इसे खाइए जड़ से खत्‍म हो जाएगा कैंसर | Foods to Fight Cancer

Last Updated on July 22, 2019 by admin

भोजन को कैंसर से बचाव और उपचार का महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। अमेरिकन नेशनल कैंसर संस्थान के अनुसार हर तरह के कैंसर में से लगभग एक तिहाई कैंसर भोजन से सीधे ही जुड़े होते हैं। इसलिए भोजन के लिए सही पदार्थों के चुनाव के द्वारा नए तरीकों के कैंसर और उनसे होनेवाली मौत से बचाव संभव है। कैंसर सामान्यतः एक लंबी अवधि में विकसित होता है। शोधों द्वारा यह सामने आया है कि व्यक्ति जो भी खाता है, कैंसर की उत्पत्ति और उसे फैलाने में उसका बड़ा योगदान होता है साथ ही कुछ पदार्थों को आहार में शामिल करने से कैंसर के प्रसार को रोका भी जा सकता है। भोजन उन रासायनिक प्रक्रियाओं को रोक सकता है जिनसे कैंसर फैलता है। एंटी ऑक्सीडेंटस और विटामिन कार्सिनोजींस को खत्म कर सकते हैं और उनके द्वारा कोशिकाओं में हुई हानि का भी उपचार कर सकते हैं। जब कैंसर प्रारंभिक अवस्था में हो तब भी कुछ खास भोजन के द्वारा इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यहां तक कि कैंसर के अंतिम चरण में आए मरीज की उम्र भी सही भोजन द्वारा कुछ साल बढ़ाई जा सकती है।

भोजन जो कैसर से मुकाबला करते हैं और उसे नियंत्रित करते हैं :

चुकंदर का रस, पत्तागोभी और गोभी परिवार की अन्य सब्जियां, गाजर, खट्टे फल, दही, रेशयुक्त भोजन, फल और सब्ज़ियां, लहसुन और प्याज, अंगूर, हरी सब्ज़ियां, आंवला, मुलैठी, नीम, दूध, जैतून का तेल, पपीते की पत्तियां, कच्चे भोजन, सोयाबीन, टमाटर, विटामिन सी और ए की अधिकता वाले भोजन, गेहूं की घास या जवारे का रस

1-चुकंदर का रस –

चुकंदर के रस में कैंसररोधी गुण होते हैं अतः इसे कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे सब्ज़ियों के रस में श्रेष्ठ माना जाता है और यह प्राकृतिक शर्करा का अच्छा स्त्रोत है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन, लौह तत्व, तांबा, विटामिन बी 1, बी 6, सी और पी होते हैं। यह रस पित्ताशय को उत्तेजित करता है और विषाक्तता दूर करता है जिससे कैंसर के उपचार में बहुत मदद मिलती है। चुकंदर में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जिससे कैंसर के उपचार में मदद मिलती है। इस रस की आधा गिलास मात्रा को दिन में तीन बार लिया जाना चाहिए। लैक्टिक अम्ल से खमीरीकृत किया हुआ और संतुलित रस शरीर की कोशिकाओं के ऑक्सीकरण की दर को बढ़ाता है। इस रस को जड़ और तने दोनों से निकालना चाहिए।

