आयुर्वेद के अनुसार भोजन कब, कितना और कैसे करें

Last Updated on March 11, 2022 by admin

कैसे करे भोजन जिससे स्वस्थ हो जीवन :

आयुर्वेद केवल चिकित्सा विज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन का विज्ञान भी है। जीवन की प्रत्येक अवस्था बाल्य, युवा, वृद्धावस्था होया स्वास्थ्य और रोगी की अवस्था हो, इन सभी स्थितियों में क्या खाये क्या पिये जिससे स्वास्थ्य लाभ हो जैसे विषयों का गहन वर्णन मिलता है।

हमारा भोजन वह आधार है जिससे हमारे शरीर का निर्माण होता है। चरक संहिता के अनुसार किसी भी रोग से मुक्ति के लिए उचित आहार लेने का अत्यंत महत्व है। औषधि के प्रयोग से मिलने वाला लाभ उचित आहार लेने से ही मिल सकता है। सही भोजन लेना औषधि लेने से 100 गुना अधिक लाभदायक है। अनुचित खानपान ही शरीर में रोग का मुख्य कारण है।

स्वास्थ्य की सम्पूर्ण परिकल्पना में आहार सबसे महत्वपूर्ण पहलू है जिसके बारे में वैद्यावसंत में आचार्य लोलिम्बराज कहते है –

पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधिनिषेवणैः ।
पथ्येऽसति गदार्तस्य किमौषधिनिषेवणैः ॥

अर्थात् आयुर्वेद ग्रंथों में जैसा आहार बताया गया है वैसा यदि मनुष्य भोजन में ध्यान रखें तो औषधि की क्या जरूरत है. क्योंकि तब रोग आएगा ही नहीं और यदि आयुर्वेद में बताए गए नियम के अनुसार भोजन ग्रहण नहीं करेंगे तो भी औषधियों की जरूरत ही नहीं क्योंकि आहार के शुद्ध ना होने से रोग जाएगा नहीं ।

आयुर्वेद के ही एक और महान आचार्य कश्यप ने कहा है “आहारो महाभैषज्यम उच्यते “अर्थात आहार से बड़ी कोई औषधि इस धरती पर नहीं है । इस प्रकार हितकर आहार-विहार करने वाले पुरुष रोग रहित होकर 36000 रात्रि अर्थात 100 वर्ष तक जीवित रहते हैं। प्रत्येक मनुष्य को आहार कैसा करना चाहिए इसके बारे में आयुर्वेद के ग्रंथो में वर्णित तथ्यों को बता रहे है। यहाँ पर एक बात और उल्लेखनीय है की आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के इतनी तरक्की करने के बावजूद रोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण है की हम सिर्फ आधुनिक दवाओं के सेवन से स्वस्थ नहीं रह सकते है। अगर हम वास्तव में पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना चाहते है तो हमे अपने आयुर्वेद में बताए गए नियमों के अनुसार अपने भोजन करने के तौर तरीकों में बदलाव लाना चाहिए।

एक मनुष्य को कितना आहार लेना चाहिए :

स्वस्थ रखने की इच्छा करने वाले व्यक्तियों के लिए उचित है अपने उदर यानी stomach में आहार के लिए तीन प्रकार का स्थान रखें। जैसे –

  • एक स्थान सॉलिड आहार विहार के लिए,
  • एक स्थान लिक्विड आहार के लिए और,
  • एक स्थान रिक्त रखें,

यानी की सरल भाषा में यो समझे की यदि किसी व्यक्ति के स्टोमक की औसत क्षमता 600 gm भोजन की है तो उसे 200 gm सॉलिड यानी चावल, गेहू आदि से बने पदार्थ, 200 gm दाल, पानी या दूध जैसे लिक्विड पदार्थ लेने चाहिए तथा बाकी 200 gm का स्थान खाली छोड़ देना चाहिए। इतनी कम मात्रा में भोजन से लाभ यह होगा की उस व्यक्ति को मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियां कभी भी नहीं होगी और साथ ही एसिडिटी और गैस जैसे परेशानी भी नही होगी।

मात्रा पूर्वक आहार के लाभ :

  • आहार के द्वारा उदर में दबाव नहीं पड़ता है।
  • हृदय की गति में बाधा नहीं पड़ती है।
  • पार्श्व में फटने जैसी पीडा नहीं होती है।
  • इंद्रिय तृप्ति हो जाती है और भूख प्यास की शांति हो जाती है।
  • बैठना, चलना, हंसना और बातचीत करने में सुख का अनुभव होता है।
  • मोटापा, एसिडिटी और मधुमेह जैसी विमारियां नहीं होती है।

अधिक मात्रा में आहार लेने से क्या हानि होती है :

  • जो पुरुष आहार द्रव्यों को तृप्ति पूर्वक खाकर जलीय पदार्थों को भी पी लेता है, उस पुरुष के आमाशय में स्थित वात-पित्त-कफ सभी मात्रा से अधिक भोजन के कारण एक साथ ही कुपित हो जाते हैं।
  • कुपित वायु ,शूल,आनाह,अंगमर्द, मूर्छा, चक्कर का आना, अग्नि की विषमता,पार्श्व पृष्ट कटी ग्रह, जैसे रोग उत्पन्न करती है।
  • प्रकुपित पित्त, ज्वर ,अतिसार, अन्तर्दाह, प्यास आदि रोग उत्पन्न करता है।
  • प्रकुपित कफ,वमन,भोजन में अरुचि,अपच, शीतज्वर, आलस और शरीर में भारीपन उत्पन्न करता है।

