) के औषधीय गुण –
पाचक, हृदय को हितकारी, वीर्यवर्द्धक, हलका, अग्निदीपक, स्निग्ध, गर्म और खांसी, रक्तविकार ज्वर, त्रिदोष तथा कृमि नाशक है। इसके पत्ते प्रयोग में लिये जाते हैं।
नागरमोथा के औषधीय गुण –
चरपरा, शीतल, ग्राही, कड़वा, दीपक, पाचक, कसैला और कफ, पित्त, रक्तविकार, प्यास, ज्वर, कृमि और अरुचि नाशक है।
सप्तपर्ण की छाल के औषधीय गुण –
अग्निदीपक, स्निग्ध, गर्म, कसैला, दस्तावर और घाव, कफ, वात, कोढ़, रक्तविकार तथा कृमिनाशक है।
खैर की छाल के औषधीय गुण –
शीतल, दांतों को हितकारी, कड़वा, कसैला, और खुजली, खांसी, अरुचि, कमि, प्रमेह, ज्वर, घाव, श्वेत कुष्ठ, पित्त, सूजन, रक्तविकार, पीलिया, कोढ़ और कफ नाशक है।
नीम के औषधीय गुण –
नीम की पत्ती नेत्रों को हितकारी, कड़वी, पाक में चरपरी, वातकारक, शीतल, हलकी, ग्राही, हृदय को अप्रिय और सब प्रकार की अरुचि, कोढ़, पित्त, कृमि तथा विषविकार नाशक है।
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हरिद्रा के औषधीय गुण –
चरपरी, कड़वी, सूखी, गर्म और कफ, पित्त, त्वचा रोग, रक्तविकार, सूजन, घाव, प्रमेह और पीलिया रोग नाशक है।
दारु हरिद्रा के औषधीय गुण –
यह हल्दी के समस्त गुणों से युक्त होने के साथ नेत्ररोग, मुखरोग तथा कान के रोगों के लिए गुणकारी है।
अमृतादि क्वाथ के नुकसान : Amritadi kwath Side Effects in Hindi
1- अमृतादि क्वाथ लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें
2- अमृतादि क्वाथ को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
तो देखा आपने ! इस योग का प्रत्येक द्रव्य कितना गुणकारी और नाना प्रकार के विकारों को नष्ट करने वाला है। सभी द्रव्यों के मुख्य-मुख्य गुणों का परिचय इसीलिए यहां प्रस्तुत किया गया है कि एक तो आप सभी द्रव्यों के गणों की जानकारी प्राप्त कर सकें, दूसरे, इस अमृतादि क्वाथ के नुस्खे की गुणवत्ता से भी परिचित हो सकें। आप इन सभी ९ द्रव्यों को बाज़ार से लाकर यह योग घर पर ही तैयार कर सकते हैं। यह सूखा काढ़ा घर में रखना ही चाहिए ताकि वक्त ज़रूरत प्रयोग किया जा सके।