2-पत्तागोभी और अन्य गोभी कुल की सब्ज़ियां –

पत्तागोभी और इसी कुल की अन्य सब्ज़ियां जैसे ब्रोकोली, छोटी गोभी, फूल गोभी आदि ऐसे भोज्य पदार्थ हैं जो शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा को नियंत्रित करके स्तन कैंसर और अन्य प्रकार के कैंसर की रोकथाम करते हैं। एस्ट्रोजन की अधिकता स्तन कैंसर का कारक बनती है। ये सब्ज़ियां एस्ट्रोजन के चयापचय की गति को भी बढ़ाती है जिससे एस्ट्रोजन की कम से कम मात्रा शरीर में रह पाती है। यह शोध न्यूयार्क सिटी के हारमोन शोध संस्थान में डा. जान माइकोविज और उनके साथियों द्वारा किया गया।
इस शोध से यह सामने आया कि इन सब्ज़ियों में उपस्थित कुछ विशेष तरह के इन्डोल्स के प्रभाव से स्तन कैंसर उत्पन्न करनेवाले एस्ट्रोजन को त्वरित प्रभाव से निष्क्रिय किया जाता है या शरीर के बाहर निकाला जाता है। डा. माइकोविज के अनुसार महिलाओं और पुरुषों पर किए गए प्रयोग से यह सामने आया कि गोभी में उपस्थित यौगिक एस्ट्रोजन के निष्क्रियीकरण की प्रक्रिया को 50 प्रतिशत बढ़ा देते हैं। इस शोध में गोभी की मात्रा इतनी ही थी, जितने लोग सामान्यतः खा सकें। 400 ग्राम कच्ची गोभी में करीब 500 मिग्रा. इन्डोल-3 कार्बिनोल मौजूद होता है जो कि लाभदायक होता है। इससे कम मात्रा लेने पर भी एस्ट्रोजन की मात्रा शरीर में घटती है। यह प्रमाणित हो चुका है कि जिन महिलाओं में एस्ट्रोजन के विघटन की दर तेज होती हैं उन्हें इससे होनेवाले कैंसर जैसे स्तन कैंसर, गर्भाशय और उससे संबंधित भागों का कैंसर होने का खतरा नहीं होता। गोभी को कच्चा इस्तेमाल में लाना भी बड़ी आंत के कैंसर को रोकने में काम आ सकता है, ऐसा डा. जिम ड्यूक का कहना है, जो यूएस के कृषि विभाग में कार्यरत है, और जिनके परिवार में इस प्रकार के रोगी रहे हैं। उनके अनुसार उनकी बड़ी आंत में उपस्थित कैंसर के लक्षण तेजी से घटने लगे, जब उन्होंने कच्ची गोभी अधिक मात्रा में लेना शुरू किया।

3-गाजर –

गाजर जो बीटा केरोटिन का सबसे अच्छा स्रोत है, इसे भी फेंफड़ों के कैंसर के इलाज में उपयोगी पाया गया है। बीटा केरोटिन संतरी रंग का एक वर्णक है जिसे 150 साल पहले गाजर से अलग किया गया था। यह फेफड़ों के कैंसर के लिए उपचार का काम करता है। न्यूयार्क के बुफेलो विश्वविद्यालय में हुए शोध से यह पता चलता है कि सप्ताह में एक बार बीटा केरोटिन की अधिकतावाली सब्ज़ियां खाने से फेफड़ों के कैंसर आश्चर्यजनक रूप से कम होने लगते हैं। एक कच्चे गाजर को सप्ताह में कम से कम इसे हटायें दो बार खाने से फेफड़ों के कैंसर के लक्षण 60 प्रतिशत तक घट जाते हैं। बीटा केरोटिन की कैंसररोधी शक्ति इसके एंटीऑक्सीडेंट गुणों और कैंसर के प्रति प्रतिरोधी शक्ति उत्पन्न करने, दोनों ही के कारण आती है और ये दोनों ही कैंसर पर नियंत्रण हेतु ज़रूरी होते हैं। गाजर का रस चमत्कारी माना जाता है। यह कैंसर के उपचार और उससे बचाव दोनों में ही बहुत लाभदायक पाया गया है।

मैरी सी होगल जो कनास विश्वविद्यालय की स्नातक है। और पोषण और भोजन रसायन विषय की छात्रा है, अपनी पुस्तक में बताती है कि जब उनके बारे में यह कहा जाने लगा था कि वे ठीक नहीं हो सकती, तब उन्होंने गाजर के रस के साथ अन्य भोजन मिलाकर अपनी चिकित्सा की। उनकी पुस्तक भोजन जो क्षारीकरण करते हैं और इलाज करते हैं में वे अपने बारे में संक्षेप में बताती हैं और यह भी सुझाव देती हैं कि क्या खाया जाए और किसके साथ मिलाकर खाया जाए। उनका विश्वास है कि गाजर का रस ताकतवर क्षार है। उनके शब्दों में गाजर के रस की खासियत है इसमें विटामिन ए की बहुलता होना। विटामिन ए को संक्रमणरोधी विटामिन कहा जाता है चूंकि यह उपकला के स्तर तक जाकर त्वचा, म्यूकस झिल्ली और ग्रंथियों में से संक्रमण को दूर करता है और प्रतिरोधी शक्ति उत्पन्न करता है। विटामिन ए को सारे संक्रमणों से लड़ने के लिए आवश्यक तत्वों में से एक माना जाता है। वे गाजर के बारे में आगे बताती हैं, गाजर के रस ने अपने आप को क्षारीकरण करनेवाले पदार्थ के रूप में स्थापित किया है। ऐसा निस्संदेह एक स्तर तक तो होता है क्योंकि सामान्यतः हम गाजर के रस का अधिक मात्रा का सेवन करते हैं और शरीर इसमें उपस्थित क्षारों को आवश्यकतानुसार उपयोग में लाता है। इसे पीने से किसी तरह के अतिरिक्त प्रभाव भी सामने नहीं आते।

