शंख वटी के फायदे, घटक द्रव्य, उपयोग और नुकसान | Shankh Vati Benefits in Hindi

Last Updated on October 18, 2019 by admin

शंख वटी क्या है ? : Shankh Vati in Hindi

शंख वटी टैबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। पाचन तंत्र की समस्याओं का इलाज करने के लिए यह आयुर्वेदिक दवा बहुत ही उपयोगी है। इसका उपयोग पाचन से संबंधित विभिन्न समस्याओं जैसे अपच, अफरा, उदरशूल, गैस आदि के उपचार में किया जाता है । यह वात और पित्त को संतुलित करता है।

शंख वटी के घटक द्रव्य : Shankh Vati Ingredients in Hindi

✦ इमली क्षार – ६० ग्राम
✦ सेन्धा नमक – १२ ग्राम
✦ काला नमक – १२ ग्राम
✦ मनिहारी नमक – १२ ग्राम
✦ सामुद्र नमक – १२ ग्राम
✦ साम्भर नमक – १२ ग्राम
✦ नींबू का रस – २४० ग्राम
✦ शुद्ध शंख – ६० ग्राम
✦ भुनी हींग – १५ ग्राम
✦ सोंठ – १५ ग्राम
✦ काली मिर्च – १५ ग्राम
✦ पीपल – १५ ग्राम
✦ शुद्ध पारद – ३.५ ग्राम
✦ शुद्ध गन्धक – ३.५ ग्राम
✦ शुद्ध पारद – ३.५ ग्राम
✦ शुद्ध गन्धक – ३.५ ग्राम
✦ शुद्ध विष – ३.५ ग्राम

शंख वटी बनाने की विधि :

शंख वटी इमली क्षार ६० ग्राम , सेन्धा नमक, काला नमक, मनिहारी नमक, सामुद्र नमक, साम्भर नमक, १२-१२ ग्राम लेकर इनको २४० ग्राम नींबू के रस में घोल दें। पश्चात् शुद्ध शंख के टुकड़े ६० ग्राम को अग्नि में तपा-तपा कर तब तक बुझावें जब तक कि शंख के टुकड़े नरम होकर चूर्ण न होने लगें। फिर भुनी हींग, सोंठ, काली मिर्च, पीपल ये चारों द्रव्य मिश्रित ६० ग्राम, शुद्ध पारद ३.५ ग्राम , शुद्ध गन्धक ३.५ ग्राम लेकर प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली बनावें, पश्चात् उनमें शुद्ध विष ३.५ ग्राम तथा उपरोक्त शंख के टुकड़ों का चूर्ण और शेष काष्ठौषधियों का सूक्ष्म कपड़छन चूर्ण कर एकत्र मिला नींबू रस के साथ दृढ़ मर्दन करें और २-२ रत्ती (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम) की गोलियाँ बना सुखाकर रख लें।

वक्तव्य – नींबू के रस का वजन अनुभव के आधार पर लिखा गया है। शंख के टुकड़े ६० ग्राम की अपेक्षा शंख भस्म ६० ग्राम डालकर बनाने से यह वटी उत्तम बनती है।

उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।

मात्रा और सेवन विधि :

१-२ गोली, दिन में ३ बार गरम जल या रोगानुसार अनुपान से दें ।

शंख वटी के फायदे और उपयोग : Shankh Vati Benefits in Hindi

☛ आयुर्वेद शास्त्र में पाचन संस्थान के लिए प्रयुक्त होने वाली औषधियों में यह सर्वोत्तम औषधी है।

☛ विष्टब्धाजीर्ण जन्य अफरा, उदरशूल, शूल और इनके कारण व्याकुलता होने पर शंखवटी के प्रयोग से अच्छा लाभ होता है।

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☛ अधिक भोजन कर लेने की अवस्था में उदर में भारीपन या वेदना होने पर इस वटी का सेवन अत्यन्त लाभकारी है।

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☛ वातवर्द्धक या गरिष्ठ भोजन खाने पर कुछ समय के पश्चात् उदर में खूब खिंचाव-सा होना ज्ञात होता है। यहाँ तक कि श्वास लेने में भी रुकावट एवं चलने-फिरने में असमर्थता हो जाती है। ऐसी अवस्था में शंखवटी के सेवन से आमाशयिक विबन्ध को उत्तेजना मिलने पर अलसीभूत आमाशयिक अन्न को आगे गति करने में सहायता पहुँचती है। पश्चात उदर खिंचाव और व्यथा ये लक्षण कम हो जाते हैं।

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☛ क्षदान्तशल में भी इस प्रकार की अवस्था होने पर इस वटी के प्रयोग से उत्कृष्ट लाभ होता है।

☛ इसके द्वारा अन्त्र की पुर:क्षरण क्रिया में वृद्धि होकर आन्त्रिक अवरोध नष्ट हो जाता है और अन्न को गति करने में सुविधा हो जाती है।

