बच्चों में खून की कमी के कारण, लक्षण और उपचार

Last Updated on January 1, 2022 by admin

बच्चों में खून की कमी या एनीमिया रक्ताल्पता काफी खतरनाक समस्या है। इससे उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है। एनीमिया के शिकार बच्चों के वजन और लंबाई में वृद्धि रुक जाती है। वे पढ़ाई-लिखाई से दूर भागना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर माता-पिता यह नहीं समझ पाते हैं कि बच्चा रक्ताल्पता की वजह से ऐसा व्यवहार कर रहा है। जबकि बहुत से माता-पिता जानते हुए भी एनीमिया को गंभीरतापूर्वक नहीं लेते हैं।

बच्चों में एनीमिया अर्थात क्या ? :

सामान्यतः यदि किसी बच्चे का हीमोग्लोबिन 12 ग्राम से कम है तो इसे एनीमिया कहा जाएगा, लेकिन बच्चे में एनीमिया के लक्षण हीमोग्लोबिन के 12 ग्राम के स्तर से नीचे आने से पहले ही दिखने लगते हैं। इसका कारण यह है कि शरीर की अन्य कोशिकाओं में लौह तत्त्व की कमी पहले होती है।

अपने देश में एनीमिया केवल गरीबों के बच्चों में ही नहीं, संपन्न परिवारों के बच्चों में भी आम बात है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, तकरीबन 30-40 प्रतिशत बच्चों को एनीमिया होता है। इनमें से तकरीबन 5-10 प्रतिशत बच्चों को गंभीर एनीमिया (पाँच ग्राम के स्तर से कम हीमोग्लोबिन) होता है। ( और पढ़े – हीमोग्लोबिन व खून की कमी दूर करने के 46 उपाय )

बच्चों में खून की कमी के कारण :

बच्चों में एनीमिया क्यों होता है ?

बच्चों में खून की कमी कई वजहों से भी हो सकती है जैसे –

  • जन्म के साथ आयरन की कमी ।
  • खून का रिसाव।
  • शरीर द्वारा आयरन का अवशोषित कम कर पाना ।
  • जन्म के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली की कमी ।
  • जन्म से रक्त संबंधी विकार।
  • शरीर में फोलेट की कमी।
  • शरीर में विटामिन बी-12 की कमी।

एनीमिया की दूसरी सामान्य वजह थैलेसीमिया है। यह आनुवंशिक बीमारी है जिसमें हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया ही दोषपूर्ण हो जाती है। थैलेसीमिया में सबसे प्रमुख है बीटा थैलेसीमिया, जिसमें हीमोग्लोबिन की बीटा चेन में गड़बड़ी होने की वजह से थैलेसीमिया हो जाती है।

बच्चों में खून की कमी के लक्षण :

बच्चों में एनीमिया के क्या लक्षण होते हैं ?

बच्चों में खून की कमी का कुछ लक्षणों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जैसे –

  • बच्चे की भूख में कमी,
  • वजन व लंबाई में वृद्धि रुक जाना,
  • चिड़चिड़ापन,
  • पढ़ाई में मन न लगना ।
  • बच्चे को हमेशा कमजोरी और थकान का महसूस होना।
  • चक्कर आना।
  • सिर में दर्द ।
  • नाखूनों का कमजोर होना ।
  • त्वचा का पीला पड़ना।
  • एनीमिया होने पर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे बच्चे में न्यूमोनिया, पेट के संक्रमण, टायफाइड आदि जल्दी-जल्दी होते हैं।
  • अगर हीमोग्लोबिन पाँच ग्राम के स्तर से कम हो गया है, तो बच्चे का दिल सही तरह से काम करना बंद कर सकता है।

एनीमिया के प्रकार :

वैसे तो एनीमिया के कई प्रकार हैं, लेकिन अपने देश में दो तरह का एनीमिया सबसे ज्यादा होता है-लौह तत्त्व की कमी या पोषण संबंधी एनीमिया और थैलिसीमिया।

एनीमिया के शिकार बच्चों में 90 प्रतिशत से ज्यादा को लौह तत्व की कमी या पोषण संबंधी एनीमिया होता है। अगर बच्चे की खुराक में आयरन व प्रोटीन उपयुक्त मात्रा में नहीं हैं, तो बच्चे को इस तरह का एनीमिया हो सकता है।

