डिप्रेशन की पहचान व इससे बाहर निकलने के उपाय

Last Updated on July 30, 2019 by admin

आखिर अवसाद या डिप्रेशन है क्या ?

डिप्रेशन, अवसाद, मायूसी ये सब हम मनुष्यों के लिए आज बिलकुल आम हो चुके हैं, जबकि यक़ीन मानिए पिंजरे में कैद सिंह या तोता, बँटे से बँधी गाय या बकरी, और बेड़ियों में जकड़े हाथी, इनके मन में कभी मायूसी नहीं होती। इनके मन में उम्मीद और आशा हमेशा होती है कि एक न एक दिन हम इनसे आज़ाद ज़रूर हो जाएँगे। हो सकता है कि इस आज़ादी में कुछ घंटे, दिन, महीने या साल लग जाएँ लेकिन उनकी उम्मीद कभी नहीं टूटती। इसके ठीक विपरीत जब इंसान किसी भी बेड़ी या पिंजरे के बिना ही खुद को जकड़ा हुआ, असहाय और निराश मानने लगता है, बस इसे ही अवसाद या डिप्रेशन कहते हैं।

निराशा के समंदर में गोते लगाते लोग अक्सर यह भूल जाते हैं कि ईश्वर ने उन्हें एक अद्वितीय मस्तिष्क दिया है, जो कुछ भी प्राप्त करवा सकता है। हाँ, कुछ भी, जो भी आप पाना चाहें। अपनी क्षमताओं को शून्य मानकर स्वयं पर आई हुई मुसीबतों या केवल मुसीबतों के बारे में सोच-सोचकर उनके सामने घुटने टेक देने को ही अवसाद कहते हैं और आजकल हम मनुष्यों में यह घुटने टेकने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। इस बात का अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 2020 तक मृत्यु की दूसरी सबसे बड़ी वजह अवसाद होगी। एक सर्वे के अनुसार 57 फ़ीसदी महिलाएँ छोटे-बड़े मानसिक विकारों की शिकार हैं, 50 फ़ीसदी भारतीय जीवन में किसी न किसी मानसिक विकार से ग्रस्त होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का कहना है कि भारत में आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।

अमेरिकी संगठन एन.एस.एफ़. (NSF) ने दुनिया के 18 देशों में 90 हज़ार लोगों का सर्वे किया जिसमें 36 प्रतिशत रोगियों के साथ भारत पहले स्थान पर, फिर फ्रांस और तीसरे स्थान पर अमेरिका रहा। इन 18 देशों में सबसे निचले पायदान पर 12 प्रतिशत रोगियों के साथ चीन है। मतलब यह कि हम भारतीय केवल शारीरिक बीमारियों में ही विश्व में अव्वल नहीं हैं। बल्कि मानसिक बीमारियों के मामले में भी अव्वल हो गए हैं।

डिप्रेशन के शिकार लोग सोचते हैं कि वे खुद को जानते हैं, लेकिन शायद वे सिर्फ डिप्रेशन को जानते है”।

-मार्क एटस्टीन (अमेरिकी मनोविश्लेषक)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डिप्रेशन :

डिप्रेशन एक सामान्य मानसिक विकार है, जिसमें मनोदशा तो उदास रहती ही है रुचि या खुशी भी गायब हो जाती है, अपराध या कम आत्म-सम्मान की भावनाएँ सताती हैं। रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियाँ सँभालने की इंसानी योग्यताएँ दूषित हो जाती हैं। सबसे बुरी स्थिति में डिप्रेशन आत्महत्या की ओर ले जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की दी हुई डिप्रेशन की परिभाषा से हमें पता चल जाता है कि मार्क एटस्टीन कितने सही हैं। वे सच ही तो कहते हैं कि डिप्रेशन से पीड़ित लोग ख़ुद को नहीं केवल डिप्रेशन को ही समझते हैं। स्वयं की क्षमताओं और महान योग्यताओं को वे कमतर या शून्य आँकते हैं। मैं मार्क एटस्टीन के वाक्य में “तीन शब्द” और जोड़ना चाहूँगा और ईश्वर को” –
“डिप्रेशन के शिकार लोग सोचते हैं कि वे खुद को और ईश्वर को जानते हैं, लेकिन शायद वे डिप्रेशन को जानते हैं।”

