Last Updated on August 15, 2021 by admin
भगन्दर क्या है ? (bhagandar kya hai in hindi)
यह एक प्रकार का नाड़ी में होने वाला रोग है, जो गुदा और मलाशय के पास के भाग में होता है। भगन्दर में पीड़ाप्रद दानें गुदा के आस-पास निकलकर फूट जाते हैं। इस रोग में गुदा और वस्ति के चारो ओर योनि के समान त्वचा फैल जाती है, जिसे भगन्दर कहते हैं। `भग´ शब्द को वह अवयव समझा जाता है, जो गुदा और वस्ति के बीच में होता है। इस घाव (व्रण) का एक मुंख मलाशय के भीतर और दूसरा बाहर की ओर होता है। भगन्दर रोग अधिक पुराना होने पर हड्डी में सुराख बना देता है जिससे हडि्डयों से पीव निकलता रहता है और कभी-कभी खून भी आता है।
भगन्दर(Phischula) रोग अधिक कष्टकारी होता है। यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है। इस रोग के होने से रोगी में चिड़चिड़ापन हो जाता है। इस रोग को फिस्युला अथवा फिस्युला इन एनो भी कहते हैं।
विभिन्न भाषाओं में रोग का नाम :
- हिन्दी – भगन्दर,
- अंग्रेजी – फिस्चुला इन एनो,
- अरबी – नलिघा,
- बंगाली – भगन्दर,
- गुजराती – भगन्दर,
- कन्नड़ी – जरडी हुन्नु/नालि हुन्नु,
- मराठी – भगन्दर,
- मलयालम – मूलानी व्रणम्,
- तमिल – पवुथरो नोय,
- तेलगु – लूटी,
- उड़िया – भगन्दर,
भगन्दर के प्रकार (bhagandar ke prakar)
भगन्दर आठ प्रकार का होता है-1. वातदोष से शतपोनक 2. पित्तदोष से उष्ट्र-ग्रीव 3. कफदोष से होने वाला 4. वात-कफ से ऋजु 5. वात-पित्त से परिक्षेपी 6. कफ पित्त से अर्शोज 7. शतादि से उन्मार्गी और 8. तीनों दोषों से शंबुकार्त नामक भगन्दर की उत्पति होती है।
- शतपोनक नामक भगन्दर : शतपोनक नामक भगन्दर रोग कसैली और रुखी वस्तुओं को अधिक खाने से होता है। जिससे पेट में वायु (गैस) बनता है जो घाव पैदा करती है। चिकित्सा न करने पर यह पक जाते हैं, जिससे अधिक दर्द होता हैं। इस व्रण के पक कर फूटने पर इससे लाल रंग का झाग बहता है, जिससे अधिक घाव निकल आते हैं। इस प्रकार के घाव होने पर उससे मल मूत्र आदि निकलने लगता है।
- पित्तजन्य उष्ट्रग्रीव भगन्दर : इस रोग में लाल रंग के दाने उत्पन्न हो कर पक जाते हैं, जिससे दुर्गन्ध से भरा हुआ पीव निकलने लगता है। दाने वाले जगह के आस पास खुजली होने के साथ हल्के दर्द के साथ गाढ़ी पीव निकलती रहती है।
- वात-कफ से ऋजु : वात-कफ से ऋजु नामक भगन्दर होता है जिसमें दानों से पीव धीरे-धीरे निकलती रहती है।
- परिक्षेपी नामक भगन्दर : इस रोग में वात-पित्त के मिश्रित लक्षण होते हैं।
- 5. ओर्शेज भगन्दर : इसमें बवासीर के मूल स्थान से वात-पित्त निकलता है जिससे सूजन, जलन, खाज-खुजली आदि उत्पन्न होती है।
- शम्बुकावर्त नामक भगन्दर : इस तरह के भगन्दर से भगन्दर वाले स्थान पर गाय के थन जैसी फुंसी निकल आती है। यह पीले रंग के साथ अनेक रंगो की होती है तथा इसमें तीन दोषों के मिश्रित लक्षण पाये जाते हैं।