बच्चों में आयरन की दैनिक आवश्यकता :

नवजात शिशु के शरीर में आयरन की मात्रा 0.5 ग्राम होती है, जबकि वयस्कों के शरीर में आयरन की मात्रा पाँच ग्राम होती है। इसका तात्पर्य यह है कि नवजात शिशु के वयस्क होने तक उसे लगभग 4.5 ग्राम आयरन की जरूरत पड़ेगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करीब एक मिलीग्राम आयरन प्रति दिन आँतों से अवशोषित होकर शरीर में पहुँचना चाहिए, क्योंकि खुराक में मौजूद आयरन का केवल 10 प्रतिशत भाग ही आँतों से अवशोषित हो पाता है। इसलिए नवजात शिशु के वयस्क होने तक खुराक में तकरीबन 10 मिलीग्राम आयरन प्रतिदिन होना चाहिए। इसके अलावा खुराक में प्रोटीन की मात्रा भी पर्याप्त होनी चाहिए, ताकि शरीर में हीमोग्लोबिन बन सके। हीमोग्लोबिन बनने के लिए आयरन और प्रोटीन, दोनों की आवश्यकता होती है। ( और पढ़े – एनीमिया (रक्ताल्पता) में क्या खाएं क्या न खाएं )

बच्चों में खून बढ़ाने के घरेलू उपाय :

बच्चों का रुझान बाजार में मिलने वाले फास्ट फूड, टॉफी, चॉकलेट, नमकीन, भुजिया, पिज्जा, शीतल पेय आदि की तरफ ज्यादा रहता है, लेकिन इन खाद्य पदार्थों में प्रोटीन व आयरन बहुत ही नगण्य मात्रा में होते हैं। इस कारण ऐसी चीजें ज्यादा खाने वाले बच्चे एनीमिया का शिकार हो जाते हैं। बच्चे को एनीमिया जैसी खतरनाक बीमारी से बचाने के लिए बाजार में उपलब्ध फास्ट फूड आदि से दूर ही रखना चाहिए। इसके बदले उन्हें घर में उपलब्ध भोजन; जैसे-अनाज, सब्जियाँ, फल, दूध आदि उपयुक्त मात्रा में देना चाहिए।

1). सहजन – सहजन के पत्तों का साग बनाकर खाने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।

2). चीकू – प्रतिदिन चीकू खाने से शरीर में खून की कमी को दूर होती है।

3). टमाटर – गाजर, पालक और टमाटर का जूस प्रतिदिन आधा कप की मात्रा में निकालकर पीने से खून की कमी को दूर होती है।

4). आंवला – आंवले के रस में 1 चम्मच शहद और थोड़ा-सा पानी मिलाकर पीने से खून की कमी को दूर होती है।

5). अनार – अनार के जूस में सेंधा नमक और एक चुटकी काली मिर्च मिलाकर पीने से लाभ होता है।

6). फालसा – फालसा फालसा खाने से खून बढ़ता है । 40 दिन तक इसका नियमित सेवन करें।

7). पपीता – शरीर में खून की कमी होने पर नियमित कुछ दिनों तक पपीते का सेवन लाभप्रद होता है।

8). आम – आम के रस में शहद मिलाकर पीने से खून की कमी दूर होती है।

9). आलूबुखारा – खून की कमी (एनीमिया) में आलूबुखारे का रस निकालकर सुबह-शाम पीना लाभप्रद होता है।

10). चुकंदर – चुकंदर का रस निकालकर प्रतिदिन पीने से खून की कमी दूर होती है ।

11). गाजर – बच्चों के एनीमिया से पीड़ित होने पर गाजर के रस में पालक का रस मिलाकर पिलाने से बहुत लाभ मिलता है।

12). गन्ना – गन्ने के रस में आंवले का रस और शहद मिलाकर सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है।

13). पौष्टिक भोजन – पौष्टिक आहार का सेवन खून बढ़ाने में मददगार है ।

14). अंगूर – प्रतिदिन अंगूर का जूस पीने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।

15). गिलोय – गिलोय रस के सेवन से खून की कमी दूर होती है।

बच्चों में खून की कमी का उपचार :

बच्चों में एनीमिया का उपचार कैसे किया जाता हैं?

