चूहे के काटने से रोग मूषकदश ज्वर के लक्षण और इलाज

चूहे काटे का बुखार : rat bite fever in hindi

मूषक विषज ज्वर, चूहे काटे का बुखार, मूषकदंश ज्वर यह एक प्रकार का पुनरावर्तक ज्वर (Relapsing fever) है, जो संक्रमित चूहे के काटने से होता है। इसमें विशेष लक्षण यह है कि दंश स्थान जो स्वस्थ हो चुका होता है, वह पुनः शोथयुक्त (सूजन)हो जाता है। साथ ही ज्वर के पुनः-पुनः वेग आने लगते हैं।

मूषकदश ज्वर के कारण :

इसके प्रमुख उत्पादक कारण ‘स्पाइरीलय माइनस (Spirillum minus) तथा ‘स्टेप्टोबेसिलस मोनिलिफॉर्मिस’ (Streptobacillus moniliformis) नामक जीवाणु हैं, जो चूहों में रहते है। जब संक्रमित चूहा मनुष्य को काटता है, तब ये जीवाणु मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं और रोग पैदा कर देते हैं।

चूहे काटे का बुखार के लक्षण :

• दंश स्थान प्रायः स्वयं ठीक हो जाता है, किन्तु ३-६ सप्ताह के पश्चात् उसी स्थान पर पुनः पीड़ा प्रारम्भ हो जाती है और वह पुनः फटकर व्रण का रुप ले लेता है।
• शोथ प्रारम्भ होकर चारों तरफ फैल जाता है। लसीका वाहिनियों में भी शोथ हो जाता है और वह फूट जाती है।
• शोथयुक्त स्थान रक्तमय हो जाता है और वहां पर छोटे-छोटे छाले से उभर आते हैं।
• सन्धिशूल, शिरःशूल, ज्वर, अंगमर्द, वमन और मितली आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
•ज्वर चढ़ने के समय रोगी को ठंड लगती है।
• ज्वर ४ से ८ दिनों तक तीव्र रुप में रहकर उतर जाता है और अन्य लक्षण भी शांत हो जाते हैं, किन्तु दुर्बलता बनी रहती है।
• ज्वर कुछ दिन शांत रहने के बाद पुनः चढ़ जाता है, किन्तु पहले की अपेक्षा हल्का रहता है। इस प्रकार से ३-४ या ५ बार मन्द-मन्द वेग आकर अन्त में शांत हो जाता है। कभी-कभी महीनों और वर्षों तक इस रोग के वेग चलते रहते हैं। यह रोग बिलकुल ‘रिलैप्सिंग फीवर’ के ही समान होता है।

चूहे काटे का बुखार का इलाज :

1- व्रण को साबुन और पानी से साफ कर टि० आयोडोन पेण्ट कर दें और एक विसंक्रमित ड्राई ड्रेसिंग कर व्रण को ढंक दें।

2- बेञ्जाइल पेनिसिलीन एक मैगा यूनिट I/m दिन तक इसके पश्चात् फीनोक्सी मेथाइल पेनिसिलीन १२५ मि० ग्राम दिन में ४ बार ५ दिन तक।

3- स्ट्रेप्टोमाइसिन- १ ग्राम मांसपेशीगत ५ दिन तक अथवा टेट्रासाइक्लीन २५० मि०ग्राम २ कै० प्रति ६ घण्टे पर मुख द्वारा ज्वर सामान्य होने तक।

4- रसमाणिक्य १२५ मि०ग्राम, गंधक (शुद्ध) १२५ मि० ग्राम की एक मात्रा बनाकर शुद्ध मधु से दिन में तीन बार दें।

5- सितोपलादि चूर्ण १ ग्राम, शृंग भस्म- १२५ मि०ग्राम, अभ्रक भस्म १२५ मि०ग्राम – एक मात्रा।
ऐसी एक-एक मात्रा को दिन में तीन बार तक मधु से दें।

नोट -ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।

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