- उन्मार्गी भगन्दर : उन्मर्गी भगन्दर गुदा के पास कील-कांटे या नख लग जाने से होता है, जिससे गुदा में छोटे-छोटे कृमि उत्पन्न होकर अनेक छिद्र बना देते हैं। इस रोग का किसी भी दोष या उपसर्ग में शंका होने पर इसका जल्द इलाज करवाना चाहिए अन्यथा यह रोग धीरे-धीरे अधिक कष्टकारी हो जाता है।
भगन्दर के लक्षण (bhagandar ke lakshan in hindi)
भगन्दर रोग उत्पंन होने के पहले गुदा के निकट खुजली, हडि्डयों में सुई जैसी चुभन, दर्द, दाह (जलन) तथा सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। भगन्दर के पूर्ण रुप से निकलने पर तीव्र वेदना (दर्द), नाड़ियों से लाल रंग का झाग तथा पीव आदि निकलना इसके मुख्य लक्षण हैं।
भोजन और परहेज :
आहार-विहार के असंयम से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। इस तरह के रोगों में खाने-पीने का संयम न रखने पर यह बढ़ जाता है। अत: इस रोग में खास तौर पर आहार-विहार पर सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार के रोगों में सर्व प्रथम रोग की उत्पति के कारणों को दूर करना चाहिए क्योंकि उसके कारण को दूर किये बिना चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती है। इस रोग में रोगी और चिकित्सक दोनों को सावधानी बरतनी चाहिए। (इसे भी पढ़े : गुदाभ्रंश के सरल 25 आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
भगन्दर का आयुर्वेदिक घरेलू उपचार (bhagandar ka gharelu ilaj in hindi)
1. पुनर्नवा :
- पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारुहल्दी, गिलोय, चित्रक मूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण को काढ़ा बनाकर पीने से सूजनयुक्त भगन्दर में अधिक लाभकारी होता है। पुनर्नवा शोथ-शमन कारी गुणों से युक्त होता है।
- पुनर्नवा के मूल को वरुण (वरनद्ध की छाल के साथ काढ़ा बनाकर पीने से आंतरिक सूजन दूर होती है। इससे भगन्दर के नाड़ी-व्रण को बाहर-भीतर से भरने में सहायता मिलती है।
2. खैर :
- खैर, हरड़, बहेड़ा और आंवला का काढ़ा बनाकर इसमें भैंस का घी और वायविण्डग का चूर्ण मिलाकर पीने से किसी भी प्रकार का भगन्दर ठीक होता है।
- खैर की छाल और त्रिफले का काढ़ा बनाकर उसमें भैस का घी और वायविडंग का चूर्ण मिलाकर देने से लाभ होता है।
- खैरसार, बायबिडंग, हरड़, बहेड़ा एवं आंवला 10 ग्राम तथा पीपल 20 ग्राम इन सब को कूट पीसकर छान लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में शहद और मीठा तेल (धुला तिल का तेल) मिलाकर चाटने से भगन्दर, नाड़ी व्रण आदि ठीक होता है।
3. गूलर : गूलर के दूध में रूई का फोहा भिगोंकर, नासूर और भगन्दर के अन्दर रखने और उसको प्रतिदिन बदलते रहने से नासूर और भगन्दर ठीक हो जाता है।
4. भांगरा : भांगरा की पुल्टिश बनाकर कुछ दिनों तक लगातार बांधने से थोड़े ही दिनों में भगन्दर शुद्ध होकर भर जाता है।
5. सहजना (शोभांजनाद) : सहजने का काढ़ा बनाकर उस में हींग और सेंधानमक डालकर पीने से लाभ होता है। सहजना (शोभांजनाद) वृक्ष की छाल का काढ़ा भी पीना अधिक लाभकारी होता है।