4-खट्टे फल –

खट्टे फल जैसे अंगूर, संतरा, हरा नींबू, नींबू आदि में कैंसररोधी गुण होते हैं। विषविज्ञानी हर्बर्ट पिमर्सन, पीएचडी अमेरिकन कैंसर संस्थान के अनुसार खट्टे फल कैंसर का सामना करने के लिए उपयुक्त होते हैं क्योंकि इनमें केरोटिनायड, लेवेनायड, टपस, लिमोनायड और क्यूमेरिन्स आदि पदार्थ होते हैं जो कि कैंसर उत्पन्न करनेवाले कार्सिनोजन को निष्क्रिय करने की शक्ति रखते हैं।

एक विश्लेषण से यह पता चला है कि खट्टे फलों में 58 कैंसररोधी रसायन होते हैं जो किसी भी अन्य भोज्य सामग्री से अधिक है। डा. पियर्सन आगे कहते हैं इन फलों की खूबी यही है। कि इनमें प्राकृतिक मिश्रण के रूप में कई तरह के फायटोकेमिकल्स होते हैं जो एकल रूप से भी अधिक उत्कृष्टता से काम करते हैं। दूसरे शब्दों में सभी खट्टे फल कैंसररोधी रसायनों का बढ़िया मिश्रण होते हैं। ऐसा ही एक पदार्थ ग्लूटाथोयिन है। संतरे में भी कैंसररोधी रसायन अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। मगर जब इसका रस निकाला जाता है तो इसमें ग्लूटाथोमिन की मात्रा कम हो जाती है। संतरे में ग्ल्यूकेरेट नामक कैंसर रोधी पदार्थ भी खासी मात्रा में पाया जाता है। कुछ विशेषज्ञ दावा करते हैं कि अमेरिका में खट्टे फलों की मात्रा भोजन में बढ़ाने से आमाशय के कैंसर के रोगियों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से कमी आई है।

5-दही –

दही बड़ी आंत के कैंसर की रोकथाम के लिए ताकतवर पदार्थ का काम करता है। इसमें विटामिन डी और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है और ये दोनों ही पदार्थ कैंसर से बचाव में सहायक होते हैं। शोधों के निष्कर्ष यह बताते हैं कि दही में उपस्थित लेक्टो बैसिलस एसिड़ोफिलस जीवाणु एंजाइम की उन गतिविधियों को रोकते हैं जो हानिरहित पदार्थों को भी कैंसर फैलानेवाले रसायनों में बदल देती हैं। यह तथ्य अग्रणी शोधकर्ता बैरी आर गोल्डिंन और शेरवुड एल गोरबाश (न्यू इंग्लैंड मेडिकल सेंटर) द्वारा किए गए शोधों से सामने आया है। इनके शोध में व्यक्तियों को रोज़ दो गिलास सादा दूध पीने के लिए दिया गया। इसके बाद उन्हें एसिड़ोफिलस जीवाणुओं से युक्त दूध दिया गया। इसके बाद शोधकर्ताओं ने उनकी बड़ी आंतों में होनेवाली एंजायम गतिविधि का अध्ययन किया। यह देखा गया कि साधारण दूध की तुलना में एसिड़ोफिलस दूध ने हानिकारक एंजायम की गतिविधि को 40 से 80 प्रतिशत तक कम कर दिया था। इसका अर्थ है इस दूध ने कैंसर फैलानेवाली गतिविधियों को आश्चर्यजनक रूप से कम कर दिया था।

6-रेशों की बहुलता वाला भोजन –

रेशों की बहुलातावाले भोजन भी कैंसर से लड़ने में मदद करते हैं। एक विशेषज्ञ डा. ग्रीनवॉल्ड के अनुसार रेशेयुक्त भोजन बड़ी आंत के कैंसर की रोकथाम में सहायक होता है। पिछले 20 सालों में उन्होंने इस पर 37 शोध किए जिनके निष्कर्ष बताते हैं कि रेशे की अधिकता वाले भोजन के सेवन से आंतों के कैंसर की संभावना 40 प्रतिशत घट जाती है। रेशों के सबसे अच्छे स्रोत गेहूं का चोकर, साबुत अनाज जैसे गेहूं, चावल, जौ, सब्ज़ियां जैसे आलू, गाजर, शलजम, चुकंदर और शकरकंदी, फल जैसे आम और अमरूद तथा पत्तेदार सब्ज़ियां जैसे पत्ता गोभी, सलाद पत्ता और अजवायन का पत्ता हैं।

