सात्विक भोजन तैयार करते समय रखे इन बातों का ख्याल

Last Updated on November 22, 2020 by admin

☛ हमारा मन ही हमारी दवाई है इसलिए हमेशा सही सेहतमंद अन्न चुनें।

☛ जीभ को केंद्र में रखकर आहार न चुनें। जीने के लिए खाएँ, खाने के लिए न जीएँ।

☛ सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी व्यंजन पकाते हुए, पकानेवाला अगर आनंदित और संतुष्ट हो तो ही उसका पकाया व्यंजन अच्छा बनेगा और उसे खानेवाला संतुष्ट होगा।

☛ व्यंजनों की सामग्री को एकत्रित करने के लिए काँच या स्टील के बरतनों का इस्तेमाल करें। क्योंकि अन्न पर धातु का परिणाम हो जाता है। जैसे की नींबू-निचोड़कर बनाया व्यंजन अगर पीतल के बरतन में हो तो वह खराब हो सकता है।

☛ याद रहे ! जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, वही जीभ को भी अच्छा लगे, ऐसा हमेशा नहीं होता है। अन्न से शरीर का भरण-पोषण होता है इसलिए रोज सभी पोषकता से भरपूर, संतुलित मिताहार का सेवन करें।

☛ खाना बनाते समय उसमें उस मौसम में उपलब्ध फलों और सब्जियों का इस्तेमाल ज़रूर करें।

☛ सब्ज़ियाँ और फल ताज़ा और रसदार होने चाहिए।

☛ व्यंजनों में तेल का इस्तेमाल न्यूनतम होने के कारण ताज़ा कसा हुआ नारियल और ड्राय फ्रूट का इस्तेमाल अधिक होना चाहिए।

☛ व्यंजन तैयार होने के आधे घंटे में ही उसका सेवन करें। उसे ज़्यादा देर तक न रखें।

☛ सभी सब्ज़ियाँ, खासकर हरे पत्तोंवाली सब्ज़ियाँ और फलों को अच्छे से धोकर और पोंछकर ही उनका इस्तेमाल करें। पत्तोंवाली सब्ज़ियाँ धोते समय पानी में खानेवाला सोडा और ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल करें। सब्ज़ियों को उस पानी से निकालने के बाद फिर एक बार अच्छे पानी से धोएँ।

☛ आहार में सभी अनाज़ द्विदल अनाज की दालें (लेग्यूम्स) सब्ज़ियाँ, फल एवं फायबर्स तथा कच्चे तत्त्वों का समावेश हो ।

☛ रोज एक प्लेट सब्ज़ियों का कच्चा सलाद खाएँ। गाजर, ककड़ी, टमाटर, बीट, मूली, बंदगोभी, फूलगोभी, मेथी, पालक इत्यादि।

☛ सलाद सब्ज़ियों का खाएँ (कफ प्रकृति के लोग सब्जियों को स्टीम करके खाएँ।) भोजन की शुरुआत सलाद से करें।

☛ रोज आधी कटोरी अंकुरित अनाज़ (दलहने) खाएँ। मूंग, मोठ (मटकी), मसूर, चना, चौलाई, मूंगफली इत्यादि का सलाद ले सकते हैं। (वात प्रकृति के लोग इन्हें हलका उबालकर लें) रोज भोजन से पहले 2-3 ताज़ा फलों की डिश का ज़रूर सेवन करें। अमरूद, पपीता, संतरा, मोसंबी, केला, सेब, सीताफल, चीकू, अनान्नास, तरबूज़ (कलिंगड़) अंगूर आदि फलों का समावेश हो। मौसम के अनुसार आसानी से उपलब्ध होनेवाले फल चुनें।

☛ सोयाबीन की कॉफी, मूंग का सूप, रागी (नाचनी) का माल्ट, जवार का दलिया, सब्ज़ियों का सूप, ओटस् का दलिया, हलीम (अहळीव, Garden cress) की खीर, कुलथी (कुळीथ, Horse gram) का माल्ट आदि द्रव्यरूप पौष्टिक आहार दिन में एक बार ज़रूर लें ।

