Last Updated on December 30, 2019 by admin
अविपत्तिकर चूर्ण क्या है ? Avipattikar Churna in Hindi
अविपत्तिकर चूर्ण पाउडर के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से अम्लपित्त तथा अम्लपित्त से उत्पन्न उदर शूल,अग्निमांद्य, वातनाड़ियों में शूल, अर्श, प्रमेह, मूत्राघात और मूत्राश्मरी का नाश होता है।
तेज मिर्च मसालेदार पदार्थ, चाट पकौड़ी, कचौरी, समोसे का सेवन करने में अति करने, ज्यादा चाय पीने, मद्य, मांस और तम्बाकू का सेवन करने आदि कारणों से अम्लपित्त (Hyperacidity) नामक व्याधि होती है। यदि लगातार लम्बे समय तक यह व्याधि बनी ही रहे तो अन्न नली (Esophagus), आमाशय (Stomach) या ग्रहणी Duodenum) में अलसर (Ulcer) हो जाता है जो कि एक जीर्ण एवं दुष्ट रोग होता है अतः इस व्याधि को पहले तो उत्पन्न ही नहीं होने देना चाहिए और यदि हो जाए तो इसे दूर करने में आलस्य तथा विलम्ब नहीं करना चाहिए। अविपत्तिकर चूर्ण इस विपत्ति को दूर करने में सक्षम एवं सफल सिद्ध योग है।
अविपत्तिकर चूर्ण के घटक द्रव्य :
✦ सोंठ – 10 ग्राम
✦ पीपल – 10 ग्राम
✦ काली मिर्च (त्रिकुट) – 10 ग्राम
✦ हरड़, बहेड़ा ,आंवला (त्रिफला) – 10 ग्राम
✦ नागर मोथा – 10 ग्राम
✦ बायविडंग – 10 ग्राम
✦ छोटी इलायची के दाने – 10 ग्राम
✦ तेजपात – 10 ग्राम
✦ लौंग – 100 ग्राम
✦ निशोथ की जड़ – 400 ग्राम
✦ मिश्री – 600 ग्राम
अविपत्तिकर चूर्ण बनाने की विधि :
सब द्रव्यों को कूट पीस कर महीन कपड़छन चूर्ण कर मिला लें। इसमें विड नमक या नौसादर मिलाने का विधान भी पढ़ने को मिलता है। 1200 ग्राम चूर्ण में इसकी मात्रा 10 ग्राम मिलानी चाहिए। इसका प्रभाव वातनाड़ियों पर पड़ता है।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
अविपत्तिकर चूर्ण की खुराक : Avipattikar Churna Dosage in Hindi
इसकी 4-5 ग्राम मात्रा ठण्डे पानी, नारियल पानी या ठण्डे दूध के साथ भोजन से थोड़ी देर पहले, सुबह-शाम लेना चाहिए। रात को सोते समय भी ले सकते हैं।
इसका सेवन करते हुए केवल दूध चावल का ही सेवन करें, तली हुई नमकीन और मिर्च मसाले वाली चीज़ों का सेवन बिल्कुल बन्द रखें तो बहुत जल्दी लाभ होगा।
अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग : Avipattikar Churna Uses in Hindi
इस चूर्ण के सेवन से अम्लपित्त के कारण होने वाले सब उपद्रव जैसे छाती व पेट में जलन, पेट दर्द, पेशाब में जलन व रुकावट, अग्निमांद्य, चरपरी डकारें, तीखा खट्टा पानी डकार के साथ गले में आना आदि दूर होते हैं। इस व्याधि को शीघ्र से शीघ्र दूर कर देना चाहिए ताकि अलसर न बन सके।
उपद्रव समाप्त होते ही इस चूर्ण का सेवन बन्द कर देना चाहिए अन्यथा दूसरी हानियां होंगी । अम्लपित्त को नष्ट करने के लिए यह उत्तम औषधि है।
अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे : Avipattikar Churna Benefits in Hindi
अम्लपित्त रोग में लाभदायक अविपत्तिकर चूर्ण
यह चूर्ण अम्लपित्त रोग में विशेष व्यवहृत होता है। अम्लपित्त होने पर छाती में जलन होती रहती है, रोग अधिक बढ़ने पर उबाक और वमन भी होती रहती है, वमन खट्टी और जलती हुई होती है। वमन होने पर कण्ठ में दाह होता है और नेत्रों में जल आ जाता है। इस विकार में अपचन होने या रोग जीर्ण होने पर आमाशय पित्त अत्यधिक बढ़ जाने से सुबह भी खट्टी डकारें आती रहें और वमन होती रहें, तब अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन शीतल जल या नारियल के जल के साथ कराया जाता है, जिससे आमाशय का पित्त ऑतों में चला जाता है।