7-फल और सब्जियां –

1970 से भोजन और कैंसर के बीच संबंध खोज पाने के लिए किए गए शोधों ने यह सिद्ध किया है कि फल और सब्जियां कैंसर की रोकथाम कर सकती हैं। सामान्यतः हमारे भोजन में रोज दो सर्विग फल और तीन सर्विग सब्ज़ियां शामिल होनी चाहिए। इसकी मात्रा बढाने से कैंसर की रोकथाम हो सकती है। एक सर्वांग का अर्थ है 100 से 150 ग्राम कच्चे, कटे हुए फल या सब्ज़ियां, 70 से 85 ग्राम कच्ची हरी सब्ज़ियां, एक सामान्य आकार का फल या 170 मिली फल या सब्ज़ियों का रस भोजन में लिया जाना।

8-लहसुन और अदरक –

लहसुन और अदरक से 30 से अधिक ऐसे यौगिकों की पहचान की गई है जो कि कैंसर की कोशिकाओं से लड़ने में सहायक होते हैं। इन यौगिकों में डाई एलायल सल्फाइड, क्यूरेसेटिन और एजोइन शामिल हैं। जानवरों में कैंसर फैलानेवाले हानिकारक तत्व जैसे नाइट्रोसेमाइंस और एलेटोक्सिन जिनसे पेट, फेफड़ों और पित्ताशय का कैंसर होता है, की क्रियाओं को रोकते हैं। जानवरों को लगातार लहसुन खिलाने से कैंसर की आशंका कम होती जाती है। हार्वर्ड के वैज्ञानिकों ने चूहे के समान प्राणी हैमस्टर को पानी के साथ प्याज देकर उसे कैंसर के लिए प्रतिरोधी बनाया।

लहसुन पर शोध करनेवाले माइकल वार्गोविच जो हस्टन के कैंसर शोध संस्थान के एम.डी. हैं, उन्होंने चूहों पर इसका प्रयोग किया और चूहों के दो समूह बनाए। एक समूह को लहसुन से निकाला गया डाई एलायल सल्फाइड दिया गया जबकि दूसरे समूह को सामान्य भोजन दिया गया। दोनों ही समूहों को कैंसर उत्पन्न करनेवाले रसायन भी दिए गए। प्रयोग के बाद यह देखा गया कि लहसुन को आहार में लेनेवाले चूहों में आंतों का कैंसर विकसित नहीं हुआ था जबकि दूसरे समूह के चूहों में कैंसर के लक्षण पाए गए। इसी तरह पेन स्टेट विश्वविद्यालय के पोषण विभाग के प्रमुख जान मिलर ने चूहों को लहसुन खिलाकर कैंसर की आशंका को 70 प्रतिशत कम कर दिया। मानवों पर किए गए अध्ययन भी बताते हैं कि जो लोग अपने भोजन में लहसुन और प्याज का अधिक उपयोग करते हैं, उनमें कैंसर की आशंका कम होती है। लहसुन कैंसर के विकास को भी रोक सकता है। हाल ही में जर्मनी में किए गए अध्ययन से पता चला है कि लहसुन में उपस्थित यौगिक घातक कोशिकाओं के लिए जहर का कम करते हैं। अतः लहसुन के यौगिक कैंसर की कोशिकाओं का खात्मा उसी तरह से कर सकते हैं जैसे कि कीमो थेरेपी में किया जाता है। इस अध्ययन में यह भी सामने आया कि लहसुन में उपस्थित एजोइन घातक कोशिकाओं के लिए तीन गुना मारक होता है। लहसुन एंटीबायोटिक का काम करते हुए पेट और आंतों के कैंसर को भी समाप्त कर सकता है। ताज़ा शोध बताते हैं कि एच पायालोरी जीवाणु द्वारा फैलाया गया संक्रमण कैंसर का कारण बनता है। डॉ. टिम बायर्स (सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के अनुसार लहसुन इस जीवाणु पर आक्रमण करके कैंसर की रोकथाम करता है।

