भांगरा (भृंगराज) के 53 फायदे, गुण और उपयोग – Bhangra (Bhringraj) ke Fayde, Gun aur Upyog

Last Updated on December 23, 2022 by admin

भांगरा (भृंगराज) क्या है ? :

         घने मुलायम काले बालों के लिए प्रसिद्ध भांगरा (भृंगराज) की झाड़ियां 6,000 फुट की ऊंचाई तक नम भूमि में जलाशयों के समीप साल के 12 महीने उगते हैं। इसकी एक और प्रजाति पीली भृंगराज पाई जाती है जिसके पौधे बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र और मद्रास में अधिक पाये जाते हैं।

भांगरा (भृंगराज) का पौधा कैसा होता है ? : 

स्वरूप : भांगरा (भृंगराज) के पेड़ प्राय: गीली और नम जमीन में होते हैं। इसके पत्ते खरखरे होते हैं। इसके फूल सफेद, पीले, और नीले तीन रंग के होते हैं। रंगों के अनुसार यह तीन प्रकार का होता है।

प्रकार : भांगरा (भृंगराज) जमीन पर फैलने वाली क्षुप जातीय वनस्पति है। यह तीन प्रकार की होती है। 1. सफेद रंग के फूल वाली 2. पीले रंग के फूल वाली 3. नीले रंग के फूल वाली। इनमें से दो जातियां तो आसानी से मिल जाती हैं। परन्तु गोलमुख वाली भांगरा (भृंगराज) बहुत कम दिखाई पड़ती है। इसकी पत्तियां अनीदार, अरहर के पत्तों से मिलती-जुलती हुई तथा लोमयुक्त होने से कर्कश होती है।  इसके फूल में एक छोटी सी घुंडी लगती है। इसके बढ़ते ही कई पंखुड़ियां निकल आती हैं। पुष्ट होने पर पंखुड़िया गिर जाती हैं और इसके छोटे दाने काले जीरे की तरह के बाहर निकल आते हैं।

भांगरा (भृंगराज) का विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिन्दी               भंगेरा, भांगरा, भंगरैया, घमिरा कुन्तलवर्द्धन, मार्कव।  
संस्कृत        भृंगराज, केशराज, केशरंजन,
गुजराती      भांगरो, कालो भांगरो
मराठी         भाका, बांगरा, भृंगराज
बंगाली         केसरी, कसूरीया, भीमराज, केशुत्त
पंजाबी         किशोरी, केशराज,केसरी,भीमराज
अरबी          कदीमुल
कोंकण        हातूकेनारी
उड़िया         केसरडा
तमिल         केकेशी, केवी, शिलाई, काइकेशी
अंग्रेजी         ट्रेलिंग इकलिप्टा
लैटिन         इकलिप्टा पोस्ट्राटा

भांगरा (भृंगराज) के गुण :

