नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें उनके रोग और घरेलू उपचार | Newborn Baby Care Tips in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

बड़ी उम्र वालों की तरह शिशु किसी प्रकार की मानसिक चिन्ता, घुटन या तनाव का अनुभव नहीं करते इसलिए उनके रोने के कारण मानसिक नहीं , सिर्फ शारीरिक ही होता है और कष्ट भी शारीरिक ही होता है। अगर शारीरिक कष्ट कम हो तो बच्चा कम रोता है और ज्यादा कष्ट हो तो बच्चा ज्यादा रोता है और जब तक कष्ट होता रहता है तब तक लगातार रोता रहता है। इससे यह निष्कर्ष भी निकलता है कि बच्चे के चुप होने का मतलब यह हुआ कि कष्ट दूर हो गया।

बच्चे रात में क्यों रोते है ? कारण और घरेलू उपचार :

✦ रात्रि में बच्चे के रोने के मुख्यत: दो कारण होते हैं या तो पेट दर्द करना या सर्दी के असर से छाती या पीठ में दर्द होना

यदि दस्त साफ न होता हो, अपच हो और पेट फूला हुआ हो तो गरम तवे पर कपड़ा तह करके गर्म करें और अपने हाथ पर रख कर देख लें कि ज्यादा गर्म न हो, ताकि बच्चा सहन कर ले, इस कपड़े से सेक करने से पेट, छातीव पीठ के दर्द में तात्कालिक लाभ हो जाता है।

छाती या पीठ में दर्द हो तो सरसों के अधी कटोरी तेल में दो कली लहसुन की डाल कर खूब गरम करके ठंडा कर लें। इस तेल से छाती व पीठ में हल्के-हल्के मालिश करें और गरम कपड़े से सेक कर दें। पीठ व पसलियों को हवा न लगने दें। बच्चे को आराम हो जाएगा।

✦ बच्चा कान में दर्द होने पर भी रोता है। इसी तेल की 2-2 बूंद कानों में डालने और बहुत हल्के गरम कपड़े से थोड़ी देर सेक करने से बच्चे को आराम मिलता है और बच्चा चुप होकर सो जाता है।

✦ बच्चे का पेट फूला हो और वायु न निकल रही हो तो सेकने के बाद दो चम्मच पानी में ज़रा सी हींग डाल कर पतला-पतला घोल लें और नाभि के आसपास 2-2 इंच (गोलाकार) पेट पर लेप कर दें। इससे गैस निकल जाएगी।

✦ कभी-कभी पेट में कृमि हो जाने पर वे कृमि गुदा मुख तक आ कर गुदा में काटते हैं इससे व्याकुल होकर बच्चा रोता है। ऐसी सूरत में घासलेट के तेल में रुई का फाहा भिगो कर गुदा मुख पर लगाने और अंदर कर देने से कृमि मर जाते हैं। नमक का छोटा सा टुकड़ा गुदा के अंदर रखने से भी कृमि मर जाते हैं और बच्चा कष्ट मुक्त होने से चुप हो जाता है।

✦ रोते हुए बच्चे के सारे शरीर का बारीकी से निरीक्षण करके रोने के कारण को समझना चाहिए ताकि उस कारण को दूर करने का उचित उपाय किया जा सके। कई बार बच्चे के कपड़े में कोई चींटी या चींटा घुस जाता है और काट लेता है। उस स्थान पर त्वचा लाल हो जाती है। इस पर फिटकरी का पानी या पानी में लोहा घिस कर लगाने से आराम हो जाता है। इसी प्रकार घरेलू उपाय करके बच्चे की पीड़ा के कारण का निवारण किया जा सकता है।आइये जाने nawjat shishu ki dekhbhal kaise kare in hindi

नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें : newborn baby care tips in hindi

अब कुछ ऐसे उपयोगी नियम प्रस्तुत कर रहे हैं। जो छोटे शिशु का पालन-पोषण करने में हितकारी
व सहयोगी सिद्ध होंगे और जिनका ज्ञान सभी नवयुवती माताओं को होना ही चाहिए। इस लेख में 3 वर्ष तक की आयु वाले शिशुओं की देखभाल संबंधी नियम प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

(1) छह मास तक शिशु पूरी तरह माता के आश्रय में रहता है, माता के दूध पर ही निर्भर रहता है और इस काल में उसका शरीर धीरे-धीरे सुडौल और पुष्ट होता है इसलिए माता को बच्चे की देखभाल पूरी सावधानी से करनी चाहिए। उसे अपना दूध कम से कम नौ मास तक तो पिलाना ही चाहिए। दूध पिलाने वाली माता को अपने खानपान और रहन सहन को ठीक और पोषण करने वाला रखना चाहिए ताकि उसका दूध पीने वाला शिशु भी स्वस्थ बना रहे। बदपरहेजी करने, खटाई, तेज मिर्च मसालेदार पदार्थ और मादक द्रव्य का सेवन करने वाली माता का दूधपीने वाला शिशुरुग्ण रहता है। शिशु स्वस्थ और सुडौल शरीर वाला रहे इसके लिए माता का स्वस्थ और निरोगी रहना ज़रूरी है।