6. नारियल : एक नारियल का ऊपरी खोपरा उतारकर फेंक दे और उसका गोला लेकर उस में एक छेद कर दें। उस नारियल को वट वृक्ष के दूध से भरकर उसके छेद दो अंगुल मोटी मिट्टी के लेप से बन्द कर उपले के आग पर पका लें। पक जाने पर लेप हटाकर उसका रस निकालकर उस में 5-6 ग्राम त्रिफला का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से भगन्दर का रोग ठीक हो जाता है।
7. त्रिफला : त्रिफला को जल में उबालकर उस जल को छानकर उससे भगन्दर को धोने से जीवाणु नष्ट होते हैं।
8. नीम :
- नीम की पत्तियां, घी और तिल 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर उसमें 20 ग्राम जौ के आटे को मिलाकर जल से लेप बनाएं। इस लेप को वस्त्र के टुकड़े पर फैलाकर भगन्दर पर बांधने से लाभ होता है।
- नीम की पत्तियों को पीसकर भगन्दर पर लेप करने से भगन्दर की विकृति नष्ट होती है।
- नीम के पत्ते, तिल और मुलैठी गाढ़ी छाछ में पीसकर दर्द वाले तथा खूनी भगन्दर में लगाने से भगन्दर ठीक होता है।
- बराबर मात्रा में नीम और तिल का तेल मिलाकर प्रतिदिन दो या तीन बार भगन्दर के घाव पर लगाने से आराम मिलता है।
9. तिल : नीम का तेल और तिल का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर नासूर में लगाने से भगन्दर ठीक होता है।
10. अंकोल : अंकोल का तेल 100 मिलीलीटर और मोम 25 ग्राम लेकर उसे आग पर गर्म करें और उसमें 3 ग्राम तूतिया (नीला थोथा) मिलाकर लेप करने से नाड़ी में उत्पन्न दाने नष्ट हो जाते हैं।
11. अनार :
- मुट्ठी भर अनार के ताजे पत्ते को दो गिलास पानी में मिलाकर गर्म करें। आधे पानी शेष रहने पर इसे छान लें। इसे उबले हुए मिश्रण को पानी में हल्के गर्मकर सुबह शाम गुदा को सेंके और धोयें। इससे भगन्दर ठीक होता है।
- अनार की पेड़ की छाल 10 ग्राम लेकर उसे 200 मिलीलीटर जल के साथ आग पर उबाल लें। उबले हुए जल को किसी वस्त्र से छानकर भगन्दर को धोने से घाव नष्ट होते हैं।
12. तिल : तिल, एरण्ड की जड़ और मुलहठी को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर थोड़े-से दूध के साथ पीसकर भगन्दर पर उसका लेप करने से रोग में आराम मिलता है।
13. दारुहल्दी : दारुहल्दी का चूर्ण बनाकर उसे आक के दूध के साथ अच्छी तरह से मिलाकर हल्का गर्म कर उसका वर्तिका (बत्ती) बनाकर घावों पर लगाना अधिक लाभकारी होता है।
14. गुग्गुल :
- गुग्गुल और त्रिफला का चूर्ण 10-10 ग्राम को जल के साथ पीसकर हल्का गर्म करें। इस लेप को भगन्दर पर लगाने से लाभ होता है।
- शुद्ध गुग्गल 50 ग्राम, त्रिफला पिसा 30 ग्राम और पीपल 15 ग्राम लेकर इसे कूट-छानकर इसे पानी के साथ मिलाकर, इसके चने के बराबर गोलियां बना लें। इन गोलियों को छाया में सूखाकर लगातार 15-20 दिन तक इसकी 1-1 गोलियां सुबह-शाम खायें। इससे भगन्दर ठीक होता है।
15. छोटी अरणी : छोटी अरणी के पत्तों को जल द्वारा घुले मक्खन के साथ मिलाकर पीसकर इसका मिश्रण बनाएं। इस मिश्रण को रोग पर लेप करने से अधिक लाभ होता है।
16. अग्निमथ (छोटी अरणी) : अग्निमथ की जड़ को जल में उबालकर काढ़ा बनाकर इसके 15 ग्राम काढ़े में 5 ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से भगन्दर नष्ट होता है।
