Last Updated on January 7, 2024 by admin
1). आमलकी रसायन चूर्ण – पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं।
सेवन विधि – 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
2). आमलक्यादि चूर्ण – सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक।
सेवन विधि – 1 से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।
3). एलादि चूर्ण – उल्टी होना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि में लाभदायक तथा प्यास नाशक है।
सेवन विधि – 1 से 3 ग्राम शहद से।
4). अश्वगन्धादि चूर्ण – धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है।
सेवन विधि – 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
5). अविपित्तकर चूर्ण – अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं।
सेवन विधि – 3 से 6 ग्राम भोजन के साथ।
6). अष्टांग लवण चूर्ण – स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।
7). गंगाधर (वृहत) चूर्ण – अतिसार, पतले दस्त, संग्रहणी, पेचिश के दस्त आदि में।
सेवन विधि – 1 से 3 ग्राम चावल का पानी या शहद से दिन में तीन बार।
8). जातिफलादि चूर्ण – अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी (जुकाम) को नष्ट करता है।
सेवन विधि – 1.5 से 3 ग्राम शहद से।
9). दाडिमाष्टक चूर्ण – स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद।
10). दशन संस्कार चूर्ण – दांत और मुंह के रोगों को नष्ट करता है। मंजन करना चाहिए।
11). नारायण चूर्ण – उदर रोग, अफरा, गुल्म, सूजन, कब्जियत, मंदाग्नि, बवासीर आदि रोगों में तथा पेट साफ करने के लिए उपयोगी।
सेवन विधि – 2 से 4 ग्राम गर्म जल से।
12). पुष्यानुग चूर्ण – स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर, योनी रोग, रक्तातिसार, रजोदोष, बवासीर आदि में लाभकारी।
सेवन विधि – 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।
13). चातुर्जात चूर्ण – अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक।
सेवन विधि – 1/2 से 1 ग्राम दिन में तीन बार शहद से।
14). चातुर्भद्र चूर्ण – बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी।
सेवन विधि – 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।
15). चोपचिन्यादि चूर्ण – उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर।
सेवन विधि – 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।
16). तालीसादि चूर्ण – जीर्ण, ज्वर, श्वास, खांसी, वमन, पांडू, तिल्ली, अरुचि, आफरा, अतिसार, संग्रहणी आदि विकारों में लाभकारी।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम।
17). पुष्पावरोधग्न चूर्ण – स्त्रियों को मासिक धर्म न होना या कष्ट होना तथा रुके हुए मासिक धर्म को खोलता है।
सेवन विधि – 6 से 12 ग्राम दिन में तीन समय गर्म जल के साथ।
18). पंचकोल चूर्ण – अरुचि, अफरा, शूल, गुल्म रोग आदि में। अग्निवर्द्धक व दीपन पाचन।
सेवन विधि – 1 से 3 ग्राम।
19). शतावरी चूर्ण – धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है।
सेवन विधि – 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
20). स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) – हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी।
सेवन विधि – 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।
21). सारस्वत चूर्ण – दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम।
सेवन विधि – 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या दूध से।
22). सितोपलादि चूर्ण – पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा।
सेवन विधि – 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहाद से।
23). पंचसम चूर्ण – कब्जियत को दूर कर पेट को साफ करता है तथा पाचन शक्ति और भूख बढ़ाता है। आम शूल व उदर शूल नाशक है। हल्का दस्तावर है। आम वृद्धि, अतिसार, अजीर्ण, अफरा, आदि नाशक है।
सेवन विधि – 5 से 10 ग्राम सोते समय पानी से।
24). यवानिखांडव चूर्ण – रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी।
सेवन विधि – 3 से 6 ग्राम।
25). लवणभास्कर चूर्ण – यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण, अरुचि, पेट के रोग, मंदाग्नि, खट्टी डकार आना, भूख कम लगना। आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है। बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी।
सेवन विधि – 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व या पश्चात लें।
26). लवांगादि चूर्ण – वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार, जैसे जी मिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक।
सेवन विधि – 3 ग्राम सुबह-शाम शहद से।
27). व्योषादि चूर्ण – श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।
28). सुदर्शन (महा) चूर्ण – सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।
29). त्रिकटु चूर्ण – खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक।
सेवन विधि – 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।
30). त्रिफला चूर्ण – कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
सेवन विधि – 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।
31). श्रृंग्यादि चूर्ण – बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में।
सेवन विधि – 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।
32). अजमोदादि चूर्ण – जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।
33). सुलेमानी नमक चूर्ण – भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
34). सैंधवादि चूर्ण – अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन।
सेवन विधि – 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।
35). हिंग्वाष्टक चूर्ण – पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है।
सेवन विधि – 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
36). अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) – उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक।
सेवन विधि – 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से।
37). माजून मुलैयन – हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा।
सेवन विधि – रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।