Last Updated on June 15, 2020 by admin
वृद्धावस्था में होने वाले फैक्चर : Budhape mein Haddi Tutna
जीवन के उत्तरार्ध में उम्र के बढ़ने के साथसाथ अस्थियों एवं जोड़ों की तकलीफें बढ़नी भी शुरू हो जाती हैं। अधिकांश उम्रदराज लोग इन के रोगों से कम या अधिक मात्रा में पीड़ित होते हैं और कष्ट सहते रहते हैं।यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जहां शरीर के अन्य भागों और अंगों की कार्यपद्धति में शिथिलता आने लगती है। शरीर के कलपुरजे सामान्य गतिविधियों में भी पूरी तरह साथ नहीं दे पाते और शारीरिक क्षमता में क्षरण शुरू हो जाता है।
ऐसी अवस्था में जोड़ों में विकार पैदा हो जाना या हड्डियों का मामूली चोट से टूट जाना आम बात है। वृद्धावस्था में प्रायः रहने वाले विकार जैसे दमा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, शारीरिक शिथिलता एवं रोग प्रतिरोधिता में कमी बीमारी की उग्रता और जटिलता को और बढ़ा देते हैं।
इस के अलावा मानसिक कमजोरी, परावलंबन और निकट संबंधियों की अवहेलना और लापरवाही भी परेशानी खड़ी कर सकती है।
इन सब के लिए उत्तरदायी है हड्डियों का क्षरण, जिस के फलस्वरूप उन में खोखलापन आने लगता है और वे मजबूती से शरीर का वजन और लोच सहन नहीं कर पातीं।स्त्रियों में यह स्थिति रजोनिवृत्ति के पश्चात शुरू होती है तो पुरुषों में पचास वर्ष की उम्र के बाद। स्त्रियों में इस का कारण इस्ट्रोजेन नामक हारमोन की कमी माना गया है तो पुरुषों में अंड्रोजेन नामक पुरुष हारमोन की कमी इस स्थिति को जन्म देती है।
सामान्य गतिविधियों में कमी और शारीरिक व्यायाम का अभाव भी इस रोग को बढ़ाता है। दर्द या सूजन की वजह से यदि किसी भाग की हलचल रोक दी गई हो तो उस विशेष भाग में यह विकार पैदा हो जाता है। गुर्दे संबंधी रोग या स्टीराइड दवाओं का अत्यधिक प्रयोग या समुचित पोषक आहार का अभाव भी रोग को बढ़ाता है।
वृद्धावस्था में होने वाले फैक्चर के लक्षण : Haddi Tutne ke Lakshan in Hindi
अधिकांश समय में रोगी वृद्ध स्त्री होती है जो ऊपरी तौर से स्वस्थ और सामान्य दिखाई देती है। कुछ में कोई शारीरिक कमी होती है तो कुछ को बीचबीच में दर्द के दौरे पड़ते हैं। अकसर यह दर्द रीढ़ की हड्डियों, कमर, कंधे के आसपास या कलाइयों में अधिक दिखाई पड़ता है। इस का कारण मामूली चोट के फलस्वरूप इन भागों की हड्डियों में दरार पड़ जाना या टूट जाना है। उन के जुड़ते ही दर्द कम होने लगता है। कुछ मरीजों की रीढ़ की हड्डियों के खिसकने या दब जाने के कारण कमर में स्थायी रूप से दर्द रहने लगता है और उन्हें उठनेबैठने में परेशानी होने लगती है। इस से कई बार रीढ़ में स्थायी विकार पैदा हो कर कमर का झुक जाना, टेढ़ा हो जाना या मुड़ जाना जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती हैं।
वृद्धावस्था में होने वाले फैक्चर का उपचार : Haddi Tutne ka ilaj in Hindi
- नियमित हलकीफुलकी कसरत, शरीर के सभी भागों में रक्त संचारण बढ़ाती है जिस से हड्डियों का क्षरण कम मात्रा में होता है|
- इस के अलावा स्टीराइड दवाओं का इस्तेमाल (यदि किया जा रहा हो तो) भी बंद कर दिया जाना चाहिए।
- स्त्रियों में इस्ट्रोजेन हारमोन की गोलियां चिकित्सक की देखरेख में ली जा सकती हैं।
- इस के अलावा विटामिन ‘डी’ और कैल्सियम भी लेना फायदेमंद रहता है।
- गाय के दूध में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम होता है, इसलिए उस का भरपूर उपयोग करें।
- उपर्युक्त उपायों के अलावा मोटापा घटाना सर्वाधिक जरूरी है ताकि कमजोर हड्डियों पर कम से कम जोर पड़े।
वृद्धावस्था में फ्रैक्चर (हड्डी का टूटना) के मुख्य प्रकार :