17. सांप की केंचुली : सांप द्वारा उतारे गये केंचुली का भस्म (राख) बनाकर इसमें तम्बाकू के गुल को मिलाकर सरसों के तेल के साथ लेप करने से नाड़ी व्रण नष्ट होते हैं तथा रोग में लाभ होता है।
18. कालीमिर्च : लगभग 10 कालीमिर्च और खादिर (कत्था) 5 ग्राम मिलाकर पीसकर इसके मिश्रण को भगन्दर पर लगाने से पीड़ा खत्म होती है।
19. आंवला : आंवले का रस, हल्दी और दन्ती की जड़ 5-5 ग्राम की मात्रा में लें। और इसको अच्छी तरह से पीसकर इसे भगन्दर पर लगाने से घाव नष्ट होता है।
20. आक :
- आक का 10 मिलीलीटर दूध और दारुहल्दी का दो ग्राम महीन चूर्ण, दोनों को एक साथ खरलकर बत्ती बनाकर भगन्दर के घावों में रखने से शीघ्र लाभ होता है।
- आक के दूध में कपास की रूई भिगोकर छाया में सुखा कर बत्ती बनाकर, सरसों के तेल में भिगोकर घावों पर लगाने से लाभ होता है।
21. डिटोल : डिटोल मिले जल से भगन्दर को अच्छी तरह से साफ करें। इसके बाद उस पर नीम की निबौली लगाने से भगन्दर का घाव नष्ट होता है।
22. फिटकरी : भुनी फिटकरी 1-1 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ पीना चाहिए। कच्ची फिटकरी को पानी में पीसकर इसे रूई की बत्ती में लगाकर भगन्दर के छेद में भर दें। इससे रोग में अधिक लाभ होता है।
23. रस सिंदूर : रस सिंदूर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, त्रिफला पिसा 1 ग्राम और एक बायबिण्डग के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खाना चाहिए।
24. सुहागा : 4 ग्राम सुहागा को 60 मिलीलीटर जल के साथ घोलकर पीने से खुजली नष्ट होती है। नासूर में लाभ होता है।
25. सैंधानमक : सैंधानमक और शहद की बत्ती बनाकर नासूर में रखने से दर्द में आराम मिलता है।
26. बड़ी माई : बड़ी माई का कपड़छन चूर्ण 8 ग्राम, अफीम 2 ग्राम और सफेद वैसलीन 20 ग्राम मिलाकर प्रतिदिन दो से तीन बार गुदा के घाव पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
27. बरगद : बरगद के पत्तें, सोठ, पुरानी ईंट के पाउडर, गिलोय तथा पुनर्नवा मूल का चूर्ण सहभाग लेकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से फायदा होता है।
28. धुआंसा : घर का धुआंसा, हल्दी, दारुहल्दी, लोध्र, बच, तिल, नीम के पत्ते और हरड़-इन सबको बराबर मात्रा में लें, और उसे पानी के साथ महीन पीसकर लेप करने से भगन्दर का घाव शुद्ध होकर भर जाता है।
29. अडूसा : अडूसे के पत्ते को पीसकर टिकिया बनाकर तथा उस पर सेंधा नमक बुरक कर बांधने से भगन्दर ठीक होता है।
30. गुड़ : पुराना गुड़, नीलाथोथा, गन्दा बिरोजा तथा सिरस इन सबको बराबर मात्रा लेकर थोड़े से पानी में घोंटकर मलहम बना लें तथा उसे कपड़े पर लगाकर भगन्दर के घाव पर रखने से कुछ दिनों में ही यह रोग ठीक हो जाता है।
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31. हरड़ : हरड़, बहेड़ा, आंवला, शुद्ध भैंसा गुग्गुल तथा बायबिडंग इन सब का काढ़ा बनाकर पीने से तथा प्यास लगने पर खैर का रस मिला हुआ पानी पीने से भगन्दर नष्ट होता है।