9-अंगूर-

आज से लगभग 125 साल पहले डॉ. लंबे, जो अग्रणी सुधारक और आहार विशेषज्ञ थे, ने इंग्लैंड में कैंसर का इलाज अंगूर से किया। आज के समय में जोहाना ब्रांडट ने अपने आप पर शोध द्वारा यह पता लगाया कि आहार में अंगूर की बहुतायत होने से भी कैंसर की रोकथाम संभव है। यह अध्ययन उन्होंने स्वयं पर किया। वे स्वयं कैंसर से नौ साल जूझती रही और इसमें वे एक दिन छोड़कर उपवास करती थीं और एक दिन आहार में केवल अंगूर लिया करती थीं। उनका दावा है कि उनके इलाज के इसी तरीके ने उन्हें कैंसर से निजात पाया

10-आंवला-

आंवला विटामिन सी का सबसे बढ़िया स्रोत है जो कि कैंसर से लड़ने में मदद करता है। विटामिन अब तक ज्ञात विषरोधक पदार्थों में से सबसे शक्तिशाली है। यह भोजन या वातावरण में उपस्थित कई हानिकारक और कैंसर उत्पन्न करनेवाले रसायनों को खत्म या उदासीन कर सकता है अतः कैंसर के उपचार में इसका बड़ा महत्व है। कुनूर में हुए कई शोध बताते हैं कि ताजे आंवले का हर 100 ग्राम हमें 470 से 680 मिग्रा. तक विटामिन सी प्रदान करता है।
आंवले का सूखा गूदा कैंसर के नियंत्रण में मदद करता है। जब आंवले से रस निकाल लिया जाता है तो उसमें विटामिन सी की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है। इस सुखाए हुए गूदे के 100 ग्राम से 2428 से 3470 मिग्रा. विटामिन सी मिलता है। यहां तक कि जब इसे छाया में सुखाकर पीसा जाता है तो उस चूर्ण के 100 ग्राम में भी 1780 से 2660 मिग्रा. तक विटामिन सी पाया जाता है।

11-मुलेठी-

मुलैठी भी कैंसररोधी पदार्थ के रूप में प्रसिद्ध है। मुलैठी न केवल कैंसर से बचाव में सहायक है वरन यह इसे फैलने से भी रोकती है। मुलैठी में उपस्थित ट्राईटरफिनायड कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकते हैं और उन्हें अपनी पुरानी सामान्य अवस्था में आने में मदद करते हैं। मुलेठी को चूर्ण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, इसका अर्क या काढ़ा भी लिया जा सकता है। इन्हें शहद के साथ मिलाकर लिया जा सकता है।

12-नीम –

आयुर्वेद के अनुसार नीम की पत्तियों का उपयोग कैंसर के इलाज में उपयोगी है। चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से कैंसर की बीमारी में रक्त विषाक्त हो जाता है और शरीर का तापमान बढ़ जाता है। नीम की पत्तियां रक्त को शुद्ध करने और शरीर के ताप को कम करने का काम करती हैं। इसके लिए रोगी को सुबह नीम की 10 से 12 पत्तियों को चबाकर खाना चाहिए।

13-दूध –

विटामिन डी और कैल्शियम का अच्छा स्रोत होने के कारण दूध आंतों के कैंसर की आशंका को कम कर सकता है। ये दोनों ही पदार्थ कैंसर प्रतिरोधी हैं। डॉ. सेड्रिक गारलैंड जो सेन डियागो के कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय में कैंसर संस्थान के निदेशक हैं, कहते हैं कि रक्त में विटामिन डी की मात्रा की जांच से कैंसर की आशंका का अनुमान लगाया जा सकता है। उन्होंने 1074 में मैरीलैंड में एकत्रित किए गए रक्त के 25, 620 नमूनों का परीक्षण किया और अगले आठ सालों तक उन्होंने आंतों के कैंसर के प्रतिशत का अध्ययन किया। उनका निष्कर्ष यह था कि जिनके रक्त में विटामिन डी की मात्रा 70 प्रतिशत तक थी, उनमें आँतों का कैंसर अन्य लोगों की तुलना में कम प्रतिशत में पाया गया।

