दमा (अस्थमा) के लिए चुंबक चिकित्सा – Asthma ke liye Chumbak Chikitsa

Last Updated on April 7, 2023 by admin

दमा रोग का सामान्य परिचय : 

       इस रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में दिक्कत आती है जिसके कारण उसे सांस लेने में तथा सांस को बाहर छोड़ने में काफी जोर लगाना पड़ता है। जब फेफड़ों की नलियों (जो वायु बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों) में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़े वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर पचा नहीं पाता है। जिससे पूर्ण सांस खींचे बिना ही सांस छोड़ देने को मजबूर होना पड़ता है। इस अवस्था को दमा या सांस रोग कहा जाता है। व्यक्ति को सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।

       जब रोगी का रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है। जब दौरा अधिक क्रियाशील होता है तो ऑक्सीजन के अभाव के कारण रोगी का चेहरा नीला पड़ जाता है।

       जब रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी खांसी होती है और ऐंठनदार खांसी होती है। रोगी चाहे कितना भी बलगम निकालने के लिए कोशिश करता है फिर भी बलगम बाहर नहीं निकलता है।

दमा रोग का का कारण : 

     यह रोग अधिकतर ‘श्वास नलिका में धूल तथा ठण्ड लग जाने के कारण होता है। दमा का रोग कई प्रकार के धूल कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधे के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूर्जक पदार्थो के कारण यह रोग हो जाता है तथा इनके उपयोग से ‘शरीर के अन्दर पाई जाने वाली रोगक्षम प्रणाली इन्हें बाहर निकाल फेंकने के लिए प्रतिपिण्डों को उत्पन्न करती है। इस क्रिया के दौरान, हिस्टामिन जैसे कुछ रासायनिक पदार्थ उत्पन्न होते हैं जो ‘श्वासनलियों में ऐंठन पैदा करते है और वायु नलियों को सिकोड़कर तंग कर देते हैं। जिसके कारण यह रोग उत्पन्न हो जाता है इसलिए इन प्रत्यूर्जक पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।

चुंबक चिकित्सा द्वारा दमा रोग का उपचार : 

इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में अपनी हथेलियों पर चुम्बक लगाना चाहिए। 

LIV.1 acupuncture point
LIV.1 point

शाम के समय में ‘शरीर में पाये जाने वाले सूचीवेधन बिन्दु LIV.1 पर उत्तरी ध्रुव वाले सेरामिक चुम्बक को लगाना चाहिए। 

st 18 acupuncture point
St 18 point

शाम के समय में दाएं चूचुक (NIPPLE) के लगभग 3 से 4 सेण्टीमीटर नीचे सूचीवेधन बिन्दु St.18 पर दक्षिणी ध्रुव वाले चुम्बक को लगाना चाहिए।

खान-पान और परहेज : 

  • दमा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए, 
  • धूल तथा धुएं वाले स्थानों से दूर रहना चाहिए 
  •  किसी भी प्रकार की चिन्ता, तनाव, क्रोध और उत्तेजना से बचना चाहिए क्योंकि ये सभी दमा रोग के कारण बन सकते हैं।
  •  रोगी को भोजन में गेहूं की रोटी, तोरई, करेला, परवल, मेथी, बथुआ आदि चीजें लेनी चाहिए। इससे दमा रोग में बहुत अधिक लाभ होता है।
  •  गेहूं, पुराना घी, पका कुम्हड़ा, शहद, बैंगन, मूली, लहसुन, बथुवा, पुराने सांठी चावल, लाल शालि चावल, जौ, चौलाई, दाख, छुहारे, छोटी इलायची, गोमूत्र, मूंग एवं मसूर की दाल, नींबू, करेला, बकरी का दूध, अनार, आंवला, मिश्री तथा बिजौरा ये सभी दमा रोग के रोगी को सेवन कराने से लाभ मिलता है।
  •  इस रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।

(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)

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