Last Updated on July 22, 2019 by admin
खचाखच भरी सड़कों पर यातायात-साधनों का चीत्कार, गली-मोहल्लों में लाउडस्पीकर पर बज रही बेसुरी धुनों का हो-हल्ला, घरों में फुल वाल्यूम पर चल रहे ट्रांजिस्टर, रेडियो, स्टीरियो, टेलीविजन और अन्य आधुनिक घरेलू उपकरणों का जहाँ-तहाँ निहत्थे लोगों पर फेंके गए हथगोलों, गोला-बारूद और दनदनाती गोलियों का-सा शोर। इस पर मशीनों से जूझते हुए लोगों के लिए मशीनों का शोर ! बेइंतहा शोर अब जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है और यह दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। हालाँकि अध्ययनों द्वारा यह साबित हो गया है कि यह कोलाहल स्वास्थ्य के लिए कतई ठीक नहीं। इसके तरह-तरह के दूरगामी असर हो सकते हैं। यह श्रवण-शक्ति का ह्रास तो करता ही है, साथ ही, इससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रकार :
तरह-तरह का शोर – यों तो किसी भी अनचाही, अप्रिय ध्वनि को ‘शोर’ का नाम दे दिया जाता है, पर श्रवण-विज्ञान की भाषा में ऐसी कोई भी ध्वनि, जो कर्ण-क्षमता पर प्रतिकूल असर डाल सकती हो, ‘शोर’ की संज्ञा के अंतर्गत आती है।
यह शोर भी कई तरह का हो सकता है-जैसे, बराबर एक-सा बने रहने वाला शोर, जो परिवेश में बस जाता है, उसका अंग बन जाता है। तेज रह-रहकर उठनेवाले शोर, जैसे धातु के धातु से टकराने पर पैदा होनेवाला शोर। यह बार-बार ऊपर-नीचे होता रहता है अथवा एकाएक जोरों का उठा शोर, जो क्षणिक होता है पर बहुत ही तीव्र होता है,जैसे-गोला-बारूद, पटाखे, आदि फटने के समय तरह-तरह का शोर अपने-अपने ढंग से स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है। अध्ययनों द्वारा यह स्पष्ट हो गया है कि आदमी दिन-भर में 85 से 90 डेसीबल शोर की डोज ही सह सकता है। परिवेश में कितना शोर रहता है, इसका मापन एक खास यंत्र द्वारा संभव है। यह यंत्र है-ऑडियोडोजो मीटर। हवा में आवाज के दाब को मापकर ये यंत्र यह महत्त्वपूर्ण जानकारी दे देता है कि अमुक व्यक्ति कितना शोर झेल रहा है।
मोटरसाइकिल चालक, सावधान ! :
अध्ययनों में यह पाया गया है। कि विभिन्न यातायात साधनों में मोटरसाइकिल सबसे अधिक शोर मचाती है और इसका चालक पर गहरा असर पड़ता है। भारतीय महानगरों के संदर्भ में परिवहन निगमों की बसें भी किसी से पीछे नहीं। तिस पर, साइलेंसर निकालकर वाहन दौड़ाना और लगातार हार्न दबाते रहना मूर्खता ही कही जा सकती है।
हवाई-पट्टियों के आसपास बसे लोगों के लिए चढ़ते-उतरते हवाई यानों का शोर भी खतरे से खाली नहीं। इस तरह कोनकार्ड जैसे हवाई यानों की उड़ान पर कुछ देशों द्वारा लगाया गया प्रतिबंध पूरी तरह सार्थक दिखाई देता है। जिन व्यक्तियों को मोटरचालित मॉडल वायुयान उड़ाने का शौक हो, उन्हें अपना यह शौक फरमाते समय कान में इयर प्लग अवश्य लगाने चाहिए।
आधुनिकीकरण की देन, हाई पावर्ड मोटरचालित घरेलू उपकरणों से भी शोर को बढ़ावा मिल रहा है। मिक्सी, डिश-वाशर, टुल्लू पंप जैसे उपकरण उच्च डेसीबल की ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
पॉप म्यूजिक भी खतरे से खाली नहीं :