  • रंग : भांगरा (भृंगराज) हरा और काले रंग का होता है।
  • स्वाद : इसका स्वाद कड़वा और तीखा होता है।
  • स्वभाव : यह गर्म और खुश्क होता है।
  • भांगरा (भृंगराज) अर्थात घमिरा आंखों के लिए लाभकारी होता है। 
  • गर्म केश रज्जक यानी वालों को काला करने वाला है। 
  • यह बलगम, सूजन तथा जहर को दूर करता है। 
  • भांगरा (भृंगराज), बलगम और गैस को नष्ट करता है। 
  • यह बुखार, कुष्ठ रोग और मस्तक की पीड़ा को रोकता है। 
  • यह त्वचा और दांतों के लिए लाभकारी, मेधाशक्ति (बुद्धि) को बढ़ाने वाला, कामशक्ति को बढ़ाने वाला, आंत्रवृद्धि-आंत-का-उतरना, सिर दर्द, आंखों के रोग, दमा, खांसी, पेट के कीडे़, आम, पेचिश, हृदय रोग और खुजली को दूर करने वाला है।
  •  इसके पत्तों का पानी आंखों की रोशनी को बढ़ाता है 
  •  भांगरा धातु को पुष्ट करता है, 
  • यह तिहाल यानी बरबट को नष्ट करता है। 
  • यह रसायन है, यदि इसे नियमपूर्वक खाया जाए तो यह चेहरे को बदल देता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के रस को रोजाना पीना, समय और नियम के साथ रहना, स्त्री प्रसंग से बचना तथा ईश्वर आराधना करना अत्यंत चामत्कारिक गुण दिखाता है। 
  • यह बूढ़ों को जवान, निर्बलों को बलवान, बालकों को बुद्धिमान और गुणवान बनाता है।
  • अगर किसी ने अफीम का जहर खा लिया हो, उसको भांगरा का रस पिलाने से तत्काल जहर दूर होता है, अगर भांगरा के रस में अफीम की गोली छोड़ दे तो वह जल जाती है।
  • हाथ की अंगुलियों में एक प्रकार की बीमारी होती है, जिसको बलाय (विषहर) अथवा बिसारी या बड़कीवा कहते हैं। यह महाभयानक और दुखदायी रोग है। परन्तु भांगरा उसकी अनुभूत औषधि है। भांगरा की पत्ती लेकर मट्ठे के साथ खूब बारीक पीसकर विषहर में बांधते हैं तथा जब-जब यह सूख जाए तो मट्ठे से तर करते रहें। ऐसा करने से 15 मिनट के भीतर ही लाभ मिलता है। इससे विषहर की जलन तुरन्त ही मिट जाती है तथा विषहर के दर्द से तड़पने, रोने, बिलबिलाने वाला रोगी तुरन्त ही सो जाएगा।

भांगरा (भृंगराज) के फायदे और उपयोग – Bhangra (Bhringraj) ke Fayde aur Upyog 

1. प्लीहा वृद्धि (तिल्ली)  :

  • अजवायन के साथ भांगरा (भृंगराज) का सेवन करने से जुकाम, खांसी, प्लीहा, यकृत वृद्धि (जिगर का बढ़ना) आदि रोग दूर हो जाते हैं।
  • लगभग 10 मिलीलीटर  भांगरे के रस को सुबह और शाम रोगी को देने से तिल्ली का बढ़ना बंद हो जाता है।

2. कान का दर्द : भांगरा (भृंगराज) का रस 2 बूंद कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

3. पेट के कीड़े : भृंगराज को एरंड के तेल के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट होकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।

4. पेट में दर्द :

  • भांगरे के पत्तों को पीसकर निकाले हुए रस को 5 ग्राम की मात्रा में 1 ग्राम काला नमक मिलाकर पानी के साथ पीने से पेट का दर्द नष्ट हो जाता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के 10 ग्राम पत्तों के साथ 3 ग्राम कालानमक को थोड़े से पानी में पीसकर छानकर दिन में 3-4 बार सेवन करने से पुराना पेट दर्द समाप्त हो जाता है।

5. बालों को काला करने वाली दवा : भृंगराज तेल बालों में डालने से, रस सेवन करने से एवं भृंगराजासव का प्रयोग करने से सफेद बाल काले हो जाते हैं। भृंगराज तेल आयुर्वेदिक तेलों में एक प्रमुख तेल है।

6. आधाशीशी : भांगरा (भृंगराज) के रस और बकरी का दूध बराबर मात्रा में लेकर उसको गर्म करके नाक में टपकाने से और भांगरा (भृंगराज) के रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर लेप करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) का दर्द मिट जाता है।

7. बालों के रोग :

  • बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा (भृंगराज) के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं। उन्हें इस प्रयोग को अवश्य ही करना चाहिए।
  • त्रिफला के चूर्ण को भांगरा (भृंगराज) के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल करते हैं। रोजाना सुबह डेढ़ ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना रुक जाता  है। यह आंखों की रोशनी को भी बढ़ाता है।
  • आंवलों का मोटा चूर्ण बनाकर, चीनी के मिट्टी के प्याले में रखकर ऊपर से भांगरा (भृंगराज) का इतना रस डालें कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7 उबाल देकर सुखा लेते हैं। इसे रोजाना 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय में बालों का सफेद होना रुक जाता है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, आयुवर्द्धक रसायन व सभी रोगों के लिए लाभकारी योग है।
  • भांगरा (भृंगराज), त्रिफला, अनंतमूल, आम की गुठली इन सभी का मिश्रण तथा 10 ग्राम मंडूर कल्क व आधा किलो तेल को एक किलो पानी के साथ पकायें। पकने पर तेल बाकी रहने पर छानकर रख लेते हैं। इससे बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।

8. आंखों के रोग :

  • 10 ग्राम भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का बारीक चूर्ण, 3 ग्राम शहद और 3 ग्राम गाय का घी, रोजाना सोते समय रात में 40 दिनों तक नियमित सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
  • भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का रस 2 बूंद सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त से के थोड़ी देर बाद आंखों में डालते रहने से फूली आदि आंखों के रोग शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।
  • 2 लीटर भांगरा (भृंगराज) के रस में, 50 ग्राम मुलेठी का चूर्ण, 500 मिलीलीटर तिल का तेल और 2 लीटर गाय का दूध मिलाकर धीमी आग पर पकाते हैं पकने पर तेल शेष रहने पर इसे छानकर रख लेते हैं। इसे आंखों में लगाने से तथा इसकी नस्य (नाक से सूंघने से) लेने से आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं। इससे खोई हुई आंखों की रोशनी लौट आती है।
  • भांगरा (भृंगराज) के पत्तों की पोटली बनाकर आंखों पर बांधने से आंखों का दर्द नष्ट होता है।

9. कंठमाला : भांगरा (भृंगराज) के पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर घी में पकाकर कंठमाला की गांठों पर बांधने से तुरन्त ही लाभ मिलता है।

10. मुंह के छाले : भांगरा (भृंगराज) के 5 ग्राम पत्तों को मुंह में रखकर चबाएं तथा लार थूकते जाएं। दिन में ऐसा कई बार करना से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

11. पीनस रोग : 250 मिलीलीटर भांगरा (भृंगराज) का रस, 250 मिलीलीटर तिल का तेल, 10 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर हल्की आग पर गर्म कर लें। गर्म करने के बाद प्राप्त तेल की लगभग 10 बूंद तक नाक के दोनों नथुने में टपकाने से नाक के अंदर से दूषित बलगम तथा कीड़े बाहर निकल जाते हैं तथा पीनस रोग थोड़े ही दिनों में नष्ट हो जाता है। परहेज में गेहूं की रोटी व मूंग की दाल खानी चाहिए।

12. कफ :

  • तिल्ली बढ़ी हुई हो, भूख न लग रही हो, लीवर ठीक न हो, कफ व खांसी भी हो और बुखार बना रहे। तब भांगरे का 4-6 ग्राम रस 300 मिलीलीटर  दूध में मिलाकर सुबह और रात के समय सेवन करने से लाभ होता है।
  • गोद के बच्चे या नवजात बच्चे को कफ (बलगम) अगर होता है। तो 2 बूंद भांगरे के रस में 8 बूंद शहद मिलाकर उंगली के द्वारा चटाने से कफ (बलगम) निकल जाता है।

13. रक्तचाप : 2 चम्मच भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का रस, 1 चम्मच शहद दिन में दो बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप कुछ ही दिनों में सामान्य हो जाता है। यदि पेट में कब्ज न हो तो वह सामान्य रहता है। इससे पेट भी ठीक रहता है तथा भूख भी बढ़ती है।

14. अग्निमान्द्य व पेचिश : 

