Last Updated on October 8, 2020 by admin
वर्तमान युग में बच्चों में बढ़ता हुआ मोटापा चिंता का विषय बना हुआ है। बच्चों में स्थूलता
आधुनिकता की देन है। इस चिंता से उभरने का सर्वोत्तम तरीका है कि बचपन से ही बच्चों के वज़न पर ध्यान दिया जाए। बच्चों में मोटापे को नियंत्रित करने का उत्तम तरीका है, उन्हें गलत जीवनशैली अपनाने से रोकना एवं सही मार्गदर्शन देना।
बच्चों में मोटापा से जोखिम (Health Risks of Overweight Children in Hindi)
- टोरंटो यूनिवर्सिटी में इस विषय पर किए गए अभ्यास से यह पता चला है कि बाल्यावस्था व किशोरावस्था में बच्चों में अधिक मात्रा में संतृप्त मेद (Saturated fats) पाए जाने की वजह से, ग्लूकोज़ की चयापचय क्रिया (Metabolism) में बाधा उत्पन्न हो सकती है। इससे मस्तिष्क को ग्लूकोज़ पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता। जिससे पाचन प्रणाली पर प्रतिकूल परिणाम होते हैं, जो कभी-कभी स्थायी रूप से प्रभावित रह जाती है।
- अधिक वजन वाले बच्चों में दिल की बीमारी (हृदय रोग) होने का खतरा बढ़ जाता हैं।
- अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त बच्चों में सामान्य वजन वाले बच्चों की तुलना में आर्थोपेडिक जटिलताओं का अधिक खतरा होता है।
- अधिक वजन वाले बच्चों को फ्रैक्चर (कूल्हों), मस्कुलोस्केलेटल असुविधा तथा चलने फिरने में असुविधा का सामना करना पड़ सकता है ।
- मोटापे से ग्रस्त बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में अस्थमा होने का खतरा अधिक होता है।
किन कारणों से बढ़ता है बच्चों में मोटापा ? (Baccho me Motape ke Karan in Hindi)
बचपन में मोटापा के संभावित कारण निम्नलिखित हैं –
फास्ट फूड (जंक फूड) का सेवन –
पिछले दशक में संख्यात्मक दृष्टि से यह देखा गया है कि बच्चों में मोटापे के अनुपात में वृद्धि हुई है।
बच्चों के हेल्थ स्पेशालिस्ट इस बात से सहमत हैं कि इसका मुख्य कारण है- शरीर में ज़रूरत से अधिक उष्मांक का होना। बच्चों में खान-पान की गलत आदतें जैसे कि अधिक मात्रा में फास्ट फूड, स्नैक्स व जंक फूड का सेवन मोटापे को बढ़ाता है। इन खाद्यपदार्थों में वसा का प्रमाण बहुत होता है, जिससे इन्हें पचने में ज़्यादा समय लगता है।
शीतपेय (कोल्ड ड्रिंक्स) भी है हानिकारक –
इसके साथ आज-कल शीतपेयों का प्रयोग अधिक होता है। इन शीतपेयों में सिर्फ शक्कर और कार्बोनेटेड पानी होता है, जो पेट में जाकर गैस उत्पन्न करता है। सभी प्रकार के शीतपेयों में पोषणरहित रिक्त उष्मांक होते हैं।
व्यायाम की कमी –
अतिरिक्त कैलोरीज़ को जलाने के लिए व्यायाम अति आवश्यक है। बच्चों में शारीरिक व्यायाम का न होना भी मोटापा बढ़ने का मुख्य कारण है। यही नहीं, ज्यादा प्रमाण में मेदयुक्त आहार लेने से भी मोटापा बढ़ता है। शोधकर्ता इस बात पर विश्वास करते हैं कि हमारा मस्तिष्क ग्लूकोज़ के सहारे काम करता है।यदि मस्तिष्क में ग्लूकोज़ की पूर्ति नहीं हो पाती तो हमारी स्मरणशक्ति और एकाग्रता में कमी आ जाती है।
बोतल का दूध –
