छोटे बच्चों के लिए स्वास्थ्यवर्धक आहार मां का दूध :
बच्चे के जन्म के बाद 4 से 6 महीनों तक मां का दूध पिलाना ही बच्चे के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है। मां का दूध पीने वाले बच्चे को गर्मी के मौसम में भी स्तनपान के द्वारा पानी की मात्रा की पूर्ति हो जाती है। ऐसे में बच्चे को ग्लूकोस का पानी देना आवश्यक नहीं होता है।
बच्चे के जन्म के 4 से 6 महीने तक मां का दूध ही पिलाना चाहिए और 4 से 6 महीने के बाद ही मां का दूध देने के साथ हल्का भोजन बच्चे को देना चाहिए।
जन्म के 1 घंटे बाद ही बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए। नवजात शिशु को आमतौर पर निश्चित मात्रा में कोलेस्ट्राल की आवश्यकता होती है जो बच्चे के जन्म देने के बाद मां के स्तनों से निकले वाले पीले गाढ़े दूध से मिलता है। स्तनों से पीले गाढ़े रंग का दूध कुछ दिनों तक आता रहता है। अत: बच्चे को वह दूध देना अत्यधिक हितकारी होता है क्योंकि इससे बच्चे को पूर्ण पोषण मिलता है।
बच्चे के जन्म के बाद पहले स्तनपान ही कराना चाहिए। इससे स्तनों में दूध पर्याप्त मात्रा में बनता रहता है जिससे बच्चे को दूध की कमी नहीं होती और बच्चे को भरपूर दूध मिलता है।
जितना ज्यादा से ज्यादा हो सकता हो बच्चे को मां का दूध ही पिलाना चाहिए और कृत्रिम दूध को पिलाने से बचना चाहिए। कृत्रिम दूध बच्चे के लिए हानिकारक होता है और इससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
बच्चे को स्तनपान लगभग 2 वर्षो तक कराना चाहिए। इस तरह बच्चे को मां का दूध मिलने से उसका शारीरिक विकास ठीक से होता है।
बच्चे के स्वास्थ्य के लिए मुख्य बातें :
शिशु के जन्म के बाद कुछ दिनों तक माता के स्तनों से जो कोलोस्ट्राल मिला पीले रंग का दूध आता है वही पिलाना चाहिए। शुरू में जो स्तनों से दूध निकलता है वह अत्यंत लाभकारी होता है। इस पीले गाढ़े दूध को पिलाने के बाद बच्चे को किसी भी प्रकार की कोई कोलोस्ट्राल देने की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए स्तन से जो भी पीले रंग का गाढ़ा दूध निकले उसे बच्चे को पिला दें क्योंकि इसमें सभी विटामिन मिले होते हैं। इसके सेवन से बच्चे के जन्म के कुछ दिनों तक हो सकने वाले कई संक्रमण रोग से बचाव भी होता है।
बच्चे के जन्म के समय मां के स्तनों से जो पीला गाढ़ा दूध आता है उसमें इम्युनोग्लोबुलिन भी होता है जो शिशु के अपरिपक्व आंतों की परतें बनाती है तथा बच्चे के शरीर में खून के बहाव में प्रोटीन के कणों को मिलने से रोकती है। इससे अधिक उम्र होने पर उत्पन्न दमा व एक्जिमा आदि रोग से बचाव होता है।
मां के दूध का बच्चे के लिए महत्व (shishu ke liye maa ke dudh ke fayde)
- जन्म के बाद बच्चे को मां का दूध देने से पहले किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ का सेवन करना हानिकारक होता है जैसे- शहद, पानी, ग्लूकोज मिला पानी कृत्रिम दूध आदि। इस तरह के खाद्य पदार्थ देने के बाद बच्चे को मां का दूध अच्छा नहीं लगता जिससे बच्चे को वह पौष्टिक दूध नहीं मिल पाता है जो उसे मिलना चाहिए।
- बच्चे को जन्म के 4 से 6 महीने में किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ देने से बच्चे को गम्भीर रोग हो सकता है। बच्चे के जन्म के पहले महीने में यदि बच्चे को पशु या पॉउडर का दूध दिया जाता है तो उस बच्चे को एलर्जी हो सकती है। बच्चे को यदि दूध पीने के लिए बोतलों में दिया जाता है तो उसे उसकी आदत लग जाती है जिससे वह स्तनों का दूध नहीं पीना चाहता। बच्चे के दूध न पीने से मां के स्तन में दूध भर जाता है जिससे स्तनों में तनाव पैदा होकर संक्रमण हो जाता है। स्तनपान करने वाले बच्चे को जन्म के 4 से 6 महीने तक फलों का रस, सूप, कृत्रिम दूध, अन्न और विटामिन की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि वह केवल मां का दूध पीकर ही स्वस्थ व तंदुरुस्त रहता है।
- जन्म के 4 से 6 महीने तक बच्चे के भोजन की पूर्ति केवल स्तनपान से ही होती है। बच्चे के लिए मां का दूध जितना पौष्टिक और अच्छा होता है उतना गाय का दूध, पाउडर का दूध एवं अन्न चीजों में नहीं होता। स्तनपान कराने से बच्चे को तेज गर्मी के मौसम में भी पर्याप्त पानी की मात्रा मिलती रहती है। अत: बच्चे के प्यास को दूर करने के लिए अन्य जल आदि की आवश्यकता नहीं होती। स्तनों का दूध शिशु की रक्षा करता है और रोग आदि होने से बचाता है। अत: शिशु के जन्म के पहले 4 से 6 महीने तक मां का दूध ही पीने को देना चाहिए। बच्चे के जन्म के पहले 4 महीने में स्तनपान करने के साथ दी जाने वाले भोजन बच्चे को हजम नहीं होता जो बच्चे के लिए हानिकारक होता है। स्तनपान करने वाले बच्चे को विटामिन-सी या अन्य विटामिन की आवश्यकता नहीं होती। यदि ऐसा लगता है कि मां के दूध में विटामिन व पौष्टिक तत्व की कमी है तो बच्चे को किसी प्रकार के विटामिन देने के स्थान पर मां को विटामिनयुक्त भोजन देना चाहिए जिससे मां के दूध में भरपूर विटामिन बनकर बच्चे को मिल सके।
