अलग-अलग दिशाओं से चलने वाली वायु के गुण और स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव

Last Updated on February 1, 2023 by admin

पूर्व दिशा से चलने वाली वायु के गुण : 

पूर्वो∙निलो गुरु: सोष्ण: स्निग्ध: पित्तास्रदूषक:।
विदाही वातल: श्रान्ति कफ शोषवतां हित:।।
स्वादु पटुरभिष्यंदी त्वग्दोषाशों विषक्रिमीन्।
सन्निपात ज्वर श्वास मामवातं प्राकेपयेत्।

अर्थात् –

     पूर्व दिशा से चलने वाली वायु भारी, तासीर में गर्म, पित्त और खून को खराब करने वाली तथा शरीर में जलन और गैस पैदा करने वाली होती है। यह वायु शरीर की थकान, कफ को समाप्त करने वाली, सूखा रोग से ग्रस्त रोगियों के लिए लाभकारी होती है। यह सूजन को बढ़ाती है तथा चमड़ी के रोग, जहर, बवासीर, कीड़े होना, टायफाइड, दमा और गठिया जैसे रोगों को जन्म देती है।

दक्षिण दिशा से चलने वाली वायु के गुण :

दक्षिण: पवन: स्वादु: पित्त रक्तहरो लघु:।
वीर्येण शीतलों बल्यश्च श्रुष्यों न च वातल:।।

अर्थात्-

     दक्षिण की दिशा से चलने वाली वायु शरीर को ठंडक पहुंचाती है। यह तासीर में ठंडी, हल्की, पित्त और खून के रोगों को दूर करने वाली तथा शरीर की ताकत को बढ़ाने वाली और आंखों के लिए उपयोगी है लेकिन यह शरीर में गैस को बढ़ाने वाली नहीं है।

पश्चिम दिशा से चलने वाली वायु के गुण :

पश्चिम: पवनस्तीक्ष्ण: शोषणों बल हन्ल्लघु:।
मेदपित्त कफध्वंसी प्रभज्जन विवर्धन:।।

अर्थात्-

     पश्चिम की दिशा से चलने वाली वायु तेज, शरीर को सुखाने वाली, शरीर की ताकत को कम करने वाली और हल्की होती है। यह मोटापे, पित्त के रोग और बलगम को दूर करने वाली होती है लेकिन यह शरीर में गैस को बढ़ाती है।

उत्तर दिशा से चलने वाली वायु के गुण :

उत्तरों मारुत: शीत: स्निग्धो दोष प्रकोपकृत्।
क्लेदन: प्रकृति स्थान बल्वो मधुरो लघु:।।

अर्थात-

     उत्तर की दिशा से चलने वाली वायु ठंडी, नमी के कारण दोषों को बढ़ाने वाली, शरीर में चिपचिपाहट लाने वाली, ताकतवर्द्धक, हल्की और बहुत सुहावनी होती है।

वायु का सेवन कब करें ? : 

     इन सब तथ्यों से यह बात साबित होती है कि पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा से चलने वाली वायु से शरीर में कोई न कोई रोग पैदा होता है और इनसे कोई ज्यादा लाभ भी नहीं होता। जबकि दक्षिण दिशा से चलने वाली वायु से शरीर को किसी तरह के रोग पैदा होने का खतरा नहीं होता। इसलिए चाहे कोई व्यक्ति ठीक हो या रोगी हो सबको ही दक्षिण दिशा से आने वाली वायु का ही सेवन करना चाहिए। यह वायु सुबह 4 बजे से सूरज के उगने तक चलती है। वायु का सेवन करने वालों को यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए।

वायु को शुद्ध करना : 

     वायु शुद्ध सूरज की किरणों, पानी, पेड़, बदलता हुआ मौसम और सुबह के कारण होती है। धूल मिली हुई वायु से आर्द्र वायु ज्यादा शुद्ध होती है। आर्द्र वायु में 3 जरूरी पदार्थ मुख्यत: ज्यादा मात्रा में होते हैं- ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और कार्बोनिक एसिड गैस।

Leave a Comment

error: Alert: Content selection is disabled!!
Share to...