अगर किसी बच्चे को एनीमिया हो गया है तो तुरंत किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से उसकी जाँच करानी चाहिए, क्योंकि बच्चे को एनीमिया के साथ-साथ कुपोषण,पेट या शरीर के किसी अन्य हिस्से में संक्रमण, रिकेट्स (हड्डियों की बीमारी) आदि की शिकायत भी हो सकती है। साथ ही, बच्चे को आयरन व बी-कॉम्प्लेक्स की कितनी मात्रा दी जाए-यह उसके वजन पर निर्भर करता है और इनकी उचित मात्रा डॉक्टर ही बता सकता है।

बच्चे की खुराक में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ भी उपयुक्त मात्रा में होने चाहिए।

शुरू में बच्चे की भूख एनीमिया की वजह से काफी कम होती है, इसलिए बच्चे को भूख लगने के लिए कोई दवा भी दी जा सकती है। सामान्यतः बच्चे को ठीक होने में छह माह से लेकर एक वर्ष तक लग सकता है। माता-पिता को इस दौरान काफी संयम रखने की जरूरत होती है। अगर एनीमिया से पीड़ित किसी बच्चे का समय से इलाज नहीं कराया गया तो उसकी लंबाई जितनी संभव हो सकती है, उसमें 15-20 सेंटीमीटर कम रह सकती है।

बच्चे में थैलेसीमिया से उत्पन्न एनीमिया में बीमारी के लक्षण पाँच-छह माह की उम्र से ही प्रकट होने लगते हैं। इसका पता एचबी इलेक्ट फोरेंसिक या पीसीआर से लगाया जाता है। इस बीमारी का जितनी जल्दी पता लग सके, उतना ही बेहतर रहता है। इसके इलाज में बच्चे को नियमित रूप से खून चढ़ाना पड़ता है, ताकि उसका हीमोग्लोबिन स्तर 10 ग्राम के स्तर के आस-पास बना रहे और एनीमिया के चलते उसके शरीर या किसी अंग को नुकसान न हो। ऐसे बच्चे को हर 3-4 सप्ताह पर खून की आवश्यकता होती है। खून अच्छे केंद्र से ही लेना चाहिए, क्योंकि जो खून चढ़ाया जा रहा है-यह पूरी तरह जाँचा-परखा होना चाहिए।

नियमित रूप से खून चढ़ाने पर बच्चों के शरीर में आयरन की मात्रा ज्यादा हो जाती है। शरीर में जरूरत से ज्यादा आयरन हो जाना भी नुकसानदेह होता है। आयरन की मात्रा जाँचने के लिए हर तीन महीने पर सीरम फेरेटिन जाँच करनी पड़ती है। यदि इस जाँच से पता चलता है कि शरीर में आयरन आवश्यकता से अधिक है तो अतिरिक्त आयरन को शरीर से निकालने के लिए उपचार करना पड़ता है।

थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चे में आयरन की मात्रा अधिक होने से रोकने के लिए अंडे की जर्दी, पालक आदि चीजें नहीं दी जाती हैं। जिसमें आयरन ज्यादा होता है ऐसे बच्चे को ज्यादा चाय पिलानी चाहिए, क्योंकि इसमें मौजूद टेनिन आँतों से लौह तत्त्व अवशोषित कर लेता है।

थैलेसीमिया के उपचार के लिए मैरा ट्रांसप्लांटेशन पद्धति भी अपनाई जाती है। इसमें बोन मैरो कोशिकाओं की जरूरत पड़ती है। इस पद्धति में एचएल टाइपिंग की जाती है। माता-पिता या भाई-बहन से ही संभव भविष्य में जेनेटिक इंजीनियरिंग की संभावना तलाशी जाती है।

बच्चों में खून की कमी होने से रोकने के उपाय :

बच्चों में एनीमिया को होने से कैसे रोकें ?

  • यथा संभव बच्चे को मां का ही दूध पिलाएं।
  • मां के बच्चे को दूध पिलाने में असमर्थ होने की स्थति में आयरन युक्त फॉर्मूला दूध का सेवन कराएं।
  • जो बच्चें थोड़े बड़े है व ठोस आहार के सेवन मे समर्थ है उन्हें आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के साथ आयरन युक्त बेबी फूड दिया जा सकता है।

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