Last Updated on July 22, 2019 by admin
शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग : Hindi Motivational Storie
★ स्वामी दयानंद का ब्रह्मचर्य बल बड़ा अदभुत था। वे शरीर से हृष्ट-पुष्ट, स्पष्टभाषी एवं निडर व्यक्तित्व के धनी थे। उनके संयम का ही प्रबल प्रभाव था कि विरोधियों ने उन्हें 22-22 बार जहर देने की कुचेष्टा की, किन्तु उनके शरीर ने उसे दूध-घी की तरह पचा दिया।
★ एक बार अलीगढ़ में वे एक मुसलमान के यहाँ ठहरे हुए थे। अपना भोजन स्वयं बनाकर खाते एवं शाम को ‘कुराने शरीफ’ पर प्रवचन करते। वे कहतेः “एक तरफ तो बोलते हो कि ‘ला इल्लाह इल्लिल्लाह… अल्लाह के सिवाय कोई नहीं है। सबमें अल्लाह है….’ और दूसरी तरफ बोलते हो कि हिन्दुओं को मारो काटो… वे काफिर हैं… ‘ये कैसे नालायकी के विचार हैं !’ एक दिन गाँव के आगेवानों ने उनसे कहाः
★ “स्वामी जी ! आप एक मुसलमान के घर रहते हैं और मुसलमानों को खरी-खोटी सुनाते हैं। थोड़ा तो ख्याल करें !’
★ इस पर उन निर्भीक बाबा ने कहाः “जिनके यहाँ रहता हूँ उनको अगर सत्य सुनाकर उन की गलती नहीं निकालूँगा तो फिर और किसको सत्य सुनाऊँगा ?”
★ एक बार जोधपुर के महाराज जसवंत सिंह (द्वितीय) एक वेश्या के साथ सिंहासन पर बैठे हुए थे। वे उस वेश्या पर बड़े आसक्त थे। तभी संदेशवाहक ने राजा को सावधान किया कि संन्यासी दयानंद पधार रहे हैं। दयानंद जी का नाम सुनते ही जसवंत सिंह के हाथ-पाँव फूल गये। उन्होंने शीघ्र पालकी मँगवायी और वेश्या को जाने को कहा।
★ जल्दबाजी में पालकी एक ओर झुक गयी। जसवंत सिंह ने आगे बढ़कर पालकी को सँभालने के लिए कंधा दे दिया। ठीक उसी समय ऋषि दयानंद जी वहाँ पधारे। महाराजा को वेश्या की पालकी को कंधा देते देखकर दयानंदजी ने सिंहगर्जना कीः “सिंहों के सिंहास पर कुतिया का राज ! इन कुतियों से कुत्ते ही पैदा होंगे।” सारा दरबार थर्रा उठा और दयानंद जी वहाँ से लौट गये। एक राजा वेश्या की गुलामी करे यह बात उन्हें बिल्कुल सहन न हुई और परिणामों की परवाह किये बिना, निर्भयतापूर्वक उन्होंने उसे धिक्कार भी दिया।
★ एक बार किसी ने स्वामी जी से पूछाः “आपको कामदेव सताता है या नहीं ?” इस पर उन्होंने उत्तर दियाः “हाँ वह आता है, परंतु उसे मेरे मकान के बाहर ही खड़े रहना पड़ता है क्योंकि वह मुझे कभी खाली ही नहीं पाता।”
★ ऋषि दयानंद कार्य में इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें इधर-उधर की बातों के लिए फुर्सत ही नहीं थी। यही उनके ब्रह्मचर्य का रहस्य था।
★ यह बात सच है कि मन को कामवासना से हटाना बहुत कठिन है लेकिन उसे एक बार भी वश कर लोगे तो वह जिंदगी भर तुम्हारे कहने में चलेगा। केवल ब्रह्मचर्य का पालन किया जाय तो अल्पकाल में ही सारी विद्याएँ आ जाती हैं, श्रुतिधर एवं स्मृतिधर हुआ जा सकता है। ब्रह्मचर्य के अभाव में हमारे देश की भी बड़ी हानि हो रही है। प्रजा के रूप में हम निर्बल होते जा रहे हैं एवं सच्ची मनुष्यता खोते जा रहे हैं। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मन की एकाग्रता एवं स्मरणशक्ति का तीव्रता से विकास होता है।
★ ब्रह्मचर्य सभी अवस्थाओं में विद्यार्थी, गृहस्थी, साधु-संन्यासी, सभी के लिए अत्यन्त आवश्यक है। सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। चाहे बड़ा वैज्ञानिक हो या दार्शनिक, विद्वान हो या बड़ा उपदेशक, सभी को संयम की जरूरत है। स्वस्थ रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है, सुखी रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और सम्मानित रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।
★ स्वामी विवेकानन्द के जीवन में संयम था तभी तो उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय अध्यात्मज्ञान का ध्वज फहरा दिया।
★ हे भारत के युवान व युवतियों ! यदि जीवन में संयम, सदाचार को अपना लो तो तुम भी महान-से-महान कार्य करने में सफल हो सकते हो।