कैल्शियम कैंसर उत्पन्न करनेवाली सभी घातक शारीरिक गतिविधियों को नष्ट करता है, ऐसा कुछ शोधों में प्रमाणित हुआ है। डा. गारलैंड ने यह देखा कि ऐसे लोग जिन्होंने आयु के 20 वे वर्ष तक दो गिलास दूध नियमित रूप से लिया है, उनमें आंतों के कैंसर की संभावना उन लोगों की अपेक्षा एक तिहाई रह जाती है जो दूध नहीं पीते थे। डा. गारलैंड अनुमान लगाते हैं कि रोज़ 1200 से 1400 मिग्रा. कैल्शियम लेने से आंतों के कैंसर की आशंका 65 से 75 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसका एक कारण यह है कि कैल्शियम आंतों के अन्दर की कोशिकाओं को सरंध्र होने से बचाता है जिससे कोशिकाओं के अत्यधिक विकास की दर कम हो जाती है और वे कोशिकाएं कैंसर की कोशिकाओं में नहीं बदल पाती। दूध और दूध के उत्पादों के अलावा कैल्शियम साबुत गेहूं, पत्तेदार सब्ज़ियां जैसे सलाद पत्ता, पालक, पत्ता गोभी, गाजर, चंद्रसूर, संतरा, नींबू, बादाम, अंजीर और अखरोट में बहुतायत में पाया जाता है।

14-जैतून का तेल –

जैतून के तेल का उपयोग कैंसर से बचाव में और इसकी चिकित्सा में महत्वपूर्ण माना जाता है। अधिक वसा लेने से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इस तथ्य को इटली की 750 महिलाओं पर शोध द्वारा प्रमाणित किया गया है। इस शोध में पाया गया कि वे महिलाएं जो भोजन में अत्यधिक वसा का सेवन करती हैं, उनमें स्तन कैंसर की आशंका उन वसा न लेनेवाली महिलाओं की तुलना में तीन गुना अधिक पाई गई। अधिक वसा लेना स्तन में पहले से उपस्थित कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि करके उनकी संख्या और घातक गुणों में वृद्धि कर सकता है। कुछ शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि भोजन में जैविक वसा जितना अधिक होगा, सहायक लिम्फ नोड में कैंसर को फैलाने की क्षमता उतनी ही अधिक विकसित होगी, और यदि भोजन में कुल वसा अधिक है तो स्तन कैंसर के कारण मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है। भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाएं जो जैतून के तेल का अधिक मात्रा में प्रयोग करती हैं तथा जापानी महिलाएं जिनके भोजन में जैव वसा की मात्रा कम होती है।

15-पपीते के पत्ते-

वीकेंड बुलेटिन, गोल्ड कोस्ट ऑस्ट्रेलिया में प्रकाशित एक पत्र के अनुसार ऑस्ट्रेलिया की 75 वर्षीय महिला ने पपीते के पत्तों के उपयोग से कैंसर के इलाज का दावा किया है। उसे मूत्राशय का कैंसर था जिसके लिए शल्य चिकित्सा भी की गई मगर उसे लाभ नहीं हुआ। ब्रिसबेन में अपना इलाज स्वयं करते हुए उसने पपीते की पत्तियों और पपीते के छिलकों को उबालकर खाना शुरू किया। तीन महीने बाद जब वह चिकित्सक के पास जांच करवाने गई तो उसने बताया कि उस महिला का कैंसर पूरी तरह से ठीक हो चुका था। अमेरिका में भी अमरीकी वैज्ञानिक डॉ. गैरी मैकलाघलिन ने कैंसर के इलाज में पपीते का उपयोग किया। उनके अनुसार पपीते के पेड़ में उन्हें ऐसा रसायन मिला जो कि कैंसररोधी दवाओं से लाख गुना शक्तिशाली है। इस तरह की कई रिपोर्ट है जिसमें कैंसर के रोगियों के इलाज में पपीते के उपयोग से सफलता मिली है।

16-कच्चा भोजन –

डेनमार्क की डॉ. क्रिस्टीन नोल्फ़ी जो स्वयं कैंसर से पीड़ित थीं, ने प्रयोग द्वारा कैंसर के इलाज में कच्चे भोज्य पदार्थों को उपयोगी पाया है। उन्होंने कैंसर के इलाज के लिए कच्चे पदार्थों का उपयोग किया और इस रोग से मुक्ति पाई। अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने कैंसर रोगियों के उपचार के लिए ह्यूमल गार्डन नामक एक संस्थान स्थापित किया जहां कैंसर के रोगियों का इलाज कच्चे भोज्य पदार्थों की सहायता से सफलता से किया जाता है। डॉ. नोर्की बताती हैं कि अपने इलाज के दौरान जब भी वे कच्चे भोज्य पदार्थों को लेना छोड़ती थीं, कैंसर पुनः तीव्रता के साथ लौटता था। फिर उन्होंने लंबी अवधि तक कच्चे आहार को अपनाया जिससे कैंसर की तीव्रता मंद हो गई। इससे पता चलता है कि भले ही कैंसर पूरी तरह से ठीक न हो सके, मगर उसे नियंत्रण में रखा जा सकता है। डा. नोल्फी कच्चे आहार में कच्चे आलू और लहसुन को सबसे अच्छा आहार मानती हैं।