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पित्त दूर करने में लाभकारी अविपत्तिकर चूर्ण का प्रयोग
इस चूर्ण में निसोत मिलाया है, जिससे यह कुछ विरेचन गुण भी दर्शाता है और आमाशय के भीतर संगृहीत पित्त को फेंक देता है। यदि विरेचन गुण को अति कम कराना हो, तो आचार्यों के कहे अनुसार चूर्ण भोजन के पहले और भोजन के अन्त में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में घी और शहद के साथ देना चाहिए।
वातनाड़ियों की शुद्धि में अविपत्तिकर चूर्ण लाभकारी
अम्लपित्त रोग बढ़ने पर आमाशयस्थ पित्त का अम्ल प्रभाव रक्त पर पहुँचता है। फिर कई रोगियों की वातनाड़ियां भी खिंचती रहती है। ऐसी अवस्था में उनको लाभ पहुँचाने की दृष्टि से आचार्यों के मूलपाठ में “बीजञ्चैव विडङ्गकम्” के स्थान पर “विडञ्चैव विडङ्गकम्” भी पाठ मिलता है। इस पाठ को मानकर 120 तोले चूर्ण के साथ 1 तोला बिड़नमक (नौसादर) मिला देना चाहिए। अर्थात् 4 माशे चूर्ण की मात्रा देनी हो तो उसमें 1 रत्ती बिड़नमक मिलाकर देने से रक्त और वातनाड़ियों को पहुँची हुई अम्लता का ह्रास होता है।
माप :- (1 तोला = 12 ग्राम ) ( 1 माशा = 1 ग्राम ) ( 1 रत्ती = 0.1215 ग्राम )
पेट की शुद्धि करने में अविपत्तिकर चूर्ण फायदेमंद
वृक्क दाह होने पर रक्त में मूत्र-विष की वृद्धि होती है। फिर नेत्र और मुखमण्डलपर शोथ उत्पन्न होता है। देह कुश और निस्तेज हो जाती है, आलस्य की वृद्धि होती है। दृष्टि मन्द होती है, रक्त की प्रतिक्रिया अम्ल होती है। आमाशय में पित्त तेज हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रायः मलावरोध भी दुःख देता रहता है, इस मलावरोध को दूरकर उदर को शुद्ध करने के लिये बिड़नमक मिश्रित इस चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
मंदाग्नि दूर करे अविपत्तिकर चूर्ण
पाचन शक्ति को मजबूत कर भूख को बढ़ाने में अविपत्तिकर चूर्ण मदद करता है ।
इसके अतिरिक्त आमवात और रक्त की प्रतिक्रिया अम्ल होने से उत्पन्न संधिवात, पक्षाघात, उदरशूल, पित्तप्रकोप उन्माद, रक्तदबाव वृद्धि .. आदि रोगों में विरेचन की आवश्यकता होने पर भी इस चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
अविपत्तिकर चूर्ण का मूल्य : Avipattikar Churna Price
- Baidyanath Avipattikar Churna – 120 gm – 180 RS
- Patanjali Avipattikar Churna Price – 100 gm – 50 Rs
- Dabur Avipattikar Churna Price – 60 gm – 78 Rs
- Dhootapapeshwar Avipattikar Churna Price – 60 gm – 100 Rs
- Dhanvantari Avipattikar Churna Price – 80 gm – 98 Rs
कहां से खरीदें :
अविपत्तिकर चूर्ण के नुकसान : Side Effects of Avipattikar Churna in Hindi
- अविपत्तिकर चूर्ण लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- इसे ज्यादा मात्रा में और ज्यादा बार नहीं लेना चाहिए।
- आंतों में सूजन (Colitis) हो, पेट दबाने से पीड़ा होती हो तो इस चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहिए।
- अविपत्तिकर चूर्ण को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।