क्या किसी विशेष अवस्था में अच्छा भोजन भी हानिकारक हो सकता है :

केवल बढ़िया और शुद्ध आहार लेना ही स्वस्थ होने की गारंटी नही है। बहुत से ऐसी बाते है जिनके कारण शुद्ध और सात्विक भोजन भी नुकसान पहुंचा सकता है –

  • चिंता, शोक और क्रोध की अवस्था में भोजन करने से मात्रा पूर्वक खाया हुआ आहार का पाचन भी ठीक से नहीं होता है और कई प्रकार के पाचन से संबंधित रोग हो जाए है। ऐसे रोगों को साइकोसोमेटिक रोग कहा जाता है।
  • रात्रि में बहुत बढ़िया और मात्रा में भोजन करने के बाद यदि बिस्तर ठीक नही होने से या तनाव के कारण नींद नहीं आये तो खाये गए आहार का ठीक से पाचन नहीं होता जिससे अगली सुबह कब्ज और अतिसार जैसी बीमारियां हो जाती है।
  • खाने के बाद रात्रि जागरण से भी कई प्रकार के रोग हो जाते है।
  • कोई भोजन चाहे कितना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक क्यो ना हो, यदि उसे अधिक मात्रा में खाते है तो उससे नुकसान होता है।
  • मात्रा पूर्वक और शुद्ध भोजन भी गलत समय में लिया जाए तो नुकसान करता है। जैसे दही स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होने के बावजूद रात्रि में लेने से नुकसान होता है।
  • आहार बहुत हद तक वहां के स्थानीय व्यक्ति पर भी निर्भर करता है। इसलिए दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति को अलग क्षेत्र का खाना पीना कई बार बहुत सी बीमारियों का कारण बन जाता है।
  • आयुर्वेद के अनुसार भोजन बनाते समय देश, काल और प्रकृति तीनों की ओर ध्यान देना परम आवश्यक है।
  • इसके साथ ही साथ व्यक्ति को सभी 6 प्रकार के रसों का सेवन भोजन में करना चाहिए क्योंकि इससे शरीर को हर प्रकार से पौष्टिकता मिलती है।

भोजन करते वक्त किन बातो का विशेष ध्यान रखना चाहिए :

  • यदि कोई व्यक्ति यह सोचता है कि मैं कभी रोगी ना बनू तो उसे सबसे पहले आहार को अपनी दिनचर्या में उचित प्रकार सम्मिलित करना होगा।
  • भोजन खाते समय अधिक पानी नही पीना चाहिए। इससे पाचक अग्नि मंद पड़ जाती है।
  • भोजन खा लेने के कम-से-कम 1 घंटे तक जल का सेवन नही करना चाहिए।
  • भोजन के दौरान प्यास लगने पर एक घूंट से अधिक पानी नही पीना चाहिए।
  • दही खाने के नियम – रात में दही को कभी ना खाएं और गर्म करके – भी नहीं खाएं अगर रात में दही खाने की बहुत इच्छा होतो बिना घी, चीनी, या दाल मिलाये नही खानी चाहिए।
  • आचार्य चरक ने और आगे लिखा है यह मंदजात दही यानी अगर दही ठीक से जमी नही हो तो उसका सेवन नहीं करना चाहिए इसके सेवन से त्रिदोष की वृद्धि होती है।
  • वसंत, ग्रीष्म और शरद ऋतुओं में प्रायः दही का सेवन नहीं करना चाहिए तथा वर्षा हेमंत और शिशिर में इसका सेवन करना चाहिए
  • यदि दही प्रिय व्यक्ति उपर्युक्त नियमों का उल्लंघन करके दही का सेवन करता है तो उसको ज्वर, रक्तपित्त, विसर्प, कुष्ठ, पांडुरोग और कमला आदि रोग हो जाते हैं।
  • भोजन करने के प्रारंभ में सबसे पहले मीठे का सेवन करना चाहिए और बाकी चीज़ों को बाद में। जबकि आजकल अधिकांश लोग इसका उल्टा करते है। इसके लॉजिक यह है की यदि शुरु में ही मीठा खा लेने से मन तृप्त हो जाता है जिससे हम भोजन कम लेते है। भोजन कम लेने से मधुमेह, मोटापा और अन्य लाइफ स्टाइल जन्य बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है।
  • घी से बने सामान खाने के बाद कभी भी ठंडा पानी नही पीना चाहिए। भोजन के बाद भी ठंडा पानी नही पीना चाहिए। इससे जठराग्नि मंद हो जाती है।
  • मांस का सेवन करने से जठराग्नि दूषित हो जाती है।
  • गेहूं या चावल आदि अन्न कम से कम एक साल पुराने ही खाने चाहिए।
  • नमक में सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ होता है। केवल इसी के सेवन करना चाहिए।
  • दालों में सबसे बढ़िया मूंग की दाल होती है। इसके नियमित सेवन करना चाहिए।
  • किसी भी खट्टे चीज़ के साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • दही या दूध को मछली के साथ नहीं खाना चाहिए।

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