17-सोयाबीन –

स्टीफन बार्नेस पी एच डी जो अलबामा विश्वविद्यालय में औषधि विज्ञान और जैव रसायन के प्राध्यापक हैं, के अनुसार सोयाबीन सज़ी में ओस्ट्रोजन को नियमित करने और कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने की क्षमता होती है अतः इसके प्रयोग से हर उम्र की स्त्रियों में स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। सोयाबीन का एक यौगिक फायटोएस्ट्रोजन अपनी संरचना में कैंसर की दवा टेमोक्सीफेन जिसे कुछ महिलाओं को स्तन कैंसर से रोकथाम के लिए दिया जाता है, के समान ही होता है। सोयाबीन उन कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को भी रोकता है जिनका संबंध ओस्ट्रोजन से नहीं होता। कोशिकाओं पर किए गए अध्ययन से सामने आया है कि सोयाबीन में उपस्थित यौगिक अपने किन्ही चमत्कारी गुणों के चलते कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को एकदम रोक देते हैं भले ही उनमें कोई ओस्ट्रोजन ग्राह्य पदार्थ न हो। ऐसा डॉ. बार्नेस का कहना है। उनके अनुसार सोयाबीन के यौगिक कैंसर से दो तरीकों से लड़ते हैं। सोयाबीन को दूध, दही, आटा, हरे बीज, तेल और अंकुरित करके इस्तेमाल में लाया जा सकता है। सोयाबीन का दूध मुख्य उत्पाद होता है जिससे दही, पुडिंग, मिठाई आदि में बदला जाता है। सोयाबीन का आटा बहुतायत में इस्तेमाल में लाया जाता है। इसे बनाने के लिए सोयाबीन को भूनकर उसके छिलके निकाले जाते हैं, फिर उसे पीसा जाता है।

18-टमाटर –

टमाटर को भी कैंसर रोधी भोजन माना जाता है। इसमें उपस्थित लायपोसीन, जिसके कारण टमाटर लाल रंग प्राप्त करता है,कैंसर की रोकथाम में सहायता करता है। जर्मनी के डॉ. हेमलत साई द्वारा किए गए शोध से पता चला कि यह लायपोसीन बीटा केरोटिन से दो गुना शक्तिशाली है जो ऑक्सीजन के मुक्त मूलकों को नियंत्रित करता है। ऑक्सीजन के मुक्त मूलक सामान्य कोशिकाओं को कैंसर की कोशिकाओं में बदलने का काम करते हैं। टमाटर लायपोसीन के अच्छे स्रोत होते हैं और यह लायपोसीन पके टमाटर, भोजन में पके टमाटर, सॉस, सूप, केचप, प्यूरी आदि सभी में समान मात्रा में उपस्थित होता है। तरबूज में लायपोसीन अधिक सांद्रता में पाया जाता है।

19-विटामिन ए और सी की अधिकता वाले भोजन –

हाल ही के शोधों में यह पाया गया है कि कुछ विटामिन कैंसर से लड़ने में सहायता करते हैं। | और इनके सेवन से कैंसर रोगियों की आयु में वृद्धि की जा सकती है। स्वीडन में किए गए | एक शोध के अनुसार विटामिन सी की अधिक मात्रा कैंसर रोधी तत्व के रुप में काम कर सकती है। जापानी वैज्ञानिक डॉ. फुकुनीर मिरिशी और उनके साथियों ने हाल ही में पाया है कि विटामिन सी और तांबे के यौगिकों का मिश्रण कैंसर की कोशिकाओं के लिए घातक पदार्थ का काम करते हैं। विटामिन सी की अधिकता वाले भोज्य पदार्थों में आंवला, खट्टे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित चने शामिल है। एक अन्य शोध के अनुसार विटामिन ए भी कैंसर की कोशिकाओं के बढ़ने में बाधा उत्पन्न करता है। यह शरीर के और उनके साथियों ने इटली के पैविस विश्वविद्यालय किए शोध के अनुसार बीटा केरोटिन जो विटामिन ए का अग्रदूत है वह त्वचा कैंसर की कोशिकाओं को निष्क्रिय बनाकर ऑक्सीजन के युक्त मूलकों द्वारा की जानेवाली गतिविधि के ऑक्सीकरण को रोकता है।