उपर्युक्त कारणों की वजह से कुछ फ्रैक्चर वृद्धावस्था में आमतौर पर देखे जाते हैं, जैसे कंधे के आसपास, कलाई में और कूल्हों में, इस के अलावा रीढ़ की हड्डियों में भी दरार पड़ जाना या एक हिस्सा टूट जाना आम बात है। मगर यह देखा गया है कि अकसर इन बीमारियों को वृद्धावस्था की स्वाभाविक स्थिति मान कर टाल दिया जाता है या अधूरा इलाज कर संतोष कर लिया जाता है, जिस के चलते जटिलताएं बढ़ती जाती हैं और घोर संकट पैदा हो जाता है।
वृद्धावस्था में कंधे की हड्डी का टूटना : Shoulder Bone Fracture in Hindi
यह अकसर वृद्ध स्त्रियों को होता है, हाथों के बल गिर जाना या हाथों से जोर का धक्का लगाना इस चोट के लिए जिम्मेदार होता है।
कई बार हड्डी के टूट जाने के बाद भी टूटे हिस्से आपस में इस तरह पैबस्त हो जाते हैं कि ऊपरी तौर पर कोई विकार नहीं दिखाई देता, मरीज कुछ हद तक इस हाथ का इस्तेमाल भी कर लेता है. ऐसी अवस्था में चोट लगने के एकदो दिन बाद कंधे और बाजुओं पर नीले या काले से चकत्ते उभर आते हैं, जो त्वचा के नीचे रक्त के जमा होने के कारण पैदा होते हैं। कुछ दिनों में इन का विस्तार कुहनी तक भी हो सकता है।
मगर अधिकांश समय चोट लगने के पश्चात कंधे में दर्द महसूस होता है, वहां सूजन आ जाती है और उस हाथ की मामूली हलचल भी असहनीय पीड़ा उत्पन्न करती है।
रोग निदान :
कंधे के एक्सरे परीक्षण से रोग का निदान किया जा सकता है।
कंधे की हड्डी टूटने का उपचार : Kandhe ki Haddi Tutne ka ilaj
इस तरह की चोट का संदेह होते ही उस हाथ को सहारा प्रदान किया जाना चाहिए। इस के लिए कपड़े की लंबी पट्टी का घेरा बना कर हाथ और गले में पहना दिया जाना चाहिए।
चोटग्रस्त भाग की मालिश या सेंक खतरनाक सिद्ध हो सकती है। नजदीकी डाक्टर से परामर्श के पहले मरीज को मुंह से कुछ न दें।
रोग निदान के पश्चात चिकित्सक तीन सप्ताह के लिए प्लास्टर चढ़ा देते हैं। हालांकि हड्डी के जुड़ने के लिए यह समय काफी कम है मगर क्योंकि अधिक समय तक हाथ की हलचल को रोक कर रखना कंधे के जोड़ में जकड़न पैदा कर देता है, अतः प्लास्टर के खुलते ही कंधों के व्यायाम करना अत्यधिक जरूरी है। प्लास्टर के रहते हुए भी हाथों और उंगलियों की कसरत करते रहना चाहिए।
इस तरह की चोट में अकसर कोई परेशानी नहीं आती और दो महीने के भीतर मरीज काफी हद तक सामान्य हो जाता है।
वृद्धावस्था में कलाई की हड्डी का टूटना : Kalai ki Haddi Tutna in Hindi
इसे कोलीज फ्रैक्चर भी कहते हैं । यह सर्वाधिक आम चोट है और अकसर वृद्धों में होती है। यह हाथों के बल गिरने के कारण पैदा होती है। कइयों में केवल हड्डी में दरार पड़ती है और बाहरी तौर पर कोई कमी दिखाई नहीं देती, मगर अधिकतर कलाई में तुरंत नजर आ जाने वाली कमी दिखाई पड़ जाती है। हाथ का स्वरूप भोजन करने के लिए काम आने वाले कांटे की तरह दिखाई पड़ता है और इसे ‘डिनर फोर्क डिफारमिटी’ के नाम से भी जाना जाता है। कलाई और हाथ में गहरी सूजन आ जाती है। इस स्थान की हलचल से पीड़ा महसूस होती है।
कलाई की हड्डी टूटने का उपचार : Kalai ki Haddi Tutne ka ilaj
इस में चिकित्सक मरीज को बेहोश कर हड्डियों को बाहर से ही यथास्थान पर ला कर प्लास्टर लगा देते हैं। यह प्लास्टर छह हफ्तों तक लगाए रखना होता है, जिस के पश्चात उसे निकाल कर भौतिक उपचार द्वारा कलाई और उंगलियों की अकड़न दूर कर दी जाती है। प्लास्टर चढ़ाने के पश्चात भी हर दो सप्ताह में एक्सरे द्वारा कलाई के जोड़ की निगरानी रखना अत्यंत जरूरी है क्योंकि अकसर प्लास्टर के भीतर भी हड्डियों के खिसक जाने की संभावना रहती है।
विशेष जानकारी :
इस तरह के फ्रैक्चर का संदेह होते ही चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए और उपचार करवाना चाहिए। क्योंकि उचित चिकित्सा न मिलने पर हड्डियों के गलत तरीके से जुड़ जाने और कलाई में स्थायी विकार आने की संभावना रहती है।
वृद्धावस्था में कूल्हे की हड्डी का टूटना : Kulhe ki Haddi Tutna in Hindi
साठ वर्ष की उम्र के पश्चात होने वाले फ्रैक्चरों में इस का स्थान प्रमुख है। बढ़ती उम्र के साथ होने वाली अस्थि दुर्बलता इस का कारण है, जिस के फलस्वरूप एक हलकी सी चोट या फिसल कर गिर जाने से भी कूल्हे की हड्डी टूट जाती है।