  • भांगरा (भृंगराज) के पूरे पौधे को जड़ सहित छाया में सुखाकर पीसकर बारीक चूर्ण बना लें, फिर उसमें बराबर मात्रा में त्रिफला चूर्ण को मिला लेते हैं। इसके बाद इस मिश्रण के बराबर मिश्री मिला लें। इस मिश्रण की 20 ग्राम मात्रा को शहद या पानी के साथ दिन में तीन बार खाने से मंदाग्नि (भूख का कम लगना) और पेचिश का रोग मिट जाता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के पत्तों और फूलों के सूखे बारीक चूर्ण में थोड़ा सेंधानमक मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पाचनशक्ति की वृद्धि होती है। इससे अरुचि (भोजन करने का मन न करना) दूर हो जाती है।
  • भांगरा (भृंगराज) के ताजे साफ पत्तों को पीसकर चूर्ण बनाकर 2 ग्राम चूर्ण में 7 कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें। इसे रोजाना खाली पेट खट्टे दही या तक्र (मट्ठा) के साथ सेवन करने से 5-6 दिन में ही पेचिश या पीलिया रोग में विशेष लाभ मिलता है। यकृत वृद्धि व उदरशोथ (पेट की सूजन) में भी यह अत्यंत लाभकारी होता है। भांगरा (भृंगराज) के 5 ग्राम रस में आधा ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह दही के साथ लेने से कुछ ही दिनों में कामला रोग (पीलिया) समाप्त हो जाता है।

15. डिप्थीरिया : 10 ग्राम भांगरा (भृंगराज) के रस में बराबर मात्रा में गाय का घी, चौथाई असली यवक्षार मिलाकर पकाएं, जब यह खूब खौल जाए तब इसे 2-2 घंटे के अंतर से रोगी को पिलाने से यह रोग समाप्त हो जाता है।

16. विसूचिका (हैजा) : विसूचिका रोग में भांगरा (भृंगराज) के पचांग के 2 चम्मच रस में सेंधानमक मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम को सेवन करने से लाभ मिलता है।

17. अतिसार : आमातिसार एवं अतिसार में भृंगराज (भांगरा (भृंगराज)) की जड़ के बारीक चूर्ण की बराबर मात्रा में बेल का चूर्ण मिला लें। इसे सुबह-शाम 1-1 चम्मच ताजे पानी से दिन में 3 बार सेवन करना अतिसार संग्रहणी में बहुत ही लाभकारी होता है।

18. भगंदर : भांगरा (भृंगराज) की पोटली बनाकर कुछ दिनों तक लगातार बांधने से थोड़े ही दिनों में भगंदर शुद्ध होकर भर जाता है।

19. उपदंश :

  • भांगरा (भृंगराज) के रस में अथवा भांगरा (भृंगराज) और चमेली के पत्तों के रस के मिश्रण से उपदंश के घाव को धोने से बहुत लाभ होता है। इसके रस का लेप भी करने से लाभ होता है।
  • 3 भाग भांगरा (भृंगराज) का चूर्ण, 1 भाग कालीमिर्च का चूर्ण, दोनों को इकट्ठा करके भांगरे के ही रस से खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सुबह-शाम 1-2 गोली का सेवन करना चाहिए। इससे पेट के रोग, आंखों के रोग और भगंदर तथा उपदंश के रोग में लाभ मिलता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के 10 ग्राम रस में 2 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम 21 दिनों तक सेवन करना चाहिए। इसे गाय के दूध, गेहूं की रोटी और चीनी के साथ देना चाहिए। इससे उपदंश के साथ-साथ सभी प्रकार के त्वचा के रोग नष्ट हो जाते हैं।

20. गर्भरक्षा :