32. निशोथ : निशोथ, तिल, जमालगोटा, मजीठ, और सेंधानमक इनको पीसकर घी तथा शहद में मिलाकर लेप करने से भगन्दर ठीक हो जाता है।
33. सांठी : सांठी की जड़, गिलोय, सोंठ, मुलहठी तथा बेरी के कोमल पत्ते, इनको महीन पीसकर इसे हल्का गर्म कर लेप करने से भगन्दर में लाभ होता है।
34. रसौत : रसौत, दोनों हल्दी, मजीठ, नीम के पत्ते, निशोथ, तेजबल-इनको महीन पीसकर भगन्दर पर लेप करने से भगन्दर ठीक हो जाता है।
35. बिलाई की हाड़ : बिलाई की हड्डी (हाड़) को त्रिफला के रस में घिसकर भगन्दर रोग में लगाने से भगन्दर रोग ठीक होता है।
36. गेहूं : गेहूं के छोटे-छोटे पौधों के रस को पीने से भगन्दर ठीक होता है।
37. चमेली : चमेली के पत्ते, बरगद के पत्ते, गिलोय और सोंठ तथा सेंधानमक को गाढ़ी छाछ में पीसकर भगन्दर पर लगाने से भगन्दर नष्ट होता है।
38. दारुहरिद्रा : दारुहरिद्रा का चूर्ण आक (मदार) के दूध के साथ मिलाकर बत्ती बना लें। बत्ती को भगन्दर तथा नाड़ी व्रण पर लगाने से भगन्दर में आराम रहता है।
39. सहोरा (सिहोरा) : सहोरा (सिहोरा) के मूल (जड़) को पीसकर भगन्दर में लगाने से रोग ठीक होता है।
40. थूहर : थूहर का दूध, आक का दूध और हल्दी मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से रोग ठीक होता है।
41. शहद : शहद और सेंधानमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।
42. मुर्दासंख : मुर्दासंख को पीसकर भगन्दर के सूजन पर लगाने से सूजन खत्म होती है।
43. पिठवन :
- पिठवन के 8-10 पत्तों को पीसकर लेप करने से भगन्दर के रोग में बहुत लाभ होता है।
- लगभग 10 मिलीलीटर पिठवन के पत्तों के रस को नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से भगन्दर रोग नष्ट हो जाता है।
- पिठवन में थोड़ा सा कत्था मिलाकर पीसकर लेप करने से या कत्था तथा कालीमिर्च को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर रोगी को पिलाने से भगन्दर के रोग में लाभ मिलता होता है।
44. लता करंज :
- लगभग आधा ग्राम से 2 ग्राम करंज के जड़ की छाल का दूधिया रस की पिचकारी भगन्दर में देने से भगन्दर जल्दी भर जाता है।
- दूषित कीडे़ से भरे भगन्दर के घावों पर करंज के पत्तों की पुल्टिस बनाकर बांधें अथवा कोमल पत्तों का रस 10-20 ग्राम की मात्रा में निर्गुण्डी या नीम के पत्तों के रस में मिलाकर कपास के फोहे से भगन्दर के व्रण (घाव) पर बांधें या नीम के पत्ते का रस में कपास का फोहा तर कर घाव पर लगाने से रोग में आराम मिलता है।
- करंज के पत्ते और निर्गुण्डी या नीम के पत्ते को पीसकर पट्टी बनाकर भगन्दर पर बांधने से या पत्तों को कांजी में पीसकर गर्म लेप बनाकर लेप करने से रोग में आराम मिलता है।
- भगन्दर पर करंज के पत्तों को बांधने से भगन्दर रोग में लाभ होता है।
- करंज के मूल (जड़) का रस प्रतिदिन दो से तीन बार लगाने से भगन्दर का पुराना जख्म ठीक होता है।
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