षटरस (छह स्वाद) और उनका शरीर पर प्रभाव

Last Updated on September 25, 2021 by admin

इस दुनिया में पाई जानेवाली हर चीज का यदि उचित मात्रा तथा उचित समय पर इस्तेमाल किया जाए तो वह औषधि का काम करती है। समस्त चराचर पंचमहाभूतों से बना है तथा षटरस भी पंचमहाभूतों से बने हैं। मशीनी शरीर की सूक्ष्मता का षटरस से गहरा संबंध है। हमारी जीभ इन छह रसों, यानी मीठा, कड़वा तथा अन्य स्वादों की सबसे बड़ी निर्णायक है।

कफ प्रकृति के लोगों में तीखा स्वाद प्रभावी होता है तथा मीठा स्वाद वात प्रकृति के लोगों और कड़वा स्वाद पित्त प्रकृति के लोगों हेतु लाभदायक होता है। जब भी कोई व्यक्ति जीभ में मीठा स्वाद महसूस करता है, तो वह लार द्वारा सूक्ष्म स्तर पर कोशिकाओं समेत पूरे शरीर में प्रेषित होता है। तीखा, खट्टा तथा नमकीन स्वाद पाचन को प्रेरित करता है और कड़वा, सख्त तथा मीठा स्वाद पाचन को कम करता है।

( और पढ़े – वात-पित्त-कफ दोष के कारण लक्षण और उपचार )

आयुर्वेद के अनुसार रस के प्रकार (The Six Tastes in Ayurveda)

आयुर्वेद के अनुसार रसों को स्वाद के आधार पर 6 प्रकार में विभाजित किया गया है, जो क्रमशः इस प्रकार है –

  1. मधुर ( मीठा)
  2. लवण (नमक)
  3. अम्ल ( खट्टा)
  4. कटु (चरपरा)
  5. तिक्त रस (कड़वा)
  6. कषाय (कसैला)

अब हम स्वादों के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

1). मधुर रस (मीठा) :

मधुर रस के गुण –

  • मीठा कफ को बढ़ाता है तथा पित्त और वात को कम करता है।
  • मीठा शरीर को सक्रिय तथा इसके विकास को प्रेरित करता है।
  • अधिक मात्रा में लेने पर यह कफ को उत्तेजित कर देता है।
  • यह शरीर के लिए समजातीय है।
  • सभी अनाज और तेल मीठे माने जाते हैं।
  • चावल और गेहूँ मीठे स्वादवाले हैं।
  • दुग्ध पदार्थ तथा घी भी मधुर स्वाद में आते हैं।
  • मीठे खाद्य पदार्थ सामान्यतः शरीर के लिए शांतिदायक होते हैं और प्यास बझाते हैं।
  • वात दोष उत्तेजित होने पर बेचैनी, अनियंत्रित मानसिक स्थिति, जल्दबाजी, चिंता, उत्तेजना उत्पन्न करता है। यदि ऐसी स्थिति में व्यक्ति मीठा भोजन या पेय पदार्थ ग्रहण करता है तो वह वात को ठंडा करता है तथा पित्त को भी शांत करता है।

मधुर रस युक्त खाद्य पदार्थ –

चीनी, शहद, दूध, दुग्ध पदार्थ, क्रीम, मक्खन, गेहूँ तथा चावल मीठे खाद्य पदार्थों में शामिल हैं।

मधुर रस के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान (दुष्प्रभाव) –

  • अधिक मात्रा में मीठा खाने पर शरीर में भारीपन और दिमाग में सुस्ती महसूस होती है। यह मधुमेह या उच्च रक्तचाप की जटिलताएँ भी पैदा कर सकता है।
  • अधिक मीठा खाने से कफ बढ़कर अपच, सुस्ती, शरीर में भारीपन, ठंडापन, अंगों का ढीलापन, साँस लेने में कठिनाई, खाँसी, अधिक नींद, अधिक वजन को प्रेरित करता है। इन स्थितियों में मीठा खाने से परहेज करना चाहिए। बहरहाल, शहद इसका अपवाद है। यह कफ को संतुलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2). लवण रस (नमक) :

