पोस्टपार्टम डिप्रेशन (प्रसूति पश्चात आनेवाला तनाव) – Postpartum depression in Hindi

Last Updated on March 5, 2023 by admin

1). पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या है ? (What is Postpartum depression in Hindi)

जवाब : पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक ऐसी अवस्था है जो किसी भी महिला को बड़ा आघात पहुँचा जाता है, इसमें महिला निराशा से घिर जाती है और उसे अपने स्वयं के प्रति और बच्चे के प्रति भी बिलकुल मोह नहीं रहता । वह महिला पूर्णतः निराशा के चंगुल में फँसकर सब कुछ भूल जाती है।

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2). पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण क्या है ? (Postpartum depression Symptoms in Hindi)

जवाब : कुछ लक्षणों से पोस्टपार्टम डिप्रेशन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जैसे –

  • प्रसूति के बाद उदासी छाना,
  • नींद न आना,
  • भूख न लगना,
  • चिड़चिड़ापन,
  • भावुक होना,
  • किसी भी काम में मन न लगना,
  • थकावट,
  • अस्वस्थता,
  • बैचेनी,
  • बार-बार रोना आना आदि पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण होते हैं।

ये लक्षण प्रसूति के दो-तीन सप्ताह में दो महीने के अंतराल में शुरू होते हैं। इस पोस्टपार्टम डिप्रेशन का यदि सही समय पर इलाज न किया गया तो इन लक्षणों में वृद्धि होकर ‘पोस्टपार्टम सायकोसिस’ की अवस्था आती है, जिसके लक्षण अत्यंत गंभीर होते हैं। जैसे शंकाओं का निर्माण होना, बच्चे के प्रति नफरत, द्वेष उभरना, कभी-कभी बच्चे को नुकसान पहुँचाने के विचार आना या फिर बच्चे को मार डालने के विचार आना । इस दौरान महिला अतार्किक विचारों से, भ्रमों से घिरी रहती है।

महिला के बातचीत और बरताव में भी बहुत सारी अतार्किकता, अलग अनूठापन दिखाई देता है। महिला अपनी नवजात शिशु की देखभाल नहीं करती, उसे सँभालना नहीं चाहती। कभी-कभी तो महिला को ऐसा भ्रम होता है कि अभी उसकी प्रसूति हुई ही नहीं है या बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ है या उसकी शादी ही नहीं हुई है या कोई गलत शक्ति उसे तकलीफ दे रही है।

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3). पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पोस्टपार्टम सायकोसिस के कारण क्या हैं ? (Postpartum depression Causes in Hindi)

जवाब : पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पोस्टपार्टम सायकोसिस के कारण है –

a) जैविक कारण : गर्भधारणा में महिला के शरीर में बहुत सारी जैविक, रासायनिक हार्मोन्स बदलाव होते हैं। प्रसूति के तुरंत बाद जो एस्ट्रोजन (estrogen) प्रोजेस्ट्रोन (progesterone) हार्मोन में अचानक बहुत बड़ी गिरावट होती है, जिसे महिला का शरीर सँभाल नहीं पाता।

b) सामाजिक कारण और तनाव : गर्भावस्था और प्रसूति के पश्चात यदि महिला तनावयुक्त हो तब ऐसी समस्याएँ उत्पन्न होने की संभावना रहती हैं। यदि महिला को बेटे की चाहत हो और उसे बेटी पैदा होती है तो वह नाराज होती है क्योंकि वह इस मान्यता में होती है कि यदि बेटा पैदा हुआ होता तो उसे मानसम्मान मिलेगा लेकिन होता इसके विपरीत है तब महिला तनावग्रस्त हो जाती है। इस विचारधारा के कारण उसके मन में अस्वीकारभाव, अपराधबोध और गुस्सा पनपता है, जो तनाव देता है।

c) आंतरिक वैयक्तिक कारण : कुछ लड़कियाँ शादी के लिए तैयार नहीं रहतीं। उन्हें लगता है कि यह शादी के लिए उचित समय नहीं है। ऐसे में दुःखद शादीशुदा जीवन में माँ बनकर वे संघर्षयुक्त जीवन जीती हैं या कुछ महिलाओं में यह असुरक्षा की भावना निर्माण होती है कि अब माँ बनने के बाद उसके करियर में रुकावट तो नहीं आएगी या उसका करियर खत्म तो नहीं हो जाएगा? कुछ घरों में बेटी का जन्म अस्वीकार होता है। घर के सभी सदस्यों के रूखे बरताव, अस्वीकारभाव और बच्चे के परवरिश में सहायता न मिलने से महिला तनाव में रहती है।