  • भांगरा (भृंगराज) के 4 मिलीलीटर रस में समान मात्रा में गाय का दूध मिलाकर रोजाना सुबह गर्भवती स्त्री को पिलाने से असमय में गर्भपात नहीं होने पाता है। इससे गर्भपुष्ट होकर गर्भरक्षा व गर्भवती स्त्री के खून की शुद्धि होती है। यह बहुत ही सहज व सरल उपाय है।
  • गर्भावस्था के दौरान योनिमार्ग या मूत्रमार्ग से रक्तस्राव हो तो  भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का काढ़ा बनाकर 20-50 मिलीलीटर तक सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।

21. योनि दर्द : प्रसव के बाद होने वाले योनि के दर्द में भांगरा (भृंगराज) के पंचांग का चूर्ण तथा बेल की जड़ के बारीक चूर्ण को बराबर मात्रा में लें, फिर इसमें शहद मिलाकर उचित मात्रा में देने से योनि का दर्द तुरन्त ही मिट जाता है।

22. अंडकोष की वृद्धि : अंडकोष की सूजन पर इसके पंचांग को पीसकर टिकिया बनाकर बांधने से अंडकोष की वृद्धि रुक जाती है और अंडकोष का आकार सामान्य हो जाता है।

23. बवासीर :

  • 50 ग्राम भांगरा (भृंगराज) के पत्ते और 5 ग्राम कालीमिर्च को बहुत बारीक पीसकर छोटे बेर जैसी गोलियां बनाकर छाया में रखकर सुखा लेते हैं। सुबह-शाम 1 या 2 गोली पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से वातज बवासीर में शीघ्र ही लाभ मिलता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के पत्ते 3 ग्राम व कालीमिर्च 5 नग दोनों का महीन चूर्ण ताजे पानी से दोनों समय सेवन करने से 7 दिन में ही बहुत लाभ मिलता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के रस में गेहूं का आटा छानकर, गाय के घी में चूर्ण बनाकर छाछ में भिगोकर खाएं। ऊपर से 1-2 मूली खायें इससे बवासीर के रोगी को तुरन्त ही लाभ मिलता है।
  • बवासीर के मस्सों पर भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का भाप दोनों समय रोगी को देने से बहुत ही लाभ मिलता है।

24. गुदाभ्रंश (कांच निकलना) :

  • भांगरा (भृंगराज) की जड़ और हल्दी के चूर्ण को पीसकर लेप करने से गुदाभ्रंश में लाभ मिलता है।
  • 30 ग्राम भांगरा (भृंगराज) की जड़ और 20 ग्राम हल्दी के चूर्ण को मिलाकर पानी के साथ पीसकर मलहम बना लें। उस मलहम को गुदाभ्रंश पर लगाने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।

25. पित्तज प्रमेह : भांगरे का चूर्ण और बबूल के फूल का बारीक चूर्ण तैयार कर लें। फिर इस चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री का चूर्ण मिला लें। इस मिश्रण को 6 ग्राम की मात्रा में बकरी के दूध के सेवन करने से लाभ मिलता है। यह प्रयोग सभी तरह के प्रमेह में लाभकारी होता है।

26. प्रमेह पिडिका : भांगरा (भृंगराज) के 1 भाग रस में 1-1 भाग तुलसी के पत्ते, सफेद सेम के पत्ते और पटोल पत्र का चूर्ण मिलाकर तथा कांजी में पीसकर लेप करने से वातज प्रमेह पिडिका नष्ट हो जाती है।

27. श्लीपद (हाथी पांव) : भांगरा (भृंगराज) के पंचांग की लुग्दी को तिल के तेल में मिलाकर अथवा केवल इसके रस से श्लीपद में मालिश करने से लाभ मिलता है।

28. अग्निदग्ध (आग से जले हुए घाव) :

