शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य एवं होनेवाली संतान को पुष्टता, स्वस्थता, सुन्दरता, संस्कारवान् एवं दीर्घायु-हेतु गर्भावस्था में निम्नाङ्कित बातों पर ध्यान देना चाहिये
निरोगी सुंदर संतान प्राप्ति के लिए गर्भवती महिला के लिए जरूरी टिप्स : Garvati Mahila ke Liye Jaruri Jankari
1. गर्भवती को हमेशा शोक, दुःख, रंज एवं क्रोध से दूर रहकर प्रसन्नचित्त रहना चाहिये। (और पढ़े – गर्भाधान संस्कार की विधि)
2. मन में कभी कलुषित विचार न आने दे, किसीकी निन्दा करे, न सुने किसी के साथ ईर्ष्यालु व्यवहार भी न करे।
3. किसी वस्तु को चोरी-चोरी खाने की चेष्टा न करे। न किसी वस्तु को चुराने का भाव मनमें लाये। हमेशा सात्त्विक, धार्मिक एवं परोपकारी भाव रखे। क्योंकि इनका प्रभाव गर्भस्थ शिशुपर पड़ता है। जैसे विचार या भाव गर्भवती के रहेंगे, वैसी ही गर्भ की प्रकृति निर्मित होगी।
4. सड़े-गले, गंदे पदार्थ एवं रात का बचा बासी भोजन न खाये। शुद्ध सात्त्विक एवं भूख से कम भोजन करे।( और पढ़े – गोरी संतान पाने के उपाय)
5. भाँग, मदिरा, धूम्रपान एवं अन्य नशीले पदार्थको सेवन न करे।
6. अश्लील गंदा साहित्य न पढे, न अश्लील चलचित्र (सिनेमा) आदि ही देखे। अपने शयन-कक्ष में भद्दे-गंदे चित्र न लगाये, न उनका अवलोकन करे। भगवान के , संत-महापुरुषों के तथा वीर सपूतों के सुन्दर चित्र लगाये।( और पढ़े –गर्भावस्था में कभी न खायें यह चीज )
7. दिन में अधिक न सोये। रातमें अधिक देरतक जागरण न करे।
8. हमेशा शरी रको शुद्ध, स्वस्थ बना ये रखने का प्रयास करे। गंदी हवा एवं अशुद्ध वातावरणसे दूर रहे।( और पढ़े – मासानुसार गर्भवती महिला की देखभाल)
9. सहवास से सर्वथा दूर रहे। इससे गर्भपात होनेका डर रहता है अथवा शिशु अल्पायु या विकृत अङ्गवाला हो सकता है, संयम-नियम से रहे।
10. अधिक जोरसे हँसना, जोर से चिल्लाना, अधिक बोलना, बार-बार चिढ़ना, हमेशा क्रोधयुक्त चेहरा बनाये रखना एवं अपशब्दों का बार-बार प्रयोग करना गर्भवती के लिये वर्जित है।
11. अधिक रोना, शोक करना, अधिक चिन्ता करना भी उचित नहीं है, इसका गर्भस्थके स्वास्थ्यपर प्रभाव पड़ता है।
12. गर्भवती महिला को कोयले से या नाखूनसे पृथ्वीपर नहीं लिखना चाहिये, न कोई आकृति बनानी चाहिये।( और पढ़े – गर्भवती महिला के लिए पुष्टिवर्धक संतुलित भोजन)
13. गर्भावस्था में महिलाओं को बार-बार सीढ़ियाँ चढ़ना-उतरना नहीं चाहिये, न भारी वजन उठाना चाहिये तथा हाथी, घोड़ा और ऊँट की सवारी करना भी वर्जित है।
14. गर्भवती महिला को नाव में बैठकर नदी पार करना या जलाशय की सैर करना मना है। न अकेले में किसी पेड़के नीचे सोना चाहिये।
15. कटु, तीखे, कसैले, अधिक गर्म या अधिक चटपटे मसालेदार पदार्थ नहीं खाने चाहिये।
16. गर्भवती को पपीता नहीं खाना चाहिये, इससे गर्भक्षय होनेका भय रहता है।
17. गर्भवती को बाल खुले रखना, सबेरे देरतक सोते रहना एवं कुक्कुटकी तरह बैठना वर्जित है।
18. देरतक आगके पास बैठना या अधिक ठंडे स्थान पर बैठकर कार्य करना, झाड़, सूप, ऊखल, हड्डी, राख या कंडे पर बैठना मना है।
19. गर्भवती महिलाको हमेशा उत्तम सुसंस्कृत साहित्यका अध्ययन करना, माङ्गलिक गीत एवं ईश्वर-भजन करना चाहिये।
20. गर्भवती महिला का भोजन- गर्भवती के लिये अधिक उपवास करना, गरिष्ठ भोजन करना, अवशिष्ट पदार्थ का सेवन करना वर्जित है। | इस प्रकार गर्भवती महिलाके द्वारा किये गये क्रिया-कलाप, खान-पान, बोल-चाल, श्रवण-मनन आदि का गर्भपर गहरा प्रभाव पड़ता है।
यहाँ महाभारत की एक कहानी याद आती है कि वीर अभिमन्यु जब माता के गर्भ में था, तब उसने अपने पिता अर्जुन के द्वारा चक्रव्यूह तोड़ने की कथा सुनी थी, पर व्यूह से निकलने की कथा के समय माता को नींद आ जाने से पिताने आगे की कहानी सुनानी बंद कर दी थी। इसलिये उसने चक्रव्यूह तोड़ना तो सीख लिया था, पर निकलना नहीं सीख पाया। यही कारण है कि वह व्यूह में मारा गया। अतः गर्भावस्था के समय महिलाओं को बहुत सावधान रहकर जीवन-यापन करना चाहिये। गर्भवती माता का व्यवहार ही बच्चेका व्यवहार निर्मित करता है।