☛ इस प्रकार शूलोत्पादक सभी कारण नष्ट हो जाने पर शूल भी स्वयमेव शान्त हो जाता है।

☛ क्षुद्रान्त और बृहदन्न के संगम स्थान पर अपक्व अन्न संचित होकर आनाह और भयंकर शूल उत्पन्न कर देता है, यह अजीर्ण जनित शूल उत्पन्न कर देता है। यह अजीर्ण-जनित शूल और इस प्रकार की अवस्था विष्टब्ध में होती है। ऐसी स्थिति में शंख वटी के सेवन से शीघ्र लाभ होता है। अन्यथा अपक्व अन्न सड़कर दोनों आँतों के सन्धि स्थान पर तीव्र अन्तपुच्छ प्रदाह (अपेण्डिसाइटिस) नामक तीव्र शूल उत्पन्न कर देता है। यदि इसकी शीघ्र ही चिकित्सा न की जाय तो रोगी की प्राय: एक सप्ताह में ही मृत्यू हो जाती है। इस रोग की मुख्य चिकित्सा तो शल्य क्रिया द्वारा ही होती है, परन्तु विष्टब्धाजीर्ण होते ही शंखवटी का सेवन चालू कर दिया जाय तो यह रोग होने की सम्भावना नहीं रहती है।

☛ विदग्धाजीर्ण की अवस्था में कण्ठ में दाह, खट्टी डकार, उदर में जलन, भोजन करने के पश्चात् अन्न का घण्टों जैसे का तैसे पड़ा रहना आदि लक्षण-युक्त अवस्था में शंख वटी का सेवन अपूर्व गुणकारी है।

☛ अपक्व आहार, विदग्धाहारजनित मूर्छा, अत्याधिक भोजन, विष्टम्भकारक अन्न, कच्चे या अपक्व भोजन, पक्व या गरिष्ठ भोजन, शीतल पदार्थ या दुर्गन्ध युक्त भोजन का सेवन आदि कारणों से अतिसार उत्पन्न हो जाता है। इस विष से विष्टम्भ, वेदना, सिरदर्द, मुर्छा, भ्रम, पीठ और कमर का जकड़ जाना, जृम्भा, अंग टूटना, प्यास की अधिकता, ज्वर, छर्दि, प्रवाहिका, अरुचि, अपचन आदि विकार हो जाते हैं। इस अन्न विष से विदाह होकर अन्त्र की श्लैष्मिक कला भी विकृत हो जाती है और जलीय धातु की वृद्धि होने लगती है पश्चात् यही जलीय धातु अपक्व आहार में मिश्रित होकर अत्यन्त तीव्र अतिसार होने लगते हैं। साथ ही आफरा भी हो जाता है और उदर में मन्द-मन्द वेदना या कभी-कभो तीव्र शूल भी होने लगता है। वे सब उपद्रव अन्न-विष-जनित क्षोभ से होते हैं। इस अवस्था में भी यह वटी उत्तम कार्य करती है।

☛ ग्रहणी रोग की अत्यंत तीव्र अवस्था में इस वटी के प्रयोग से आशाप्रद लाभ नहीं होता, किन्तु तीव्रावस्था प्राप्त होने से पूर्व अग्निमान्द्य अजीर्ण, अन्न-विष के संचय आदि पर इस वटी का अच्छा प्रभाव होता है। ग्रहणी रोग की तीव्रावस्था में भी कफप्रधान लक्षण और शूल होने की दशा में इस वटी के सेवन से अच्छा लाभ होता है और मन्दाग्नि होने पर अरुचि और शूल आदि लक्षण हों, तो इससे अच्छा उपकार होता है।

☛ परिणामशूल की अवस्था में बिबन्ध, अफरा और कोष्ठ शूल आदि लक्षण या अन्न के आमाशय में अधिक समय तक रहने की दशा में शूल होने पर शंख वटी सर्वोत्कृष्ट लाभ करती है।

☛ जीर्ण बद्धकोष्ठ के विकार में क्षुद्रान्त्र और बृहदन्त्र के सन्धि स्थान पर अन्त्र-पुच्छ, बृहदन्त्र, इन स्थानों में अफरा या कब्ज होकर भयंकर त्रास, शूल, घबराहट आदि लक्षण उत्पन्न होने पर शंख वटी के सेवन से उत्तम लाभ होता है।

☛ यह वटी वात-कफ जन्य दोष, रस दूष्य तथा आमाशय, यकृत, प्लीहा, ग्रहणी क्षुद्रान्त्र, वृहदन्त्र, इन स्थानों पर विशेष प्रभावकारी है।

शंख वटी के नुकसान : Shankh Vati Side Effects in Hindi

1- शंख वटी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।

2- शंख वटी को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें ।

3- गर्भवती महिलाओं , स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को इस आयुर्वेदिक दवा से बचना चाहिए ।

4- अधिक खुराक से पेट में हल्की जलन हो सकती है।

5- हाई बीपी के रोगियों को इस दवा के सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इसमें एक घटक के रूप में नमक होता है।

6- बच्चों की पहुंच और दृष्टि से दूर रखें।

7- ठंडी, सूखी जगह पर रखें।

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