Last Updated on July 16, 2019 by admin
डकार आने का कारण और उसका मतलब :
हमारा पाचन तंत्र मुँह से शुरु होता है। मुँह में हम चबा-चबाकर खाते हैं। इसके बाद हमारे पाचन तन्त्र में भोजन चलते-चलते हजम होता है और अन्त में गुदा द्वार से मल को बाहर निकाल दिया जाता है। हमारे पाचन तन्त्र में मात्र एक जगह है हमारा अमाशय, मेदा (Stomach)जहाँ पर भोजन लगभग 5-6 घंटे के लिये रुकता है और हाजमे का काम होता है। यह थैलीनुमा है, जब सुबह-सुबह हम खाली पेट होते हैं तो अमाशय सिकुड़-सा जाता है और इसमें कुछ शुद्ध वायु रहती है। हम भूख का एहसास होने पर भोजन लेते है, और मुख से चबा-चबा कर भोजन लेते हैं। हमारा अमाशय भोजन से आधा भर जाता है तो अमाशय की शुद्ध वायु हमारे मुँह में आती है। इसको कहा जाता है- ‘तृप्ति डकार’। इस तृप्ति डकार द्वारा हमारा अमाशय यह चेतावनी देता है कि अब तृप्ति हो गई। क्योंकि अमाशय को आधा तो भरना होता है भोजन से और अमाशय का 1/4% भाग पाचक रसों (Digestive Juices) द्वारा भरना होता है। शरीर का नियम है कि हम जिस तरह का भोजन लेते है, हमारा शरीर उस भोजन को पचाने के लिये उसी तरह के पाचकरस छोड़ता है।
तरह-तरह के तेजाब (पाचकरस) अमाशय में जाकर भोजन को हजम करने में मदद करते हैं। अमाशय का 1/4 % हिस्सा खाली रहना चाहिए, क्योंकि अमाशय में भोजन हजम करने के लिये मंथन क्रिया (Machanical Action) होती है जो भोजन हजम करने में मदद करती है। जैसे कि अगर हम मुख को पानी से पूरा भर लेगें तो कुल्ला नहीं कर सकते और मटके को दही से पूरा भर लेंगे तो दही का बिलौना नहीं कर सकते। ठीक ऐसे ही अगर हम अमाशय को खाली नहीं छोड़ेंगे तो अमाशय में मंथन क्रिया नहीं होगी। परन्तु हम अमाशय की इस तृप्ति डकार द्वारा दी गई चेतावनी की परवाह नहीं करते। हम और अधिक खाते हैं, और अधिक खाने से जब हमारा अमाशय भोजन द्वारा पूरा भर जाता है तो जो थोड़ी बहुत शुद्ध वायु शेष बची होती है वह हमारे मुँह में आती है। इसको कहा जाता है ‘पूर्ण डकार’ |
इस ‘पूर्ण डकार द्वारा हमारा अमाशय हमें यह चेतावनी देता है कि वह पूरा भर गया अब भोजन को हजम करने में वह कोई मदद नहीं कर सकता । लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। भोजन को हजम करने के लिये जो पाचक रस चाहिये थे, वे फिर भी निकलते हैं, क्योंकि यह शरीर का नियम है। उस तेजाब को। अमाशय में जाने के लिये जगह नहीं मिलती, क्येांकि अमाशय को तो हमने पहले ही पूरा भर लिया है। वह तेजाब अमाशय के ऊपर के भाग में भोजन नली में पड़ा रहता है। ऐसी अवस्था का व्यक्ति कहता रहता है कि उसको जलन (Acidity) होती है या उसके शरीर में तेजाब बनता है। बात आगे चलती है- अमाशय में जो भोजन ऊपर तक ठसाठस भर लिया उसकी दशा एक डिब्बीनुमा बर्तन में बन्द हो जाने जैसी हो जाती है। उस भोजन को पाचक रस नहीं मिलते और मंथन-क्रिया के लिये जगह भी नहीं मिलती। वह भोजन पड़ा—पड़ा सड़ना शुरु हो जाता है। भोजन जब सड़ता है तो उसमें गैस बनती है। गैस का कुछ भाग नीचे गुदा द्वार से बाहर निकलता है, जिसको हम पाद के रूप से अनुभव करते हैं और गैस का कुछ भाग अमाशय के ऊपर की तरफ मुँह से बाहर निकलता है। रास्ते में भोजन नली के अन्दर तेजाब पड़े होने के कारण गैस उस तेजाब के साथ मिलकर हमारे मुँह में आती है, जिसको हम कहते हैं ‘खट्टे डकार‘।