प्रसूति के बाद बच्चे को पूरे 24 घंटे सँभालने की जिम्मेदारी, रात में बच्चे की वजह से पूर्ण नींद आदि बातों से शारीरिक और मानसिक चैलेंजेस, तनाव की वजह से बदलाहट होती है। बच्चे की सुरक्षा की चिंता भी एक कारण होता है। यदि किसी कारणवश बच्चे की मृत्यु हो जाती है तो माँ को गहरा सदमा पहुँचता है या नवजात शिशु व्यंगता लिए हुए हो या बीमारी की वजह से अस्पताल में महीनों भरती कराया गया हो तो माँ को उस दौरान असुरक्षा महसूस होती है, बच्चे के जीवन के बारे में डर लगा रहता है।

ऐसे कई कारणों की वजह से महिलाएँ पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पोस्टपार्टम सायकोसिस की शिकार होती है। इसका प्रमाण 15-20 प्रतिशत होता है।

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4) पोस्टपार्टम डिप्रेशन का उपचार क्या है ? (Postpartum depression Treatment in Hindi)

जवाब : सबसे पहले मनोविकार तज्ञ से मार्गदर्शन से ऐसी दवाइयाँ शुरू की जाएँ जो बच्चे को हानि न पहुँचाए, यदि माता स्तनपान कराती है। परिवार के लोगों को चाहिए कि उसकी समस्या समझकर उसे सहारा दें। ऐसे समय में हो सकता है महिला आत्महत्या करने की सोचे तो उसका पूरा ध्यान रखा जाए या यदि महिला अपने शिशु को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करे तो बच्चे का पूरा ध्यान परिवार के सदस्यों को चौबीस घंटे रखना चाहिए। घर का माहौल शांत, आनंदित और सहायक रखना चाहिए। पीड़ित महिला के खान-पान और दवाइयों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

पीड़िता के दवाइयों से ठीक होने पर स्थाई परिणाम के लिए उसे किसी समुपदेशक के पास लेकर जाए तथा उसकी काउन्सलिंग करवाएँ या किसी इमोशन फ्रीडम थेरपिस्ट से राहत दिलवाएँ। इस थेरपी में पीड़िता को मुख्य प्रश्न (Core issue) पर काम करवाएँ। यह वैकल्पिक उपचार करवाना इसलिए भी जरूरी है कि इन उपचारों में दवाइयों का इस्तेमाल नहीं होता किंतु इसके उपचार से स्थाई राहत मिलती है। पीड़िता के ठीक होने के बाद भी उपचार शुरू रखें, तुरंत बंद न करे।

5) पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचाव कैसे किया जाता हैं ? ( Prevention of Postpartum depression in Hindi )

जवाब : निम्न निर्देशों का पालन करने का प्रयास करें –

  • पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पोस्टपार्टम सायकोसिस से बचने के लिए गर्भधारणा से पहले ही मानसिक तैयारी करें।
  • घर का माहौल आनंदित रखें ।
  • पति-पत्नी के बीच प्रेमपूर्ण, समझदारी भरा व्यवहार हो।
  • गर्भावस्था के दौरान सात्विक आहार, नींद, व्यायाम, सकारात्मक सोच, गर्भसंस्कार करवान सही होगा। ऐसी अवस्था में स्त्री को सकारात्मक विचारों से युक्त पुस्तकों का पठन करना चाहिए तथा आनेवाले शिशु के लालन-पालन के लिए मार्गदर्शित पुस्तकें पढ़कर तैयारी करनी चाहिए।

इस प्रकार गर्भावस्था का पूरा समय आनंदमय और यादगार बने ताकि भविष्य में तनाव और मनोविकार ग्रसित ना हो।

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