संशोधन से यह बात भी साबित हुई है कि वे बच्चे जिन्हें बोतल से दूध पिलाया जाता है, स्थूलता का शिकार अधिक होते हैं। जबकि वे बच्चे जिन्हें माँ का दूध पिलाया जाता है, स्थूलता के कम शिकार होते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो जन्म से लेकर 6 माह तक जिन बच्चों को केवल माँ का दूध पिलाया जाता है, वे अपनी उम्र के 5-6 वर्षों तक स्थूल नहीं होते हैं। उनमें स्थूलता का खतरा 35% कम होता है।
बच्चों का मोटापे से बचाव के उपाय (Prevention of Obesity in Childhood in Hindi)
आइए, अब हम उन तरीकों के बारे में जानकारी लें जिससे बच्चे स्वस्थ, छरहरे (Slim) और भविष्य में आयुष्यमान बनें। बच्चों को छरहरा बनाए रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स –
वज़न घटाने का लक्ष्य रखें –
एक सप्ताह में ज़्यादा से ज़्यादा आधा किलो वज़न घटाने का लक्ष्य रखें यानी बच्चों में उष्मांक को 200-250 से कम करें, जो बहुत ज़्यादा नहीं है। उन्हें पोषणयुक्त आहार दें।
जंक फूड से दूरी बनाएं –
मिठाइयाँ, केक, बिस्कुट, वेफर्स, नमकीन, पेस्ट्रीज़, शीतपेय आदि चीज़ों का सेवन कम कर दें, इनकी जगह बच्चों को फल, मिल्क शेक, ड्रायफ्रूट्स इत्यादि जैसे स्वास्थवर्धक आहार दें।
( और पढ़े – क्या खाये क्या न खाये और भोजन के जरुरी नियम )
खेल और व्यायाम को दिनचर्या में करें शामिल –
बच्चों को बाहरी खेल, साइकिलिंग, स्कूल तक पैदल चलना, फुटबॉल, टेनिस, स्केटिंग, तैरना, संगीत-नृत्य इत्यादि बातों के लिए प्रोत्साहित करें। इन खेलों से उनका व्यायाम होगा तथा शरीर से अतिरिक्त उष्मांक जलने में मदद होगी। इससे उनका वज़न जल्दी और स्वास्थ्यपूर्वक तरीके से कम होगा।
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रेशेदार फल और सब्जियां भी है लाभदायक –
रेशेदार भोजन से बच्चों की भूख को शांत किया जा सकता है। जैसे गेहूँ का ब्रेड या पास्ता, दालें, सूखे फल, ताजे फल और सब्ज़ियाँ इत्यादि। इस प्रकार के रेशेदार खाने से बच्चों के शरीर का मेद ज़ल्दी जल सकता है।
नोट – पाँच साल की उम्र के भीतर के बच्चों को इस तरह का रेशेदार भोजन अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए क्योंकि उनकी पाचनशक्ति मज़बूत नहीं होती। रेशेदार भोजन लोह और कैल्शियम को जज्ब (absorb) करने में बाधा बन सकता है इसलिए छोटे बच्चों को इस तरह के खाद्यपदार्थ कम मात्रा में देना ही उत्तम होता है।
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बच्चों की बढ़ती उम्र में, कुछ वर्षों तक उनकी भोजन की आवश्यकता असामान्य एवं भिन्नभिन्न होती है। हर बच्चे की ज़रूरत अलग होती है। एक माँ की कुशलता के द्वारा बच्चों के अस्वस्थ व बेस्वाद खाने को स्वस्थ व रुचिकर भोजन में बदला जा सकता है। ऐसे भोजन को कुछ नए रचनात्मक एवं विभिन्न पदार्थों के सम्मिश्रण से स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।
यदि भोजन को केवल स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि उसकी पौष्टिकता को जानकर बच्चों को दिया जाए तो इससे अच्छा आहार बच्चों के लिए और क्या हो सकता है! बच्चों के लिए उपयुक्त जीवनशैली का चुनाव करें। आज हर आयुवर्ग के लिए लो कैलोरी डाइट बाजार में उपलब्ध है। यही नहीं, अपने डॉक्टर के परामर्श द्वारा आप अपने बच्चों के लिए उनकी रुचिनुसार डाइट तैयार कर सकती हैं ताकि आपके बच्चे हमेशा स्वस्थ, ऊर्जा से भरपूर व तेजस्वी बने रहें।