पॉप म्यूजिक, चाहे वह पाश्चात्य हो या उसकी देशी नकल, खतरे से खाली नहीं। ऊँची आवाज में सुना गया संगीत भी माधुर्य का स्रोत न रहकर, शोर बन जाता है। बाजारों, गली-मोहल्लों और धार्मिक स्थलों से गूंजते लाउडस्पीकर, घरों में एंप्लीफायर से जुड़े स्टीरियो, उच्च वॉट शक्ति का संगीत उगलने में पीछे नहीं। इनकी कहीं कोई आवश्यकता नहीं। पाया गया है कि एक बड़े हाल में दो हजार संगीत-प्रेमी श्रोता बिना किसी एंप्लीफायर की सहायता से सहज ही एक वायलिनवादक द्वारा छोड़ी गई मधुर धुनों का आनंद उठा सकते हैं। पर छोटे कमरे में इससे उच्च डेसीबल का संगीत सुनना एक फैशन हो गया है। जनाब, मजा कहाँ जब तक कि आस-पड़ोसवालों को यह मालूम न हो जाए कि आपके पास कौन-कौन सी म्यूजिकल कलेक्शन हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संगीतनुमा शोर भी कम खतरनाक नहीं।उद्योगकर्मियों के लिए मशीनों का शोर, एक व्यावसायिक खतरा है। इससे डॉक्टर भी अछूते नहीं। डेंटिस्ट द्वारा इस्तेमाल में लाए जानेवाले कुछ उपकरण इसका सीधा उदाहरण हैं।
जानिये ध्वनि प्रदूषण के नुकसान व होने वाले रोग :
हर तरह का शोर स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करता है। इसका सबसे अधिक असर सुनने की क्षमता पर पड़ता है। शोर अगर कुछ समय के लिए ही हो तो प्रायः यह असर अस्थायी ही होता है। पर यदि कानों में बार-बार शोर पड़ता रहे या एक साथ 160 डेसीबल से अधिक की धमाकेदार आवाज हो, तो इससे कर्ण-शक्ति हमेशा-हमेशा के लिए प्रभावित हो सकती है।
पाया गया है कि 90 से 100 डेसीबल के शोर से हमारे सुनने की क्षमता कुछ घंटों से लेकर चौबीस घंटों तक प्रभावित हो सकती है। इस दौरान व्यक्ति ऊँचा सुनने लगता है, उसके कान में सीटी सी बजने लगती है। यदि उसका इस स्तर के शोर से बार-बार सामना होता रहे, तो वह स्थायी रूप से आंशिक बधिर बन सकता है। उल्लेखनीय है कि एंप्लीफायर स्टीरियो संगीत सुनने के आदी बहुत से व्यक्ति 110 से 122 डेसीबल पर उसे सुनते हैं। उसका क्या परिणाम होगा, इसका अनुमान लगाना अब आपके लिए कठिन न होगा।
इस तरह के शोर से उत्पन्न हुई बधिरता का कारण कान के आंतरिक भाग में पाए जानेवाले अत्यंत संवेदनशील ‘ऑरगेन ऑफ कोर्टी की विशेष कोशिकाओं को पहुँचनेवाली क्षति है। इससे व्यक्ति ऊँचा सुनने लगता है। 160 डेसीबल से अधिक की धमाकेदार आवाज एक बार में ही अपना और आंतरिक कान एक साथ चपेट में आ जाते हैं।
परीक्षणों में यह भी देखा गया है कि शोर से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ जाता है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है, शरीर से अधिक पसीना चूने लगता है और जल्दी थकावट हो जाती है। कुछ का जी भी। मिचलाने लगता है।
ध्वनि प्रदूषण से बचाव ही है इसका इलाज :
शोर से उत्पन्न हुई स्थायी बधिरता का कोई इलाज अब तक संभव नहीं हो पाया है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि जहाँ तक हो सके, इससे बचा जाए। इसमें हर व्यक्ति एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वाहनचालकों, संगीत-प्रेमियों, कारखाना-मालिकों को इसके प्रति सचेत करने से जहाँ एक ओर शोर को कम किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर ऐसे स्थानों पर, जहाँ शोर कम कर पाना संभव नहीं, व्यक्तिगत सावधानी से इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
शोर से बचने का सबसे सरल उपाय है-इयर प्लग। कुछ उद्योगों में, जहाँ शोर से बचना संभव ही नहीं, इस तरह की हिदायतें भी दी गई हैं कि वहाँ काम करनेवालों का नियमित मेडिकल चेकअप किया जाना चाहिए और कुछ-कुछ समय बाद उनकी बदली होती रहनी चाहिए। बहुत से राज्यों में यह भी प्रावधान है कि उद्योगकर्मी कामकाज की जगह पर शोर के कारण आए बहरेपन के लिए मुआवजे की माँग भी कर सकता है। पर तरह-तरह के मधुर स्वरों को सुन सकने की क्षमता खो जाने की क्या कीमत हो सकती है, भला !
शोर से बचिए और दूसरों को उससे बचाइए, इससे भी आपकी श्रवण-क्षमता सुरक्षित रह सकती है।