☛ हमेशा चोकर युक्त (छिलके युक्त) गेहूँ के आटे की रोटी खाएँ। जवार, रागी, मकई, बाजरा, गेहूँ आदि जैसे विविध अनाजों की रोटी खानी चाहिए। मिश्रित आटे की रोटी का भी सेवन कर सकते हैं। अपने रोज के खाने में विविधता रखें।

☛ कम से कम पॉलिश किए हुए चावल (unpolished or brown rice) या ब्राऊन राइस सेहतमंद होता है। अनाज़ के छिलके में कई एंटीऑक्सिडेंट्स एवं विटामिन्स होते हैं।

☛ अन्न का असर तन के साथ-साथ मन पर भी होता है इसलिए तामसिक अन्न (पुराना, बासी, रखा हुआ, डिब्बाबंद, पॅकबंद, सत्वहीन, बाजार में उपलब्ध पदार्थ) राजसिक अन्न (उष्ण, तीखे, रूक्ष, खट्टे, चटपटे, कडवे, मसालेदार, तली हुई चीज़ों) का सेवन बंद करें। ताज़ा बनाया हुआ सभी स्वादों में संतुलित सात्विक अन्न ही ग्रहण करें।

☛ बहुत बार पकाया हुआ या गरम किया हुए भोजन का पी.एच. बैलेंस एसिडिक हो जाता है इसलिए होटल या बाहर मिलनेवाले फास्ट-फूड, पार्टियों में खाए जानेवाले गारिष्ट भोजन का सेवन बंद करें।

☛ चाय, कॉफी, सॉफ्ट ड्रिंक्स तथा डिब्बाबंद जूस का सेवन न करें। उनकी जगह पर ग्रीन टी, हर्बल चाय, सोया कॉफी, कषाय, छाछ, मट्ठा, अलग-अलग शरबत तथा ताज़े फलों के रस का सेवन करें।

☛ मैदे से बने तथा बेकरी के सभी पदार्थ जीभ को लुभाते ज़रूर हैं लेकिन उनमें कई तरह के प्रिज़र्वेटिव्ज़, कलर्स, फ्लेवर्स आदि कार्सिनोजेनिक (विषाक्त) रसायन होते हैं, उनका सेवन न करें।

☛ शक्कर और शक्कर से बनी मिठाइयों का सेवन कम से कम करें। ऐसी कहावत है कि ‘जो शक्कर की चीजें सेवन करता है, ईश्वर उसे ज़ल्दी लेकर जाते हैं!’

☛ मनुष्य के शरीर की रचना शाकाहार के अनुरूप है इसलिए अंडे, मांस मछली, मांसाहारी, तामसिक चीज़ों का अपने भोजन में समावेश न करें। हमारा शरीर एनिमल प्रोटीन्स (विजातीय तत्त्वों) को स्वीकार नहीं कर पाता। काजू, बादाम, अखरोट, पिस्ता, अंजीर, खजूर, मुन्नका, तिल जैसे ड्रायफ्रूट्स को पानी में भिगोकर
रोज, उपयुक्त मात्रा में सेवन कर सकते हैं।

☛ जब भूख हो तो ही भोजन करें। भूख से थोड़ा कम आहार ही सेवन करें।

☛ अपनी उम्र, कामकाज, श्रम इत्यादि के अनुसार आहार ग्रहण करें। अपने पेट को डस्टबिन न बनाएँ, बार-बार खाते न रहें। जठराग्नि को प्रदिप्त होने दें।

☛ खुद को एक निर्धारित समय पर भोजन करने की आदत डालें। एक जगह शांत चित्त से मौन में बैठकर भोजन करें, हर निवाला भरपूर चबाकर खाएँ।

☛ भोजन के कुछ समय बाद वज्रासन और शतपदी ज़रूर करें।

☛ भोजन से पूर्व प्रार्थना करें।

☛ भोजन के तुरंत बाद पानी न पीएँ। भोजन के एक से डेढ़ घंटे बाद पानी पी सकते हैं। रात सोने से तीन घंटे पहले आहार ग्रहण करें यानी दिन ढलने से पहले।

☛ दोपहर के बारह बजे के आस पास पित्त काल होता है। उसी दौरान दोपहर का भोजन कर लें।

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