Last Updated on June 1, 2024 by admin
अर्जुन वृक्ष (Arjun Tree in Hindi)
अर्जुन का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशत: यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अक्सर नालों के किनारे लगने वाला अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हल्का गुलाबी रंग लिए होती है। छाल को गोदने पर उसमें से एक प्रकार का स्राव (द्रव) निकलता है।
इसके तने गोल और मोटे होते है तथा पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह 4 से 6 इंच लंबे और डेढ़ से दो इंच चौड़े होते हैं। सफेद रंग के डंठलों पर बहुत छोटे-छोटे फूल हरित आभायुक्त सफेद या पीले रंग के और सुगन्धित होते हैं। फल 1 से डेढ इंच लंबे, 5-7 उठी हुई धारियों से युक्त होते हैं जो कि कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। इसकी गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है तथा फलों में बीज न होने से ये ही बीज का कार्य करते हैं।
अर्जुन वृक्ष के औषधीय गुण (Arjun ke Gun)
- अर्जुन शीतल, हृदय के लिए हितकारी, स्वाद में कषैला, घाव, क्षय (टी.बी.), विष, रक्तविकार, मोटापा, प्रमेह, घाव, कफ तथा पित्त को नष्ट करता है।
- इससे हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण क्रिया अच्छी होती है।
- मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन सामान्य होती है।
- इसके उपयोग से सूक्ष्म रक्तवाहिनियों का संकुचन होता है, जिससे रक्त, भार बढ़ता है। इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे यह सूजन को दूर करता है।
सेवन की मात्रा :
अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार। अर्जुन की छाल का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर। पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर।
प्रकृति –
यह गर्म प्रकृति की होती है।
अर्जुन छाल के फायदे और उपयोग (Benefits of Arjun ki Chaal)
1. हड्डी टूटने पर :(Bone breakdown)
- अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है।
- प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
2. जलने पर(On burn) : आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।
3. हृदय के रोग (Heart diseases):
- अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।
- अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।
- अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।
- हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।
- गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 मिलीलीटर डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
- गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।
- अर्जुन की छाल का रस 50 मिलीलीटर, यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 मिलीलीटर और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है।
- हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।
- हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।
- अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है।
- अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है।
- एक साथ लगभग 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर सेवन करें।
4. खूनी प्रदर : इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।
5. शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए : अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।
6. मुंह के छाले (Mouth ulcers): अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
7. पेशाब में धातु का आना :
- अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है।
- अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।
8. ताकत को बढ़ाने के लिए : अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।
9. श्वेतप्रदर(Blennenteria) : महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।
10. पुरानी खांसी (cough): छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।
11. हार्ट फेल : हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।
12. तेज धड़कन, दर्द, घबराहट : अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।
13. पेट दर्द : आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।
14. पीलिया (jaundice): आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।
15. मुखपाक (मुंह के छाले) : अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।
16. शुक्रमेह : शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।
17. बादी के रोग : अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।
18. घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल:
- अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।
- अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।
19. पैत्तिक हृदय की बीमारी में : 3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
20. गुल्यवायु हिस्टीरिया : अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 मिलीलीटर की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।
21. शरीर में सूजन (Body swelling):
- इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।
- लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।
- गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।
22. खूनीपित्त (रक्तपित्त) :
- अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
- रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।
23. कुष्ठ (कोढ) :
24. बुखार : अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।
25. व्रण (घाव) के लिए :
- अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।
- अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।
- घाव में अर्जुन छाल 5 से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए।
26. जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) : अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।
27. अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि : अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 मिलीलीटर दूध में 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।
28. दमा या श्वास रोग : अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।
29. उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) : अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।
30. अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग : शालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।
31. मल बंद (उदावर्त, कब्ज) : मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।
32. हड्डी के टूटने पर : हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।
33. मधुमेह का रोग : अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।
34. मोटापा दूर करें : अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।
35. कान का दर्द : अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।
36. मुंह की झांइयां : इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।
37. टी.बी. की खांसी : अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।
38. खूनी दस्त : अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 मिलीलीटर दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।
39. रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) : अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।
40. प्रमेह (वीर्य विकार) में : अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाता है।
Read the English translation of this article here ☛ Arjuna: Uses, Benefits, Dosage and Side Effects
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