लवण रस के गुण –

  • नमक वात को शांत करता है।
  • नमकीन भोजन कफ तथा पित्त को बढ़ाता है।
  • यह पाचन को उत्तेजित करता है। पित्त तथा पाचक अग्नि एक ही हैं।
  • नमक भूख बढ़ाता है। नमक के बिना नाश्ता या भोजन स्वादहीन लगता है।
  • यह शरीर के सूक्ष्म स्तर पर छोटे-से-छोटे ऊतकों में प्रवेश कर जाता है।
  • यह कफ तथा अन्य पदार्थों को घुलने में मदद करता है।
  • यह अमा रस को पचा लेता है तथा अपने गरम गुण के कारण तीव्र क्रिया करता है।
  • यह अधिक पाचन को प्रेरित करके मोटापे तथा उच्च रक्तचाप को प्रेरित करता है।
  • उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को अपने आहार में नमक का इस्तेमाल कम-से-कम करना चाहिए।
  • आहार में पूरी तरह नमक का प्रयोग बंद कर देना शरीर के लिए खतरनाक है, क्योंकि वह मांसपेशियों में मरोड़ उत्पन्न कर सकता है। इसलिए उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए अपने आहार में कम-से-कम मात्रा में नमक का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। उच्च रक्तचाप भोजन में अत्यधिक नमक के कारण ही नहीं, बल्कि शरीर में दोषों के असंतुलन के कारण भी होता है।

लवण रस युक्त खाद्य पदार्थ –

समुदी नमक, सेंधा नमक, काला नमक, बिड नमक, क्षार और सीसा ।

लवण रस के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान (दुष्प्रभाव) –

  • नमक का अत्यधिक प्रयोग त्वचा रोगों तथा अन्य जटिलताओं को जन्म देता है।
  • यदि शरीर में कफ या पित्त रोग मौजूद हों, तो नमक का इस्तेमाल करना उचित नहीं होता है। उसे कम मात्रा में प्रयोग में लाना चाहिए।
  • अधिक नमक अधिक अम्लता, अल्सर, रक्त में परिवर्तन, त्वचा रोगों तथा बाद में कलेजे की जलन और सूजन को उत्पन्न करता है।

3). अम्ल रस (खट्टा) :

अम्ल रस के गुण –

  • खट्टे खाद्य पदार्थ वात को कम करते हैं और पित्त तथा कफ को उत्तेजित करते हैं।
  • खट्टापन भोजन का स्वाद बढ़ाता है।
  • यह पाचन को उत्तेजित करता है और अधिक प्यास उत्पन्न करता है।

अम्ल रस युक्त खाद्य पदार्थ –

खट्टे पदार्थ हैं – आँवला, नींबू, इमली, पनीर, दही, सिरका, अंगूर तथा टमाटर।

अम्ल रस के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान (दुष्प्रभाव) –

अत्यधिक खट्टा स्वाद स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता। खासकर पनीर में खट्टापन खमीर के कारण होता है। दही भी एक दिन से अधिक का होने पर खट्टा हो जाता है। आयुर्वेद ने खमीरवाले खट्टे पदार्थों का सेवन वर्जित किया है, खासकर सिरका तथा शराब का, क्योंकि वे शरीर के लिए विषैले हैं। ये कफ को असंतुलित करते हैं तथा ऊतकों को अमायुक्त कर देते हैं। (अमा भोजन के न पचनेवाले कण होते हैं, जो शरीर के लिए विष का काम करते हैं।)

4). तिक्त रस (कड़वा) :