खाते हम गुलाब जामुन हैं। हमें आने चाहियें मीठे डकार, किन्तु आ रहे हैं खट्टे डकार। जरा सोचिये..! अर्थात् अगर व्यक्ति | ‘तृप्ति डकार आते ही भोजन लेना बन्द कर दे तो उसे गैस और तेजाब का अनुभव नहीं होगा। अगर व्यक्ति तृप्ति डकार आने के बाद खाना बन्द नहीं करेगा तो जीवन भर गैस और तेजाब उसका पीछा नहीं छोड़ेगा! चाहे वह व्यक्ति जीवन भर ऐंटासिड (Antacid), चूर्ण वगैरह लेता रहे। संसार की लगभग 80% आबादी गैस और तेजाब के रोग से पीड़ित है।
उपरोक्त कहानी द्वारा तीन तरह की डकारों का वर्णन किया गया है। चौथे किस्म की डकार भी होती है जिसको कहा जाता है ‘भूख डकार’। भोजन लेने के लगभग पाँच-छ: घण्टे बाद हमारे अमाशय के द्वारा भोजन को नीचे छोटी आँत में धकेल दिया जाता है चाहे अमाशय में भोजन हजम हो या न हो। भोजन को पाँच-छ: घण्टे के अन्दर अमाशय से निकलना ही पड़ता है। जब हमारा अमाशय खाली हो जाता है तो वह दुबारा से सिकुड़ता है और उसमें से कुछ वायु हमारे मुँह में आती है। उसको कहा जाता है भूख डकार’ । इस भूख डकार की पहचान है इसमें किसी तरह की भी दुर्गन्ध या स्वाद नहीं होता। इसको अनुभव करते समय शरीर में विशेष किस्म का हल्कापन होता है। इसका नाम भूख डकार है, परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि डकार आने पर तुरन्त खाना शुरू कर दिया जाए । वास्तव में इस भूख डकार द्वारा हमारा अमाशय हमें यह कहना चाहता है कि आपने जो उसे हाजमें का काम दिया था उसको पूरा करके वह अभी-अभी खाली हुआ है। उसे अब कुछ समय के लिये आराम की आवश्यकता है। परिणाम स्वरूप भूख डकार आने के लगभग एक-दो घण्टे के बाद जब आपको कड़क भूख का एहसास हो तब खाना चाहिये।
संत तिरुवल्लुवर जी का अनुभव-
“शरीर के लिये किसी भी दवाई की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यदि हम इस बात का ध्यान रखें कि भोजन उसी समय किया जाए जब हमें निश्चित हो जाए कि पिछली बार का खाया हुआ भोजन अच्छी तरह से पच चुका है।”
उपरोक्त चार किस्म की डकारों में से दो तरह की डकारों (तृप्ति डकार और भूख डकार) का अनुभव हर एक स्वस्थ व्यक्ति को होना चाहिए अन्य दो तरह की डकारों (पूर्ण डकार और खट्टे डकार) का अनुभव बिलकुल नहीं होना चाहिए।
कुछ अभागे लोगों को तृप्ति डकार का अनुभव ही नहीं होता। आजकल ऐसा आमतौर पर देखा जाता है। सैद्धान्तिक रूप से हमें दिन में दो बार ही भोजन करना चाहिए । जब कि व्यक्ति दिन में तीन या चार बार भोजन लेता है या पूरे दिन बार-बार कुछ न कुछ खाता रहता है (Lunching & Munching all the time) | इस प्रकार उसका अमाशय चौबीस घण्टे फैला ही रहता है। उसको सिकुड़ने के लिये समय ही नहीं मिलता । परिणामस्वरूप उसके अमाशय की लचक (Elasticity) खत्म हो जाती है। ऐसी हालत में तृप्ति डकार का अनुभव नहीं होता।
वास्तव में इस कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि हमें भोजन लेते समय थोड़ी भूख बाकी रख कर भोजन लेना बन्द कर देना चाहिए। जैसे कि जब हम भोजन लेना शुरु करते हैं तब शुरु–शुरु में हमें मालूम ही नहीं पड़ता कि पेट में कुछ जा रहा है। भोजन लेते समय जब पेट में मालूम पड़ना शुरु हो जाए, हल्का-सा भारीपन आ जाए तब तुरन्त भोजन छोड़ दें । हम अपने आपको भोजन की थाली से इस तरह अलग कर लें जैसे बछड़े को गाय के स्तनों से अलग किया जाता है।