- नवजात शिशु को कभी भी ग्राइप वाटर का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें मद्य की अवांछित मात्रा होती है।
- बच्चे के जन्म के 4 से 6 महीने तक स्तनों का दूध सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। एक शिशु जो केवल मां का दूध पीता है और अन्य कुछ भी नहीं लेता वह 24 घंटे में 6 बार या अधिक बार मूत्र त्याग करता है।
- जिन स्त्रियों को ऐसा लगता है कि उसके स्तन में भरपूर दूध न मिलने के कारण बच्चा दूध के लिए रोता रहता है उसका यह सोचना बिल्कुल गलत है क्योंकि कि बच्चे केवल दूध न मिलने के कारण ही नहीं रोता है बल्कि गोद में रहने के लिए भी रोता रहता है। कुछ बच्चे केवल आराम के लिए ही स्तनपान करते हैं। बच्चे के नैप्कीन गीली हो जाने के कारण या पेट में दर्द होने के कारण भी वह रोता रहता है। सर्दी या गर्मी लगने के कारण भी बच्चे में रोने के लक्षण उत्पन्न होते हैं। यदि बच्चे का शरीर स्वस्थ न हो तो भी वह रोता रहता है।
- कई बार मां को यह गलत धारणा हो जाती है कि उसे पर्याप्त दूध न होने के कारण ही बच्चे अपने हाथ को मुंह में डालता रहता है एवं अंगुलियां चूसता रहता है। ऐसे में यदि बच्चा अधिक देर तक स्तनपान करता है या स्तनपान तेजी से करता है जिससे स्तन नर्म हो जाता है तो ऐसे में ध्यान देना चाहिए क्योंकि इसका कारण बच्चे का रोगग्रस्त होना भी हो सकता है। जो बच्चा केवल स्तनपान ही करता है वह दिन भर में लगभग 6 या इससे अधिक बार पेशाब करता है। ऐसे में समझना चाहिए कि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध मिल रहा है। यदि बच्चा स्तनपान करके इतनी बार पेशाब न करें तो समझना चाहिए कि बच्चे को कोई रोग है और जल्दी डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
- बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध मिल रहा है या नहीं इसका पता लगाने के लिए बच्चे का वजन कराते रहना चाहिए। कभी-कभी देखा गया है कि कुछ बच्चे का वजन महीने में लगभग 1 किलो बढ़ जाता है जबकि कुछ बच्चे का वजन महीने में सिर्फ 500 ग्राम ही बढ़ पाता है। अत: बच्चे का वजन कराते समय ध्यान दें कि उसका वजन एक ही वजन करने वाले मशीन से कराएं।
- मां को अपना दूध बढ़ाने के लिए कभी भी औषधियों का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि अधिक पौष्टिक व विटामिन युक्त भोजन करके दूध को बढ़ाना चाहिए। बच्चे को नियमित स्तनपान कराना और बोतल का दूध न देने से यह सिद्ध होता है कि स्तनों में भरपूर दूध हो रहा है।
- जुड़वां या जल्दी प्रसव होने वाले बच्चे को स्तनों के द्वारा मर्यादित स्तनपान करवा सकते हैं परन्तु बच्चा यदि स्तनों से दूध खिंच सकता है तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती। नियमित स्तनपान कराना ही दोनों बच्चों के लिए पर्याप्त होता है। दोनों बच्चे को स्तनपान कराते समय ध्यान रखें कि एक बच्चे के एक स्तन से तथा दूसरे बच्चे को दूसरे स्तन से ही दूध पिलाना चाहिए जो बच्चा दूध निगल सकता है परन्तु दूध खिंच नहीं सकता उसे स्तनों से निकाला हुआ दूध कप में डालकर पिलाना चाहिए। जो बच्चा दूध को निगल भी नहीं सकता उसे डॉक्टर की सलाह से स्तनों से निकाला हुआ दूध नली के द्वारा बच्चे को पिलाएं।
- स्तन दूध से बच्चे को कोई हानि नहीं होती है परन्तु बाहरी दूध के सेवन से दस्त लगना, उल्टी होना आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। दूध पीने वाले कुछ बच्चे को ही हरे रंग के पतले दस्त आते हैं या श्लेष्मा मिला दस्त आता है। कभी-कभी बच्चा सेवन किया हुआ दूध को दही के थक्के के रूप में बाहर निकाल देता है। ऐसे में बच्चे का स्वस्थ सामान्य बना रहता है और पेशाब भी आता रहता है। यह बच्चे में उत्पन्न कोई रोग नहीं होता है बल्की सामान्य शारीरिक क्रिया होती है। अत: ऐसे में उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती और नहीं ही स्तनपान कराना ही बन्द करना चाहिए।
- कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो मां का दूध पीते रहने पर 3 से 5 दिनों में एक बार दस्त आता है लेकिन उसका मल कठोर नहीं होता। अत: इसे कब्ज नहीं समझना चाहिए और उपचार के लिए बच्चे को दवा नहीं देना चाहिए।