आम लोगों को ही नहीं बल्कि कई मशहूर लोगों को भी अवसाद ने पीड़ित किया है, जैसे अब्राहम लिंकन युवावस्था में मैलेनकोलिया से ग्रस्त रहे हैं, ओप्रा विन्फ़ी भी 25 से 28 साल की आयु के बीच डिप्रेशन से गुज़री हैं। हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग, प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भी डिप्रेशन को झेला है। लेकिन ये लोग डिप्रेशन से जिंदगी भर नहीं जूझे, कुछ ही समय में इन्होंने जीवन को फिर से जीना शुरू कर दिया था। क्योंकि महान संत कन्फ्यूशियस ने कहा था,
हमारी सबसे बड़ी महिमा कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि गिरने के बाद उठने में है।”
अब्राहम लिंकन, जेके रोलिंग, दिलीप कुमार, ओप्रा विन्फ्री और दीपिका पादुकोण से हमें सीखने की आवश्यकता है, “डिप्रेशन को हराओ, खुद को नहीं ।”

लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर विक्रम पटेल का कहना है, “2010 में युवा पुरुषों में आत्महत्या से होने वाली मृत्यु सड़क दुर्घटना से होने वाली मृत्यु से दुगुनी थी।” मतलब हमारे युवा स्वयं को ज़्यादा मार रहे हैं जबकि दूसरों की ग़लतियाँ उनकी मृत्यु के लिए कम ही ज़िम्मेदार हैं।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हैल्थ का कहना है, “पिछले दो दशकों के शोध ने दर्शाया है कि हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर के साथ ही डिप्रेशन भी हृदय रोग का एक महत्त्वपूर्ण जोखिम घटक है।” अर्थात डिप्रेशन हमारे दिल को भी तिल-तिल जलाता है।

डिप्रेशन की पहचान या लक्षण :

हम कैसे जानें कि हमें डिप्रेशन है ?

डिप्रेशन के रोगी में निम्न में से कुछ या सभी लक्षण अल्प या तीव्र प्रबलता के साथ उपस्थित हो सकते हैं –
• विचारों और नज़रिये में निराशावाद
• लगातार रोना या रोने का दिल करना
• अनिद्रा या नींद में कमी
• आत्महत्या के विचार
• हर किसी से लड़ना
• डर लगना
• बेहद संवेदनशीलता – छोटी-छोटी बातों का बुरा मानना
• हर व्यक्ति को अपना शत्रु मानना
• हमेशा थकान महसूस करना
• अनुचित अपराध बोध
• ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का घटना
• असुरक्षित महसूस करना निर्णय लेने की क्षमता में कमी
• भूख का बढ़ना या कम होना
• वज़न का बढ़ना या कम होना।

जब हमें इनमें से सभी या कुछ लक्षण प्रकट होने लगे (याद रखें कि ये लक्षण कई दिनों तक रहते हैं) तो हम डिप्रेशन की चपेट में हैं।

डिप्रेशन से बाहर निकलने के उपाय :

डिप्रेशन एक ऐसा रोग है जिसमें यदि सही दिशा में सही कदम उठाए जाएँ तो इससे मुक्ति आसानी से और शीघ्रता से पाई जा सकती है। आइए, हम समझें कि कैसे इस रोग को अपने अंदर से निकालकर बहार हवा में फेंक दें :

