विकासशील देशों में लाखों बच्चे ऐसी जानलेवा बीमारियों से मर जाते हैं अथवा अपाहिज हो जाते हैं, जिन्हें टीके लगवाकर रोका जा सकता है। अत: बच्चों को टीके लगवाना अति आवश्यक है। जन्म से एक वर्ष के भीतर बी.सी.जी., डी.पी.टी., पोलियो, खसरा आदि के टीके लगवाना चाहिए, ताकि बच्चों को गलाघोंट, काली खाँसी, धनुषटंकार, पोलियो, खसरा तथा तपेदिक जैसी असाध्य बीमारियों से बचाया जा सके।
बच्चों में नियमित रूप से टीकाकरण कराना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल बच्चे को बहुत-सी जानलेवा बीमारियाँ जैसे – पोलियो, काली खाँसी, दिमागी बुखार, टिटनेस, चिकन पॉक्स इत्यादि से बचाया जा सकता है, बल्कि उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती हैं, जिससे बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास भी अच्छी तरह से होता है।
बच्चों में कौन-कौन से टीके लगवाएँ ? :
बच्चे में जन्म के तुरंत पश्चात् ही टीके लगने शुरू हो जाते हैं तथा ये टीके नियमित रूप से 15-16 वर्ष की उम्र तक लगते हैं। नीचे दी गई तालिका में जन्म से 15 वर्ष की उम्र तक लगने वाले टीकों का विवरण दिया गया है
शिशु टीकाकरण चार्ट (Shishu Tikakaran Chart)
समय | वैक्सीन | नंबर | खुराक | तरीका |
जन्म-तीन माह | बी.सी.जी. | 1 | 0.1 मिली. | इंट्राडरमल |
6-8 सप्ताह तक | डी.पी.टी. | 1 | 0.5 मिली. | इंटामस्कुर |
पोलियो | 1 | 2 बूंद | ओरल | |
12-16 सप्ताह तक | डी.पी.टी | 1 | 0.5 मिली. | इंट्रामस्कुलर |
पोलियो | 1 | 2 बूंद | ओरल | |
18-24 सप्ताह तक | डी.पी.टी. | 1 | 0.5 मिली. | इंट्रामस्कुलर |
पोलियो | 1 | 2 बूंद | ||
7-9 महीने तक | खसरा | 1 | 0.5 मिली. | सबक्यूटेनियस |
डेढ़ से 2 वर्ष तक | डी.पी.टी. | 1 | 0.5 मिली. | इंट्रामस्कुलर |
2 वर्ष तक | टायफाइड | 2 | 0.5 मिली. | सबक्यूटेनियस |
4-5 वर्ष तक | डी.पी.टी. | 1 | 0.5 मिली. | इंट्रामस्कुलर |
5 वर्ष तक | बी.सी.जी. | 1 | 0.1 मिली. | इंट्राडरमल |
अगर किसी बच्चे को कोई टीका उपयुक्त तालिका में अंकित तय उम्र पर नहीं लगा है तो भी वह टीका जिस उम्र पर भी माता-पिता को अहसास हो, लगवाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर जैसे – चिकन पॉक्स का टीका बच्चे को एक वर्ष के तुरंत बाद लगना चाहिए, लेकिन अगर किसी बच्चे में यह इस उम्र में नहीं लगा है तो 15 या 16 वर्ष की उम्र तक कभी भी लगवाया जा सकता है।
बच्चों व शिशु को टीके लगवाना क्यों जरूरी :
शिशु को टीका क्यों लगाया जाता है ?
टीके बच्चे को बहुत-सी घातक बीमारियों से बचाते हैं, साथ-ही-साथ ये बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं जिससे बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास भी बेहतर होता है। आधुनिक शोधों से यह विदित हो चुका है कि जिन बच्चों में टीकाकारण नियमित अंतराल पर 15-16 वर्ष की उम्र तक लगता है, उनका विकास उन बच्चों से अच्छा होता है, जिनको टीकाकरण नहीं लगता है।
क्या टीकाकरण लगवाने का कोई दुष्प्रभाव है ? :
आधुनिक टीकों को बनाने की प्रणाली वैज्ञानिक तौर पर काफी विकसित है, इसलिए तकरीबन 99 प्रतिशत बच्चों में टीका लगवाने पर कुछ नहीं होता है। तकरीबन एक प्रतिशत बच्चों में कुछ दुष्प्रभाव जैसे – हलका बुखार, टीके के लगने की जगह पर मामूली सूजन इत्यादि हो सकता है। ऐसी स्थिति में अपने डॉक्टर को तूरंत सूचित करें।
क्या टीकाकरण किसी रोग विशेषज्ञ की निगरानी में लगवाना जरूरी है ? :
टीकाकरण किसी बाल रोग विशेषज्ञ की निगरानी में ही होना चाहिए। टीका किसी डॉक्टर द्वारा या प्रतिशिक्षित नर्स द्वारा ही दिया जाना चाहिए तथा माता-पिता को टीके के बारे में पूरी जानकारी मिलनी चाहिए।
गर्भवती स्त्रियों को टीका बच्चा होने से एक माह पूर्व अवश्य लगवाना चाहिए। यदि दो टीके पहले लग चुके हों तो बूस्टर लगवाना चाहिए।
बच्चों को खान-पान में लापरवाही, मौसम बदलने, सर्दी-गरमी के असर से तथा विभिन्न जीवाणुओं एवं विषाणुओं के संक्रमण से तरह-तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। आज के समय में बढ़ते प्रदूषण एवं जीवाणुओं तथा विषाणुओं के विभिन्न रूपों में प्रकट होने के कारण बच्चों को बीमारियाँ ज्यादा सताने लगी हैं। इसके बावजूद एक तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि बच्चों को होने वाली ज्यादातर बीमारियाँ ऐसी होती हैं, जिनसे थोड़ी-सी सावधानी बरतकर तथा सही जानकारियाँ हासिल कर बच्चों को बचाया जा सकता है।