20-गेहूं की भूसी-

स्तन कैंसर से बचने का एक तरीका यह है कि शरीर में ओस्ट्रोजन के स्तर को कम किया जाए। गेहूं की भूसी के सेवन से ऐसा किया जा सकता है। गेहूं की भूसी में कैंसर फैलानेवाले रसायन ओस्ट्रोजन के स्तर को निमंत्रित करने की विशेष ताकत होती है। यह बात न्यूयार्क के अमेरिकन स्वास्थ्य संस्थान में डेविड पी रोज, एम.डी. द्वारा किए गए शोध में प्रमाणित हुआ। इस शोध में कुछ महिलाओं को दिन में तीन या चार बार गेहूं की भूसी से बने मफिन्स खाने के लिए दिए गए और कुछ महिलाओं को मक्के या जई के आटे से बने मफिन्स दिए गए । इससे उनके शरीर में रेशों के आहार की मात्रा 15 से 30 मिग्रा. तक बढ़ गई। एक महीने बाद गेहूं की भूसी से बने मफिन्स लेनेवाली महिलाओं के रक्त में ओस्ट्रोजन की मात्रा में ज़रा सा अंतर आया मगर दो महीने बाद यह मात्रा 17 प्रतिशत घट गई। हालांकि हर भूसी में रेशों की मात्रा काफी होती है। जो आंतों के कैंसर से बचाव का काम करती है। कुछ विशेष भोज्य पदार्थ भी कैंसर से बचाव में उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इनमें से गेहूं की भूसी सबसे प्रमुख है।

21- गेहूं की घास का रस (जवारे) –

बोस्टन, अमेरिका की डा. एन विग्मोरे जो कि जाने-माने तंत्रिका विशेषज्ञ हैं और पोषण आहार के प्रवर्तक हैं, वे ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर) के उपचार में गेहूं की घास से बने पेय पदार्थ का परीक्षण करते आई हैं। उन्होंने दावा किया है कि इस विधि से उन्होंने कई लोगों में इस बीमारी को ठीक किया है। वे कहती हैं कि इस रस में जीवित विटामिन, लवण, सूक्ष्म तत्व और क्लोरोफिल होता है, जिसके चलते यह शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की क्षतिपूर्ति करके उन्हें पूर्वावस्था में ला सकता है। इस उपचार को अपनाने वाले रोगी को उपवास रखते हुए एक सप्ताह तक केवल गेहूं की घास के रस का सेवन करना होता है। इस उपवास और रस के सेवन से शरीर को सारे उपयोगी पोषक पदार्थ सांद्र अवस्था में मिलते हैं और जो कि पचाने में आसान होते हैं जिससे पाचन तंत्र को उपवास का लाभ भी मिलता है। यह उपवास शरीर की सफ़ाई करने के साथ-साथ उसे पोषण भी देता है। ऐसा करने से व्यक्ति शीघ्र ही स्वस्थ होने की आशा रख सकता है। इस उपवास की तैयारी के लिए रोगी को गरम पानी के साथ एनीमा लेना ज़रूरी है जिससे शरीर में संचित अवशिष्ट पदार्थ बाहर निकल सकें। शरीर में जमा गंदगी को बाहर निकालना आवश्यक है। इसके बाद तीन या चार बार गेहूं की घास का रस और दो बार क्लोरोफ़िल का सेवन करना होता है। यदि रोगी को इसका स्वाद अच्छा न लगे, तो यह मात्रा चार से घटाकर दो भी की जा सकती है। सुबह जागने के बाद रोगी को दो गिलास गरम पानी जिसमें एक नींबू का रस और गुड़ या शहद मिला हो, पीना चाहिए। उसके बाद एनीमा की सहायता से आंतों को पूरी तरह साफ किया जाना चाहिए ताकि आंतों की दीवारों पर चिपका अवशिष्ट भी बाहर आ सके। रोगी को पांच घंटों के अंतराल में गेहूं की घास का रस और क्लोरोफिल का सेवन चूंट-घूट करके 120 मिली की मात्रा में लेना चाहिए। दोनों ही पदार्थों को पानी के साथ आधा मिलाकर भी लिया जा सकता है। इस उपचार के दौरान रोगी को दिनभर में कम से कम एक लीटर ऐसा सादा पानी पीना चाहिए जिसमें गेहूं की घास या जवारे भिगोकर रखे गए हों।

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