  • भांगरा (भृंगराज) के पत्तों को मेंहदी और मरवा के पत्तों के साथ पीसकर लेप करने से आग से जले हुए घाव में तुरन्त ही लाभ मिलता है तथा नयी आने वाली त्वचा शरीर की त्वचा के अनुसार ही होती है।
  • आग से जलने पर घाव बन गया हो तो भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का रस 2 भाग, काली तुलसी के पत्तों का रस 1 भाग, दिन में 2-3 बार लगाते रहने से जलन शांत हो जाती है और शरीर पर किसी भी प्रकार का दाग नहीं पड़ने पाता है।

29. दाह (जलन) : हाथ-पैरों की जलन व शरीर की खुजली में और सूजन पर भांगरा (भृंगराज) के रस की मालिश करने से लाभ होता है।

30. खुजली : 10 ग्राम भांगरा (भृंगराज) के पत्ते, 10 ग्राम जवासा, 60 ग्राम चिरायता, 60 ग्राम शखपुंखा को पानी में पीसकर और छानकर इसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर रोजाना सुबह-दोपहर-शाम को सेवन करने से शरीर की खुजली नष्ट हो जाती है तथा शरीर निरोग हो जाता है।

31. चक्कर आना : 4 मिलीलीटर भांगरा (भृंगराज) का रस और 3 ग्राम शक्कर को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से थोड़े ही दिनों में कमजोरी दूर हो जाती है तथा चक्कर आना बंद हो जाता है।

32. घाव :

  • दूषित घावों पर भांगरा (भृंगराज) का रस लगाने से तथा पोटली बांधने से लाभ मिलता है।
  • हाथ, अगूंठे या उंगली में घाव हो जाते हैं। उस पर भांगरे को पीसकर मोटा लेप करें तथा पानी न लगने दें। भीतर की गांठ निकालकर घाव अच्छा हो जाता है।

33. बिच्छू के विष पर : बिच्छू के दंश पर भांगरा (भृंगराज) के पत्तों को पीसकर सूजे हुए स्थान पर मसलने से, दर्द डंक के स्थान पर एकत्रित हो जाती है फिर उस स्थान पर अच्छी तरह मसलकर पत्तों की लुग्दी बांध देने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।

34. दीर्घायु :

  • ताजे भांगरे को पीसकर उसका निकाला हुआ लगभग 10 मिलीलीटर रस सुबह पीने से और परहेज में सिर्फ दूध पर ही रहने से 1 महीने में शरीर निरोग हो जाता है। इससे शरीर बलशाली और आकर्षक होता है और मनुष्य दीर्घायु होता है।
  • भांगरा (भृंगराज) के 15 ग्राम पत्तों के चूर्ण को रोजाना घी, शहद और चीनी मिलाकर एक साल तक लेते रहने से बल वीर्य की वृद्धि होती है तथा इससे बुद्धि व दिमाग की शक्ति भी बढ़ जाती है।

35. बाजीकरण : 10 ग्राम शुद्ध गंधक के बारीक चावल जैसे टुकड़े कर उन्हें 7 दिन तक धूप में सुखाकर उबालें, फिर उसमें जायफल, जावित्री, कपूर और लौंग का 2-2 ग्राम चूर्ण मिलाकर गुड़ के साथ घोंटकर आधी-आधी ग्राम की गोलियां बना लेते हैं। रोजाना सुबह एक या दो गोली खाकर उसके ऊपर से 3 कालीमिर्च चबाकर साथ ही 250 मिलीलीटर दूध पी लें। यह अत्यंत ही बाजीकरण योग होता है।

36. भांगरा (भृंगराज) के चूर्ण के विशिष्ट प्रयोग :

