Last Updated on July 16, 2021 by admin
अजीर्ण बुखार के कारण लक्षण व उपचार : Fever Treatment in Hindi
कारण :
★ अजीर्ण एक ऐसा रोग होता है जिसके रहते मनुष्य का मन किसी काम में नहीं लगता है। अजीर्ण ज्वर समय-बेसमय खाने से, बासी या गरिष्ठ भोजन से भी हो जाता है। कुछ लोगों को हर समय काम रहता है जिसके चलते वे कभी दोपहर को खा लेते हैं या कभी चाट-पकौड़ी खाकर ही दिन गुजार लेते हैं। सच बात तो यह है कि उनको इसका पता भी नहीं रहता कि हमारी आंतें लोहे की नहीं बनी हैं वे बहुत मुलायम होती है, उनके दांत नहीं होते हैं। तब भी लोग जल्दी-जल्दी खाना खाकर उठ जाते हैं या फिर खाने के बाद अधिक मात्रा में पानी पी लेते हैं जो लोग प्यास को मार लेते हैं, मल या पेशाब को रोके रहते हैं क्योंकि उनके कथनानुसार उन्हें फुर्सत नहीं होती है। ऐसे लोगों को भी अजीर्ण बुखार हो जाता है।
लक्षण :
★ अजीर्ण ज्वर में खाये हुए भोजन का नहीं पचना, खट्टी डकारों का आना, भूख नहीं लगना आदि लक्षण पाए जाते हैं।
अजीर्ण बुखार के परहेज :
★ तला हुआ भोजन, हलवा और खीर का प्रयोग अजीर्ण ज्वर से पीड़ित रोगी को नहीं करना चाहिए।
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बुखार का आयुर्वेदिक उपचा : Bukhar ka Ayurvedic Upchar
1. आंवला : आंवला, चीता, छोटी हरड़, छोटी पीपल तथा सेंधानमक का बारीक चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण के कारण होने वाला बुखार समाप्त हो जाता है।
2. आम : मांसहार के सेवन से उत्पन्न अजीर्ण में 3 से 6 ग्राम की मात्रा में आम की गुठली का चूर्ण दिन में 2 बार लेने से लाभ मिलता है।
3. हरड़ : 2-3 ग्राम की मात्रा में हरड़ का चूर्ण सुबह और शाम भोजन करने से पहले लेने से अजीर्ण ज्वर खत्म हो जाता है।
4. हर्र : हर्र का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री व किशमिश के साथ लेने से अजीर्ण ज्वर का रोग खत्म हो जाता है।
5. धनिया :
★ अजीर्ण के कारण शरीर विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इस रोग में रोगी का गला सूख जाता है, सीने में जलन होती है, आंतों में खुश्की होती है, काम-धंधे में आलस्य रहता है, सारा उत्साह ठंड़ा पड़ जाता है, कभी-कभी रोगी को ऐसा लगता है कि जैसे उसका सारा उत्साह ठंड़ा पड़ गया है। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है। ऐसी दशा में रोगी चारपाई पर पड़ जाता है। उपरोक्त कारणों से ही अजीर्ण होता है।
★ 10 ग्राम धनिये के दाने, 3 ग्राम हरड़, 3 ग्राम सोंठ और 1 ग्राम सेंधानमक को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इसे सुबह-शाम गर्म पानी से लगभग 2 ग्राम की मात्रा में लेने से अजीर्ण बुखार उतर जाता है और इसके बाद की अन्य शिकायतें भी दूर हो जाती हैं।
★ अजीर्ण ज्वर में धनिया, नमक और अदरक की चटनी भी लाभदायक होती है। इस चटनी को भोजन के साथ लेना चाहिए। अदरक स्वयं एक औषधि है। परन्तु जब यह हरे या सूखे धनिये के साथ मिल जाती है तो इसके गुण सातवें आसमान तक पहुंच जाते हैं।
6. आक : आक के छने हुए पत्ते के रस में बराबर मात्रा में ग्वारपाठे का गुदा व शक्कर मिलाकर पकाएं। शक्कर की चाशनी बन जाने पर ठंड़ा करके बोतल में भर लें तथा आवश्यकतानुसार 2 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करायें। यह 6 महीने की उम्र के बच्चे से लेकर 10 साल तक की उम्र के बच्चों के अनेक रोगों में सहायक होता है।
7. तुलसी :
★ तुलसी के 20 पत्ते और 5 कालीमिर्च भोजन करने के बाद चबाने से मन्दाग्नि ठीक हो जाती है। तुलसी के काढ़े में सेंधानमक और सोंठ मिलाकर पीने से हिचकी बन्द हो जाती है।
★ 7 तुलसी का पत्ता प्रतिदिन सुबह सेवन करने से पेट के सभी रोग ठीक हो जाते हैं जैसे- कब्ज, गैस, पेट अग्निमान्द्य आदि।
8. अजमोद : अजमोद, हरड़, कचूर तथा कालानमक को पीसकर चूर्ण बनाकर सेवन करने से अजीर्ण के कारण होने वाला बुखार समाप्त हो जाता है।
9. गिलोय : गिलोय, सोंठ, नागरमोथा, छोटी पीपल तथा चिरायता का काढ़ा बनाकर पीने से अजीर्ण से उत्पन्न बुखार कम हो जाता है।
10. पित्तपापड़ा : पित्तपापड़ा तथा कटेरी का काढ़ा पीने से अजीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है।