(2) बच्चे को ठीक और नियमित समय पर दूध ज़रूर पिलाना चाहिए । न इसमें कमी और देरी करना अच्छा है और न अधिक और जल्दी-जल्दी पिलाना ही अच्छा है। दूध पिलाते समय माता का शरीर गर्म न हो, मन में क्रोध, शोक, चिन्ता और ईष्र्या का भाव न हो। मां का दूध पर्याप्त मात्रा में न हो तो हो तो गाय या बकरी का दूध दिन में कई बार, लेकिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाना चाहिए।

(3) दूध पिलाने के बाद शिशु को ज्यादा हिलाना-डुलाना, उछालना या पेट के बल सुलाना ठीक नहीं। पेट दबने या जोर से झटके लगने से बच्चा उल्टी करके दूध फेंक देता है।

(4) कुछ लोग, ज्यादा लाड़ बघारते हुए बच्चों को गलत ढंग से खिलाते हैं जैसे ऊपर उछालना, उल्टा-सीधा करना और हाथ पकड़कर उठा लेना, चक्कर खिलाना आदि। ये सब बहुत हानिकारक काम हैं, अत: ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए।

(5) छह मास का होने पर शिशु को अन्न खिलाना शुरू कर दिया जाता है। शुरू में हल्का, सुपाच्य, मधुर रस वाला आहार जैसे दूध-दलिया, खीर, दूध-शहद, मीठे फलों का गूदा आदि देना चाहिए।

(6) छह मास से कम आयु के बच्चे को उठाते समय गर्दन व सिर के नीचे हाथ लगा लेना चाहिए ताकि गर्दन में झटका न लगे। बच्चे को बैठाना या बैठी हुई पोजीशन में न उठा कर लेटी हुई पोजीशन में ही रखना चाहिए। जब बच्चा स्वयं सशक्त होकर बैठने लगे तभी बैठाना चाहिए वरना रीढ़ की हड्डी को हानि पहुंचेगी।

(7) बच्चा साल भर का होने आए और उसके दांत निकलने लगें तब सुहागा फुला कर, बारीक पीस कर, शहद में मिलाकर, मसूढ़ों पर धीरे-धीरे मलना चाहिए। इससे दांत सरलता से निकल आते हैं। दांत निकलते समय, बच्चे को ज्वर होना, अपच होना, हरे पीले दस्त करना, दूध फेंकना, चिड़चिड़ाना, रोना आदि शिकायतें होती हैं, जिनका कारण दांत निकलना भी हो सकता है। इस काल में शिशु को दिन में 3-4 बार आधा-आधा चम्मच चूने के पानी का शर्बत बना कर या टीथिंग सायरप नियमपूर्वक 5-6 माह तक पिलाना चाहिए।

(8) बच्चे को डराना, डांटना या धमकाना उचित नहीं। दीवार पर पड़ने वाली परछाई दिखाना ठीक नहीं, इससे बच्चा डर जाता है और बीमार पड़ जाता है।

(9) डिब्बे का दूध पिलाना पड़े तो सफाई का पूरा ध्यान रखें। जब शीशी में दूध भरना हो तब शीशी को गरम पानी से धो लें और शीशी के खाली होने पर गरम पानी से धो कर ही रखें। दूध का डिब्बा अच्छी कंपनी और अच्छी क्वालिटी वाला होना चाहिए।

(10) बच्चे को कभी अकेला न छोड़े। उसके आसपास चाकू, छुरी, ब्लेड, माचिस, सिक्के आदि छोटी चीजें न छोड़ें क्योंकि बच्चा हाथ में आई चीज को मुंह में रख लेता है।

(11) बच्चा चलने लगे तब उसका विशेष ध्यान रखें कि वह अकेला न रहे, किधर भी चला न जाए। उसे अपनी भाषा बोलना सिखाते समय इस बात का ध्यान रखें कि वह तुतलाना या हकलाना न सीख लें । साफ और सही उच्चारण करना सिखाएं।

(12) उसे बाजार की चीजें दिलाने या खिलाने का शौक न लगाएं। यह आदत बुरी होती है। एक तो बाजारू चीजें स्वास्थ्य खराब कर सकती हैं, दूसरे, बड़ा होकर बच्चा ज़िद करके मनचाही चीजें मांगने लगता है और लेकर ही मानता है।