  • 1 ग्राम भांगरा (भृंगराज) का चूर्ण, 6 ग्राम घी और 5 ग्राम मिश्री को इकट्ठा करके 60 दिनों तक सेवन करने से शरीर फूर्तीला और बलवान होता है।
  • 1 भाग भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का चूर्ण तथा आधा भाग आंवले का चूर्ण उसमें दोनों के बराबर मिश्री या गुड़ मिलाकर चिकनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इसे 10-10 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से कोई रोग नहीं होता है। बुढ़ापे का भी भय नहीं रहता है। यह पौष्टिक रसायन है।
  • भांगरा (भृंगराज) के पत्तों के चूर्ण में बराबर मात्रा में काले तिल का चूर्ण मिलाकर कम से कम 1 महीने तक सेवन करने से तथा भोजन में केवल दूध लेने से मनुष्य रोग रहित होकर दीर्घायु हो जाता है।
  • यदि बच्चा मिट्टी खाना किसी भी प्रकार से न छोड़ रहा हो तो भांगरा (भृंगराज) के पत्तों का रस 1 चम्मच सुबह-शाम पिला देने से बच्चा मिट्टी खाना तुरन्त छोड़ होता है।

37. बालों का सफेद होना : भंगरैया के पत्तों को पीसकर रस निकालकर  सिर के बालों पर अच्छी तरह लगाने से सिर के बाल काले होने लगते हैं।

38. खांसी : 1 से 2 बूंद भंगरैया का रस शहद के साथ सेवन करने से  खांसी ठीक हो जाती है तथा छाती की घड़घराहट भी दूर हो जाती है।

39. निमोनिया : यदि छोटे बच्चों के सीने में घड़घराहट या खांसी हो तो 1 से 2 बूंद भंगरैया का रस रोजाना तीन बार पिलाने से लाभ होता है।

40. नपुंसकता : भंगरैया के बीज मिश्री मिले हुए गर्म दूध में डालकर खाने से नपुंसकता दूर होती है।

41. दस्त : भांगरे के रस में दही को डालकर पीने से दस्त का आना बंद हो जाता है।

42. कान के कीड़े : भांगरा (भृंगराज) और समुद्रफल को खाने से कान के कीड़े समाप्त हो जाते हैं और कान बिल्कुल साफ हो जाता है।

43. मृत्वत्सा दोष (गर्भ में बच्चे का मर जाना) : ऋतु स्नान (माहवारी समाप्ति) के बाद 10 से 20 मिलीलीटर भांगरे का रस एक हफ्ते तक सुबह-शाम पीने से मृत्वत्सा दोष के रोग में लाभ मिलता है।

44. यकृत का बढ़ना :

  • 5-10 मिलीलीटर की मात्रा में भंगैरया का रस सुबह-शाम लेने से यकृत सम्बन्धी समस्त रोगों से आराम मिलता है, इससे यकृत वृद्धि, बवासीर, पेट दर्द आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
  • भांगरे का रस, 2 ग्राम अजवायन का चूर्ण एक साथ मिलाकर सेवन करने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।
  • भांगरा (भृंगराज) के रस में थोड़ी अजवायन का चूर्ण मिलाकर पानी के साथ रोगी बच्चे को सेवन कराने से यकृत वृद्धि (जिगर का बढ़ना) मिट जाती है।

45. अंगुलियों का कांपना : 20 ग्राम भांगरे के बीजों के चूर्ण में 3 ग्राम घी मिलाकर मीठे दूध के साथ खाने से हाथ-पैरों का कांपना दूर हो जाता है।

46. कामला (पीलिया का रोग) : भांगरे के रस में कालीमिर्च मिलाकर दही के साथ खाने से कामला (पीलिया) मिट जाता है।

47. डब्बा रोग : भांगरे के रस में असली घी मिलाकर 3 दिन तक बच्चे को पिलाने से डब्बा रोग (पसली चलना) ठीक हो जाता है।

48. कुष्ठ (कोढ़) : भांगरा (भृंगराज) का रस और नागदोन का सेवन करने से कोढ़ मिट जाता है।

49. त्वचा के रोग : भंगरैया का रस चमड़ी के पुराने रोग जैसे खाज-खुजली आदि पर लगाने से आराम मिलता है। इसका रस रोजाना 5 से 10 मिलीलीटर  सुबह और शाम पीने से यकृत (जिगर) की क्रिया ठीक हो जाती है और पूरे शरीर में एक नयी ताजगी पैदा हो जाती है।