तिक्त रस के गुण –

  • कड़वा रस पाचन दुरुस्त करने के लिए उपयुक्त होता है। यह यकृत की सक्रियता बढ़ाता है तथा अन्य स्वादों, जैसे – मीठा, खट्टा व तीखा के लिए स्वाद उत्पन्न करता है।
  • यह वात के द्वारा शरीर को सचेत करता है।
  • कम पाचन शक्तिवाले लोग कड़वी औषधियों तथा जड़ी-बूटियों का सेवन कर सकते हैं। जब शरीर गरम और विषैला होता है तो कड़वी जड़ी-बूटियाँ आश्चर्यजनक परिणाम देती हैं।
  • कड़वा स्वाद पित्त और कफ को कम करता है तथा वात को बढ़ाता है।

तिक्त रस युक्त खाद्य पदार्थ –

कड़वे खाद्य पदार्थों में – करेला, कड़वी हरी सब्जियाँ, कड़वी ककड़ी, पालक, मेथी तथा हलदी शामिल हैं।

तिक्त रस के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान (दुष्प्रभाव) –

जब कड़वे स्वाद को अधिक मात्रा में इस्तेमाल करते हैं तो यह शरीर में वात को उत्तेजित कर देता है, जिससे सिरदर्द, वजन में कमी, भूख में कमी, सूखी त्वचा, कमजोरी आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।

5). कटु रस (तीखा) :

कटु रस के गुण –

  • तीखा स्वाद अग्नि तथा वायु से बना है।
  • इसमें गरमी के गुण होते हैं।
  • यह कफ को कम करता है तथा पित्त और वात को बढ़ाता है।
  • यह मुँह को साफ रखता है तथा पाचन और भोजन के अवशोषण में मदद करता है।
  • यह न केवल रक्त को शुद्ध करता है, बल्कि त्वचा रोगों से भी बचाव करता है।
  • कटु रस हलका, गरम, गरमी तथा पसीने को बढ़ानेवाला, कमजोरी लानेवाला, गले में जलन तथा प्यास उत्पन्न करनेवाला होता है।
  • इससे पाचन बढ़ जाता है।
  • तीखा भोजन ग्रहण करने से पसीना, लार, आँसू, रक्त, कफ-सभी सक्रिय हो जाते हैं। यह कफ प्रेरित बीमारियों, जैसे साइनुसाइटिस के लिए बहुत अच्छा होता है।
  • खाँसी तथा फेफड़े की अन्य समस्याओं में मिर्च तथा कालीमिर्च फायदेमंद होती हैं।

कटु रस युक्त खाद्य पदार्थ –

तीखे खाद्य पदार्थ हैं – मिर्च, प्याज, मूली, लहसुन, कालीमिर्च तथा हींग।

कटु रस के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान (दुष्प्रभाव) –

  • कच्चा खाने पर मिर्च मुँह, होंठों तथा त्वचा में जलन उत्पन्न करती है।
  • शरीर में वात या पित्त असंतुलन होने की स्थिति में तीखे भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

6). कषाय रस (कसैला) :

कषाय रस के गुण –

  • कसैला स्वाद ठंडक उत्पन्न करता है।
  • यह एक उपचयक है जो पित्त को कम करता है तथा वात को बढ़ाता है।
  • इसमें शांतिदायक प्रभाव होता है।
  • यह कब्ज को प्रेरित करता है।
  • सख्त स्वाद-नलिकाओं में संकुचन उत्पन्न करता है और रक्त को जमाता है।
  • सूखा तथा ठंडा इसके गुण होते हैं।
  • सख्त स्वाद मुँह में सूखापन उत्पन्न करता है।
  • यह स्वाद में क्षारीय तथा नींबू के विपरीत और अधिक क्षुधावर्धक होता है।
  • यह आँसू, पसीना तथा लार उत्पन्न करता है।

कषाय रस युक्त खाद्य पदार्थ –

कसैले पदार्थ हैं – हरड़, बहेड़ा, कमल ककड़ी, शिरीष, खैर आदी ।

कषाय रस के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान (दुष्प्रभाव) –

इसका अधिक मात्रा में इस्तेमाल- कब्ज, मुँह में खुश्की बढ़ाता है और पेट को फुलाता है। वात-असंतुलन के लिए सख्त भोजन हितकर नहीं है।

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