(13) सोते हुए बच्चे को अचानक न जगाएं, उसके पास अचानक जोर की आवाज न करें। बच्चे को जुलाब न दें। दांत निकलते समय होने वाले उपद्रव या रोग की दवा न देकर उसे टॉनिक, कैल्शियम और पोषक आहार ही देना चाहिए। दांत व दाढ़ निकल आने पर सब उपद्रव खुद ब खुद ठीक हो जाते हैं।

नवजात शिशु के रोग और उनके घरेलू उपचार : newborn baby health problems in hindi

बच्चों को आए दिन छोटी-मोटी व्याधियां हो जाया करती हैं और बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है जबकि ऐसी मामूली व्याधियों की चिकित्सा जानकार बुजुर्ग महिलाएं स्वयं ही कर लिया करती हैं। नवयुवती माताओं की जानकारी के लिए कुछ घरेलू और परीक्षित उपाय यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

1- शिशु को भूख न लगना व अपच के घरेलू इलाज :
जब शिशु अन्न खाने लगे तब अपच होने की स्थिति में यह घुटी घिस कर चटाना चाहिएअतीस, आम की गुठली का गूदा, नागरमोथा, काकड़ासिंगी और सोंठ-इनको 25-25 ग्राम साबुत ही लाकर अलग-अलग रखें। एक-एक करके इनको साफ पत्थर पर, पानी के साथ चंदन की तरह, बराबर-बराबर संख्या में घिस कर लेप कटोरी में डाल कर मिला लें । आधा (छोटा) चम्मच लेप सुबह-शाम शिशु के मुंह में डाल कर ऊपर से 1-2 चम्मच पानी डाल दें या माता अपना दूध पिला दें ताकि वह लेप पेट में पहुंच जाए। यदि बच्चे को पतले, हरे पीले व फटे दस्त बार-बार होते हों तो इस प्रयोग को दिन में 3-4 बार भी दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में इस नुस्खे में जायफल घिस कर मिला लेना चाहिए। जायफल का प्रयोग पतले दस्त होने पर ही करें। दस्त बंध कर आने पर जायफल का प्रयोग बंद कर दें सिर्फ घुटी का प्रयोग जारी रखें। बच्चे का पालन क्रम सुधार कर दस्त को बांधने वाली यह घुटी कई बार की परीक्षित घरेलू दवा है।

2-शिशु के पेट में दर्द व मरोड़ के घरेलू इलाज :
पेट का दर्द, पेट का फूलना और हरे पीले दस्त होना-इन व्याधियों को दूर करने के लिए अजवायन के 5-7 दाने मां या बकरी के दूध में पीस कर चटाना चाहिए। शिशु के पेट पर नाभि के चारों तरफ हींग के पानी का लेप करने से आराम होता है। आधी कटोरी पानी में आधे चावल बराबर हींग घोल कर यह पानी तैयार करें। ( और पढ़ेबच्चों के पतले दस्त में तुरंत राहत देते है यह 9 घरेलू इलाज )

3- शिशु के छाती या पीठ में दर्द के घरेलू इलाज :
छाती या पीठ में दर्द हो, बच्चा खांसता हो, गले में कफ बोलता हो तो सरसों के तेल में महीन पिसा हुआ जरा सा सेंधा नमक मिलाकर, छाती या पीठ पर लगा कर, हल्के-हल्के मसलें व गरम कपड़े से थोड़ा सेक कर दें। थोड़ा तेल गुदा के मुंह पर भी लगा दें। आराम हो जाएगा।

4- शिशु के पेट में कीड़े के घरेलू इलाज :
अरण्ड के पत्तों का रस बच्चों की गुदा में कुछ दिन लगाने से चुरने कीड़े मर जाते हैं। इसके साथ काले जीरे का जरा सा चूर्ण शहद में मिलाकर दिन में एक बार चटाना चाहिए।

ये सभी घरेलू उपाय छोटी-मोटी और साधारण व्याधियों के लिए उपयोग में लेना चाहिए। यदि इनका प्रयोग करने पर भी लाभ न हो और शिशु स्वस्थ न हो तो तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ या कुशल चिकित्सक के पास शिशु को ले जाकर दिखा लेना चाहिए । एक बात खयाल में रखें कि शिशु खुद तोबता नहीं पाता कि उसे क्या तकलीफ है और ऐसे में आप भी यह ठीक से समझ न पाएं कि बच्चे को क्या व्याधि है तो फिर यही उचित होगा कि बच्चे की चिकित्सा किसी अच्छे चिकित्सक से ही कराई जाए। घरेलू इलाज की महत्ता और उपयोगिता तभी सिद्ध होती है जब व्याधि ठीक से समझ में आ जाए और उस व्याधि को दूर करने वाला लाभप्रद तथा आजमाया हुआ परीक्षित इलाज आप जानते हों और रोगी को निरापद रूप से रोग मुक्त कर सकें, अन्यथा बेकार ही अंधेरे में लठ घुमाना उचित नहीं होता।

(वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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