50. सिर का दर्द :

  • भांगरे के तेल को ठंडा करके सिर पर लगाने से और तेल की मालिश करके ठंडे पानी की पटि्टयों को सिर पर रखने से गर्मी के दिनों में धूप में घूमने के कारण होने वाला सिर दर्द खत्म हो जाता है।
  • भांगरे के रस और बकरी के दूध को बराबर मात्रा में मिलाकर धूप में रखकर गर्म करें। इसको सूंघने से सिर का दर्द और आधासीसी का दर्द भी ठीक हो जाता है।
  • भांगरे के रस और गाय के दूध को बराबर मात्रा में लेकर पीने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
  • दशमूल की जड़ों से निकाले तेल और भांगरे के तेल को लगाने से तेज सिर दर्द दूर हो जाता है।
  • 1 भाग भांगरा (भृंगराज) का रस, 2 भाग पानी, 5 भाग कांजी बेरी का रस, 3 भाग सहजना और 6 भाग तुम्बी के रस में 4-4 ग्राम की मात्रा में इमली, सौंठ, परवल, हल्दी, अडूसा, सेंधानमक, सौंठ, हरड़ और तुलसी का बारीक चूर्ण मिलाकर इसको एक चौथाई सरसों के तेल में मिलाकर पका लें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसको ढक्कन वाली बोतल में भरकर रख दें। इस तेल को सूंघने से सिर के सभी रोग दूर हो जाते हैं। 

51. सौंदर्यप्रसाधन : भंगरैया से बने तेल को नस्य (नाक में डालने से) उम्र से पहले पके या सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं।

52. दीर्घजीवी या लम्बी उम्र : लगभग 25 किलो की मात्रा में काला भांगरा (भृंगराज), 20 किलो अशुद्ध भिलावें, 10 किलो हरड़, 10 किलो की मात्रा में बहेड़ा और 10 किलो की मात्रा में आंवला को लेकर इन सबको मोटा-मोटा पीसकर जून और जुलाई के महीने में आम के पेड़ के तने के चारों ओर गड्ढा बनाकर मिट्टी में दबा दें। इसके बाद जब आम के पेड़ में बौर आयेंगे तो वे सभी काले रंग के होते हैं। इन बौरों को पेड़ से तोड़कर छाया में अच्छी तरह से सुखाकर बारीक पीस लें और रख लें। अब रोजाना लगभग 15 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को दूध के साथ सेवन करें। इसके सेवन करने से चेहरे से झुर्रियां खत्म हो जाती हैं और सफेद बाल भी काले हो जाते हैं। बूढ़ा व्यक्ति भी जवान दिखाई देने लगता है। इसके सेवन के साथ फल और दलिया का खूब सेवन करें। इसको लगभग 4 महीने तक खायें।

53. बलवीर्य की वृद्धि :

  • जलभांगरा (भृंगराज) के रस में सोने की भस्म को मिलाकर सेवन करने से मनुष्य के संभोग करने की क्षमता बढ़ती है।
  • 100 ग्राम की मात्रा में भांगरा (भृंगराज), 200-200 ग्राम की मात्रा में काले तिल और आंवलों को लेकर, पीसकर चूर्ण बना लें, इसके बाद इस चूर्ण में 50 ग्राम मिश्री मिला लें और इसमें घी मिलाकर बर्तन में रख दें। अब इस मिश्रण को 10 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को गाय के दूध के साथ लेने से शरीर में ताकत आती है और इसके अलावा बाल काले रहते हैं।

भांगरा (भृंगराज) के दुष्प्रभाव : Bhangra (Bhringraj) ke Nuksan

भांगरा (भृंगराज) का अधिक मात्रा में उपयोग गर्म स्वभाव वालों के लिए हानिकारक होता है।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

Leave a Comment

Share to...