  1. धार्मिक दृष्टिकोण विकसित करें –
    मेरा मानना है, जो अनुभवसिद्ध है, “लगभग 100 प्रतिशत मानसिक रोगों को धर्म द्वारा ठीक किया जा सकता है।” नोबेल पुरस्कार विजेता मनोविश्लेषक डॉ. ए.ए. ब्रिल का कहना है, “सच्चे धार्मिक व्यक्ति को कभी भी मानसिक रोग नहीं होते।
    महात्मा गाँधी ने कहा था, “बिना प्रार्थना के तो मैं कब का पागल हो गया होता।”
    हाँ, धार्मिक आस्था या दृष्टिकोण से हम मनुष्य निराशा के दलदल से निकलकर आशा की निर्मल आनंद वाली नदी में आ जाते हैं। तो मेरा मानना है कि डिप्रेशन को नष्ट करने का सबसे अच्छा हथियार “धर्म” है।
  2. अच्छी पुस्तकें पढ़े –
    पुस्तकें हम इंसानों की सच्ची मित्र होती हैं। जब भी आपको किसी महान व्यक्ति से बात करना हो तो आप उसकी पुस्तक पढ़ने लगें, आपका संवाद उनसे हो जाएगा। चिंता और निराशाओं से मुक्ति के लिए मैं आपको कुछ पुस्तकों के नाम बताता हूँ, भगवान श्रीकृष्ण की भगवदगीता ,श्री योगवशिष्ठ महारामायण , श्रीमद भागवत कथा ,डेल करनेगी की हाउ टू स्टॉप वरी ऐंड स्टार्ट लिविंग, थॉरो की वालडेन, जैक कैनफ़ील्ड की चिकन सूप फॉर सोल(आत्मा के लिये अमृत) और शेख सादी की, गुलिस्तान।
  3. पौष्टिक भोजन करें –
    यदि हम अच्छा आहार लेंगे तो हमारे विचार भी अच्छे होंगे, इसलिए पौष्टिक भोजन करें तथा सही समय पर करें। एक रिसर्च के अनुसार यदि रोगी बस सुबह पौष्टिक नाश्ता कर ले, तो डिप्रेशन के आवेगों में 50 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। इसलिए समय पर और अच्छा भोजन खाएँ।
  4. प्रकृति की तरफ़ बढ़े –
    आधुनिकता की दौड़ से थोड़ा हटकर कुदरत की ओर कदम बढ़ाएँ। धरती, सूर्य, चंद्रमा, तारे, पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों को देखें और इनका आनंद लें। कम से कम शुरुआत इसी से करें कि आप रोज़ाना सूरज को उगते हुए देखें। इससे आपके अंदर भी ऊर्जा और आशाओं की तरंगें दौड़ जाएँगी।
  5. सच्चे मित्र बनाएँ –
    डिप्रेशन से पीड़ित रोगियों के लिए सबसे अच्छी औषधि मित्र ही है। अपने मित्रों के संपर्क में रहे, उनसे अपनी समस्या साझा करें, उनसे मदद लें।

डिप्रेशन की दवाओं के घातक दुष्परिणाम / नुकसान :

अमेरिका में एक अध्ययन के अनुसार ऐंटी-डिप्रेसेंट्स दवाएँ आमतौर पर उन्हीं मामलों में कारगर हैं, जिनमें डिप्रेशन गंभीर स्तर पर पहुँच चुका है। प्रोजैक” जैसी दवाएँ ज़्यादातर मामलों में मरीजों को कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं पहुँचाती हैं।

प्रोजैक को डिप्रेशन दूर करने की सबसे आम दवा माना जाता है। यह 1988 में अमेरिका में आई, इसके एक साल बाद इसे ब्रिटेन में लाया गया। बॉन इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी के एक अध्ययन के अनुसार 2010 में यूरोप के प्रत्येक 10 में से एक आदमी यह दवा लेता था। यू.एस. सेंटर फ़ॉर डिसीज़ कंट्रोल रिसर्च के मुताबिक़ अमेरिका में 12 वर्ष से ऊपर के लगभग 11 फ़ीसदी लोग ऐंटी डिप्रेसेंट्स का सेवन करते हैं।

इन दवाओं से धमनियाँ मोटी हो सकती हैं। जिससे शरीर में रक्त संचरण बाधित होने की आशंका रहती है। इससे दिल का ख़तरा पैदा हो सकता है। इमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के एक अध्ययन के अनुसार इन दवाओं से दिल को ख़तरा और बढ़ सकता है। अवसादरोधी दवाओं से रक्त वाहिकाओं पर नकारात्मक असर होने लगता है।

सारांश :

इस पृथ्वी पर शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति रहा हो जिसे कि डिप्रेशन या निराशा ने नहीं घेरा हो। हाँ, इंसान निराशाओं के भंवर में कभी-कभी फसता ही है। डिप्रेशन या निराशा से मुक्ति पाना हर मनुष्य का कर्तव्य है, उसका धर्म है। क्षणिक निराशा हमारा गुण (अवगुण) है और घोर निराशा एक रोग। अपनी क्षमताओं को पहचानें, उसका प्रयोग करें, ईश्वर पर भरोसा करें, अच्छी पुस्तकें पढ़ें, प्रकृति की ओर कदम बढ़ाएँ, पौष्टिक भोजन करें और मित्रों से घिरे रहें। इस प्रकार आप इस निराशा को कुचल देंगे, और आप कुचल सकते हैं। सभी मनुष्यों की तरह। याद रखें, “हर मुश्किल के साथ आसानी है” – यह एक शाश्वत नियम है।

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