कूल्हे की हड्डी टूटने के लक्षण : Kulhe ki Haddi Tutne ke Lakshan in hindi
कई बार मरीज बैठी या लेटी अवस्था से उठने लगता है और कमजोरी की वजह से या चक्कर आ जाने से वह गिर पड़ता है। फिसलन भरे प्रसाधन गृह में रपट जाना भी इस का कारण बन सकता है। दृष्टि मंद हो जाने की वजह से या रात में मूत्रत्याग के लिए जाते वक्त ठोकर लग जाने से भी यह दुर्घटना हो सकती है।
जिन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत हो, उन्हें भी अचानक रक्तचाप बढ़ने से चक्कर आ सकता है और गिरने से हड्डी टूट सकती है।
यदि ऐसा हो तो मरीज गिर जाने के बाद अपने आप उठ नहीं पाता या सहारा दिए जाने पर उठ सकता है, मगर उस पैर पर वजन दिए जाने पर या उस पैर को हिलाने पर कूल्हे में अत्यंत पीड़ा होती है। चोटग्रस्त पैर सामान्य पैर के मुकाबले लंबाई में छोटा हो जाता है और पैरों का पंजा बाहर की ओर मुड़ा हुआ दिखाई देता है।
रोग निदान :
कूल्हों का एक्सरे परीक्षण हड्डी के टूटने और उस की तीव्रता का निदान कर देता है।
कूल्हे की हड्डी टूटने का उपचार : Kulhe ki Haddi Tutne ka ilaj
इस स्थान के किसी भी फ्रैक्चर का उपाय शल्यक्रिया है। क्योंकि यह शरीर का वजन ढोने वाला हिस्सा है, अतः इस में किसी भी तरह की कसर या कमजोरी दैनिक कार्यकलापों पर रोक लगा सकती है या विकलांगता उत्पन्न कर सकती है। इसलिए शल्यक्रिया द्वारा ही इसे मजबूती प्रदान की जा सकती है।
शल्यक्रिया की अनेक विधियां है जिन्हें मरीज की उम्र, उस की शारीरिक परिस्थितियों और प्रैक्चर की विविधता के अनुसार अपनाया जाता है। इस में प्रमुखता से उपयोग की जाने वाली विधियां हैं –
- टूटे भागों को कील, प्लेट या स्क्रू द्वारा आपस में जोड़ देना।
- हड्डी के टूटे सिरे को निकाल कर स्टील का सिर उस टूटे भाग पर स्थापित कर देना।
- कूल्हे के जोड़ को निकाल कर मानव निर्मित कूल्हे द्वारा बदल देना। चूंकि वृद्धावस्था में लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रहना कई जटिलताओं को जन्म दे सकता है, जैसे पीठ में फोड़े हो जाना, खांसी या न्यूमोनिया हो जाना, हृदयाघात या फेफड़ों में रक्त संचार का अवरुद्ध हो जाना, कब्ज, जोड़ों में जकड़न आदि। अतः इन उपर्युक्त उपायों द्वारा मरीज को शल्यक्रिया के तुरंत बाद ही चलाया जा सकता है, जिस से जटिलताओं के उभरने की संभावना कम हो जाती है।
अभी भी आम मान्यता यह है कि वृद्धावस्था में मरीज शल्यक्रिया सहन नहीं कर पाता और अनुचित और अनपेक्षित घटना घट सकती है, मगर यह सोच गलत है। यह सच है कि बढ़ती उम्र के साथ मनुष्य की प्रतिरोधक शक्ति कम होती जाती है, मगर आधुनिक उपकरणों दवाओं और जांच माध्यमों के चलते इन की संभावना पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है।अब तो अस्सीनब्बे वर्ष की आयु के मरीज भी बड़ी से बड़ी शल्यचिकित्सा बिना किसी परेशानी के सह लेते हैं और पूर्णतया स्वस्थ हो जाते हैं। अतः आज के युग में उम्र इस तरह की चिकित्साओं में बाधक नहीं है और मरीज को लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रह कर यंत्रणा भुगतने की जरूरत नहीं रही है।
अंत में :
वृद्धावस्था की बेहतरी न केवल उस के शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है, बल्कि उसे मानसिक राहत भी मिलनी चाहिए। इस उम्र में जब मनुष्य को अनेक व्याधियां घेर लेती हैं, उन का समयोचित इलाज करवाना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि ऐसी अवस्था में सहन शक्ति कम रहती है, युवा पीढ़ी से एक असहज फासला बन जाता है और एकाकीपन का एहसास अधिक रहता है।
ऐसे में इन की तकलीफों की ओर एक सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण अपनाना उन के परिवार का कर्तव्य है।अतः इन का इलाज योग्य चिकित्सकों द्वारा करवाना समय की जरूरत है।